आया बसन्त


एक बरस बाद है लौटा विदेश से ।।
अतिशय समृद्धि ले बेटा बसन्त ये ।
धरती माँ हुलसा रही ,
हृदय से लगा रही ।।
                            *
सूरज ने जग चमकाया ,
कोकिल ने गान सुनाया।
फूलों ने घर सजाया ,
उत्सव सा लग रहा ।।
                             *
ख़ुशियों में खोई सी ,
धरती माँ सोच रही ।
साल में एक बार ही तो 
ये अपने घर आता है।
सबको हरषाता है , 
धूम  मचा जाता है ।।
                                *
लौट फिर जाएगा ,
बेटा ये विदेश को ।
बरस  बाद ही तो फिर,
अपने घर आएगा ,
बेटा बसन्त ये।।
                                *********
शकुन्तला बहादुर
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भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी। यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।

1 COMMENT

  1. ऋतु वर्णन में आप की अनोखी सिद्धि प्रकट करता काव्य नितान्त सुन्दर बन पाया है। –धन्यवाद –मधुसूदन

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