आडवानी की मृगतृष्णा

      महाभारत का युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच नहीं था। यह धृतराष्ट्र और पाण्डवों के बीच था। युद्ध के पहले भी धृतराष्ट्र ही हस्तिनापुर के राजा थे और युद्ध में अगर कौरवों की जीत हो जाती, तो वे ही राजा बने रहते। वनवास से लौटने के बाद इन्द्रप्रस्थ का राज्य युधिष्ठिर को वापस देने का वचन उन्होंने ही दिया था और उनके ही वचन-भंग का परिणाम महाभारत था। महाभारत के पूर्व भी उन्होंने कई कुटिल योजनायें बनाईं। पाण्डवों को लाक्षागृह में भेजकर जीवित जला देने की योजना उनके ही अनुमोदन के बाद बनी। भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण उनके ही सामने हुआ। वे आंखों से अंधे थे लेकिन अंधा होने का अर्थ यह कदापि नहीं था कि उनकी इच्छायें भी समाप्त हो गई थीं। वे दुर्योधन के माध्यम से सबकुछ देखना चाहते थे और अपनी सारी दबी हुई इच्छाओं की पूर्ति करना चाहते थे। वे इतने स्वार्थी थे कि अपने पुत्र को भी नहीं बक्शा। बड़ी चालाकी और सफ़ाई से उन्होंने अपने दुष्कृत्यों के लिये दुर्योधन को जिम्मेदार ठहराया। श्री मद्भागवद्गीता के अन्त में संजय ने युद्ध के परिणाम की भविष्यवाणी करते हुए यह स्पष्ट कर दिया था कि जहां योगेश्वर श्रीकृष्ण और गाण्डीवधारी अर्जुन हैं, विजय वही होगी। अन्धे धृतराष्ट्र की आंखें फिर भी नहीं खुलीं। वे मृगतृष्णा के पीछे भागते रहे और युद्ध कराकर ही दम लिया। युद्ध के उपरान्त युधिष्ठिर सम्राट बने और वृद्ध धृतराष्ट्र को आजीवन जंगल में निवास करना पड़ा।

      सत्ता की मृगतृष्णा के पीछे बीजेपी के लौह पुरुष लाल कृष्ण आडवानी भी धृतराष्ट्र बन गये हैं। बन्द आंखों से वे उन्हें सिर्फ़ प्रधानमंत्री की कुर्सी दिखाई पड़ती है। ईश्वर ने उन्हें लंबी उम्र दी है लेकिन यह उम्र आश्रम-व्यवस्था के अनुसार संन्यास ग्रहण करने की है। नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता से सोनिया जलें, राहुल जलें या केजरीवाल जलें, इसमें अस्वाभाविक कुछ भी नहीं। लेकिन आडवानी का जलना अनेक प्रश्नचिह्न खड़े करता है। मोदी का बीजेपी के चुनाव-अभियान का राष्ट्रीय संयोजक चुने जाने के तत्काल बाद आडवानी का कोप-भवन में जाना उनकी छोटी सोच का परिचायक था। नरेन्द्र मोदी को बीजेपी ने जब प्रधानमंत्री पद के लिये अपना उम्मीदवार घोषित किया, तो वे पुनः कोप-भवन में गये। अनुशासनहीनता की सारी सीमायें तोड़ते हुए उन्होंने पार्टी अध्यक्ष को विरोध-पत्र लिखा और उसे भी राजनाथ सिंह को देने के पहले मीडिया को दे दिया। उनकी जगह किसी और ने यह कृत्य किया होता, तो पार्टी उसे कबका बाहर का रास्ता दिखा चुकी होती। लेकिन आगामी आम चुनाव में पार्टी की संभावनायें धूमिल न हों, इसलिये पाटी ने सख्ती नहीं बरती। लेकिन अब तो पानी सिर के उपर बह रहा है। आडवानी और उनकी चाण्डाल-चौकड़ी की हर संभव कोशिश हो रही है कि बीजेपी १६० क्लब में उलझी रहे। ऐसी स्थिति में नीतिश, ममता और नवीन पटनायक के समर्थन से प्रधानमंत्री की कुर्सी पा जाने का दिवास्वप्न आडवानी आज भी देख रहे हैं। लोकसभा के लिये गांधीनगर के बदले भोपाल की सीट का चुनाव करना इसी रणनीति का हिस्सा था। वे मतदाताओं और अपने समर्थकों को स्पष्ट संदेश देना चाहते थे कि मोदी उन्हें पसन्द नहीं हैं और मोदी पर उन्हें विश्वास भी नहीं है। मोदी उन्हें गांधीनगर से हरवा भी सकते हैं। बीजेपी के १६० क्लब के लिये यह उनका आखिरी प्रयास था। दिन-रात चुनाव प्रचार में व्यस्त नरेन्द्र मोदी के अभियान में बाधा डालना ही इसका उद्देश्य था। काफी मान-मनौवल के बाद पार्टी ने इस समस्या को सुलझा लिया, लेकिन मतदाताओं में यह संदेश भेजने में आडवानी सफल रहे कि पार्टी में सबकुछ ठीकठाक नहीं है। धृतराष्ट्र की दृष्टि रखने वाले आडवानी चुनाव के बाद भी किस महाभारत की योजना बनायेंगे, यह भविष्य के गर्भ में है। परन्तु इतना तो सत्य है ही कि उनके इन कृत्यों के कारण उनके समस्त पुण्य क्षीण हो चुके हैं। धृतराष्ट्र जन्मान्ध थे, आडवानी स्वार्थान्ध हैं। महाभारत के बाद धृतराष्ट्र को घनघोर जंगल में गुमनामी के दिन काटने पड़े। मृगतृष्णा के पीछे भाग रहे इक्कीसवीं सदी के धृतराष्ट्र के साथ भी ऐसा ही कुछ हो, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये।

