आखिर नरेंद्र मोदी का कसूर क्या है?

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  राजीव गुप्ता

भारत एक लोकतांत्रिक देश है ! अतः संविधान ने भारत की जनता को स्वतंत्र रूप से अपना प्रधान चुनने की व्यवस्था दी है ! स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर अब तक हर राज्य की बहुसंख्यक जनता अपनी मनपसंद का अपने राज्य का मुखिया चुनती है और संवैधानिक व्यवस्था द्वारा वहा की जनता की भावनाओ का सम्मान किया जाता है ! लोकतान्त्रिक देश होने के कारण भारत में हर किसी को कर्तव्यो के साथ अपनी बात कहने की पूर्ण स्वतंत्रता है और इसीलिये भारत की मीडिया को लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ तक की संज्ञा जैसे शब्दों से अलंकृत किया जाता है पर अंतिम निर्णय का अधिकार भारतीय संविधान द्वारा यहाँ की सर्वोच्च न्यायालय को दिया गया है ! पर अगर लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कही जाने वाली मीडिया, कुछ राजनेता और तथाकथित भारत के कुछ बुद्धिजीवी आपसी तालमेल से किसी एक राज्य की जन – भावनाओ के दमन पर उतारू हो जाये तो यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर उन्हें अपनी इस तानाशाही का अधिकार किसने दिया ? आये दिन उत्तरी गुजरात के वादनगर के साधारण मध्यम परिवार में जन्मे गुजरात के मुख्यमंत्री का सुनियोजित तरीके से मान-मर्दन कर सस्ती लोकप्रियता और टीआरपी प्राप्त करने की पराकाष्ठा से भारत के सामने अब यह प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है कि क्या ऐसे लोगो का भारत के संविधान में विश्वास नहीं है ? आखिर नरेंद्र मोदी का कसूर क्या है ?

 

27 फरवरी 2002 को अयोध्या से वापस आ रहे 59 कारसेवको को साबरमती एक्सप्रेस के एस – 6 डिब्बे में जिन्दा जलाने की घटना से उत्पन्न हुई तीखी साम्प्रदायिक – हिंसा भारत के इतिहास में कोई पहली सांप्रदायिक – हिंसा की घटना नहीं थी ! इससे पहले भी 1947 से लेकर अब तक भारत में कई सांप्रदायिक – हिंसा की घटनाएं हुई है ! बात चाहे 1961 में मध्यप्रदेश के जबलपुर में हुए साम्प्रदायिक-हिंसा की हो अथवा 1969 में गुजरात के दंगो की हो , 1984 में सिख विरोधी हिंसा की हो, 1987 में मेरठ के दंगे हो , 1989 में हुए भागलपुर – दंगे की बात हो, 1992 – 93 में बाबरी काण्ड के बाद मुंबई में भड़की हिंसा की हो, 2008 में कंधमाल की हिंसा की हो या फिर अभी पिछले दिनों ही उत्तर प्रदेश के बरेली में फ़ैली सांप्रदायिक हिंसा की हो अथवा इस समय सांप्रदायिक हिंसा की आग में सुलगते हुए असम की हो जिसमे अब तक करीब तीन लाख लोगों ने अपना घर छोड़ा दिया ! हर साम्प्रदायिक-हिंसा के बाद राजनीति हावी हो जाती है ! परन्तु मीडिया का राजनीतिकरण हो जाने से निष्पक्ष कही जाने वाली मीडिया एक तरफ़ा राग अलापते हुए अपने – अपने तरीके से वह घटना की जांच कर जनमानस पर अपना निर्णय थोपते हुए अपने को संविधान के दायरे में रहने का खोखला दावा करती है जो कि निश्चय ही दुर्भाग्य पूर्ण है ! कोई भी देश वहा के संविधान द्वारा प्रदत्त व्यवस्था से चलता है ! सभी नागरिको का यह कर्तव्य है कि वो एक दूसरे की भावनाओ का ध्यान रखते हुए देश की एकता और विकास में अपना योगदान दे ! यह एक कटु सत्य है कि विभिन्न समुदायों के बीच शांति एवं सौहार्द स्थापित करने की राह में सांप्रदायिक दंगे एक बहुत बड़ा रोड़ा बन कर उभरते है और साथ ही मानवता पर ऐसा गहरा घाव छोड़ जाते है जिससे उबरने में मानव को कई – कई वर्ष तक लग जाते है !

 

भारत जैसे शांति प्रिय देश में हर सांप्रदायिक – हिंसा की घटना निश्चित रूप से किसी व्यक्ति विशेष पर न होकर सम्पूर्ण देश के ऊपर एक कलंक के समान है ! ध्यान देने योग्य है प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पिछले शनिवार को असम में फ़ैली सांप्रदायिक – हिंसा की घटना को देखने के लिए गए थे और उन्होंने असम की सांप्रदायिक – हिंसा की घटना को देश का कलंक कहा था ! अभी तक का यह सच है कि देश में हुए हर आतंकवादी घटना, सांप्रदायिक – हिंसा, जाति अथवा भाषाई झगडे निम्नस्तर की राजनीति की भेट चढ़ते देर नहीं लगती जो कि दुर्भाग्य-पूर्ण है ! धर्मनिरपेक्षता की आड में अपने को साम्यवादी एवं समाजवादी कहने वाले राजनेताओं और तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवियों ने अपने वाकपटु मुहफट बयानों के चलते भारत की एकता और अखंडता को सदैव ही नुक्सान पहुचने में कोई कसर नहीं छोडी ! अवसरवादी राजनीति के चलते ये तथाकथित लोग मीडिया के सहारे विभिन्न आयोगों और माननीय न्यायालयों के निर्णयों को भी अपने वोट-बैंक के तराजू पर तौलते हुए देश में एक भ्रम की स्थिति पैदा करने में भी कोई कमी नहीं छोड़ते और अपने आपको न्यायाधीश समझते हुए फैसले देते हुए भी नहीं हिचकिचाते ! इसका उदाहरण हम कांग्रेस की जयंती नटराजन के उस बयान में देख सकते है जिसमे उन्होंने गोधरा – काण्ड पर आये न्यायालय को फैसले को बिना पढ़े अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि गोधरा – काण्ड के बाद हुए दंगो के लिए नरेंद्र मोदी ही दोषी है, इसके अलावा हम उत्तर प्रदेश में चुनाव के समय कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह के उस बयान को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जिसमे उन्होंने दिल्ली के जामिया एंकाउन्टर में मोहन चन्द्र शर्मा की शहादत पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिल्ली पुलिस के मनोबल को नेस्तनाबूत करने का दुस्साहस किया था ! इन्ही वाकपटुओ के बयानों के चलते देश ने हमेशा सामाजिक सौहार्द, एकता , सुरक्षा जैसे राष्ट्रहित का अभाव महसूस किया है ! बात चाहे 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के पश्चात् दंगो के बाद हुई हिंसा को सही ठहराने के लिए कांग्रेस पार्टी के उन लोगो की हो जिन्होंने एक कहावत का सहारा लेते हुए कहा था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है अथवा अन्ना टीम के प्रशांत भूषण का कश्मीर पर बयान हो या फिर अभी असम के मुख्यमंत्री का वह बयान जिसमे उन्होंने कहा कि असम में हाल में हुई यह सांप्रदायिक – हिंसा “अस्थायी” थी !

