अफ़ग़ानिस्तान : कोई देखे या न देखे अल्लाह देख रहा है

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                                                                            तनवीर जाफ़री

 तालिबानी अतिवादी व कट्टरपंथी हिंसक गतिविधियों के चलते पूरी दुनिया में कुख्यात अफ़ग़ानिस्तान में विगत मात्र तीन दिनों के भीतर हुये दो हादसों ने विश्व का ध्यान एक बार फिर अफ़ग़ानिस्तान की ओर खींचा है। पहली घटना अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में गत 18 जून शुक्रवार को घटित हुई जहां  काबुल के बाग़-ए-बाला क्षेत्र में कार्ते परवान गुरुद्वारे में कई विस्फोट किये गये। इस आतंकी हमले में एक सिख श्रद्धालु व गुरुद्वारे के एक मुस्लिम गार्ड सहित तीन लोगों की मौत हो गई और सात अन्य घायल हो गए। ख़बरों के अनुसार हथियारबंद बंदूक़धारियों द्वारा गुरुद्वारे पर अंधाधुंध फ़ायरिंग की गयी। गत वर्ष अक्तूबर में भी तालिबान के सत्ता में आने के कुछ समय बाद ही कुछ अज्ञात बंदूक़धारियों द्वारा इसी गुरुद्वारा कार्ते परवान पर हमला किया गया था जिससे गुरद्वारा संपत्ति को काफ़ी नुक़सान पहुंचा था । शनिवार सुबह काबुल के इसी गुरद्वारे में आतंकवादियों तथा तालिबान लड़ाकों के बीच कई घंटे तक मुठभेड़ चली। तालिबान सुरक्षा बलों ने घटना में शामिल तीन हमलावरों को लगभग तीन घंटे तक चली मुठभेड़ में मार गिराया। प्राप्त सूचना के अनुसार इस्लामिक स्टेट अर्थात आईएस ने एक बयान जारी कर गुरुद्वारे पर हुए इस हमले की ज़िम्मेदारी ली है। इस्लामिक स्टेट की ओर से कहा गया है कि यह हमला भारत में पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी प्रवक्ताओं द्वारा पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद के ख़िलाफ़ दिए गए आपत्तिजनक बयानों का बदला लेने के लिये किया गया है। ग़ौरतलब है कि भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा द्वारा पैग़ंबर मुहम्मद के विरुद्ध की गयी आपत्तिजनक टिपण्णी के बाद अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्ला मुजाहिद ने गत 6 जून को ट्वीटर के माध्यम से भारत को यह सन्देश दिया था कि- “हम भारत सरकार से आग्रह करते हैं कि वो ‘ऐसे धर्मांध लोगों को इस्लाम का अपमान करने और मुसलमानों की भावनाओं को आहत करने से रोके।” इस सिलसिले में तेल उत्पादक देशों सहित अनेक इस्लामिक देशों द्वारा भारत पर डाले गये दबाव के बाद भाजपा के विवादित प्रवक्ताओं को पार्टी व प्रवक्ता पद से हटा भी दिया गया था। 

                                  परन्तु सवाल यह है कि पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद के स्वयंभू पैरोकारों द्वारा काबुल के गुरद्वारे पर किये गये इस अतिनिन्दनीय व कायराना हमले से क्या पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद की शान बढ़ गयी ? क्या उनके अपमान का बदला लेने का यही तरीक़ा रह गया है ? क्या इस सिख धर्मस्थल पर किये गये हिंसक हमले से बदनाम शुदा आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट का मुस्लिम जगत में मान सम्मान बढ़ा है ? क्या मुस्लिम बाहुल्य अफ़ग़ानिस्तान में वहां के अल्पसंख्यक सिखों के आराधना स्थल पर ख़ूनी हमला करना किसी धर्म अथवा आराध्य की शिक्षा का हिस्सा स्वीकार किया सकता है ?आख़िर इस्लाम धर्म को धर्म के ही नाम पर कलंकित करने वाले लोगों के पास इस बात का क्या जवाब है कि जब पैग़ंबर हज़रत मुहम्म्द पर मदीने की एक यहूदी बूढ़ी औरत रोज़ाना सुबह को कूड़ा फेंकती थी उसे हज़रत मुहम्मद या उनके अनुयायियों ने आख़िर क्यों नहीं मार डाला ? हज़रत मुहम्मद के भाई व दामाद हज़रत अली की हत्या की गयी और कई बार उनपर हमले किये गये उस समय यह स्यंभू इस्लामी विचारधारा आख़िर कहाँ मुंह छुपाये बैठी थी ? हज़रत मुहम्मद की बेटी फ़ातिमा पर हमला करते वक़्त यह विचारधारा कहाँ थी ? करबला में जब हज़रत मुहम्मद के नवासे व उनके परिजनों व सहयोगियों को क़त्ल किया जा रहा था उस समय यह ‘मुसलमान ‘ क़ातिल-ए-हुसैन के साथ थे या मक़तूल हज़रत इमाम हुसैन व उनके पीड़ित परिवार के साथ ?