9 COMMENTS

  1. लगता है झाजी इतिहास के कुछ क्षणों को स्थाई बनाने के पक्ष में हैं। स्वयं त्रिकालदर्शी भगवान् श्रीकृष्ण ने कालचक्र को रोकने का कभी प्रयास नहीं किया और समय आने पर स्वयं एक व्याध द्वारा छोड़े गए बाण से विद्ध हो कर मानव शरीर त्याग दिया। अद्वितीय धनुर्धर अर्जुन जिन्होंने महाभारत युद्ध में पांडवों की विजय सुनिश्चित करने में प्रमुख भूमिका निभाई ,अंत में भीलों से गोपिओं की रक्षा नहीं कर सके । आडवाणीजी ने जो भी कुछ २५ साल पहले किया था वह उन्हें आज पार्टी के शीर्ष पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं दे सकता। पार्टी की बागडोर उस के हाथ में होनी चाहिए जो योग्य,सशक्त तथा लोकप्रिय हो। इस समय भाजपा में मोदीजी के अतरिक्त कोई ऐसा नेता नहीं दिखाई देता।
    सत्तासुख से लिपटे रहनेवालों की भाजपा तथा संघ परिवार के संगठनों में कमी नहीं है। आडवाणीजी, मुरलीमनोहर जोशी जसवंत सिंह तथा अशोक सिंघल को समझ लेना चाहिए कि उनका समय जा चूका है और अब उन्हें या तो राजनीति से सन्यास ले लेना चाहिए और यदि ऐसा सम्भव न हो तो अपनी आयु के अनुसार पार्टी के वयोवृध्ध सदस्य का दायित्व निभाना चाहिए।
    अडवाणीजी के व्यवहार से मुझे चर्पटपंजरी का एक श्लोक स्मरण हो आता है —
    अंगम गलितम् पलितं मुण्डं दशन विहीनं जातं तुंडम
    वृद्धा याति गृहीत्वा दण्डं तदपि न मुञ्चति आशा पिण्डं