 

2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया ही न जा सके इसकी तैयारी के लिए अभी से राजनीतिक पंडितो ने मीडिया के सहारे अपने – अपने मोर्चे खोलकर जनमानस में नरेंद्र मोदी एक साम्प्रदायिक – हिंसा को बढ़ावा देने वाला व्यक्ति है ऐसी उनकी “ब्रांडिंग” की जा रही है ! इसी के चलते नरेंद्र मोदी से मिलने वाला हर व्यक्ति साम्प्रदायिक – हिंसा को समर्थन करने वाला होगा ऐसा प्रचार अभियान चलाया जाना वास्तव में भारतीय राजनीति के लिए एक अक्षम्य अपराध है जिसे इतिहास कभी माफ़ नहीं करेगा ! अन्ना हजारे से लेकर बाबा रामदेव तक जिस किसी ने नरेंद्र मोदी की तारीफ की उसे इन बुद्धिजीवियों का दंश झेलना ही पड़ा , एक तरफ जहा शीला दीक्षित और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विजय दर्डा को चेतावनी देकर छोड़ दिया गया तो वस्तानवी से लेकर शाहिद सिद्दकी इतने खुशनसीब नहीं रहे उन्हें उनके पद से मुक्त ही कर दिया गया ! भारत की राजनीति नरेंद्र मोदी के साथ ऐसी छुआछूत का व्यवहार क्यों कर रही है और साथ ही माननीय न्यायालयों ने भी गोधरा – दंगो का दोषी उन्हें नही माना और न ही जनता से माफी मागने के लिए कहा तो फिर ये मीडियाकर्मी और तथा कथित सेकुलर बुद्धिजीवी अपने अहम् के चलते संविधान की किस व्यवस्था के अंतर्गत उनसे माफी मागने के लिए लगातार कह रहे है ? मात्र चंददिनों में गोधरा – दंगो को नियंत्रण में लाने वाले और पिछले दस वर्षो में गुजरात में एक भी कही भी दंगा न होने देने वाले नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति में क्या एक अछूत है ?

 

परन्तु इसका एक दूसरा पहलू भी है ! एक तरफ जहां ये सेकुलर बुद्धिजीवी और मीडिया की आड़ में राजनेता अपनी राजनीति की रोटियां सेकने में व्यस्त है तो वही इससे कोसो दूर गुजरात अपने विकास के दम पर भारत के अन्य राज्यों को दर्पण दिखाते हुए उन्हें गुजरात का अनुकरण करने के लिए मजबूर कर रहा है ! नरेंद्र मोदी पर लोग साम्प्रदायिकता की आड़ में जो भेदभाव का आरोप लगाया जाता है वह निराधार है ! एक आंकड़े के अनुसार गुजरात में मुसलमानों की स्थिति अन्य राज्यों से कही ज्यदा बेहतर है ! ध्यान देने योग्य है कि भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा गुजरात के मुसलमानों की प्रतिव्यक्ति सबसे अधिक है और सरकारी नौकरियों में भी गुजरात – मुसलमानों की 9.1 प्रतिशत भागीदारी के साथ अव्वल नंबर पर है ! इतना ही नहीं पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के 84वे स्थापन दिवस के मौके पर गुजरात के कृषि विकास को देखते हुए कहा कि जलस्तर में गिरावट , अनियमित बारिश और सूखे जैसे समस्याओ के बावजूद गुजरात 9 प्रतिशत की अभूतपूर्व कृषि विकास दर के माध्यम से भारत के अन्य राज्यों पर अपना परचम लहरा है जबकि भारत की कुल कृषि विकास दर मात्र 3 प्रतिशत है ! विश्व प्रसिद्द ब्रोकरेज मार्केट सीएलएसए ने गुजरात के विकास विशेषकर इन्फ्रास्ट्रक्चर , ऑटोमोबाइल उद्योग तथा डीएमईसी प्रोजेक्ट की सराहना करते हुए यहाँ तक कहा कि नरेंद्र मोदी गुजरात का विकास एक सीईओ की तरह काम कर रहे है ! यह कोई नरेंद्र मोदी को पहली बार सराहना नहीं मिली इससे पहले भी अमेरिकी कांग्रेस की थिंक टैंक ने उन्हें ‘किंग्स ऑफ गवर्नेंस’ जैसे अलंकारो से अलंकृत किया ! नरेंद्र मोदी को टाइम पत्रिका के कवर पेज पर जगह मिलने से लेकर ब्रूकिंग्स के विलियम एन्थोलिस, अम्बानी बंधुओ और रत्न टाटा जैसो उद्योगपतियों तक ने एक सुर में सराहना की है !

 

नरेंद्र मोदी की प्रशासक कुशलता के चलते फाईनेंशियल टाइम्स ने हाल ही में लिखा था कि देश के युवाओ के लिए नरेंद्र मोदी प्रेरणा स्रोत बन चुके है ! पाटण जिले के एक छोटे से चार्णका गाँव में सौर ऊर्जा प्लांट लगने से नौ हजार करोड़ का निवेश मिलने से वहा के लोगो का जीवन स्तर ऊपर उठ गया ! ध्यान देने योग्य है कि अप्रैल महीने में नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी काउंसिल जनरल पीटर तथा एशियाई विकास बैंक के अधिकारियों की मौजूदगी में एशिया के सबसे बड़े सौर ऊर्जा पार्क का उद्घाटन किया था जिससे सौर ऊर्जा प्लांट से 605 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकेगा जबकि शेष भारत का यह आंकड़ा अभी तक मात्र दो सौ मेगावाट तक ही पहुंच पाया है ! भले ही कुछ लोग गुजरात का विकास नकार कर अपनी जीविका चलाये पर यह एक सच्चाई है कि गुजरात की कुल मिलाकर 11 पंचवर्षीय योजनाओं का बजट भारत की 12वीं पंचवर्षीय योजना के बजट के लगभग समकक्ष है ! अपनी इसी दूरदर्शिता और नेतृत्व क्षमता के चलते आज भारत ही नहीं विश्व भी नरेंद्र मोदी को भारत का भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखता है जिसकी पुष्टि एबीपी नील्‍सन , सीएनएन-आईबीएन और इण्डिया टुडे तक सभी के सर्वेक्षण करते है और तो और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का अनुमान कई सोशल साइटो पर भी देखा जा सकता है ! बावजूद इन सब उपलब्धियों के गुजरात को विकास के शिखर पर पहुचाने वाले नरेंद्र मोदी से छुआछूत – सा व्यवहार करना कहाँ तक सार्थक और तर्कसंगत है यह आज देश के सम्मुख विचारणीय प्रश्न है !

35 COMMENTS

  1. मोदीजी एक अछे शासक है.

    गुणग्राहकता
    , दीर्घदृष्टि, निष्ठां और हिम्मत यह उनके विशेष गुण है.
    हर राज्यमे मोदी बनाने चाहिए.

