आज अच्छी नही अच्छाई

—विनय कुमार विनायक
आज अच्छी नही अच्छाई
मूर्खता हो गई ईमानदारी
गदर्भराग है सच बोलना!

तथाकथित उक्त गुणवाहक
सुनो सुनो कान खोलकर सुनो
तुम जहां कहीं भी हो
पूरी तरह से घिर चुके हो!

आगे पीछे, दाएं बाएं
निस्सहाय अभिमन्यु की तरह
एकमत बहुसंख्यक लोगों से
जाने कब किस दु:शासन का पुत्र
गदा प्रहार कर बैठेगा तुझपर!

तुम गिनती में अति अल्प हो
तेरी गृहस्वामिनी भी खुश नहीं
तुम्हारे बच्चे अकबका रहे हैं
तुम्हारी अंधभक्ति की सीख पर!

ससुराल से आती है
तेरे ससुरालीजन की चिट्ठियां
जिसमें कोसी गई होती
तुम्हारी बीवी की नसीब को!

जाने किस बहकावे में आकर
किस मनहूस घड़ी में
अपनी फूल सी बेटी का हाथ
उन्होंने सौंप दिए तुझ सा
झक्की ईमानदार के हाथों!

वक्त है लौट आओ आज मुख्यधारा में
और बहती गंगा में हाथ धोना सीख से!
खुश होकर सभी शामिल कर लेंगे तुझे
आजू-बाजू के लोग अपनी विरादरी में!

मिट जाएगी तेरे उपर लागू
वो ग्राम्य लोकोक्ति
‘काली गाय भिन्न बथान’ की!

जिंदगी को अभिशप्त बनाकर
बहुत दिन दुःख भोगे हो तुम
अपने संवेदनशील मन और
गौतम बुद्ध सी आत्मा के कारण!

जाने कितनों ने पागल समझा तुझे
दक्ष प्रजापति की यज्ञ में
तुम बनते रहे हो अनादृत भोले!

मर जाने दो मां की सीख सत्यं वद
जो उस देवी ने अपने दूध की
हर घूंटी के साथ पिलायी थी!

मर जाने दो पिता की चेतावनी
महाजनों येन गत: सो पन्था:
जो उन्होंने ने हर अवसर पर
चेतावनी के रूप में चेताए थे!

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