  2. विपिन किशोर सिन्हा जी ने बहुत कुछ कहने का प्रयत्न किया है,पर इस महाभारत के धृतराष्ट्र(अडवाणी) आँखों के अंधे नहीं है, दुर्योधन(नमो) को बढ़ावादेने में वे कम दोषी नहीं हैं।यह भी सत्‍य है कि वे उम्मीद कर रहे थे कि दुर्योधन उन्हे एक बार और अवसर प्रदान करेगा।यही नहीं,बल्कि वे तो शायद सोच रहे थे कि वह इसमे उनकी मदद करेगा,पर इसबार भी धृतराष्ट्र दुर्योधन की महत्वकांक्षा को नहीं समझ सका और दुर्योधन,दुःशासन(अमित शाह )की मदद से द्रौपदी(राष्ट्र) का चीर हरण करने में शायद सफल हो जायेगा। पर इस बार भी हो सकता है कि कोई कृष्ण द्रौपदी को बचा ले।

  3. Today I am afraid. It’s not that I am coward. I don’t fear even death, but I am afraid today. Once earlier also I had heard Indira is India and India is Indira, but that time I was not afraid. At that time I just considered it height of sycophancy and laughed at it. But that proved to be disastrous for India.Today when I think of that and remember what happened afterwards, I simply shudder Today when I hear Har Har Modi,instead of HAr HarMahadev, I wonder ,whether same era is coming back. When some leaders become bigger than not only party, but nation or God, we have to be afraid. Still there was hope when Indira became dictator, because after all she was born and brought up in democratic environment, but there is no such stigma attached with Modi., so there won’t be any tracking back ,when he assumes that role. Arrogant as he is, there won’t be any check on his behavior. In my opinion India would be heading for even worse situation than what we witnessed in 1975.Reasons are clear. Corruption and bankruptcy of policy combined with Modi’s arrogance will cause it.
    May be that somebody thinks that Godhra’s ghost is buried now, but since mindset has not changed, it will raise its head again and again. We may leave it for the time being, but the way heads of old stalwarts are rolling reminds me that era, when Indira was cutting all reputed leaders to their size and replacing them with her sycophants. Is Modi not doing the same thing? He is doing something more. He is welcoming all those in his party fold , who are infamous in their own way.
    It is still vague, what Modi has done in Gujarat. Gujarat was a forward state, even before Modi’s era dawned there. I don’t think, he has been able to eradicate corruption there. Liquor was freely available in Gujarat earlier also in spite of total prohibition. As I heard situation has worsened now. This is one of the yard sticks of corruption. Is it not? Otherwise also, a cabinet comprising of known corrupts cannot give a clean government,You can’t clean linen with dirty hands.
    Has condition of Government hospitals and government schools improved? Electricity is supposed to be available in Gujarat 24 hours, but at what cost? Sheila Dixit had done the same thing in Delhi and at cheaper rate as she claimed.
    Modi is supposed to be industry friendly. Gujarat is proving land to industries at throw away prices. But whose land it is? What payment government is making to land owners? What’s their share in profit from industries?
    If Modi is so popular, why ABVP lost badly in last election of students union? Some people have started comparing Modi with Bhasmasur, who will ultimately destroy BJP, before destroying India.
    I feel, nothing has changed about Modi. First he was selling Hindutva,when its market value declined he started selling development.

  4. लगता है झाजी इतिहास के कुछ क्षणों को स्थाई बनाने के पक्ष में हैं। स्वयं त्रिकालदर्शी भगवान् श्रीकृष्ण ने कालचक्र को रोकने का कभी प्रयास नहीं किया और स्वयं एक व्याध द्वारा छोड़े गए बाण से विद्ध हो कर मानव शरीर त्याग दिया। अद्वितीय धनुर्धर अर्जुन जिन्होंने महाभारत युद्ध में पांडवों की विजय सुनिश्चित करने में प्रमुख भूमिका निभाई ,अंत में भीलों से गोपिओं की रक्षा नहीं कर सके । आडवाणीजी ने जो भी कुछ २५ साल पहले किया था वह उन्हें आज पार्टी के शीर्ष पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं दे सकता। पार्टी की बागडोर उस के हाथ में होनी चाहिए जो योग्य,सशक्त तथा लोकप्रिय हो। इस समय भाजपा में मोदीजी के अतरिक्त कोई ऐसा नेता नहीं दिखाई देता।
    सत्तासुख से लिपटे रहनेवालों की भाजपा तथा संघ परिवार के संगठनों में कमी नहीं है। आडवाणीजी, मुरलीमनोहर जोशी जसवंत सिंह तथा अशोक सिंघल को समझ लेना चाहिए कि उनका समय जा चूका है और अब उन्हें या तो राजनीति से सन्यास ले लेना चाहिए और यदि ऐसा सम्भव न हो तो अपनी आयु के अनुसार पार्टी के वयोवृध्ध सदस्य का दायित्व निभाना चाहिए।
    अडवाणीजी के व्यवहार से मुझे चर्पटपंजरी का एक श्लोक स्मरण हो आता है —
    अंगम गलितम् पलितं मुण्डं दशन विहीनं जातं तुंडम
    वृद्धा याति गृहीत्वा दण्डं तदपि न मुञ्चति आशा पिण्डं