  2. अब नहीं, तो कभी नहीं !
    उपलब्धियाँ।
    (१) अहमदाबाद में २४ घंटे नल में पानी देखा है।
    (२) मोदी जी से बिना पूर्व नियोजित समय लिए, भेंट की थी।
    (३) गांधीनगर को हराभरा देखा था। और भी सुन्दर बन चुका है, ऐसा सुनता हूँ।
    (४) शिक्षक होने के लिए दॆढ-दो लाख की रिश्वत समाप्त हो चुकी है। एक शिक्षक शिविर से नियुक्ति की जाती है।
    (५) माह के, हर तीसरे गुरुवार को इ गवर्नेंस से सारी समस्याएं मोदी जी की देख रेख में सुलझायी जाती है।
    (६) नहरों पर सौर उर्जा संगृहीत करने छत लगी है।
    (७) पानी का बाष्पीभवन न्यूनतम होता है।
    (८) और अलग भूमि की बचत
    (९) चेक डॅम लगे हैं
    (१०) अहमदाबाद की बस याता-यात देख के आइए। आप को लगेगा कि ऐसा भारत में भी हो सकता है।
    मोदी एक चमत्कार से कम नहीं।
    गिरनार का सिंह दहाडेगा क्या?
    भारत का सूरज चमकेगा क्या?
    जागो जागो भारतवासी जागो, और सडी कांग्रेस को भगाओ।

    • Gujarat ki upalabdhiyan nishchit rupase Narendrajike karan hai.
      vah ek uttam shasak hai.
      dirgh drishti, swayamshist (discipline) aur lagan unake vishesh gun hai.

      etihas janate hue naya etihas banana chahate hai.
      har rajya me Modi babane chahiye.

  3. देश के प्रत्येक सच्चे देशभक्त का पावन कर्तव्य है कि धर्मनिरपेक्षता के सिद्घान्त से विचलित न हो,किन्तु “अति संघर्षण कर जब कोई, अनिल प्रगत चन्दन से होई” असम के कोकराझार में बंगला देशी घुसपेठियों के खिलाफ वहां के आदिवासियों का विद्रोह हो या म्यांमार में मुस्लिम अल्प संख्यक वर्गों पर वहाँ के बौद्धों का प्रतिकार इससे न तो हिन्दुओं का कोई लेना देना है और न ही मुंबई के मीडिया कर्मियों का फिर भी परसों मुंबई में ५० हज़ार लोगों की भीड़ ने जो आगजनी और मार पीट की वो नरेंद्र मोदी जैसे लोगों को देश का तानाशाह बनाने में सहायक होगी. क्योंकि जो मुबई में किया गया वो अब गुजरात में नहीं कर सकते.क्यों? अब या तो प्रजातंत्र का सम्मान करो देश में धर्मनिरपेक्ष लोगों का उपहास न करोऔर सुख से रहो या फिर जो मुबई के आज़ाद मैदान में किया वो करते रहो और नरेंद्र मोदियों को सत्ता में बिठाने का रास्ता साफ़ करो.

  4. मोदी को नितीश कुमार (जदू) के कहने से प्रधान मंत्री की दोड़ से बआहर रखने के फैसले से बीजेपी ने अपने पौं में कुल्हाड़ी मaरी है. जब तक बीजेपी जदू का पिछलग्गू बना रहेगा तब तक इसका भविष्य अंधकार में रहेगा.

  5. कुछ ही दिन राह देखिए, सारे चूहे डूबती नाव को छोड़ कर भाग़ जाएंगे.कुछ डुबाकर भागेंगे –नाव के मालिक भी अपना प्रबंध दक्षिण अमरीका के एक देश में करने के समाचार सुन रहें हैं| राहुल के भावी(?) श्वशुर जिस देश में रहते हैं.

    यदि प्रधान मंत्री बनें तो पार हुए| नहीं तो दक्षिण अमरीका.

    स्विस बैंक सभी की तारणहार है| इस बैंक को ही अवैध घोषित की जानी चाहिए –पर यु एन ओ ऐसा करे तब ना?

    मोदी जी भारत का अंतिम अवसर है|
    भारतका भाग्य है, की इस राजनैतिक दलदल में एक कमल उग चुका है| एक गुजराती साम्यवादी मित्र भी मेरे मोदी की प्रशंसा करते थकते नहीं है|

    मोदी के विना सब अँधेरा है| मोदी भारतका सूरज उगा सकते हैं|
    बांधो बिस्तर बोरिया सोनिया की अब गिरनार का सिंह दहाड़ रहा है|

  6. राजीव आपको सादर साधुवाद
    तथ्य और सत्य प्रस्तुत करने की क्षमता और सामथ्य बहुत कम लोगों के पास होती है। आपकी लेखनी में वे दोनों गुण परिलक्षित हो रहे हैं। इस महान उपलब्धि के लिए मैं आपके योग-क्षेम की कामना करता हूं। जहां तक मोदी जी की बात है तो मैं आपके विचार से थोडा असहमत हूं। मैंने मोदी जी को बहुत करीब से देखा है। बारीकी से अध्यन किया है। गुजरात में और अहमदाबाद एवं गांधीनगर में दो सालों तक संवाद-प्रेषण का काम किया है। निःसंदेह गुजरात के लिए आज के समय में नरेन्द्र भाई अपरिहार्य हैं। देष उन्हें किस रूप में ले रहा है वह मिमांषा और गहन मंथन का विषय है। जिस विकास की बात आप और आम मीडिया कर रही है वह विकास गुजरात में कही नहीं दिखता। गुजरात का विकास महज एक प्रचार है। सोलर-पार्क, सुरक्षा के नित नवीन उपकरण। इसे विकास मैं नहीं माना। विकास का मतलब आम लोगों के जनजीवन के उच्चीकरण से है। बडे-बडे मॉल और सीनेमाहॉल से विकास नहीं होता। विकास का मतलब समावेषी विकास है। गुजरात की जनसंख्या लगभग 6 करोड है। उस जनसंख्या में से दो करोड लोग दाहोद, साबरकांठा, पाटन, बनासकाठा, पंचमहल, नर्मदा बादि जिले में निवास करती है। आप केवल सूरत, राजकोट, अहमदाबाद और बडोदरा को देख रहे हैं। इसमें से भी तीन शहर सूरत, राजकोट और अहमदाबाद-गांधीनगर को छोड दें तो बडोदरा का हाल बहुत खास्ता है। कभी बडोदरा जाने का मौका मिले तो आप देखना। मैं कच्छ में भी गया हूं और द्वारिका के क्षेत्रों का भी भ्रमण किया है। गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में बडी समस्या है। इस बार तो कई क्षेत्रों में पीने के पानी के लिए मानामारी है। गुजरात की समृद्धि दो बातों पर आधारित है। एक तो वहां उत्पादन हाने वाले पेट्रोलियम पदार्थों पर और दूसरा कपास की खेती पर। कपास के कारण गुजरात के कुछ क्षेत्रों में समृद्धि आपको दिखेगी। हां मोदी जी ने विद्युत और सडक पर जोड दिया है। उसका भी आधार केसूभाई और अन्य मुख्यमंत्रियों ने ही तैयार किया था। अलंग और सूरत के निकट वाला औद्योगिक क्षेत्र का विकास कांग्रेस के शासन काल में सनत भाई मेहता ने करवाया था। मोदी जी ने आधानभूत संरचना के लिए आज तक कुछ भी नहीं किया। वे बस समाचार मैनेज करने में माहिर हैं। साथ ही अपने खिलाफ उठ रहे विवादों को अपने पक्ष में करने के खिलाडी हैं। आपने अपने आलेख में गोधरा और उसके बाद हुए दंगे की चर्चा की है। आपको पता होगा कि जिस समय कारसेवक जलाये गये उस समय मोदी जी ही गुजरात के मुख्यमंुत्री थे। गोधरा आज से नहीं सन 1934-35 से संवेदनषील है। जिस समय मोरारजी भाई देसाई वहां के प्रषासक थे उस समय में भी गोधरा में दंगा हुआ था। जब इस बात की जानकारी मोदी प्रषासन को थी तो उन्होंने वहां सुरक्षा के इंतजाम क्यों नहीं किये। न्यायालय की आख्या को पढने से आपको पता चलेगा कि गोधरा में सुनियोजित हत्या की योजना बनी थी। मुस्लिम चरमपंथी विगत कई महीनों से बैठक कर रहे थे बावजूद मोदी प्रषासन अनभिज्ञ रही और गोधरा में निरीह हिन्दुओं की हत्या होने दिया। आज पूरा का पूरा भेंट द्वारका मुस्लिम चरमपंथियों का गढ बन गया है। मोदी प्रषासन सब जानते हुए मौन धारन किये हुए है। मीडिया का मैनेजमेंट मोदी जितना करते हैं, उतना इस देष में शायद ही कोई करता होगा। अपने इमेज को चमकाने के लिए उन्होंने दुनिया की सबसे बडी अमेरिकन पीआर एजेंषी को हायर कर रखा है। अब आप ही सोचें मोदी हमारे साथ कहां तक चल सकते हैं। और कुछ बातें यहां लिखना ठीक नहीं होगा। हम और आप लगभग एक ही विद्यालय के छात्र हैं। कुछ बातें जो मन में है उससे विचारधारा को ठेस पहुंच सकती है, इसलिए यहां लिखना उचित नहीं समझता हूं। बावजूद मैं भी मोदी को गुजरात के लिए अपरिहार्य मानता हूं। देष के प्रधानमंत्री के लिए उन्हें कुछ और परीक्षा पास करना होगा।
    तथ्यपरक आलेख के लिए एक बार और धन्यवा। और हां, कुछ अटपटा लिख देने के लिए क्षमा करेंगे। क्योंकि बात जब निकलती है तो दूर तक जाती है।

