आज के अखबारों में दो खबरें ऐसी हैं, जो बहुत बेचैन कर देती हैं। एक तो फौज की भर्ती-परीक्षा के प्रश्न पत्र का पहले से ‘आउट’ या ‘लीक’ हो जाना और दूसरा, मप्र के कुख्यात व्यापम घोटाले के छात्रों द्वारा चोरी और सीनाजोरी करना याने जांच के दौरान यह झूठ बोलना कि उनकी जगह किसी और को परीक्षा में बिठाने वाले दलाल की मौत हो गई है। ये दोनों मामले ऐसे हैं, जिनमें सैकड़ों छात्र गिरफ्तार किए गए हैं और पुलिस ने सच्चाई उगलवा ली है।
सच्चाई यह है कि फौज की भर्ती-परीक्षा में बैठने वाले देश भर के हजारों छात्रों को पेपर आउट करवाए गए और इसके लिए एक-एक छात्र से 2 लाख से 5 लाख रु. तक वसूल किए गए। पुणें, नाशिक और गोआ से ही लगभग ऐसे साढ़े तीन सौ छात्र पकड़े गए। पूरे देश भर में पता नहीं, कितने छात्र पकड़े जाएंगे। पेपर आउट करवा कर उनके उत्तर लिखवाने का धंधा भी कई तथाकथित अकादमियां चलाती रहती हैं। वे एक ही झटके में करोड़ों रु. कमा लेते हैं। उनके इस कुकर्म में फौज के कर्मचारी भी सहकार करते हैं। उनकी मदद के बिना इतने बड़े षडयंत्र को अंजाम देना असंभव है। अब जरा सोचिए ऐसे परीक्षार्थी पास होने के बाद कैसे सिपाही बनेंगे? धोखाधड़ी से ही अपना जीवन शुरु करने वाले लोग देश की रक्षा का काम ईमानदारी से कैसे करेंगे? इस तरह का भ्रष्टाचार देश की युवा-पीढ़ी को बर्बाद किए बिना नहीं रहेगा।
मप्र के व्यापम घोटाले में सुप्रीम कोर्ट ने जो जांच बिठाई है, वह रोज ही इस घोटाले की नई-नई परतें उखाड़ रही है। अब पता चला है, 121 उम्मीदवार जिन्होंने परीक्षा दी थी, वे फर्जी उम्मीदवार थे। 40 लोगों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है। जांचकर्ताओं ने इसी फर्जीवाड़े का पता एक आधुनिक साफ्टवेयर, लाई डिटेक्टर टेस्ट और मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन से लगाया है। पैसे लेकर परीक्षार्थी बनना और पैसे देकर अपनी जगह किसी और को बिठा देना, दोनों ही संगीन अपराध हैं।
इन परीक्षाओं से निकले हुए छात्र पता नहीं, डाक्टर, इंजीनियर, प्रशासक, अध्यापक आदि बनकर क्या गुल खिलाएंगे? इन सामूहिक अपराधों के लिए इतना कठोर दंड दिया जाना चाहिए कि इस तरह के अपराध करने का इरादा पैदा होते ही हड्डियों में कंपकंपी दौड़ जाए। यह सजा तुरंत होनी चाहिए और उसका जमकर प्रचार किया जाना चाहिए ताकि लोगों में मरणांतक भय का संचार हो जाए।