  5. वैसे, तुलना किसी की भी नहीं की जा सकती। सारे घटक समान नहीं होते।
    फिर भी;कितने सारे प्रचारक, कितने सारे कर्मठ कार्यकर्ता, और अनगिनत स्वयंसेवक, इस राष्ट्र यज्ञ में अपना योगदान देकर गये।
    कुछ को प्रसिद्धी प्राप्त हुयी, कुछ का नाम भी किसी ने न जाना।
    कुछ को अवसर प्राप्त हुआ, कुछ को नहीं।
    सम्मान में, गरिमा और गौरव से प्रस्तुत होना सरल है, किंतु जब सन्यांसाश्रम का समय हो, तब भी मोह से ग्रस्त व्यवहार होना, और अपने व्यवहार पर अंकुश ना होना, मेरी समझ से परे हैं।गरिमापूर्ण व्यवहार की, अडवानी जी से अपेक्षा रखता हूँ।
    कुछ समय के लिए व्यक्ति विचलित हो, यह समझ सकता हूँ। पर फिर संभल जाना चाहिए। हो सकता है, उनकी समझ में आ चुका हो। मैं ने भी, कुछ हिचकिचाहट सहित ही लिखा है।
    पर, जसवंत सिंह से मेरी ऐसी अपेक्षा नहीं है।

  6. इतिहास का रथ अपने नायकों के प्रति निरपेक्ष रहा करता है। भारतीय जन संघ से भारतीय जनता पार्टी का संक्रमणकाल। अटलबिहारी वाजपेई ने कमान सँभाली थी। उन्होंने धर्मनिरपेक्ष गांधीवादी वादी समाजवाद के दर्शन को अपनाया था। कैडर विभ्रान्त होगया था, उसकी अपनी विशिष्ट पहचान खो गई थी।
    जनता धर्मनिरपेक्ष गांधीवादी समाजवाद के लिए हमारे पास क्यों आएगी, बहुत सारी अन्य पार्टियाँ पहले से हैं। अटलजी के बाद रथ की बागडोर अडवानी ने सँभाली– भारतीय जनता पार्टी को फिर से जन संघ की हिन्दुत्व की पहचान से अलंकृत किया । भारतीय जनता पार्टी में प्राण प्रतिष्ठित अडवानी ने ही किया।
    सन 1989 में दूरदृष्टि रखने वाला वासुदेव कृष्ण पच्चीस सालों के बाद 2014 ई में धृष्ट्रराष्ट्र कहलाता है। इतिहास का परिहास ही तो है।

    • One who does not listen the call of time and behold the future selflessly becomes Dhritarashtr. No doubt, Adawaniji has contributed a lot to BJP but in the age of SAMNYAS his present activities are damaging party and the nation both. In early days Jinna was nationalist and secular. His own ambitions and interest lead partition. Can we forgive him? Adawani should take retirement in the interest of party and India.

    • har vyakti ko kehne ka adhikar hai jha ji. advani ji ne jo party ke liye kiya kya wo koi aur kar sakta hai kya, par aaj bujrogo ko samman dena hi log bhul gaye hain, shyad yahi vajah hia jo advani ji udaas hain….

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