देश का 70 प्रतिशत किसान खेती पर निर्भर है, यदि शीघ्र ही किसानों की हालात न बदले तो भारत विश्व का ऐसा पहला कृषि प्रधान देश होगा जहाँ किसान नहीं होगे, क्योंकि सरकार की मोहिनी नीतियों के सदके उन्हें जीवन से बेहतर मौत हाथ लगने लगी है। किसान आत्महत्या के मामले मे महाराष्ट्र राज्य अब्बल एवं कर्नाटक दूसरे स्थान पर है। मध्यप्रदेश, छत्तीसग़ एवं आंध्रप्रदेश में मामूली ब़ोत्तरी है।
महात्मा गांधी के इस देश में हमारे जीने के लिए खाद्यान की व्यवस्था किसानों द्वारा होती है। एन सी आर बी की रिर्पोट के आधार पर ज्ञात हुआ है कि कर्ज चुकाने, गरीबी बैंक, बिजली कर वसूली आर्थिक तंगहाली के कारण लाखों किसानों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर चुके है। सर्व विदित है कि जिस साल आत्महत्याओं के मामलों में वृद्धि हुई है उन सालों में किसान आन्दोलन कमजोर पड़ गया था जबकि 1980 के दशक में महाराष्ट्र में शेतकरी संगठन की अगुवाई में किसान आंदोलन मजबूत था। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के प्रतिवेदन में यह स्पष्ट है कि देश में हर साल किसानों द्वारा खुदखुशी करने के जितने भी मामले आए है, उनमें से 66 प्रतिशात मामले मध्यप्रदेश, छत्तीसग़, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आध्रप्रदेश के रहे है। 12 वर्ष की अवधि में पांच बड़े राज्यों के हिस्से में करीब 1,22,823 आत्महत्याओं की जानकारी आई है। थंतउमते ेनपबपकम पद प्दकपंरू उंहदपजनकमेए जतमदके ंदक ेचंजपंस चंजजमतदे 2008 में अर्थशास्त्री प्रोफेसर के. नागराज द्वारा प्रस्तुत अध्ययन में कहा है कि 1997 से लेकर 2006 तक भारत में लगभग 166304 किसानों ने आत्महत्या की है। प्रायः यह देखने में आता है कि आत्महत्या करने वालों में पुरूषों की संख्या ज्यादा है और यही बात किसानों की आत्महत्या के मामले में भी लक्ष्य की जा सकती है लेकिन तब भी यह कहना अनुचित न होगा कि किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में पुरूषो की संख्या अपेक्षकृत अधिक थी। लेकिन 24 नवम्बर 2010 को प्राप्त जानकारी के आधार पर देश के सभी राज्यों को मिला कर यह आकड़ा 2 लाख के करीब पहुंचता है। 1 दिसम्बर 2010 को दैनिक लोकमत मराठी में प्रकाशित जानकारी के आधार पर उड़ीसा राज्य में गत 10 वर्षों में 2632 किसानों ने आत्महत्या की है लेकिन उड़ीसा राज्य सरकार ने विधान सभा में बयान किया है कि इन किसानों में से किसी किसान ने कृषि विषयक कारणों से कोई आत्महत्या नहीं की है। यह आत्महत्या कर्ज, अकाल, बा़ के कारण आत्महत्या हुई है।
वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति की जरूरते बड़े पैमाने पर ब़ रही है, इसलिए हर किसान अपने खेती मे पैसे वाली फसल जैसे सोयाबीन, कपास, गन्ना आदि फसलों का उत्पादन कर रहें है। अध्ययन के आधार पर ज्ञात हुआ है कि गत वर्षो से उत्पादन में कमी देखी जा रही है। खेत मे खड़ी फसल सोयाबीन, कपास से आमदनी तो दूर, कटाई का खर्च भी नही निकल पाता, इस वजह से किसान की जरूरते भी पूरी नही होती। यदि फसलों से किसान के पास जो भी थोडा पैसा आता है, तो वह सब उसके परिवार की जरूरते पूरी करने में खर्च हो जाता है। अगले साल के लिए उसके पास खेती बुआई के लिए भी पैसा नही होते। ऐसी कठिन समय में उसे मजबूर होकर, एक आशा बाँधकर बँक, साहूकारों, संबंधियों आदि से कर्ज लेना पडता है क्योंकि किसान के पास अन्य कोई दूसरा साधन नही होता। किसान कर्ज लेकर खेतो में बुआई तो कर देता है लेकिन असंतुलित मौसम, प्रकृतिक आपत्ति आदि के कारण फसल बराबर नही हो पाती, या होती भी नही है। इस कारणवश किसान कर्ज लौटा नही सकता और किसान द्वारा लिया गया कर्ज वापस नहीं कर पाता तों उस पर विविध प्रकार के दबाव आते है और फिर उसकी इन्तेहान की घडी आती है, वह रिश्तेदारो, साहूकारों के आगे हाथ फैलाता है, लेकिन उसे वहॉ भी निराशा ही हाथ आती है। अब किसान के सारे मार्ग बंद होने से उसके पास आत्महत्या के अलावा दूसरा कोई भी रास्ता नही होता। इस वजह से किसान आत्महत्या का प्रमाण दिनब-दिन ब़ रहा है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की जानकारी के अनुसार प्राप्त जानकारी के आधार पर वर्ष 2009 में महाराष्ट्र के किसानों की आत्महत्या के मामले में अब्बल रहा है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत अपराध रिकार्ड व्यूरो के आधार पर महाराष्ट्र में