अफगानिस्तानः संकटग्रस्त देश को बचाने की भारतीय पहल

0
127

संदर्भः अफगानिस्तान के प्रश्न पर 8 पड़ोसी देशों की बैठक-
प्रमोद भार्गव
अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे के बाद से अब तक भारत ‘देखो व प्रतीक्षा करो’ की नीति पर चल रहा था, परंतु अब अफगान की नाजुक होती जा रही समस्या का समाधान निकालने की दृष्टि से दिल्ली में आठ मध्य-एशियाई पड़ोसी देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक आहूत की गई। हालांकि आमंत्रण के बावजूद कुटिल चीन और आतंकियों की शरणगाह बना पाकिस्तान बैठक में शामिल नहीं हुए। पाक के एनएसए मोइद युसुफ ने कह दिया कि जो भारत खेल बिगाड़ने का काम करता है, वह खेल बनाने की पहल कैसे कर सकता है ? हालांकि इस आरोप के बतौर प्रमाण युसुफ के पास कोई शब्द नहीं हैं, क्योंकि भारत अफगान के सरंचनात्मक विकास से लेकर भूखे अफगानियों को 75 हजार टन गेहूं दो साल के भीतर दे चुका है और हाल ही 50 हजार टन गेहूं भेजने की घोषणा की है। जबकि पाकिस्तान ने ऐसी कोई मदद की हो, जानकारी में नहीं आई। चीन ने एक ऐतिहासिक अधिवेशन का बहाना बनाकर भागीदारी से इंकार कर दिया। चोर-चोर मसौरे भाइयों की इस बद्नीयति को दुनिया जानती है। पाक जहां तालिबान का गलत इस्तेमाल कश्मीर में करना चाहता है, वहीं चीन की नजर अफगान की धरती में समाई इस्पात और तांबे की बहुमूल्य खदानों पर है। गोया, जिनके मन में पाप है, वे कैसे एक संकटग्रस्त देश की भलाई में शिरकत कर सकते है ? ऐसे में भारत की अफगान की स्थिरता, शांति और कल्याण के लिए किया जा रहा पवित्र उद्देश्य अत्यंत महत्वपूर्ण है।
किंतु कल्याण के ये प्रयास इकतरफा नहीं हैं। संकल्प की शर्तों में मध्य एशियाई देशों के शीर्ष सुरक्षा सलाहकारों ने अफगानिस्तान को वैश्विक आतंकवाद की पनाहगाह नहीं बनने देने का वचन लेने के साथ समावेशी सरकार के गठन की भी अपील की है। इस परिप्रेक्ष्य में अफगान पर भारत की मेजबानी वाली इस सुरक्षा वार्ता के अंत में आठों देशों के अधिकारियों ने एक संयुक्त घोषणा-पत्र जारी किया, जिसमें अफगान की धरती से आतंकवादी गतिविधियों, प्रशिक्षण और वित्तपोषण नहीं करने देने की शर्तें शामिल हैं। अफगान पर दिल्ली में आयोजित इस क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद में युद्ध व आतंक से छलनी हुए इस देश में निरंतर खराब हो रही सामाजिक, आर्थिक, श्ौक्षिक और मानवीय हालातों पर न केवल चिंता जताई, बल्कि तत्काल मानवीय सहायता उपलब्ध कराने की जरूरत को रेखांकित किया। यह मदद निर्बाध व भेदरहित होगी और इसे मददगार देश सीधे वितरित करेंगे। यह मदद अफगान समाज के सभी वर्गों और धार्मिक अल्पसंख्यकों को समता और जरूरत के आधार पर दी जाएगी। मददगार देशों द्वारा सीधे दी जाने वाली इस मदद का उद्देश्य है कि यह मदद संयुक्त राष्ट्र जैसी किसी वैश्विक संस्था के माध्यम से नहीं दी जाएगी। क्योंकि अफगान व अन्य वैश्विक संकटों ने जता दिया है कि संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाओं का कोई विशेष योगदान संकट की घड़ी में दिखाई नहीं दिया है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन संगठनों में सुधार की अपील के साथ यह भी कह चुके हैं कि यदि इन संगठनों ने अपनी भूमिका का निर्वाह ठीक से नहीं किया तो ये कालांतर में अप्रासांगिक होते चले जाएंगे। अफगानिस्तान के संदर्भ में मोदी की यह भविष्यवाणी प्रमाणित भी हुई है।


भारत, रूस, ईरान, उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमानिस्तान और किरागिजिस्तान ने इस अहम् बैठक का हिस्सा बनकर इन देशों के सुरक्षा सलाहकारों ने अफगान की संप्रभुता, अखंडता, एकता को बरकरार रखने और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने के वचन को दोहराया। इस परिप्रेक्ष्य में याद रहे कि तालिबान प्रवक्ता अनेक मर्तबा दोहरा चुके हैं कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है, इसलिए भारत ही कश्मीरी समस्या का हल करेगा। कश्मीर में जो मूल भारतीय हिंदू और सिख हैं, वे उन्हीं के राज में सुरक्षित रहेंगे। तय है, तालिबानी पाक परस्त जरूर हो सकते हैं, लेकिन भारत विरोधी नहीं हैं। इसलिए यह आशंका व्यर्थ है कि तालिबानी लड़ाके पाकिस्तान की शह पर कश्मीर घाटी में दखलंदाजी करेंगे। साथ ही अफगानिस्तान में कट्टरपंथ, चरमपंथ, अलगाववाद और मादक पदार्थों तस्करी पर प्रतिबंध पर सामूहिक सहमति जताई है। नशे पर लगाम के प्रति भारत की चिंता स्वाभाविक है। क्योंकि अफगान, पाकिस्तान और नेपाल के रास्तों से भारत में मादक पदार्थों का अवैध कारोबार धड़ल्ले से किया जा रहा है। नतीजतन भारत में ‘नशा’ एक राष्ट्रीय समस्या बन चुका है। बड़ी मात्रा में नशीले पदार्थों की बरामदगी से भी संकट प्रमाणित हो चुका है। कुछ समय पहले ही गुजरात के समुद्री तट पर अफगानिस्तान से लाई गई तीन हजार किलोग्राम हेरोइन बरामद की गई थी। मुंबई से गोवा जाने वाले जहाज में पिछले माह ही अभिनेता शाहरूख खान का बेटा आर्यन समूह में नशीले पदार्थों का सेवन करते हुए पकड़ा गया था। इसमें युवा लड़कियां भी शामिल थीं। मसलन भारत में नशे का कारोबार इतनी गहरी जड़े जमा चुका है कि देश की बालिकाओं समेत युवा पीढ़ी इसकी लपेट में आकर अपना जीवन और भविष्य बर्बाद करने में ही खुशी और उपलब्धि मानकर चल रहे है। नशे के दुष्प्रभाव से पंजाब और हरियाणा के युवा पहले ही बर्बाद हो चुके हैं। यह तथ्य इस बात से भी प्रमाणित हुआ है कि सेना में सैनिक के रूप में इनकी भागीदारी निरंतर घट रही है। इस परिप्रेक्ष्य में आशंका है कि अफगान की वर्तमान स्थितियों का लाभ उठाते हुए पाकिस्तान नशीले पदार्थों की तस्कारी बढ़ाने के फेर में है। अलबत्ता अब यह कूटनीतिक चाल पाकिस्तान की भारत के प्रति दूषित मंशा पर अंकुश लगाएगी।
दरअसल तालिबानी कब्जे के बाद से ही भारत की चिंता व आशंका रही है कि कहीं अफगानिस्तान पाकिस्तान की तरह आतंकी कुचक्रों का गढ़ न बन जाए। हालांकि अभी तक ऐसा होते दिख नहीं रहा है, अलबत्ता अफगान में ही हो रहे आतंकी हमलों से वहां रोज नागरिक मारे जा रहे हैं और लाखों नागरिक जीवन की सुरक्षा की तलाश में पलायन कर रहे हैं। इन हमलों का एक कारण तालिबान के भीतरी गुटों में सत्ता को लेकर ठना संघर्ष भी है। पाकिस्तान का अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप ऐसी कठिनाईयों को ओर बढ़ा रहा है। इस लिहाज से इस घोषणा-पत्र में सभी देशों ने आतंकवाद से लड़ने में जो सहमति जताई है, वह अहम् है। वैसे भी यदि इन आसुरी शक्तियों से निपटने में एकजुटता नहीं दिखाई तो क्षेत्रीय शांति खतरे में पड़ जाएगी। गोया, अफगान में पेश आ रही चुनौतियों का सामूहिक रूप से सामना करना शांति बहाल रहे, इस हेतु जरूरी है।
अफगान से भारत के रिश्ते प्राचीन काल से ही हैं। कौरवों की माता गांधारी और पाण्डवों के पिता पाण्डू की कुंती के अलावा दूसरी पत्नी माद्री इस गांधार देश से ही थीं। नकुल और सहदेव माद्री की ही कोख से जन्मे थे। इन रिश्तों को भारत तालिबान के कब्जे से पहले तक निभाता रहा है। वहां का संसद भवन अनेक सड़कें पुल और बांध भारत की आर्थिक सहायता से ही बनाए जा रहे हैं। इन सरंचनाओं के निर्माण के दौरान अनेक भारतीय इंजीनियर और ठेकेदारों को आतंकी हमलों में प्राण भी गंवाने पड़े हैं, बावजूद भारत मदद से पीछे नहीं हटा। चीन और पाकिस्तान की तमाम कोशिशों के बावजूद अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार को किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी। यही नहीं, इस सरकार को मान्यता पाकिस्तान, चीन, अरब-अमीरात और सऊदी अरब ने भी नहीं दी है। यदि तालिबान आदिम कबीलाई सोच से छुटकारा लेकर यदि समावेशी विकास की राह पर चल पड़ता है तो एक संप्रभु देश की सरकार के रूप में मान्यता देने का रास्ता भी भविष्य में खुल सकता है। भारत के नेतृत्व में प्रमुख दक्षिण मध्य एशियाई देशों का यह पवित्र संकल्प इस ओर भी इशारा करते दिखाई देता है। हालांकि तालिबान अब जान रहा है कि आतंकी गतिविधियों को अंजाम देना अलग बात है और देश चलाना निहायत भिन्न बात है। बहरहाल अब तालिबान को अपना लोक हितकारी संकल्प स्पष्ट करने की जरूरत है।

प्रमोद भार्गव

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,035 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress