आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र की पत्रकारिता के सरोकार

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पुण्य तिथि 16 अक्टूबर पर विशेष

कुमार कृष्णन

आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र का नाम लेते ही स्मरण हो जाता है उनका व्यक्तित्व। स्वर में शालीनता, वाणी में मिठास और सादगी भरा जीवन यही उनके व्यक्तित्व की खासियत थी। जो बहुत कम लोगों में होती है। जीवन के लगभग 80 बसंत पार कर चुकने के बाद भी दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने हुए थे। छात्र आंदोलन के बाद आपातकाल का दौर था। अधिकांश लोग भूमिगत होकर काम कर रहे थे और कुछ लोग मिसा और डीआईआर के तहत जेल में डाल दिये गये थे। ऐसे दौर में पत्रकारिता के धर्म का निर्वहन ज्यादा जोखिम का दौर था।राज्यसभा के सदस्य तथा बिहार विधान परिषद के सभापति प्रो.जाबिर हुसैन, सुप्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य शिव पूजन सहाय के पुत्र मंगलमूर्ति, डीजे कॉलेज के प्राचार्य आचार्य कपिल, गांधीवादी नेता आचार्य राममूर्ति जैसे लोग सक्रिय थे और आंदोलन की बात को पहुंचाने का इनके सम्पादन में प्रकाशित समाचार पत्र ‘अग्रसर’ था। अनेक मुश्किलों के बाद भी पत्रकारिता के धर्म का निर्वहन करते रहे। मुंगेर प्रमंडल के शाम्हो दियारा में जन्में आचार्य मिश्र के सर से दो साल की उम्र में ही सर से पिता का साया उठ गया और जब होश संभाला तो विपन्नता ही विपन्नता थी। दियारा क्षेत्र में आवास होने के कारण कई बार विस्थापित होना पड़ा। अभाव भरी जिंदगी में गंगा यानी मां भागीरथी ने जीना सिखाया। महाकुंभ में घटी घटना ने इन्हें इतना उद्वेलित किया कि इन्होंने ‘भवानी’ नामक हस्तलिखित पत्रिका निकाली और महाकुंभ मेले में भगदड़ के बाद हुई मौत पर सम्पादकीय था। इस हादसे के बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद पहुंचे थे और लगभग सौ से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। धीरे-धीरे लेखन से जुड़ाव हुआ तथा नवराष्ट्र में पत्रकार की हैसियत से बिहार के तात्कालीन मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद, चन्द्रशेखर सिंह सरीखे लोगों ने भी काम किया। 60 के दशक के पूर्व से ही दैनिक आर्यावर्त से जुड़ गये। तब से उन्होंने कलम का दामन थामा तो जीवन भर थामे रहे। आर्यावर्त का प्रकाशन जब तक होता रहा तब तक उससे जुड़े रहे। उसके बाद जब बिहार से दैनिक ‘आज’ का प्रकाशन शुरू हुआ तो आज से जुड़कर पत्रकारिता की। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका एक लंबा अनुभव रहा। इस अवधि में उन्होंने न तो मान-सम्मान के साथ समझौता किया, न कलम के साथ सौदेबाजी की और न ही पत्रकारिता की गरिमा को गिरवी रखने का काम किया। पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने जो सम्मान और यश अर्जित किया वह अच्छे-अच्छे सम्पादकों को नसीब नहीं होता था। इसका मूल कारण यह था कि वे अहंकार विहीन थे। सादगी पसंद थे और पत्रकारिता का इस्तेमाल समाज कल्याण के लिए किया। पत्रकारिता के कार्यकाल में अनेक उतार-चढ़ाव आये। कितनों को अपने कलम की ताकत का अहसास कराया तो पत्रकारिता के माध्यम से अपने क्षेत्र के विकास के लिए आवाज बुलंद की। लक्ष्मीकांत मिश्र मुंगेर में उस दौर में पत्रकारिता कर रहे थे जब मुंगेर वृहत रूप में था। बेगूसराय, शेखपुरा, लखीसराय, खगडि़या, जमुई आदि मुंगेर जिले का हिस्सा हुआ करता था और इस क्षेत्र से एक से एक राजनेता हुए, साहित्यकार हुए। इस दौर में पत्रकारिता के कारण परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती, रामधारी सिंह दिनकर सरीखे लोगों के बहुत करीब रहे तो समाजवादी नेता मधुलिमिये, कपिलदेव सिंह, राजो सिंह सहित अनेक लोग पत्रकारिता के कायल रहे। निर्भिकता के साथ सच को सच के रूप में रखा, यह उनकी खासियत थी। पत्रकारिता में खासकर मुफस्सिल के संवाददाताओं की स्थिति से वे खिन्न रहते थे। मुफस्सिल के संवाददाताओं की समस्याएं काफी जटिल थी। बिहार राज्य संवाददाता संघ का गठन कर मुफस्सिल संवाददाताओं को संगठित करने का काम किया। इस अभियान में उनके साथ जुड़े थे डा.