नाजिम अलि मिनहास
सीमावर्ती जिला पुंछ राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं के कारण हमेशा सुर्खियों में बना रहता है। कहीं न कहीं इसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ रहा है। सीमा पर होने के कारण सामान्यतः यह क्षेत्र ऐसी स्थितियों से घिरा रहता है लेकिन एक अन्य समस्या जो इस जिले के लिए सबसे बड़ी समस्या के रुप में उभर कर सामने आई है। वो है बड़ी संख्या में युवाओं में नशे की लत का पाया जाना।
ध्यान देने वाली बात है कि बच्चों द्वारा नशे का उपयोग सीधे रुप में नशे के पदार्थो द्वारा ही नही किया जाता बल्कि मुख्य रुप से मानव शरीर को आवश्यकता अनुसार अल्कोहल प्रदान करने वाले कई दवाओं के रुप में भी किया जाता है। इनमें सबसे बड़ी संख्या खांसी के कफ सीरप की हैं। यूं तो दवाओं का उपयोग कोई समस्या नहीं है। देश में औषधीय चिकित्सा पद्धति का प्रयोग हर युग में होता आया है लेकिन आधुनिक समाज में रोग से मुक्ति पाने के लिए हम जिन दवाओं का प्रयोग करते हैं उनमें अधिकतर ऐसे हैं जिसकी अत्यधिक मात्रा शरीर को नुकसान पहुंचाती है ।
इस संबध में सरकारी अस्पताल के डॉक्टर जावेद चौधरी कहते हैं “ पुंछ में युवा तेजी से नशे की चपेट में आ रहे हैं। अगर हमने जल्द समस्या के समाधान के लिए उपाय नहीं किए तो युवाओं की पूरी पीढ़ीसमाप्त हो जाएगी। हालांकि इसके लिए राजनीतिक स्तर पर करने वाले प्रयासों की कमी है। हमें जल्द से जल्द ऐसी दवाओं के नुकसान के बारे में जनता के अंदर चेतना जागृत करने के लिए कुछ करना होगा। रोगों से मुक्त होने के लिए अधांधुध दवाओं का उपयोग आज पूरे परिवार को नष्ट कर रहा है”।
मेंढर के पत्रकार ताजिम काजी के अनुसार “ऐसा लगता है कि ड्रग्स एक नई प्रवृत्ति का संकेत नहीं बल्कि लंबे समय से यह समस्या यहां उपस्थित है। देखा जाए तो मेंढर शहर और आसपास के इलाकों में ड्रग्स का धंधा जोर शोर से चल रहा है। और दवाओं के नाम पर बेचे जेने वाली कई दवाओ की दुकाने खुलेआम लोगो को नशे का आदि बना रही है। जिसका सबसे बुरा प्रभाव यहां के बच्चों पर पड़ रहा है। लेकिन अफसोस प्रशासन से लेकर स्वास्थ्य विभाग कोई इनकी सुध लेने वाला नही है”।
स्थानीय लोगो की मानें तो शहर और आसपास के इलाकों में मेडिकल की दुकानों में दवाओं की आड़ में ड्रग्स का धंधा शुरू कर रखा है। जो इंजेक्शन, गोलियों और सिरप के रूप में उपस्थित है और लोगों को मौत के मुंह में धकेल रहे हैं। इन दवाओं में हेरोइन, अफीम, गांजा, चरस, गांजा और शराब का उपयोग हो रहा है।
स्टुडेंट लीडर दिलशाद जट और समाजिक कार्यकर्ता जावेद इकबाल के अनुसार “अगर हम दवाओं के बढ़ते रुझान के कारणों की समीक्षा करें तो बेरोजगारी, मूलभूल सुविधाओं के अभाव के साथ सकारात्मक गतिविधियों का अभाव नजर आता है। ड्रग माफिया युवाओं की इसी स्थिति का पूरा पूरा लाभ उठा कर अपना कारोबार बढ़ा रहा है। और हमारे नौजवानों को शारिरिक और मानसिक रुप से कमजोर बना रहे हैं”।
मालुम हो कि नशे की यह दयनीय स्थिति सिर्फ पुंछ, मेंढर या कश्मीर तक ही सीमित नही है बल्कि पूरा देश ही इसकी चपेट में है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो (एनसीबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि ड्रग्स की लत से जुड़ी सबसे ज्यादा आत्महत्याएं महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में होती हैं। भारत में हर दिन ड्रग्स या शराब के नशे के कारण 10 आत्महत्याएं हो रही हैं। यकीनन बिहार भी इससे अछूता नही है। नाम न बताने की शर्त पर बिहार की राजधानी पटना के मेडिकल स्टोर पर काम करने वाले वृद्ध ने बताया “ज्यादातर कफ सीरप को खरीदने के लिए स्कूल के बच्चे ही आते हैं। अगर मैं उन्हे नही बेचुंगा तो वो कहीं और से खरीद लेंगे। ऐसे में सिर्फ शराब पर पांबदी लगाने से कुछ नही होगा हमें और बातों पर भी ध्यान देना होगा”।
उपर्युक्त बातों और तथ्यों से स्पष्ट है कि वर्तमान समय में नशे की लत से हमारे बच्चें सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। यही कारण है कि गली मुहल्ले से लेकर रेलगाड़ी के डिब्बों में, कचरों के ढेर में, हर उम्र और प्रत्येक वर्ग के बच्चे किसी न किसी रुप में नशा करते हुए मिल ही जाते हैं। लेकिन हम उसका विरोध तब करते हैं जब नशा करने वाला हमारा परिचित होता है। शायद हम ये भूल जाते हैं कि वो मासूम बच्चा हमारे घर का तो नही पर हमारे समाज का हिस्सा जरुर है। तो भला ये कैसे संभव है कि नशे में डुबी हुई पीढ़ी कल को एक बेहतर समाज का निर्माण कर पाएगी।
इसलिए आवश्यक है कि हम भविष्य को बचाने के लिए आज इनपर तरस न खाएं न ही इन्हे देखकर अपना रास्ता बदल लें बल्कि अपना कर्तव्य निभाते हुए नशे से दूर करने का हर संभव प्रयास अपने स्तर पर करें। ताकि कल ये देश और समाज का भार डगमगाते हुए नही बल्कि अटल होकर अपने कंधे पर उठाए। (चरखा फीचर्स)