  7. युवा लेखक के इस लेख में विचारशीलता के साथ उसकी संवेदनशीलता भी साफ़ झलकती है.मोदी को एक कुशल राजनीतिज्ञ और एक योग्य शासक मानने में शायद किसी को भी एतराज नहीं हो सकता .गुजरात मोदी के पहले भी कोई खराब हालत में नहीं था,फिर भी मोदी के शासन काल में वह बहुत आगे बढ़ा है,इसमे कोई संदेह नहीं है.
    तब लेखक का यह प्रश्न जायज लगता है कि इतना सब होने के बावजूद मोदी को बार बार कठघरे में क्यों खड़ा कार दिया जाता है?
    अन्य लोगों के बारे में तो मैं नहीं जानता,पर मेरे विचार से आपकी कुशलता और दक्षता के साथ आपकी जिम्मेवारियां भी बढ़ जाती है.मोदी इतने कुशल शासक हैं तो उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे किसी भी गैर कानूनी हरकत को कंट्रोल के बाहर नहीं होने देंगे.यह अपेक्षा न गोगोई से की जाती है और न अन्य मुख्य मंत्रियों से ,जिनके शासन काल में वे दंगे हुए.मैंने पहले भी लिखा है कि अगर मोदी ने दंगे पर पहले दिन काबू पा लिया होता,तो शायद उनकी इतनी भ्रताश्ना नहीं होती और मोदी जैसे योग्य शासक से यह अपेक्षित था.
    एक बात और.पता नहीं क्यों,मोदी हद से ज्यादा अक्खड़ हैं.संजय जोशी बीजेपी के पुराने कार्य कर्त्ता हैं ,मुझे नहीं मालूम उनका कसूर क्या है?
    ऐसे एक दंगे का तो मैं भी साक्षी रहा हूँ,अतः मैं दंगों की मनोवृति और शासन के ढीलेपन की थोड़ी जानकारी भी रखता हूँ.
    सौर ऊर्जा के क्षेत्र में मोदी शासन की उपलब्धि भारत के ऊर्जा क्षेत्र में एक नया आयाम स्थापित करने वाली है.उर्जा की कमी से जूझते हुए राष्ट्र के लिए मोदी प्रशासन का यह बहुत बड़ा तोहफा है.

  8. श्री गुप्ता जी आपका सन्देश और प्रस्तुत लेख का लिंक मेरे मेल पर प्राप्त हुआ है, निश्चय ही आपकी इस लेख पर मेरी टिप्पणी की अपेक्षा हैं! जिसके आप हक़दार भी हैं! लेकिन श्री गुप्ता जी आप सहमत हैं या नहीं कि प्रवक्ता पर मुझ जैसे स्वतंत्र लिखने और टिप्पणी करने वालों को प्रवक्ता के कुछ कथित विद्वान और महान लेखकों और टिप्पणीकारों की और से योजनाबद्ध तरीके से अभद्र टिप्पणियों से नवाजा जाता रहा है और आश्चर्यजनक रूप से ऐसी टिप्पणियों को अनेकों बार आपत्ती करने के बाद भी न जाने क्यों प्रदर्शित भी किया जाता है! ऐसे में वर्तमान में मुझे गाली खाने और घ्रणा का पात्र बनने की कतई भी इच्छा नहीं है!

    ऐसे मित्रों के रहते हुए भी अनेकों बार मेरे लेखों को प्रदर्शित नहीं करने की मांग किये जाने के उपरांत भी मेरे आलेख यहाँ पर प्रदर्शित हो रहे हैं और उन्हें कुछ मित्र पढ़ भी रहे हैं, मेरे जैसे अनाम से, आम व्यक्ति के लिए इतना ही काफी है!

    वैसे भी मैं निजी जीवन में पिछले कुछ समय से मैं “जीवन के सबसे भयानक दौर” से गुजर रहा हूँ, सो लिखने पढने को न तो समय है और न ही पूर्ण मानसिक स्थिरता! ऐसे में यहाँ के कुछ मित्रों की भयानक रूप से ह्रदयहीन और बिना किसी आधार के कांग्रेस का तथा विदेशी एजेंट घोषित करके अपमानित करने जैसी टिप्पणियों को जानबूझकर आमंत्रित करके, मैं अपने आपको और परेशान करने देने का अवसर देने या तनाव झेलने की स्थिति में नहीं हूँ! वैसे भी इस लेख पर अनेक टिप्पणी पहले से ही मौजूद हैं, जो आपके उत्साहवर्धन के लिए पर्याप्त हैं!

    करीब चार माह बाद जैसे-तैसे मैं फिर से लेखन से जुड़ने का प्रयास कर रह हूँ! आपसे निवेदन है कि कृपया आप मुझे इस लेख पर टिप्पणी नहीं करने देने के अपने अधिकार का उपयोग करने दें!

