डॉ. वेदप्रताप वैदिक
सरदार सरोवर बांध का निर्माण भारत की एक एतिहासिक उपलब्धि है। नर्मदा नदी पर बांध खड़ा करने का सपना सरदार पटेल ने देखा था और जवाहरलाल नेहरु ने 1961 में इसकी नींव रखी थी। यह सौभाग्य नरेंद्र मोदी को मिला कि उन्होंने अपने जन्मदिन पर इसका उद्घाटन किया। इस बांध का लाभ सिर्फ गुजरात को ही नहीं, मप्र, राजस्थान और महाराष्ट्र को भी मिलेगा। यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है। इस बांध के जलाशय का फैलाव 37,000 हैक्टेयर होगा। इसके पानी से गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के लगभग 22 लाख हेक्टेयर की सिंचाई होगी। 131 शहरों को पीने का स्वच्छ पानी मिलेगा। हजारों गांवों को बिजली भी मिलेगी। गुजरात से ज्यादा महाराष्ट्र और मप्र को मिलेगी। इस बांध की ऊंचाई पहले तो सिर्फ 90 मीटर रखी गई थी लेकिन अब यह 138.68 मीटर हो गया है। इस बांध से जुड़ी नहरें गुजरात के कच्छ-जैसे सूखे इलाकों को हरा-भरा कर देंगी। इस बांध के विरुद्ध बहन मेधा पाटकर पिछले कई वर्षों से जबर्दस्त आंदोलन चला रही हैं। उनकी यह बात सही है कि इस बांध के बंध जाने से मप्र के लगभग 4 हजार परिवार उजड़ गए हैं। गांव के गांव खत्म हो गए हैं। हजारों लोग शरणार्थी हो गए हैं। उनके रहने, खाने और रोजगार का कोई ठिकाना नहीं है। ये लोग प्रायः ग्रामीण हैं, गरीब हैं, बेजुबान हैं। इनके लिए बोलनेवाला कोई नहीं है। इन्हें फिर से बसाने का जिम्मा सरकार का है। राज्य-सरकारों का है। केंद्र सरकार का है। चारों प्रांतों और केंद्र सरकार को इन विस्थापित लोगों की मांग पर तुरंत ध्यान देना चाहिए। इन मामलों में हमारी सरकारों को चीन से कुछ सीखना चाहिए। चीन में मैंने देखा है कि बड़े-बड़े निर्माण-कार्यों के लिए शहर के शहर खाली करवा लिए जाते हैं और हजारों-लाखों लोगों का बेहतर पुनर्वास करवा दिया जाता है। जब बड़े काम होते हैं तो कुछ लोग को कुछ न कुछ कुर्बानी तो करनी पड़ती ही है लेकिन उसकी भरपाई करना हर सरकार का धर्म है। मोदी को कांग्रेसियों की इस आलोचना पर भी ध्यान देना होगा कि अब तक सिर्फ 3 लाख हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई के लिए नहरें बनी हैं जबकि वह 22 लाख हेक्टेयर पर होना है। उनका आरोप है कि गुजरात का चुनाव जीतने के खातिर मोदी इस अधपकी खिचड़ी पर ही टूट पड़े हैं। जो भी हो यह एक अच्छी शुरुआत, एक शुभारंभ है। इसी तरह के कई बांध अभी देश के पूर्व और दक्षिण में भी बनने हैं।