लुटता-पिटता और पलायन करता हिंदू

0
144

वीरेन्द्र सिंह परिहार

जिस तरह से बांग्लादेश छोड़कर हिंदू भारत में शरण लेने को बाध्य हैं, उसे देखते हुए अगले तीस वर्षों में बांग्लादेश हिंदू विहीन हो जाएगा। ढाका युनिवर्सिटी में जाने-माने प्रोफेसर डॉ. अब्दुल बरकत के अनुसार औसतन 623 हिंदू प्रतिदिन बांग्लादेश छोड़ रहे हैं। उनके अनुसार यदि इसी तरह पलायन होता रहा तो अगले 30 सालो में बांग्लादेश में एक भी हिंदू नहीं बचेगा। डॉ. बरकत के अनुसार पाकिस्तान के निर्माण और फिर बांग्लादेश के मुक्ति आंदोलन के समय निशाने पर हिंदू ही रहे। उनके द्वारा जुटाये गए आंकड़े बताते हैं कि 1964 से 2013 के बीच 1 करोड़ 13 लाख हिंदुओं ने हिंसा और उत्पीड़न के चलते बांग्लादेश छोड़ा है।

लकड़ी, टिन के आधे-अधूरे और टूटे-फूटे घर, कहीं टूटे मंदिर, तो कहीं देवी-देवताओं के टूटे-फूटे अवशेष, उनके पास खड़े निराश-हताश लोगों की तस्वीरें- कमोवेश बांग्लादेश के हिंदू बहुल गाॅवों-मोहल्लों की यही तस्वीर है। कहीं भी एक छोटी सी घटना को इस्लाम से जोड़कर बांग्लादेशी कट्टरपंथी हिंदुओं पर टूट पड़ते हैं। यह एक बड़ी सच्चाई है कि किसी भी इस्लामी देश में इस्लाम के खिलाफ किसी भी अफवाह पर वहां बहुसंख्यक समाज हमलावर हो जाता है। पिछले साल नवम्बर में हरिपुर यूनियन परिषद के हरिनवरेह नामक छोटे से गाॅव में किसी रासराज दास नामक एक बांग्लादेशी ने फेसबुक पर कथित तौर पर एक पोस्ट डाली। इसे इस्लाम के खिलाफ बताकर हिंदुओं और मंदिरों पर हमले शुरू हो गए। पुलिस ने रासराज दास को गिरफ्तार करने पर यह पाया कि वह फोटोशाप जैसी चीजें जानता ही नहीं। इसके बावजूद उप नगरों और ग्रामीण इलाकों में हमले होते रहे। 2016 की दीवाली में कुछ इलाकों में दिए की जगह हिंदुओं के घरों को जलाया गया। दुर्गा पूजा से पहले दुर्गा की प्रतिमाओं को खण्डित कर दिया गया। इन हमलों का सच यही होता है कि बहाने बनाकर हिंदुओं पर हमला करो, ताकि वे भागने को मजबूर हो जाएं। बांग्लादेश के पूर्व न्यायाधीश काजी इबादुल हक भी कहते हैं- ‘इस्लाम के नाम पर अल्पसंख्यक हिंदुओं को जमीन और अधिकार से वंचित किया जा रहा है।’ इसका सीधा-सा मतलब है कि बांग्लादेश भी हिंदुओं के मामले में पाकिस्तान की राह पर है। 1947 में विभाजन के बाद पाकिस्तान में 10 प्रतिशत हिंदू थे, जो वर्तमान में 1 प्रतिशत से भी कम हो गए हैं। दूसरी तरफ पूर्वी पाकिस्तान में (जो बाद में बांग्लादेश बना) उसमें 22 प्रतिशत हिंदू थे, जो अब घटकर 8.5 प्रतिशत रह गए हैं। हिंदू सिर्फ कट्टरवादी मुस्लिम तत्वों के ही शिकार नहीं हो रहे हैं, वरन सरकार की नीतियाॅ भी उनका हौसला तोड़ने वाली हैं। 1965 के युद्ध के बाद जहां शत्रु-सम्पत्ति कानून बनाया गया था, जिसमें 65 के युद्ध के दौरान जो लोग देश छोड़कर चले गए उनकी सम्पत्ति को शत्रु-सम्पत्ति घोषित कर दिया गया। विडम्बना यह कि अलग देश बन जाने यानी बांग्लादेश बन जाने के उपरांत भी उपरोक्त कानून यथावत लागू है। इसी कानून के तहत बांग्लादेशी हिंदुओं की 20 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर कब्जा कर लिया गया है, जो हिंदुओं की कुल भूमि का 45 प्रतिशत है। ढाका युनिवर्सिटी के डीन अजय राॅय कहते हैं कि सरकारी नीतियों के चलते 60 प्रतिशत हिंदू भूमिविहीन हो गए हैं।