    आपका आभारी रहूँगा!

    सदेव अच्छा लिखने के लिए मेरी शुभकामनाए हैं!
    शुभाकांक्षी
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    जयपुर (राजस्थान) 98285 -02666

    • प्रिय
      मीणा जी आपकी कुशलता एवं स्वास्थ्य की इश्वर से प्रार्थना|
      जीवन में हर कोई समस्या ओं का सामना करता ही है|

      रामदास स्वामी ने मराठी में कहा है,
      “विचारी मना तूच शोधोनी पाहे|
      जगी सर्व सुखी असा कोण आहे?”

      अर्थ: विचारी मन खोज के देख, संसार में सर्व रीति से सुखी कोई है?
      कुशल रहें|
      प्रार्थना उस परम शक्ति से|

  9. मोदी जी का दोष बस इतना ही है की आज पूरे भारत मे किसी को हम यह सलाह देते है कि मोदी जैसा राज्य शासन किसी को नहीं आता |आज गुजरात मोडल राज्य है |जिस अमेरिका ने उन्हे वीसा नहीं दिया वही अमरीका के थिंक टेंक ने मोदी जी “को किंग्स ऑफ़ गवर्नेंस ” की उपाधी दी |जब मनमोहन सिंह की पिक्चर अमरीका के टाइम मैगजीन में छापी कि सबसे भ्रष्ट्र कोंग्रेस सरकार है तो कोंग्रसियो ने खिसियाकर आउट लुक पत्रिका मे ओबामा की तस्बीर छाप दी |यही है मोदी और मनमोहन कोंग्रेस का असली चरित्र|
    समझदारो के लिए इशारा ही काफी है |ज्यादा विश्लेषण मै आप महान बुद्धी जीवियो पर छोड़ती हूँ |जय हिंद

    • kitna hi sabun lagaaiye kintu ‘kaga hans na hoi’ ab is vishay par charcha ka koi matlab nahin. Narendr modi vichare kabhi prdhan mantree nahin ban sakenge. swym shri Advani ji ne sweekaar kiya hai kal hi apne blogs pr ki 2014 men congress or bhajpa se prdhan mantree nahin ban payega.yh bhavishy vani nahin hai balki ek ense neta ka bayaan hai jo RSS or bhajpa ke liye loh purush hua karta tha.veshak aadvani ji ka aaklan sach savit hoga.ab jis se jo bane so kar le . nahin kar sake to isee pravakta.com par bhadas nikaal le.

  10. लेखक ने बड़े तर्क सगत ढंग मोदी जी का विषय उठाया है. पर ये मोटी खाल के ढोंगी सेक्युलरिस्ट और अधिकांश मीडिया वाले विदेशी ताकतों के हाथों के कठपुतली बने हुए हैं. हर देशभक्त शक्ती का इन्हें विरोध करना है. हमारे देश के ये वास्तविक शत्रु हैं. अतः मोदी जी का विरोध इनके द्वारा करना तो उनके लिए एक प्रमाणपत्र है कि वे सही हैं. ये दुष्ट नहीं समझ रहे कि ये जितना अधिक मोदी जी का विरोध कर रहे हैं, जनमत उतना अधिक मोदी जी के पक्ष में बनता जा रहा है, उनका कद उतना अधिक ऊँचा हो रहा है, वे लोगों के मन में उतने अधिक समाते जा रहे हैं. मोदी विरोध की एक प्रतिक्रिया जन मन में होनी स्वाभाविक है. आखिर मोदी का दोष क्या है जो ये सारे के सारे दुष्ट उनके पीछे पड़े हुए है ? यह रोष करोड़ों लोगों के मन में पनपता हुआ ये मति भ्रष्ट देख नहीं पा रहे और जनता को मूर्ख समझने की मुर्खता कर रहे हैं. सही बात यह है कि अधिकाँश जनता इनकी बदनीयती को समझने लगी है. अन्ना के विरोध में मीडिया और सोनिया सरकार के नेता कितना चिल्लाए, पर ९६% जनता ने अन्ना को अपना समर्थन देकर सिद्ध कर दिया है कि ये नेता और मीडिया अपना विश्वास खो चुके हैं. ठीक यही स्थिति मोदी जी के मामले में है. किसी में दम हो तो सर्वेक्षण करवा कर देख लें, पूरे देश का जनमत मोदी को अपना अगला प्रधानमंत्री बनाना चाहेगा. ये जितना अधिक मोदी -विरोध करेंगे, उनका सम्मान उतना अधिक जन-मन में बढ़ता जाएगा. अकारण और अतिवादी मोदी विरोध के कारण लोगों के मन में एक रोष, क्रोध, असंतोष का ज्वार जगा दिया है. अर्थात ये विरोधी स्वयं अपने अस्तित्व की समाप्ती का प्रबंध कर रहे हैं, इनके इन आत्मघाती प्रयासों के लिए हार्दिक शुभकामनाएं. खूब विरोध करो देशभक्त शक्तियों का और अपनी असलियत उजागर करके अपनी और अपने आकाओं की समाप्ती का प्रबंध करो. २०१४ के चुनाव इनके अंत की इबारत लिखने वाले होंगे.

  11. धन्य है मुसलमानों कथित बुद्धजीवियो सु विचार सारी दुनिया आगे को चलती है किन्तु देश के मुशालमन पीछे को चलते है कैसे होगा इस देश का कल्याण
    कांग्रेसियों व दलाल टाइप मुसलमानों ने नरेंद्र मोदी को घोर सांप्रदायिक और हिंसा वादी घोषित कर दिया जिनके के सुर के साथ पूरी कौम एक ही राग अलाप रही है नरेंद्र मोदी घोर सांप्रदायिक और हिंसा वादी है.

    लानत है इस देश के मुशाम्नानो पर गोधरा को छोड़ कर इस देश में सकड़ो साम्प्रदायिक दंगे हुए जिसके लिए आज तक इस कौम ने किसी को साम्प्रदायिक नहीं घोषित किया क्यों .

    क्योकि उस समय दलाल टाइप मुसलमानों को मुह माँगा नजराना दिया गया .

    इस बारे में पूरे मुसलमानों को सोचना चाहिए जिन लोगो ने सैकड़ो दंगे कराये उन्हें क्या नाम दिया जाय

    क्या मोदी के शसन काल १० वर्सो में केवल १ सांप्रदायिक हिंसा = देश में हुए सकड़ो साम्प्रदायिक दंगे

    गोधरा में जिसकी सुरुआत ही मुसलमानों ने की थी

    बस मुसलमानों की यह पीछे जाने की आदत का कमल है गुजरात के मुस्लमान खुशाल जीवन बिता रहे है यु पी बंगाल के मुस्लमान आज भी उस बात को लेकर रुदाली कर रहे है यह मुसलमानों की सोच का नायब नमूना है.

