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दास्ताँ-ए-कसाब का हुआ अंत

बुधवार की सुबह १६६ परिवारों सहित देश की जनता के लिए सुखद अहसास लेकर आई। भारत की धर्मनिरपेक्ष अस्मिता व मुंबई में २६/११ हमले के आरोपी आमिर अजमल कसाब को अंततः पुणे की यरवदा जेल में फांसी दे दी गई है। बड़े ही गोपनीय तरीके से इस फांसी को अंजाम दिया गया और ऑपरेशन एक्स का नाम दिया गया। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कसाब की फांसी पर लटकाए जाने की पुष्टि करते हुए कहा कि यह ७ नवंबर को ही तय हो गया था कि २१ नवंबर को कसाब को फांसी की सजा दी जाएगी। दरअसल राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उसकी दया याचिका खारिज करते हुए ५ नवंबर को जरूरी कागजातों पर अपने हस्ताक्षर कर दिए थे। वहीं शिंदे ने रोम से लौटने के बाद ७ तारीख को कसाब की फांसी के कागजात पर अपने हस्ताक्षर कर दिए थे। उसी दिन तय भी हो गया था कि २१ नवंबर को सुबह ७.३० बजे कसाब को फांसी पर लटकाया जाएगा। केंद्र सरकार की इस पूर्वयोजना के बारे में ८ नवंबर को महाराष्ट्र सरकार को सूचित किया गया था। कसाब को १९ नवम्बर को यरवदा जेल लाया गया था। २६/११ की चौथी बरसी के ५ दिन पूर्व कसाब को फांसी से इस हमले में मारे गए नागरिकों सहित सुरक्षाकर्मियों की आत्मा को शांति मिली होगी। कसाब की फांसी ने देश को इसी माह एक और दिवाली मनाने का मौका दे दिया है। आनन-फानन में कसाब को फांसी देना गले तो नहीं उतर रहा पर देर आए दुरुस्त आए की तर्ज़ पर आतंकी कसाब को फांसी देश को सच्ची श्रद्धांजलि है। हालांकि विश्व में फांसी की सजा के विरुद्ध उठ रही आवाज और समर्थन को भारत के इस कदम से झटका लगा है किन्तु कसाब की फांसी का मुद्दा जनता के बीच गुस्से और भावुकता में बदल गया था और सरकार इस बात को अच्छी तरह समझ रही थी कि यदि उसने साम्प्रदायिक राजनीति के चलते कसाब की फांसी को अधिक लटकाया तो उसकी प्रतिक्रिया उसकी सत्ता का सूर्यास्त करवा देती। फिर पाकिस्तान को भी कसाब की फांसी की पूर्व सूचना दे दी गई थी किन्तु उसने भी वैश्विक आलोचना व दबाव के चलते कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। यानी कुल मिलाकर कसाब की फांसी को जिस गोपनीयता से अंजाम दिया गया उसके पीछे संयुक्त राष्ट्र संघ के हस्तक्षेप से भी इनकार नहीं किया जा सकता। दरअसल भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया है जिसमें फांसी की सजा पर प्रतिबंध की मांग की गई थी। प्रत्येक राष्ट्र को अपनी कानून व्यवस्था के नीति निर्धारण का हक़ के सिद्धांत पर चलते हुए भारत ने प्रस्ताव के विरुद्ध जाते हुए कसाब को फांसी दी। तब ऐसे में कसाब की फांसी मामले में निश्चित रूप से भारत-पाक के बीच आम सहमति का माहौल बनाने की कोशिश की गई है। हालांकि पाकिस्तान ने कसाब के शव को लेने से इनकार कर दिया है किन्तु ओसामा बिन लादेन की पाकिस्तान में मौत के बाद पाकिस्तानी मूल के कसाब की फांसी वैश्विक समुदाय में पाकिस्तान की किरकिरी अवश्य कराएगी। यह भी संभव है कि दोनों देशों के बीच मतभेदों की तीव्रता तमाम सीमाओं को लांघ जाए। यहां तक कि पाकिस्तान ने कसाब के शव को लेने से भी इनकार कर दिया है। यहां तक कि महाराष्ट्र के कई शहरों के कब्रिस्तानों ने भी कसाब के शव को दफनाने से इनकार किया जिसके चलते यरवदा जेल प्रशासन को मजबूरन कसाब के शव को जेल के पास ही दफनाना पड़ा। यह थी कसाब के प्रति सार्वजनिक नफरत।

 

कसाब की फांसी पर राजनीतिक श्रेय लेने की होड़ के बीच नेताओं ने संसद पर आत्मघाती हमले के आरोपी आतंकी अफजल गुरु को फांसी की मांग तेज़ कर दी है। अफजल की फांसी की दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है और अब उनपर ख़ासा दबाव होगा कि कसाब के बाद वे अफजल की दया याचिका का भी त्वरित निर्णय करें। जहां तक कसाब की फांसी से राजनीतिक लाभ की बात है तो इससे कांग्रेस को जबरदस्त फायदा होना तय है। हालांकि राष्ट्र हित से जुड़े मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए मगर स्वार्थ की राजनीति के चलते कसाब को फांसी के फंदे पर लटकाए जाने के बाद ही बयानवीरों ने राजनीतिक रोटियां सेंकना शुरू कर दिया है। कांग्रेस के नेता जहां पार्टी को देशहित के लिए समर्पित बताने में जुटे हैं वहीं भारतीय जनता पार्टी ने कसाब की फांसी को देरी से उठाया हुआ कदम बताते हुए सरकार की आलोचना की है। वैसे सरकार को इस प्रश्न का उत्तर तो देना ही होगा कि उसने कसाब की मिजाजपुर्सी में करोड़ों रुपए क्यों फूंके? प्राप्त जानकारी के अनुसार अजमल कसाब पर रोज लगभग ३.५ लाख रुपए खर्च किए जा रहे थे। इस खर्च में कसाब का खाना, सुरक्षा, वकील, दवा खर्च शामिल है। कसाब ४६ महीनों से जेल में था। अब तक उसपर करीब ५० करोड़ रुपए खर्च हो चुके थे। ऑर्थर रोड जेल में कसाब को जिस बैरक में रखा गया था, उसको बुलेटप्रुफ बनाने पर ५.२५ करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। १.५ करोड़ रुपए तो कसाब के लिए गाडि़यों पर खर्च किए गए थे। लगभग ११ करोड़ रुपए उसकी सुरक्षा पर खर्च हुए थे। इसके अलावा भी उसके ऊपर कई तरह के खर्च किए जा रहे थे। पिछले साल महाराष्‍ट्र विधानसभा में गृह मंत्री आर.आर. पाटिल ने कसाब पर लगभग २० करोड़ रुपए खर्च करने की बात कही थी। जनता के धन की ऐसी बर्बादी भारत के अलावा कहीं देखने को नहीं मिलेगी। अब जबकि कसाब को फांसी दी जा चुकी है; राष्ट्रपति के समक्ष अन्य लंबित दया याचिकाओं को निपटाने का दबाव होगा। और शायद इसी दबाव के पूर्वानुमान के तहत प्रणब मुखर्जी ने अफजल सहित ११ अन्य अभियुक्तों की दया याचिका पर गृह मंत्रालय की राय मांगी है। कसाब को फांसी देकर सरकार ने देश की जनता की भावनाओं की कद्र की है; साथ ही पाकिस्तान का चेहरा भी बेनकाब किया है कि पाकिस्तान चाहे कितने भी झूठ बोले मगर भारत में प्रायोजित आतंकवाद का केंद्र वही है।

 

सिद्धार्थ शंकर गौतम