                                   बहरहाल,18 जून को काबुल में सिख गुरद्वारे पर हुये हमले के मात्र तीन दिन बाद अर्थात 21 व 22 जून के मध्य की रात 1.30 बजे यानी भारतीय समयानुसार रात 2.30 बजे इसी अफ़ग़ानिस्तान को एक बड़े प्रकृतिक हादसे यानी 6.1 की तीव्रता वाले भूकंप का सामना करना पड़ा। प्राप्त प्रारंभिक सूचनाओं के अनुसार अब तक 3200 लोगों की जान जा चुकी है और हज़ारों लोग घायल हैं।मरने वालों की संख्या अभी और बढ़ने की आशंका है। इसमें हज़ारों घर तबाह हो गए हैं। भूकंप का केंद्र दक्षिणी पूर्वी शहर ख़ोस्त से 44 किलोमीटर दूर स्थित था। भूकंप का असर पक्तीका प्रांत के अलावा ख़ोस्त, गज़नी,लोगार, काबुल, जलालाबाद और लग़मन में भी हुआ। भूकंप के झटके अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल, पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद और भारत तक भी महसूस किए गए थे। पिछले दो दशकों के दौरान अफ़ग़ानिस्तान में आए इस सबसे शक्तिशाली भूकंप ने तालिबान प्रशासन के समक्ष बहुत बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।

                                   भूकंप रुपी यही प्राकृतिक हादसा यदि इस समय अफ़ग़ानिस्तान के अतिरिक्त दुनिया के किसी अन्य देश में हुआ होता तो दुनिया के अनेक देश सहायता के लिये उठ खड़े होते। परन्तु अफ़ग़ानिस्तान की क्रूर सत्ता और उसके संरक्षण में पनप रहा अतिवाद दुनिया के सामने सहनुभूति का वह भाव पैदा नहीं कर पा रहा  है जिसकी इस समय अफ़ग़ानिस्तान की पीड़ित जनता को ज़रुरत है। यह आपदा देश में ऐसे समय में आई है जब अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान के देश को अपने नियंत्रण में लेने के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अफगानिस्तान से दूरी बनाई हुई है। इस स्थिति के कारण 3.8 करोड़ की आबादी वाले देश में बचाव अभियान को अंजाम देना काफ़ी मुश्किल भरा है। दुनिया के सहायता समूह अफ़ग़ानिस्तान आने से डरते और कतराते हैं। यही सिख समाज जिनके गुरद्वारे पर काबुल में हमला किया गया इन्हीं के स्वयं सेवक इस तरह की त्रासदी में प्रभावित लोगों को भोजन,दवाइयां व अन्य ज़रूरी सामग्री वितरित करते हैं। वैसे भी गत वर्ष तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़ा करने के बाद से अधिकांश अंतरराष्ट्रीय सहायता समूहों व संस्थाओं ने अफ़ग़ानिस्तान छोड़ दिया था। उसी समय से अफ़ग़ानिस्तान का स्थानीय मेडिकल तंत्र दवाइयों से लेकर अन्य आवश्यक सामग्रियों व कर्मचारियों की भारी कमी का सामना कर रहा है। और निश्चित रूप से तालिबान सत्ता का तंत्र भी इस आपदा से निपटने में सक्षम नहीं हैं। इन परिस्थितियों के बावजूद भारत की ओर से 20,000 टन गेहूं, 13 टन दवाएं, कोविड-19 टीकों की 5,00,000 खुराक और सर्दियों के कपड़े अफ़ग़ानिस्तान भेजे जा चुके हैं। भारत सरकार ने सबसे पहले 27 टन राहत सामग्री से भरे वायुसेना के 2 मालवाहक विमान काबुल भेजे हैं जिसमें तंबू,स्लीपिंग बैग,कंबल,चिटायी आदि शामिल है। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान,यूनाइटेड अरब एमिरेट और टर्की जैसे कई देशों की ओर से भी सहायता भेजे जाने की ख़बर है।

                                    अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ता अतिवाद वहां के सशस्त्र तालिबानी लड़ाकों से लेकर बेख़ौफ़ घूमते आई एस के आतंकी, इन्होंने अपनी अमानवीय व ग़ैर इस्लामी हरकतों से ही न केवल ख़ुद को दुनिया से अलग थलग कर लिया है बल्कि बेक़ुसूर आम अफ़ग़ानी जनता को भी इन हालात के दुष्परिणामों को भुगतने के लिये मजबूर कर दिया है। जिसके ज़िम्मेदार निःसंदेह क्रूर अफ़ग़ानी शासक व उनके अतिवादी विचारों से सहमति रखने वाले आई एस जैसे कई आतंकी गिरोह हैं। आज अफ़ग़ानिस्तान की भूकंप पीड़ित आम जनता किन परिस्थितियों में व किन कारणवश असहाय बनी हुई है और इस बेबसी,लाचारी व मजबूरी का कौन ज़िम्मेदार है यह ‘कोई देखे या न देखे अल्लाह ज़रूर देख रहा है’।

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  1. अफ़ग़ानिस्तान : कोई देखे या न देखे अल्लाह देख रहा है और बार बार कह रहा है कि सदैव बंदे को बंदे के काम आना चाहिए| समयानुकूल विचारात्मक निबंध के लिए तनवीर जाफरी जी को मेरा साधुवाद|

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