ओम प्रकाश साह प्रियंवद, चांद मुसाफिर, मुकुटधारी अग्रवाल, रूद्रदत्त आर्य। इस संगठन के माध्यम से उन्होंने पूरे बिहार में पत्रकारों की एकता को कायम रखने में महती भूमिका अदा की। समय-समय पर इसके अधिवेशन होते रहे। इन अधिवेशनों में सूचना मंत्री बीएन गाडगिल, मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर, बिहार विधानसभा के अध्यक्ष शिवचन्द्र झा, पटना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति प्रभा शंकर मिश्र सरीखे अन्य गणमान्य लोग आये और उनके समक्ष मजबूती के साथ उनकी समस्याओं को रखा। आचार्य मिश्र न सिर्फ पत्रकारिता से जुड़े थे बल्कि सामाजिक सरोकारों से गहरा लगाव था। यही कारण था कि आजीवन जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन मुंगेर, पूर्वांचल संयुक्त सदाचार समिति, पूर्वांचल भारत सेवक समाज, ललित स्मृति मंच सहित अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष भी थे। पूर्वांचल के साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों के तो ये धड़कन थे। इसके अलावा अनेक अधिकारी और राजनेता इन्हें अभिभावक का सम्मान देते थे। पत्रकारिता में भी इन्होंने सामाजिक सरोकार से जुड़े मसले को जिंदा रखा। इन मुद्दों पर उनकी बेबाक कलम चलती थी। पत्रकारिता के क्षेत्र में भले ही ये मुंगेर से जुड़े थे लेकिन दिनमान, दिनमान टाइम्स, जनसत्ता सहित अनेक अखबारों में इनके आलेख आते रहे। इनके आलेख राजनैतिक परिधि में नहीं रहे बल्कि अनेक बिन्दुओं, साहित्यिक सांस्कृतिक और सामाजिक सरोकार के जीवन पहलूओं पर प्रकाशित होते रहे। इनकी रचनाओं में यर्थाथ बोलता था। स्वामी सत्यानंद सरस्वती के साथ इन्होंने आध्यात्म से लेकर के मायानगरी तक का साक्षात्कार किया। जहां स्वामी सत्यानंद सरस्वती के जीवन और दर्शन को बहुत करीब से देखा, वहीं उनके साथ मुम्बई भी गये। मुम्बई में नरगिश, निरूपा राय, साधना, सुनील दत्त, लीला चिटनीश जैसी हस्तियों से मिले और उनके स्मरण तथा साक्षात्कार को उकेरा। पत्रकारिता के क्षेत्र में आ रहे परिवर्तनों से वे चिंतित थे, क्योंकि गरिमा के खिलाफ उठाये गये कदम को वे कतई बर्दाश्त नहीं करते थे। शालीनता, सादगी और पेशे की गरिमा कायम रखने के कारण हर कोई श्रद्र्धा से नतमस्तक हो जाता था। मुंगेर में नाम लेकर पुकारने की किसी में हिम्मत तक नहीं थी। हर कोई उन्हें ‘बाबा’ कह कर पुकारता था। चाहे प्रशासनिक पदाधिकारी हो या केन्द्र या राज्य सरकार का मंत्री। मुंगेर एवं बिहार के कई घटनाओं के साक्षी थे। युवा पत्रकारों को फुर्सत के क्षणों में उन घटनाओं के किस्से, स्मरण तथा पत्रकारिता के अनुभव को सुनाते थे। उनका कहना था कि ‘मैं जीवन की सांध्य बेला में हूं। आने वाला समय तुम्हारा है। अपनी विरासत को बचाये रखो’। अपने पत्रकारिता के अनुभवों को अपनी पुस्तक ‘यादों का आईना’ में उकेरा है।उनकी स्मृति में हर साल आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र राष्ट्रीय सम्मान सम्मान समारोह का आयोजन योग के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के सानिध्य में होता है। कोविड के कारण आयोजन समिति ने 2020 और 2021में समारोह का आयोजन नहीं किया है।

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