जन-जन के आराध्य प्रभु श्रीराम

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अरविंद जयतिलक

भगवान श्रीराम साक्षात परब्रह्म ईश्वर हैं। संसार के समस्त पदार्थों के बीज और जगत के सूत्रधार हैं। वैदिक सनातन धर्म की आत्मा और परमात्मा हैं। शास्त्रों, पुराणों और उपनिषदों में उन्हें साक्षात ईश्वर कहा गया है। भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध कर मानव जाति को संदेश दिया कि सत्य और धर्म के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। इसी मार्ग पर चलने से जगत का कल्याण संभव है। सत्य के पर्याय भगवान श्रीराम सद्गुणों के भंडार हैं। इसीलिए भारतीय जनमानस के लिए वे आराध्य हैं और उनकी जीवन पद्धति उच्चतर आदर्श और पुनीत मार्ग है। शास्त्रों में भगवान श्रीराम को लोक कल्याण का पथप्रदर्शक और विष्णु के दस अवतारों में से सातवां अवतार कहा गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि जब-जब धरती पर अत्याचार बढ़ता है तब-तब प्रभु श्रीराम विभिन्न रुपों में धरा पर अवतरित होकर दुष्टों का संघार करते हैं। प्रभु श्री राम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रुप में लिखा गया है। महर्षि वालमीकि ने प्रभु श्रीराम के रंग, रुप, आचार-विचार व व्यवहार का भलीभांति उल्लेख किया है। महान संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी भगवान श्रीराम पर भक्ति काव्य रामचरित मानस की रचना की है जो केवल भारत में ही नहीं विश्व के कई देशों की कई भाषाओं में अनुदित है। संत तुलसीदास जी ने भगवान श्रीराम की महिमा का गान करते हुए कहा है कि भगवान श्रीराम भक्तों के मनरुपी वन में बसने वाले काम, क्रोध, और कलियुग के पापरुपी हाथियों के मारने के लिए सिंह के बच्चे सदृश हैं। वे शिवजी के परम पूज्य और प्रियतम अतिथि हैं। दरिद्रता रुपी दावानल के बुझाने के लिए कामना पूर्ण करने वाले मेघ हैं। वे संपूर्ण पुण्यों के फल महान भोगों के समान हैं। जगत का छलरहित हित करने में साधु-संतो ंके समान हैं। सेवकों के मन रुपी मानसरोवर के लिए हंस के समान और पवित्र करने में गंगा जी की तरंगमालाओं के समान हैं। श्रीराम के गुणों के समूह कुमार्ग, कुतर्क, कुचाल और कलियुग के कपट, दंभ और पाखंड के जलाने के लिए वैसे ही हैं जैसे ईंधन के लिए प्रचण्ड अग्नि होती है। श्रीराम पूर्णिमा के चंद्रमा की किरणों के समान सबको शीतलता और सुख देने वाले हैं। श्रीराम क्षमा, दया और दम लताओं के मंडप हैं। संसार भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम मानता है। कौशल्यानंदन भगवान श्रीराम अपने अनुज भरत, लक्ष्मण व शत्रुघन से अगाध प्रेम करते थे। इसलिए उन्हें एक आदर्श भाई कहा गया है। उन्होंने माता कैकयी की 14 वर्ष वनवास की इच्छा को सहर्ष स्वीकार करते हुए पिता दशरथ जी के वचन को निभाया। उन्होंने ‘रघुकूल रीत सदा चली आई, प्राण जाय पर वचन न जाई’ का पालन किया। इसलिए भगवान श्रीराम को आदर्श पुत्र कहा गया है। भगवान श्रीराम का गुणगान आदर्श भाई, आदर्श स्वामी, परम मित्र, आदर्श राजा के रुप में होता है। भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है। इसलिए कि उन्होंने कभी और कहीं भी मर्यादा का उलंघन नहीं किया। उन्होंने गंगा पार उतरने के लिए केवट से निवेदन किया। सर्वगुण संपन्न भगवान राम युवराज बनने पर भी न तो प्रसन्नता जाहिर की और न ही वन गमन पर दुख व्यक्त किया। वे मर्यादापूर्ण आचरण से बंधे रहे। वे चाहते तो एक बाण से समस्त सागर को सुखा सकते थे। लेकिन सागर पार जाने के लिए उन्होंने समुद्र से मार्ग देने का निवेदन किया। उन्होंने शबरी के भक्तिभाव से प्रसन्न होकर उसे नवधा भक्ति का ज्ञान दिया। भगवान श्रीराम ने सभी जीवों पर दया दृष्टि बरसायी। उन्होंने बाली और रावध का वध कर उनके राज्य को सुग्रीव और विभिषण को सौंप दिया। शास्त्रों में भगवान श्री राम को नीति कुशल व न्यायप्रिय राजा कहा गया है। उन्होंने स्वयं के सुखों का परित्याग कर लोककल्याण के मार्ग पर चलना स्वीकार किया। इसीलिए भगवान श्रीराम का रामराज्य जगत प्रसिद्ध है। वे विषम परिस्थितियों में भी नीति सम्मत बने रहे। उन्होंने वेदों और मर्यादा का पालन करते हुए सुखी राज्य की स्थापना की। इसीलिए हिंदू सनातन संस्कृति में भगवान श्रीराम द्वारा किया गया आदर्श शासन ही रामराज्य के नाम से प्रसिद्ध है। रामचरित मानस में तुलसीदास ने रामराज्य पर भरपूर प्रकाश डाला है। उन्होंने लिखा है कि ‘रामराज बैठे त्रिलोका, हरषित भए गए सब सोका।’ ‘बयरु न कर काहू सन कोई, राम प्रतात विषमता खोई।’ ‘दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज नहिं काहु व्यापा।’ ‘अल्पमृत्यु नहिं कवनउ पीरा, सब सुंदर सब बिरुज शरीरा।’ ‘नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना, नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।’ अर्थात मर्यादा पुरुषोत्तम राम के सिंहासन पर आसीन होते ही सर्वत्र हर्ष व्याप्त हो गया। समस्त भय और शोक दूर हो गए। लोगों को दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति मिल गयी। रामराज्य में कोई भी अल्पमृत्यु और रोगपीड़ा से ग्रस्त नहीं था। सभी जन स्वस्थ, गुणी, बुद्धिमान, साक्षर, ज्ञानी और कृतज्ञ थे। वाल्मीकि रामायण के एक प्रसंग में स्वयं भरत जी भी रामराज्य के विलक्षण प्रभाव की बखान करते हुए कहते हैं कि ‘राघव, आपके राज्य पर अभिषिक्त हुए एक मास से अधिक समय हो गया तब से सभी लोग निरोग दिखाई देते हैं। बूढ़े प्राणियों के पास भी मृत्यु नहीं फटकती है। स्त्रियां बिना कष्ट के प्रसव करती हैं। सभी मनुष्यों के शरीर हृष्ट-पुष्ट दिखायी देते हैं। राजन् पुरवासियों में हर्ष छा रहा है। मेघ अमृत के समान जल गिराते हुए समय पर वर्षा करते हैं। हवा ऐसी चलती है कि इसका स्पर्श शीतल एवं सुखद जान पड़ता है। रामराज्य की स्थापना की चाह गांधी जी को भी थी। गांधी जी रामराज्य को लोकतंत्र का परिष्कृत और परिमार्जित स्वरुप मानते थे। 1946 में गांधी जी ने लिखा था कि ‘मेरे राम, मेरी प्रार्थनाओं के राम अयोध्या के राजा दशरथ के बेटे अनंत और अजन्में हैं।’ गांधी के लिए राम एक सर्वव्यापी ईश्वरीय शक्ति का स्वरुप थे। अपने इसी राम के साथ एकरुपता गांधी के नैतिक जीवन का लक्ष्य था। 1929 में यंग इंडिया में गांधी जी ने रामराज्य की प्रशंसा के बारे में लिखा। इसीलिए उन्होंने भारत में अंग्रेजी शासन से मुक्ति के बाद ग्राम स्वराज के रुप में रामराज्य की कल्पना की। आज भी शासन की विधा के तौर पर रामराज्य को ही उत्कृष्ट माना जाता है और इसका उदाहरण दिया जाता है। संसार भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम मानता है। इसलिए कि उन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सत्य और मर्यादा का पालन करना नहीं छोड़ा। पिता का आदेश मान वन गए और दण्डक वन को राछस विहिन किया। गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार कर और पराई स्त्री पर कुदृष्टि रखने वाले बालि का संघार कर संसार को स्त्रियों के प्रति संवेदनशील होने की सीख दी। जंगल में रहने वाली शबरी को नवधा भक्ति का ज्ञान दिया। उन्होंने नवधा भक्ति के जरिए दुनिया को अपनी महिमा से सुपरिचित कराया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि मुझे वहीं प्रिय हैं जो संतों का संग करते हैं। मेरी कथा का रसपान करते हैं। जो इंद्रियों का निग्रह, शील, बहुत कार्यों से वैराग्य और निरंतर संत पुरुषों के धर्म में लगे रहते हैं। जगत को समभाव से मुझमें देखते हैं और संतों को मुझसे भी अधिक प्रिय समझते हैं। उन्होंने शबरी को यह भी समझाया कि मेरे दर्शन का परम अनुपम फल यह है कि जीव अपने सहज स्वरुप को प्राप्त हो जाता है। भगवान श्रीराम सभी प्राणियों के लिए संवेदनशील थे। उन्होंने अधम प्राणी जटायु को पिता तुल्य स्नेह प्रदान कर जीव-जंतुओं के प्रति मानवीय आचरण को भलीभांति निरुपित किया। समुद्र पर सेतु बांधकर वैज्ञानिकता और तकनीकी का अनुपम मिसाल कायम की। उन्होंने समुद्र के अनुनय-विनय पर निकट बसे खलमंडली का भी संघार किया। पत्नी सीता के हरण के बाद भी अपना धैर्य नहीं खोया। असुर रावण को सत्य और धर्म के मार्ग पर लाने के लिए अपने भक्त हनुमान और अंगद को उसके पास लंका भेजा। लेकिन दुष्ट रावण माता सीता को वापस करने को तैयार नहीं हुआ। अंततः प्रभु श्रीराम को उसका वध करना पड़ा। भगवान श्रीराम ने उसे मुक्ति देकर जगत का कल्याण किया। भगवान श्रीराम जन-जन के आराध्य हैं। विश्व के नियंता और संचालक हैं।

 

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