वर्ष 1997 से दिसम्बर 2010 तक 44272 किसानों ने आत्महत्या की है, जिसमें से वर्ष 2009 में 2872 किसानों ने आत्महत्या की है। राज्य में पिछले 10 वर्षो से लगातार फसल नुकसान होने के कारण किसान आत्महत्या कर रहे है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को संभागीय विभागीय आयुक्त द्वारा दी जानकारी के अनुसार पिश्चम विदर्भ के सबसे अधिक प्रभावित 6 जिलों में कुल 1004 किसानों ने आत्महत्या की। महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने 2005 में किसानों के लिए 1076 करोड़ रूपये का विशेष पैकेज की घोषणा की और 2006 में 3750 करोड़ रूपये की। प्रधान मंत्री राहत पेकेज की घोषणा एवं केन्द्रीय सरोर द्वारा केसानों की ऋण माफी घेषणाउ के बावजूद किसानों को कोई राहत नहीं मिली है। राज्य में 2007 से 08 के बीच 4000 किसानों ने आत्महत्या की है। आत्महत्या का कारण बैंक या कृषि सोसायटी से कर्ज की परेशानी बताई गई है। 2009 की रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक में 2282, आंध्रप्रदेश में 2414 किसानों ने आत्महत्या की है, जबकि 2008 में यह आंकड़ा 2105 रहा है।
उपरोक्त तालिका से प्रतीत होता है कि अमरावती में 1193, अकोला 635,यवतमाल में 1587, बुलडाना 945, वाशिम में 642 एवं वर्धा जिले में 501 किसानों ने आत्महत्या की है। अतः उक्त जिलों में 5503 किसानों ने आत्महत्या की है। इन किसानों में 2030 किसानों को पात्र, 3377 को अपात्र ठहराया गया है और 96 किसानों के मामलों की जांच पड़ताल चल रही है।
विविध प्रकार की रिर्पोटों के आधार पर ज्ञात हुआ कि विदर्भ में देश की तुलना में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या कर रहे है, जिससे उनके परिवार के सदस्यों की परिस्थिति दयनीय होती जा रही है। कर्ज का बढ़ता दबाव, बीटी कॉटन के प्रति झुकाव, शादीव्याह व त्यौहार, अल्प भूधारक किसान की बढती संख्या, सिचाई की व्यवस्था का अभाव, कृषि संबधी साधन सामग्री का अभाव इत्यादि समस्याओं के कारण की जानकारी मिली है। इसी करण आत्महत्या ग्रस्त किसानों की महिलाओं व बच्चों की मानसिक, शारीरिक, आर्थिक, राजनैतिक, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, व्यवसाय, शादी आदि के संदर्भ में बुरा असर पड रहा है। समस्याओं से ग्रस्त परिवार की समस्याओं के निदान के लिए केन्द्र व राज्य सरकारें समसयसमय पर योजनाओं के माध्यम से कार्य कर रही है लेकिन इन योजनाओं के कि्रयान्वयन में मध्यस्थों द्वारा उनके अधिकारों को गवन करते हुऐ देखा जा रहा है। जिससे उन किसानों के परिवार के सामाजिक, आर्थिक स्थिति में बदलाव हेतु सुझाव निम्न हैः
समस्याओं का समाधान :
1. ण्सरकार की योजनाओं के तहत पॅकेज द्वारा सभी परिवारों को सहायता राशि प्रदान करने का प्रावधान किया जाना चाहिए।
2. ण्किसान आत्महत्या ग्रस्त परिवार के विधवा महिला कोई और नही होगी वह मह लागों की परिवार, सामाज एवं देश जन्मदात्री है, जिसे अलग नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए।
3.ण्विधवा महिलाओं की आर्थिक स्थिति की सहायता के लिए अगंनवाडी सेविका, किसान बचत समूह, महिला बचत समूहों से जुड़ने के लिए प्रवृत्त करने का प्रयास किया जाना चाहिए, ताकि उनका सामाजिक एवं आर्थिक स्तर में बदलाव आ सके।
4.ण्गांव के किसानों को खेती विषयक/कृषि विषयक प्रशिक्षण के माध्यम से किसानों का ज्ञान बाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
5. ण्विधवा महिला के बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, विश्वास, मनोबल, नेतृत्व क्षमता विकास, पुर्नविवाह आदि के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
6. ण्दबंग एवं प्रभावशाली व्यक्तियों का बेवजह अतिक्रमण नहीं होना चाहिए।
7. ण्लोक सभा, विधान सभा एवं स्थानीय पदाधिकारियों को अपने कार्यक्षेत्र के समस्याग्रस्त परिवार के साथ राजनीति नहीं करना चाहिए, बल्कि उनके अधिकारों को दिलाने में निरन्तर प्रयास करना चाहिए।
8. ण्परिवार के कम से कम एक सदस्य को शासकीय नौकरी दी जानी चाहिए, ताकि वह अपने परिवार के पालनपोषण के लिए कार्य कर सके।
9. ण्बच्चों की स्नातक तक की शिक्षा फ्री एवं शिक्षा के लिए गये कर्ज व्याज मुक्त होनी चाहिए।
10. ण्विधवा महिला के साहायता हेतु स्थानीय स्तर पर सरपंच, ग्रामसेवक, अंगनवाडी सेविका, पोलिस पाटील, शिक्षक आदि को समय समय पर सहयोग प्रदान करना चाहिए।