एक आवश्यक सामाजिक बुराई जुआ

gamblingसमाज में विकास के साथ साथ बुराईयाॅं भी विकसित होती है। मनुष्य स्वभाव से अच्छा व बुरा दोनों ही प्रकार का होता है और समाज में बुराई व अच्छाई दोनों की साथ साथ पलती और विकसित होती है। बुराईयाॅं समाज की कोख से निकालने वाला ही फल है और कुछ बुराईयाॅं परम्पराओं के नाम पर भी फलती फूलती और विकसित होती है। उस परम्परागत बुराई में से एक बुराई है जुआ। दीपावली के अवसर पर जुआ खेलने की सदियों से परम्परा रही है और समाज में लोग सगुन के नाम पर दीपावली के दिन जुआ खेलते आए हैं। इतिहास में दीपावली के दिन नहीं अन्नकूट के दिन जुआ खेलने के तथ्य सामने आते हैं पर पूर्ण जानकारी के अभाव में दीपावली के दिन लोग जुआ खेलते हैं। महाभारत में पांडवों व कौरवों के बीच भी द्यूतक्रिड़ा अन्नकूट के दिन ही हुई थी और काफी पौराणिक कथाओं में अन्नकूट पर्व को द्यूतक्रिड़ा दिवस भी कहा गया है। दीपावली पर जुआ खेलने वालों का यह तर्क है कि अगर आप दीपावली के दिन जुए में जीत गए तो आपका पूरा साल अच्छा रहेगा और किस्मत आपका साथ देगी। इस कारण अपना भाग्य आजमाने के लिए दीपावली केे दिन कौड़ियों से और पासों से साथ ही साथ विभिन्न प्रकार के परम्परागत तरीकों से जुआ गली गली मौहल्ले मौहल्ले खेला जाता है। चाहे किसी भी नजर से देख ले जुए को किसी भी सभ्य व विकसित परम्परा का हिस्सा नहीं कहा जा सकता है। दीपावली विष्णु रमणा लक्ष्मी के सम्मान व ईज्जत करके पूजा करने का त्यौंहार हैं न कि जुए के रूप माँ लक्ष्मी की बेईज्जती करने का त्यौंहार। कहा जाता है कि भगवान शिव ने पार्वती के साथ दीपावली के दिन चैसर खेली थी जो धीरे धीरे जुए के रूप में परिवर्तित हो गई। अगर हम इतिहास के आईने में झांक कर देखे तो यह तथ्य सामने आता है कि महारभारत में शकुनी मामा के खुरापाती दिमाग ने जुए की बिसात बिछवाई और इसी जुए की बिसात में पांडव अपनी पत्नी पांचाली तक को हार गए और यही जुआ कालांतर में महाभारत की लड़ाई का कारण बना। इसी महाभारत में राजा नल और दमयंती की कहानी आती है। दोनों में बहुत प्रेम था। नल चक्रवर्ती सम्राट थे। एक बार वे अपने रिश्तेदारों के साथ चैसर खेलने बैठे। सोने की मोहरों पर दांव लगने लगे। राजा नल के रिश्तेदार कपटी थे, सो उन्होंने सारे खजाने के साथ उनका राजपाट, महल, सेना आदि सब जीत लिए। राजा नल की हालत ऐसी हो गई कि उनके पास पूरा तन ढंकने के लिए भी कपड़े नहीं थे। जुए के कारण पूरी धरती पर पहचाना जाने वाला राजा एक ही दिन में रंक हो गया। बाद में अपना राज्य दोबारा पाने के लिए नल को बहुत संघर्ष करना पड़ा। हमारे देश में जुआ खेलना सामाजिक बुराई मानी जाती है और सरकार ने भी इस पर पाबंदी लगा रखी है परंतु दीपावली की आड़ में समाज की यह बुराई खुलेआम सड़कों पर दिखाई दे जाती है। अगर जुए से संबंधित शोध पर गौर किया जाए जो पता चलता है कि अधिकतर जुआरी सबसे पहले दीपावली की रात जुआ खेलने की शुरुआत करते हैं और बाद में उन्हें इसकी लत लग जाती है। ऐसा देखा जाता है कि लोगों ने दीपावली पर शौक या शगुन के रूप में जुआ खेलने की शुरुआत की और उसमें हारने पर हारी हुई रकम हासिल करने के लिए आगे भी जुआ खेला और उन्हें इसकी लत लग गई। यदि जुआ खेलने वाला दीपावली को जीतता है और जीतने की लालसा में अगले दिन भी खेलता है तो वह जुए की लत का शिकार हो जाता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार देश के लगभग 45 प्रतिशत लोग दीपावली पर जुआ खेलते हैं। इनमें 35 प्रतिशत लोग ही शगुन के तौर पर जुआ खेलते हैं लेकिन 10 प्रतिशत लोग ऐसे होते हैं. जो पक्के जुआरी होते हैं और किसी भी मौके पर जुआ खेलने से परहेज नहीं करते हैं। वर्तमान में यह परम्परा अवैध कमाई का जरिया बन गई है और सनातन धर्म के सबसे बड़े त्यौंहार पर जुए की यह बुराई अपनी जड़े जमा रही है। दीपावली पर जुए का यह शुरू हुआ सफर बहुत से लोग साल भर करते हैं और इस सफर में अपना घर, सामान और सब कुछ खो देते हैं और आर्थिक मकड़झाल में फॅंस कर अपनी जान तक दे देते हैं। इस जुए ने हजारों घर बर्बाद किए हैं। शायद अब समय आ गया है कि हम समाज की आवश्यक बुराई के खिलाफ एक आह्वान करें और समाज को बर्बाद करती इस बुराई के सामने डट कर खड़े हो जाए। आखिर परम्परा के नाम पर यह असामाजिक खेल कब तक चलता रहेगा। जब जब किसी भी रीति ने कुरीति का रूप लिया है उसको समाज से निकाल दिया गया है। सती प्रथा बंद हो गई, दहेज के खिलाफ आज पूरा माहौल बन गया है, देह व्यापार के खिलाफ कानून अपना काम कर रहा है इसी तरह समाज में फैली यह पारम्परिक कुरीति अगर समय रहते खत्म नहीं की गई तो वह समय दूर नहीं जब आने वाली पीढ़िया इस लाईलाज बीमारी का षिकर होगी और समृद्ध व सषक्त भारत का गांधी का सपना चूर चूर हो जाएगा। यहां यह बात भी गौर करने की है कि सिर्फ कानून बना देने से ही किसी बुराई का अंत नहीं हो जाता, जब तक समाज एकजुट होकर उस बुराई के खिलाफ आगे न आए वह बुराई नहीं हटती। अतः आवश्यकता है कि समाज भी कानून की सहायता करे और जुए के खिलाफ अपना सक्रिय सहयोग करें।
श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’

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