बांग्लादेश के सुप्रसिद्ध लेखक सलाम आजाद ने 2002 में एक चर्चित पुस्तक लिखी थी। उसका नाम था- बांग्लादेश से क्यों भाग रहे हिंदू! उन्होंने लिखा है कि जब वह आठवीं कक्षा में पा जा सकता है कि बांग्लादेश में सिर्फ हिंदुओं को ही नहीं उदार मुस्लिमों का भी सुरक्षित रह पाना संभव नहीं रह गया है। ऐसे ही एक ब्लागर अहमद राजीव हैदर को कट्टरवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद मानवाधिकारों की आवाज उठाने वाले ब्लागर विजय दास और अविजीत राय की 2015 में हत्या कर दी गई।

वस्तुतः भारत, नेपाल के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं की तीसरी सबसे बड़ी आबादी रहती है। लेकिन साऊदी अरब के पैसों से बनने और चलने वाले मदरसों-मस्जिदों और पाकिस्तानी आई.एस.आई. के षडयंत्र का सतत् शिकार वहां का हिंदू हो रहा है। ऐसा नहीं कि बांग्लादेशी हिंदुओं के उत्पीड़न की बात समय पर न उठती हो, पर वह दब जाती है। इस संबंध में हिंदू संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरुण उपाध्याय कहते हैं कि अगर भारत ही हिंदुओं की चिंता नहीं करेगा तो कौन करेगा? खासकर पड़ोसी देशों में होने वाले अत्याचारों की अनदेखी नहीं की जा सकती। वस्तुतः बांग्लादेशी हिंदू भारी निराशा और क्षोभ से भरे हुए हैं। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि वहां का कोई भी मंदिर पक्का नहीं है। ऐसा लगता है कि हर मंदिर एकाध बार हमले की जद में आया हो, उसे नष्ट-भ्रष्ट किया गया हो। हिंदू संघर्ष समिति से जुड़े रहे विवेकानन्द देव 7 महीने पहले ही बांग्लादेश छोड़कर भारत आए, जो इन दिनों पश्चिम बंगाल में रह रहे हैं। उनका कहना है- हिंदुओं पर अत्याचार तो हमेशा से ही होते थे, पर हम संघर्ष करते थे, लड़ते थे, बचाव करते थे। पर हिंदुओं की संख्या घटती गई तो बचाव मुश्किल होता गया। खासकर जब सरकार की नीति और बहुसंख्यक समुदाय की नीयत में खोट हो तो भला कब तक बचा जा सकता है।

यह तो दूसरे देश की हालात है, लेकिन वोट बैंक के चलते अपने देश में पश्चिम बंगाल में मुस्लिम-बहुल हिस्सा भी हिंदुओं के लिए असुरक्षित होता जा रहा है। वजह यह कि बंगाल में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 27.1 प्रतिशत तक जा पहंुची है। गत महीने ही कोलकाता से सिर्फ 28 कि.मी. दूर हावड़ा जिले के धुलागढ़ मुकदमे दर्ज कर खानापूर्ति कर रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार बंगाल में ही हिंदुओं की आबादी में 1.94 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है, जबकि मुसलमानों की आबादी 1.77 फीसदी की दर से बढ़त भारत ढो रहा है।

हिंदुओं पर अत्याचार का सिलसिला तो 11वीं शताब्दी से ही मुस्लिम आक्रांताओं के चलते जारी रहा, पर बिडम्बना यह कि स्वतंत्र, धर्मनिरेपक्ष और हिंदू बहुल भारत में भी यह सिलसिला अनवरत चल रहा है। ऐसी स्थिति में क्या जागृत और संगठित हिंदू ही इसका एकमेव समाधान है?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,071 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress