आडवाणी की रथयात्रा और मीडिया का अनर्गल प्रलाप

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गौतम चौधरी

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी एक बार फिर से यात्रा पर निकल गये हैं। आडवाणी की वर्तमान यात्रा न तो भगवान राम के मंदिर के लिए है और न ही प्रधानमंत्री की दावेदारी के लिए। भाजपा सूत्रों पर भरोसा करे तो इस यात्रा में आडवाणी जी विशुद्धता के साथ सतर्कता भी बरत रहे हैं। इस बार की रथयात्रा में आडवाणी जी बता रहे हैं कि किस प्रकार केन्द्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबधन सरकार आम लोगों के साथ धोखा और मजाक कर रही है। आडवाणी जी बता रहे हैं कि देश पर षासन करने वाली सरकार निहायत भ्रष्ठ है। इस बार की रथयात्रा का एक खास पहलू यह है कि यात्रा किसी हिन्दू धर्मस्थल से प्रारम्भ नहीं हुआ है। यह यात्रा उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जन्मभूमि सिताबदियरा से शुरु की है। भारत में इस प्रकार की यात्रा के तीन पहलु हुआ करते हैं। एक तो यात्रा किस थीम पर है। दूसरा यात्रा के दौरान किन किन बिन्दुओं को उठाया जा रहा है। फिर यात्रा के दौरान किन बिन्दुओं को ज्यादा प्रभावी ढंग से रखा जा रहा है। इसके अलावा यात्रा के दौरान किस व्यक्ति, समूह, दल एवं संगठन पर प्रहार किया जा रहा है। आडवाणी जी इस बार कुल मिलाकर भ्रष्‍टाचार को प्रमुख मुद्दा बना रहे है। आडवाणी जी के यात्रा के दौरान दिये गये भाषणों की मीमांसा की जाये तो ऐसा लगता है कि वे एक सार्थक और समझ वाले विषयों को उठा रहे हैं। आडवाणी जी विदेशी बैंकों में भारतीयों के काले धन का मुद्दा उठा रहे हैं। इस यात्रा के दौरान कही कही आडवाणी जी ने अन्ना हजारे के जनलोकपाल और बाबा रामदेव के भ्रठाचार विरोधी अभियान का भी समर्थन किया है। इस प्रकार देखे तो अबके आडवाणी जी पूरे राष्ट्रीयता का विचार कर यात्रा कर रहे हैं। इस यात्रा में आडवाणी जी न तो किसी खास व्यक्ति पर प्रहार कर रहे हैं और न ही अनर्गल बयानबाजी ही कर रहे हैं वाबजूद देश की सत्तारूढ दल, भारतीय मीडिया, विदेशी पैसों पर पलने वाले गैर सरकारी संगठन तथा भ्रष्ट नौकरशाहों के बीच मानों खलबली मच गयी है। सबसे घटिया भूमिका में तो देश का समाचार माध्यम है जो आडवाणी जैसे नेता को बिना बात के विवादों में घसीटने को आतुर दिख रहा है।

आडवाणी के हालिया यात्रा में समाचार माध्यमों की भूमिका बडी ओछी रही है। समाचार माध्यमों ने आडवाणी के व्यक्तित्व और कृतृत्व पर कोई टिप्पणी नहीं छापी लेकिन आडवाणी के साथ गुजरात के मुख्यमंत्री की लडाई प्रधानमंत्री की दावेदारी को लेकर हो गयी है इसकी खबर हर समाचार माध्यम ने प्रमुखता से दिखाया और और छापा जबकि दोनों ने इस खबर का खंडन किया। आज समाज नामक अखबार ने तो इस परिकल्पनात्मक खबर पर अपना संपादकीय तक लिख दिया। प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर न तो आडवाणी कुछ बोल रहे हैं और न ही मोदी लेकिन अखबार और समाचार वाहिनी लगातार लिखे दिखाये जा रहा है कि दोनों में घमासान है। अब इस परिकल्पनात्मक खबर को क्या कहा जाये। इसे परिपक्व या तटस्थ भूमिका कही जा सकती है क्या? एक बात समझ लेनी चाहिए कि यदि राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन को बहुमत मिलता है तो प्रधानमंत्री की कुर्सी भाजपा के खाते में आएगा। भाजपा के खाते की कुर्सी बिना आडवाणी की सहमति के किसी को दिया नहीं जा सकता है। यह भाजपा की परंपरा है कि जो सबसे वरिष्ठ होता है वही वरिष्ठ पद का भी अधिकारी होता है। ऐसे में भाजपा आखिर किसको प्रधानमंत्री बनाएगा यह कोई साधारन मीमांसक भी समझ सकता है तो फिर बेवजह की बातों को तुल देने की क्या जरूरत है। लेकिन आडवाणी जी यात्रा को विवादित बनाना है इसलिए ऐसा करना जरूरी है। क्योंकि मीडिया कांग्रेस नीति गढबंधन को बढत दिलाना चाहती है उसके लिए आडवाणी जी को विवादित करना जरूरी है और वही भारतीय मीडिया कर रही है। तो अब किस प्रकार भारतीय मीडिया को परिपक्व कहा जाये। जहां तक प्रधानमंत्री के दावेदारी क सवाल है तो आडवाणी जी के बाद डॉ0 मुरली मनोहर जोशी हैं फिर भाजपा के दूसरी पंक्ति के नेता हैं। उसमें नरेन्द्र भाई का नाम आता है। आडवाणी ने ही भारतीय जनता पार्टी जैसे मरी और कमजोर पार्टी को देश की मुख्यधारा की पार्टी बनाई, बावजूद उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाया। अटल जी के बाद अनुभव और आयु में आडवाणी पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता हैं तो फिर प्रधानमंत्री की दावेदारी पर प्रश्‍न का सवाल कहां उठता है। इसमें समाचार माध्यमों को नाहक और अनरगल विवाद नही खडा करना चाहिए। भारत की मीडिया कुशल और चरित्रवान होती तो आडवाना के उठाये मुददों पर जनता को प्रबोधित करती न की आडवाणी मोदी विवाद को लोगो के सामने प्रस्तुत करती।

इस संदर्भ का दूसरा पक्ष और स्‍याह है। समाचार पत्रों में खबर आयी कि आडवाणी जी का वर्तमान रथ पर करोडो रूपये का व्यय हुआ है। उनके इसस पूरे यात्रा कर इवेंट प्रबंधन नीरा राडिया कर रही है। आडवाणी जी के यात्रा की पूरी व्यवस्था भाजपा संसदीय दल के सचिव अंनत कुमार सम्भाल रहे हैं। कुल मिलाकर समाचार माध्यमों ने आडवाणी की पूरी यात्रा को नकारात्मक तरीके से लोगो के सामने प्रस्तुत किया जो एक जिम्मेवार मीडिया की भूमिका पर प्रश्‍न खडा करता है। दूसरी ओर मीडिया ने कांग्रेस सांसद राहुल और सोनिसा गांधी को ही नहीं चिदंबरम को भी बेदाग घोषित कर दिया। लाख चिल्लाने के बाद भी खबर नही बनी कि आखिर सोनिया जी विदेश जाती है तो किसी को बताती क्यों नहीं। एक बडी खबर को लगातार छुपाया जा रहा है कि सोनिया की वर्तमानन अमेरिकी यात्रा स्वास्थ्य के कारण नहीं किसी दूसरे कारण से हुआ था। जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुब्रमन्यम स्वामी ने आरोप लगाया है कि सोनिया जी जिस चिकित्सक से चिकित्‍सा की बात कर रही हैं उसके यहां वे गयी ही नहीं। इस खबर को लगातार मीडिया छुपा रही है। मीडिया बिना बात के राहुल गांधी को प्रोजेक्ट कर रहा है। यही नहीं मीडिया ने नरेन्द्र मोदी के उपवास पर भी खूब महौल बनाया । यहां एक बात बताना ठीक रहेगा, मोदी की मंशा चाहे जो हो लेकिन मीडिया की परिपक्वता और आदर्श की हवा तब निकल गई जब मोदी के उपवास के दौरान देश के सभी मीडिया घरानो को गुजरात सरकार का बडा विज्ञापन उपलब्ध कराया गया। जिस पन्ने पर विज्ञापन छपा ठीक उसी के पीछे मोदी के उपवास का विवरण भी छापा गया। इसे क्या कहेंगे? इस खबर को छापने की ताकत किसी ने दिखायी कि आखिर बेवजह गुजरात सरकार का यह विज्ञापन क्यों? इस विषय पर किसी ने अपनी कलम नहीं चालाई तो देश की मीडिया को कैसे परिपक्व कहा जा सकता है। समाचार माध्यमों में मोदी के उपवास की चर्चा मोदी के व्यक्तित्व या कृतित्व के कारण नहीं हुई। अखबार और समाचार वाहिनियों में मोदी की चर्चा गुजराती विज्ञापन का प्रतिफल था। इस प्रकार आज राहुल गांधी और नरेन्द्र भाई पैसे के बल पर आडवाणी के उद्दात छवि को टक्कर दे रहे है । यह इस देश का दुर्भाग्य है कि देश की मीडिया एक राजनीतिक कर्मयोगी की तुलना बचकाने और गैरजिम्मेदार राजनेताओ के साथ कर रही है। बावजूद पुराना महारथी एक बार फिर से रथ पर आरुढ हो गया है। मीडिया का समर्थन मिले या नहीं अब देश की 50 प्रतिशत जनता पारंपरिक मीडिया पर भरोसा करना छोड दी है। इस बार आडवाणी के साथ बिहार का समाजवादी जमात है जहां से आडवाणी की यात्रा बंद हुई थी संयोग है कि उसी राज्य से आडवाणी जी ने यात्रा प्रारंभ की है। बिहार के मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता नीतिश खुद सिताब जा कर यात्रा को हरी झंडी दिखा आये हैं। सब ठीक रहा और आडवाणी ने जो अपनी छवि बनाई है उससे आडवाणी को कितना फरयदा होगा यह तो भविष्य बताएगा लेकिन बेरोजगारी, मंहगाई, भ्रष्ठाचार, आंतकवाद से हलवान भारतीय जनता को थोडी राहत जरुर मिलेगी। आडवाणी जी लगभग चौरासी वर्ष के हैं। अगर वे जयप्रकाश जी की तरह सत्ता और व्यवस्था परिवर्तन में सफल रहे तो प्रधानमंत्री बने या नहीं देश उन्हें लंबे समय तक याद जरूर रखेगा। इसलिए आडवाणी बिना किसी की परवाह किये दिनकर का याद करें और गाएं : –

सदियों की ठंडी बुझी राख सुगबुगा उठी

मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है

दो राह समय के रथ का घर्र-घर्र! नाद सुनो

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है

2 COMMENTS

  1. आपने जो शब्दजाल बुना है और जो तर्क दे रहे हैं, वे सब बेदम हैं, आडवाणी जी संन्यासी कब से हो गए, वे विशुद्ध राजनीतिक नेता हैं और फालतू नहीं हैं कि चल दिए भ्रमण को, वक्त आने पर सब पता लग जाएगा कि वे किस काम से निकले थे

  2. जाकिर नाइक नाम के व्यक्ति जो की पीस टीवी में दीखता है , हिन्दुओं को वेदों का हवाला देता है की “तस्य प्रतिमा नास्ति ” अतः कूड़ा को मानो, वो भी हिन्दू लोग क्या सोचते है थोड़ी सी प्रवचन पर ही इस्लाम ग्रहण कर लेते हैं ….
    लोगों को सोचना चाहिए की वेदों ने भी एक इश्वर माना है तो इस इस्लाम में क्यों जाए जब हिन्दू धर्मं में ही खुद इश्वर या खुदा एक है , उलटे उस ज्ज़किर को कहते की अरे भाई तुम हिन्दू धर्मं का गुणगान करते हो और बनाते हो मुसलमान .
    मैंने एक दिन दो लड़कों को इस्लाम ग्रहण करते देखा मुझसे देखा नहीं जाता ये.
    मै सोच के घबराता हूँ की हमारे धर्म का क्या होगा
    इन लड़कों को जब एकेश्वर ही मानना था तो बौध या जैन हो जाते या तो नास्तिक ही बन जाते .
    पता नहीं कौन हिन्दू है जो मुसलमान बनना चाहता है , इसके पहले उन्हें अपने धर्म व दुसरे धर्मं का किसी अच्छे विद्वान से जानकारी लेना चाहिए

    इन महाशय को रोका क्यों नहीं जाता
    इन्ही ने मुहम्मद पैगम्बर को कल्कि अवतार के रूप प्रचारित किया है

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