  12. मैं यह पूछना चाहता हूँ अकाल के दीवानों से की ८३० मुस्लमान गुजरात दंगो में मरे गए . लेकिन २५६ हिन्दू भी तो गुजरात दंगों में मरे गए थे. यह हिन्दू भी मोदी ने मरवाए थे क्या?
    गोधरा में ५९ हिन्दुओं को किसने मरवाया?
    सुरेश माहेश्वरी

  13. रूचि जी, १००० हज़ार साल तक भारत में इस्लामी हुकूमत थी. इस दौर में देश की उन्नति हुई और जनता खुशहाल थी. सबको न्याय मिलता था और सब सुरक्षित थे. अगर मुसलमान हिंसक होते तो आज भारत में दूसरे धर्मों के लोग और उनके धर्म स्थल सुरक्षित न होते. अंग्रेजों से आज़ादी के लिए पूरे देश ने संघर्ष किया, लेकिन इस्लामी हुकूमत में जनता ने कभी बगावत नहीं की.

    • इतिहास को ठीक से पढो अख्तर भाई, पूरे उत्तर भारत मे इस्लामपूर्व बना एक भी मन्दिर साबूत नही बचा है. जो मन्दिर आज दिखते है वे सभी अकबर के बाद बने है. क्या अयोध्या मे मन्दिर गिराकर उसे मस्जिद का रूप देने का प्रयास नही हुआ ? क्या काशि विश्वनाथ, मथुरा का मन्दिर नही तोडा ? क्या कुतुब मिनार का परिसर पहले विष्णुमन्दिर नही था ? अजमेर मे अढाई दिन का झोपडा क्या है ? इन सभी स्थानोपर पूर्व के हिन्दू चिन्ह स्पष्ट दिखाई देते है ?
      आपने कहा मुस्लिम काल मे कोई विरोध नही हुआ —- तो छत्रपति शिवाजी, राणा प्रताप, छत्रसाल, आदि किस बात के उदाहरण है ?
      मेरे भाई इन विदेशी आक्रमण कारियो का (वे मुस्लिम थे इसलिये) पक्ष लेने की आपको कोई आवश्यकता नही है. वे सब विदेशी लुटेरे थे. सत्ता के भूखे थे. आक्रान्ता थे. वरना मोहम्मद गझनी से बाबर तक यहा क्यो आये थे? वे सब विदेशी थे, आपका उनसे क्या सम्बन्ध है ? उनके लिये दलील क्यो ? मजहबी एकता अर्थहीन है, राष्ट्रीय एकता को पहचानो. कुतुबमिनार हमारे लिये शर्म का विषय है. हमारे पराजय का चिन्ह है. भारतीय मुसलमानो को भी ऐसा ही मानना चाहिये. गलत को गलत कहना चाहिये. मजहबी अभिनिवेश बीच मे न आये.

    • भाई अतहर खान, पहले तो सलाम-आलेकुम. बधाई हो आप प्रगतिशील मुस्लमान जान पड़ते हैं.
      आपकी इस बात से की मुस्लिम हिंसक नही होते से मैं कतई इत्तेफाक नही रखता; कृपया इन प्रश्नों के उत्तर दे.

      १> क्या सोमनाथ मंदिर को मुस्लिम आक्रमण कारियों ने नही ध्वस्त किया?
      २> क्या कृष्ण जन्म मंदिर को औरंगजेब से पहले भी ३ बार मुस्लिमो द्वारा नही तोडा गया?
      ३> क्या राम मंदिर को तोड़कर ही बाबरी मस्जिद नही बने गयी थी?
      ४> क्या कशी विश्वनाथ में भी मस्जिद मंदिर के ऊपर नही बनाई गयी?
      ५> क्या मुस्लिमो के साशनकाल में जबरन धर्म परिवर्तन नही कराये गये?
      ६> क्या सारी दुनिया में इस्लाम आक्रमण करके नही फैलाया गया?

      प्रश्न बहुत हैं और उत्तर भी पता है;
      लेकिन आपको एक सकारात्मक बहस के लिए मैं आमंत्रित करता हूँ.

      भारत अगर आज भी धर्मनिरपेक्ष है तो वो इसलिए की यहा हिन्दू मेजोरिटी में हैं.
      चलिए ऊपर के अन्स्वेर तो पता हैं, एक जवाब जरुर दीजिये “क्श्मीर से १९८९-१९९१ में भगाए और मारे गये हिन्दुओं का कुसूर क्या था?”
      इसका उत्तर दे पाए तो मैं मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए तैयार हूँ.

    • Ala-ud-din Khilji can justly be called the first muslim ruler of a large part of India. Till his reign, Islamic rule only extended in a corridor starting from Delhi, and entering today’s UP and parts of Bihar. Of course, Islamic rulers continually attacked and ravaged lands outside this region as well, but were not able to establish any sort of consistent rule there. Hindu counter-offensives would often sieze back land lost to Islam within months, if not weeks. This see-saw was witnessed in large parts of north-central India. Anyway, back to Ala-ud-din. His history is recorded in some detail by Ziaundin Barani’s Tarikh-i-Firuz Shahi. I reproduce the piece of the history that deals with Ala-ud-din’s treatment of Hindus who had fallen into his subjecthood.
      ‘Aláu-d dín was a king who had no acquaintance with learning, and never associated with the learned. When he became king, he came to the conclusion that polity and government are one thing, and the rules and decrees of law are another. Royal commands belong to the king, legal decrees rest upon the judg­ment of kázís and muftís.
      The Sultán then asked, “How are Hindus designated in the law, as payers of tribute (kharáj-guzár) or givers of tribute (kharáj-dih)?” The Kází replied, “They are called payers of tribute, and when the revenue officer demands silver from them, they should, without question and with all humility and respect, tender gold. If the officer throws dirt into their mouths, they must without reluctance open their mouths wide to receive it. By doing so they show their respect for the officer. The due subordination of the zimmí (tribute-payer) is exhibited in this humble payment and by this throwing of dirt into their mouths. The glorification of Islám is a duty, and contempt of the Religion is vain. God holds them in contempt, for he says, ‘Keep them under in subjection.’ To keep the Hindus in abasement is especially a religious duty, because they are the most inveterate enemies of the Prophet, and because the Prophet has commanded us to slay them, plunder them, and make them captive, saying, ‘Convert them to Islám or kill them, enslave them and spoil their wealth and property.’ No doctor but the great doctor (Hanífa), to whose school we belong, has assented to the imposition of the jizya (poll tax) on Hindus. Doctors of other schools allow no other alternative but ‘Death or Islám.’”Now you tell me that it is all in accordance with law that the Hindus should be reduced to the most abject obedience.” Then the Sul-tán said, “Oh, doctor, thou art a learned man, but thou hast had no experience; I am an unlettered man, but I have seen a great deal; be assured then that the Hindus will never become submissive and obedient till they are reduced to poverty. I have, therefore, given orders that just sufficient shall be left to them from year to year, of corn, milk, and curds, but that they shall not be allowed to accumulate hoards and property.”

    • भैया यदि इस्लामी हुकूमत में सबको न्याय मिलता,सामाजिक समानता और समरसता होती तो आज आप मोहम्मद अख्तर नहीं होते आप कोई मोहन लाल होते इस्लामी हुकूमत के सबसे बड़े शिकार तो आप जैसे लोग ही हुए हैं जिन्होंने इस्लामी दरिंदों के अत्याचारों से डर कर अपना धर्म ही बदल दिया.आपको तो उनका घोर विरोधी होना चाहिए इसके विपरीत आप उन आक्रान्ताओं के ही गुणगान में लग गए जिन्होंने आपको अपनों से अलग कर दिया.मुझे आश्चर्य होता है उस समय को याद कर के आप लोगों का खून क्यों नहीं खौलता जब आप लोगों का बलात धर्म परिवर्तन कर दिया गया था कितने अत्याचार किये होंगे आपके पूर्वजों पर उन आतताइयों ने क्योंकि यह तो ऐतिहासिक तथ्य है कि कुछ सौ वर्ष पहले आप भी हिन्दू ही थे.
      अगर आप समृद्धि कि बात करते हैं तो मैं समन्ह्ता हूँ आप को इतिहास का कोई ज्ञान नहीं.क्योंकि सारी दुनियां जानती है कि इस्लाम के प्रवेश से पूर्व भारत ज्ञान और विज्ञान दोनों मैं उन्नति के शिखर पर था परंतु बाद में धर्मांध शाशकों नें सभी प्रकार के शोध पर प्रतिबन्ध लगा दिया.नालंदा में क्या हुआ सारी दुनियां जानती है. भारत में ये शोध का विषय है के इस्लाम में ऐसी कौनसी घुट्टी पिलाई जाती है कि अच्छे पढ़े लिखे लोग भी इस्लाम में प्रवेश करने के बाद अपने धर्म के साथ राष्ट्रीयता को भी भूल जाते हैं.

    • इतिहास को तो न झुठलाईये.बगावते हुई हैं और बार बार हुई हैं.ये दूसरी बात हैं कि बेरहमी से कुचल दी गयीं.

    • सब अमुस्लिमों पर जजिया लगता था| अ मुस्लिम काफिर माने जाते थे| ७०,००० मंदिरों की भित्ति पर मस्जिदें खड़ी की गयी थी|

    • Mr Mohamad Athar Khan has imbibed what the Indian media pedals. I suggest he reads history written by Muslim historians themselves.

      Vinod Kumar, USA

  14. श्रीराम जी तिवारी! साठ लाख निर्दोष लोगों के हत्यारे स्टालिन के पुजारी के मुंह से नैतिकता,सहिष्णुता,धर्मनिरपेक्षता,प्र्जातान्त्रिकता चारित्रिक उत्कर्षता जैसे शब्द ! लगता है या तो आप confused mind हैं या अल्जाइमर से पीड़ित हैं.

  15. बड़ा आश्चर्य होता कि आप जैसे बुद्धिजीवी लोग, घोर सांप्रदायिक और हिंसा वादी नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हैं.
    जनमत मिल जाने से किसी का पाप नहीं धुल जाता, अगर ऐसा होता तो किसी मंत्री पर कोई केस न चलाया जाता. २००२ की हिंसा नरेंद्र मोदी ही पर नहीं बल्कि भाजपा पर भी कलंक है लेकिन ये लोग इस कलंक को अपनी शोभा मानते है. इस पार्टी का नाम भारतीय जनता पार्टी न होकर भारतीय दंगा पार्टी होना चाहिए, क्योंकि ये लोग समय समय पर पूरे भारत में सुनियोजित दंगे कराते रहते हैं. इसमें नरेंद्र मोदी का ही दोष नहीं है बल्कि उनकी पार्टी ही ऐसी है.
    गुजरात के दंगो से पूरा देश कलंकित हुआ, अटल बिहारी ने खुद इसे कलंक बताया और कहा अब किस मुंह से विदेश यात्रा पर जाऊंगा. सब जानते है २००२ के बाद अमेरिका ने आपके विकास पुरुष को वीजा नहीं दिया.
    जो देश संसार की बड़ी से बड़ी ताकत से टकराने की हैसियत रखता हो, क्या वो दंगा करने वालों को नहीं रोक सकता? अगर रोक सकता है तो क्यों नहीं रोका?
    नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा कसूर यही है.
    हजारों लोग मारे गए और इसका जिम्मेदार कोई नहीं?
    देखो गे तो मिल जाएँगी हर मोड पे लाशें
    ढूँढो गे शहर में, कोई कातिल न मिले गा.
    आखिर इस धर्म निपेक्ष राष्ट्र की धर्मनिरपेक्षता कैसे कायम रहेगी अगर उसका प्रधानमंत्री एक साम्प्रदयिक आदमी होगा?
    एक ऐसा आदमी जो सांप्रदायिक संगठन संघ से सम्बन्ध रखता हो, क्या उसके शासन में दूसरे धर्म के लोग सुरक्षित रहेंगे?
    चुनाव आयोग को भाजपा की मान्यता ही रद कर देनी चाहिए क्योंकि ये एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में धर्म के नाम पर राजनीती करते है. धर्म के नाम पर पक्षपात करते हैं और धर्म के नाम पर हिंसा फैलाते हैं.

    • एक तो- ऐसा लोगों का विचार या समझ मात्र है… मोदीजी के खिलाफ अभी तक कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं

      दूसरा- मोदीजी के कार्यकाल में ऐसा हुआ यह एक सयोंग मात्र है. इससे उनके द्वारा उनके राज्य में किये गए विकास कार्य नगण्य नहों हो जाते… सारा विश्व गुजरात की तरफ देख रहा है.. उनके कार्यों को दुसरे राज्यों जो रोल मोडल की तरह अपनाना चाहिए ..मोदीजी को बधाई!!

      जय हिंद ….जय भारत

    • कहाँ की बात कर रहे हो अख्तर साहब? मोदी शासन १ दंगा. और १९४७ से बाकी सारे दंगे ? जो भी मारे गए हिन्दू या मुसलमान, अधिकार राज्यों में कांग्रेस का शासन था. तब आप लोगों की जबान पे ताला लगा था ? उनलोगों को कौन सा तमगा दिया आप लोगों ने? शर्मनाक है आप लोगों की सियासत. जरा गुजरात जा के देख के आइये कौन ज्यादा सुरक्षित है, कोई भी देश धर्मनिरपेक्ष नहीं होता है वरन संप्रदाय निरपेक्ष होता है , और कांग्रेस से बड़ा तो सांप्रदायिक कोई है ही नहीं. जरा आप लोग अपनी आँखें खोलिए. वास्तविकता से नाता जोड़िये. अभी भी अपने को मुग़ल हमलावरों से न जोड़िये. हिंद देश के वास्तविक नागरिक बनिए.

