
एक बरस बाद है लौटा विदेश से ।।
अतिशय समृद्धि ले बेटा बसन्त ये ।
धरती माँ हुलसा रही ,
हृदय से लगा रही ।।
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सूरज ने जग चमकाया ,
कोकिल ने गान सुनाया।
फूलों ने घर सजाया ,
उत्सव सा लग रहा ।।
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ख़ुशियों में खोई सी ,
धरती माँ सोच रही ।
साल में एक बार ही तो
ये अपने घर आता है।
सबको हरषाता है ,
धूम मचा जाता है ।।
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लौट फिर जाएगा ,
बेटा ये विदेश को ।
बरस बाद ही तो फिर,
अपने घर आएगा ,
बेटा बसन्त ये।।
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शकुन्तला बहादुर
ऋतु वर्णन में आप की अनोखी सिद्धि प्रकट करता काव्य नितान्त सुन्दर बन पाया है। –धन्यवाद –मधुसूदन