आनंद रामायण का एक फरियादी कुत्ता

—विनय कुमार विनायक
जब भारतवर्ष में था राम राज्य का दौर,
प्रभु राम से एक फरियादी कुत्ता ने आकर
शिकायत की हे प्रभु! मुझे न्याय चाहिए!

एक पुजारी ने मुझे पूजा प्रसाद खाने पर
बहुत मारा पीटा दंड दिया कुत्ता समझकर
राजा राम के द्वारा जांच कराए जाने पर!

शिकायत सच निकली राम ने कुत्ते से कहा
बोलो उस पुजारी को क्या दंड दिया जाए?
कुत्ते ने कहा उसे मुख्य महंत बनाया जाए!

सब दरबारी हुए हक्के-बक्के कुत्ते की बात पर
कहने लगे ये सजा नही पदोन्नति है फरियादी
कुत्ते ने कहा मुझे ज्ञात है बातें पूर्व जन्म की!

कम सोनेवाले जीवों को यादें बहुत अधिक होती,
चैन की नींद लेता उसे स्मरण शक्ति कम होती,
उसे याद थी पूर्व में था मंदिर का मुख्य पुजारी!

जबतक पूजा करने वाला पुजारी था, ठीक था,
मुख्य पुजारी बनने पर मुझे अहं छा गया था,
और इस योनि में कुत्ता बनकर जन्म लिया हूं!

पूर्व जन्म स्मरण से मंदिर प्रसाद पाने जाता हूं,
पर इस पुजारी ने मुझे कुत्ता समझकर मारा है,
हे भगवन! इस पुजारी को मुख्य पुजारी कर दें!

ये भी कुत्ता बनेगा हिसाब रफा दफा हो जाएगा,
अहंवश मुझसा गलतियां करेगा मंदिर मंदिर में,
कुत्ता बनके भटकेगा किए कर्म की सजा पाएगा!

गलत सही करनेवाला यह शरीर ये अंग नहीं हैं,
इस शरीर का संचालक तो वो जीवात्मा होता है,
जो कर्मफल भोगने के लिए विविध देह पाता है!

किसी जीव की आकृति से उसे वह मत समझो,
आज अगर वो है तो कल तुम वो हो सकते हो,
बेजुबानों को नहीं सताओ वो दुआ बददुआ देते!
—विनय कुमार विनायक

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