  16. भारत माता की सभी संतानें आपस में भाई हैं परन्तु कुछ नेताओं को लगता है कि यहाँ कि सभी संतान आपस में भाई -भाई तो हैं परन्तु घुसपैठिये तो पुत्र हैं नहीं उनके वोट लाभ के लिए उन्हें विशेष सुविधा (दामादोंकि तरह )पिछले पचास वर्षों से लागातर देते आये हैं ,और अब ऐसा सुबिधा देने वालों की बाढ़ आ रही है,फिर भी यह चिंता की बात नहीं है क्योंकि यहाँ के मुस्लिम पुत्र धीरे -धीरे सब समझने लगे हैं २०२० का भारत इन वेफुल वक्वासों के आधार पर नहीं होगा हो सकता है कि आपसी देशों कि ऐसी मजबूरी प्रकृति प्रदत्त हो जाय कि अफगानिस्तान से ब्रह्मदेश (म्यामार )तक पुनः भारत एक होकर विश्व की महाशक्तिशालीराष्ट्र बनकर उभर जाये क्योंकि यह सपना महर्षि अरविंद से लेकर डाक्टर कलाम तक की है~~सब पंथों का सम्मान करें सब ग्रंथों का ज्ञान गहें के सूत्र पर ही आज तक अटल -आडवाणीजी एवँ नरेन्द्र मोदीजी चल रहे हैं |आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है , ईश्वरीय कार्य होकर रहेगा ~~~परशुरामश्च~~~

  17. लोग बाज़ार जाते हैं विभिन्न वस्तुओं के क्रय की प्रक्रिया में मोल-भाव से पहले एक दौर आता है जब ग्राहक अपनी संतुष्टि के लिए वस्तु विशेष को ठोक बजाकर,उलट-पुलट कर जांच परख करता है. यदि सौदा बहुत बड़ा हो देश की सुरक्षा और संचालन के स्तर का हो, प्रधानमंत्री के पद पर प्रतिष्ठित होने का हो, तो ‘सावधानी’ के लिए ही सही किसी व्यक्ति विशेष के जांच परख से परहेज़ क्यों? क्या इतने बड़े पद पर बिठाये जाने वाले व्यक्ति में नैतिकता,सहिष्णुता,धर्मनिरपेक्षता,प्र्जातान्त्रिकता चारित्रिक उत्कर्षता विद्द्य्मान है? यदि इन गुणों का आभाव नहीं तो किसी आलोचना से डर क्यों? यदि उक्त गुण किसी व्यक्ति में नहीं हैं तो उसे अनावश्यक खजूर के झाड पर चढ़ाना न केवल देश के साथ नाइंसाफी है अपितु उस पार्टी के कतिपय अन्य श्रेष्ठ जनों का भी अपमान है.

    • सरजी,
      हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री जी के बारे में क्या ख्याल है? उनकी या कहें (सोनिया की ) नैतिकता,सहिष्णुता,धर्मनिरपेक्षता,प्र्जातान्त्रिकता चारित्रिक उत्कर्षता की जांच परख की थी क्या किसीने ?

  18. सच का सामना करना ,और उसे गले उतारना बड़ा कठिन होता है विशेषकर विरोधियों का लिए , ऐसी अवस्था में एक ही हथियार रहता है ,साम्प्रदायिक होने का.इस देश में एक सबसे अनोखी बात है कि जो भी व्यक्ति मुसलमान के सम्बन्ध में कांग्रेस कि विचारधारा के विरुद्ध कुछ कह दे वह साम्प्रदायिक हो जाता है,चाहे वह कितना ही देशभक्त हो.कितना ही राष्ट्रवादी हो,
    कांग्रेस को लगता है कि वह उसके वोट बैंक पर हाथ डाल रहा है,मुस्लमान उनकी राजनितिक सम्पति हैं,और कोई दूसरा ऐसा कर ,या उनके भले का कम कर उन्हें छीन रहा है.इस हेतु कुछ दलों का तथा कुछ टुकदेल पत्रकारों का एक पूल बन गया है जो निष्पक्ष हो कर सोच नहीं पता, सोचता है तो कह नहीं पता क्योंकि मानसिकता तो छिछली है ही.
    मोदी कि भी कुछ अपनी कमजोरियां है जिन्हें नजरंदाज नहीं किया जा सकता पर उनके द्वारा अछे किये गए कार्य भी नहीं भूल सकते.गाहे बगाहे कांग्रेस्सियों के द्वारा अपने मुहं से यह बात निकल ही जाती है,पर क्योंकि वोह विरोधी हैं अतएव विरोधी धरम निभाना पड़ता है
    बाकि कांग्रेस अन्दर ही अन्दर मोदी का लोहा तो मानती ही है,यह भी कि उसके खुद के नाकारा मुख्यमंत्रियों से मोदी कितने ही बेहतर है ये तो सब चापलूसी और आला कमान कि सेवा कर पद पर टिके हैं क़ाबलियत जैसी कोई बात वहां मोदी कि तुलना में आसपास भी नहीं.नितीश भी प्रयास कर रहें हें ,बहुतकुछ होने का दावा भरते हो पर अभी इस स्तर तक आने में समय लगेगा.

  19. नरेंद्र मोदी विरोधी लोगो से कुछ प्रश्न

    १. भारतीय – लोकतंत्र प्रणाली के तहत नरेंद्र मोदी को मुख्मंत्री गुजरात की छः करोड़ जनता ने चुनकर बनाया है ! कुछ तथा कथित बुद्धिजीवी एवं राजनेता मोदी को राष्ट्रीय कलंक , मानवता का हत्यारा आदि शब्दों से अलंकृत किस आधार पर करते है और वहा की जनता के जनमत का मजाक क्यों बनात
    े है ?
    २. मनमोहन सिंह के अनुसार असम में हुई सांप्रदायिक हिंसा राष्ट्र पर कलंक है तो २००२ में गुजरात में हुई सांप्रदायिक हिंसा नरेंद्र मोदी पर कलंक कैसे है ?
    ३. अगर गुजरात भारत के अन्य राज्यों में सबसे विकसित राज्य बना है तो क्या देश के किसी शर्म की बात है अथवा गौरव की ?
    ४. अगर गुजरात के निवासियों का पलायन रूका है तो क्या देश हित के लिए अच्छा है कि नहीं?
    ५. अगर एक बिजली – ग्रिड फेल हो जाने से नौ – नौ राज्यों की बिजली गुल हो जाती है पर गुजरात जगमगाता रहता है तो क्या किसी शर्म की बात है अथवा गौरव की ?
    ६. अगर गुजरात पर्यावरण – मित्र पर आधारित विकास कर रहा है तो क्या किसी संकट की ओर संकेत कर रहा है अथवा हमें गंभीर ग्लोबल वार्मिंग संकट से बचा रहा है ?
    ७. जिस देश में गाय को माता की संज्ञा दी जाती हो, केंद्र द्वारा अन्य देशो के लिए पिंक क्रांति की पहल अर्थात गौ मांस निर्यात को बढ़ावा देने के लिए योजना बन रही हो पर गुजरात में गौ मांस पर पूर्णतः प्रतिबन्ध हो तो क्या गुजरात का यह स्वागत योग्य नहीं है ?
    ८. भारत का प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को क्यों नहीं बनना चाहिए जिसने अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए गुजरात को एक समृद्ध और खुशहाल राज्य बना दिया हो ?
    ९. तथाकथित सिविल सोसायटी अर्थात अन्न टीम के संजय सिंह और अरविन्द केजरीवाल जैसे लोगो को यह अधिकार किसने दिया कि वह किसी सूबे के मुख्यमंत्री का चरित्र चित्रण करे ?
    १०. अगर प्रशांत भूषण जम्मू – कश्मीर पर बयान देकर अपना असली रंग दिखा सकते है , दिग्विजय सिंह जो कि कांग्रेश के महासचिव है कब उनका बयान व्यक्तिगत हो जाता है और कब पार्टी का आज तक शायद ही किसी को समझ आया होगा , ऐसे में स्वामी रामदेव किसी सूबे के सफल मुखिया के साथ मंच साझा क्यों नहीं कर सकते ?

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