आखिरकार युवा और नरमदिल मुख्यमंत्री सख्त हुये और पहले बर्खास्तगी के
रूप मे सख्त संदेश और फिर कई बड़ों की छुट्टी करके उत्तर प्रदेश के
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ये जता दिया कि वह अपनी और सपा की छवि पर अब
और दाग सहन नही करेगें । राजनीतिक हल्के मे माना जा रहा है कि यह एक
मुश्त कार्यवाई छवि सुधार की कसरत और अगले डेढ़ साल मे पार्टी को जिताउू
मोड मे लाने की तैयारी है ।ये भी माना जा रहा है कि वह मिशन-2017 की
पूरी कमान युवा हाथों में सौंपने की रणनीति पर भी चल रहे हैं । गैर
वफादारी और 2017 के चुनाव का दबाव भी इसकी वजह माना जा रहा है
।मुख्यमंत्री के इस तेवर से साल 2012 की वह घटना याद आ गयी जब उन्होने
वीटों के अंदाज़ मे मुलायम सिंह की इच्क्षा के बावजूद दागी छवि वाले
डीपी यादव की पार्टी मे आमद रोक दी थी । मुलायम सिंह के रुख से भी अब यही
लग रहा है कि वह अगले डेढ़ साल की सरकार को अखिलेश पर ही छोड़ना चाहते हैं।
इस मामले में मुलायम के इस रुख को ठीक ही कहा जाना चाहिए क्योंकि अगर
अखिलेश को मर्जी से सरकार ही नहीं चलाने दिया जाएगा तो फिर उनसे रिज़ल्ट
की उम्मीद करना भी बेमानी के सिवा कुछ नहीं होगा। अखिलेश अपनी नई टीम यह
सन्देश देने कि कोशिश कर रहें हैं कि यह अखिलेश यादव की सरकार है।यानी
अखिलेश ने अपनी सरकार को अपने तरीके से चलाने का एलान कर दिया है।इसी
लिये बात जब निपटाने की आई तो कोई निकटता काम न आई। निकटता पुरानी थी,
इलाकाई थी या फिर सजातीय, नतीजा एक ही रहा। उल्लेखनीय है कि बीते कई
महीनों से मुलायम अखिलेश से सार्वजनिक मंचों से कहते रहे थे कि वे चरण
वंदना करने वालों को सबक सिखायें लेकिन इसके लिये क्षेत्र और जिला पंचायत
चुनावों के बाद का माकूल समय चुना गया । आठ मंत्रियों की बर्खास्तगी ने
यह तो साफ कर दिया कि खुद को सत्ता के करीबी समझने वाले ये मंत्री हकीकत
में मुख्यमंत्री की कसौटी पर खरे नहीं थे। विकास की माडर्न नीति-रीति में
भी युवा मुख्यमंत्री के साथ कदम ताल में वे पिछड़ रहे थे। ऊपर से तोहमतें
भी कम नहीं थी। इनमें से कुछ की दलीय निष्ठाएं भी सवालों के सलीब पर थीं।
ये लोग 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हुए
थे। हालांकि ये लोग सपा मुखिया मुलायम सिंह के करीबियों में शुमार थे,
मगर मुख्यमंत्री की मंशा को भांपकर पार्टी नेतृत्व ने ‘वीटो के जरिए इनकी
विदाई रोकने का प्रयास नहीं किया। इससे पार्टी में भी अब ‘युवा युग का
आगाज हो जाने का संदेश निकल रहा है। माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल में
भारी उलटफेर में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मंशा पूरी तरह से प्रभावी
रही वरना कम से कम तीन मंत्रियों का विभाग वापस नहीं लिए जाते। सवाल यह
भी उठ रहा है कि क्या सर्जरी से रोग का निदान हो पाया है।क्यों कि
अखिलेश यादव पहले भी अपने कई मंत्रियों को बर्खास्त कर चुके हैं। शुरुआत
अप्रैल 2013 में तत्कालीन खादी एवं ग्र्रामोद्योग मंत्री (अब स्वर्गीय)
राजाराम पाण्डेय की बर्खास्तगी से हुई थी, जिन पर एक महिला आइएएस अधिकारी
पर अशोभनीय टिप्पणी करने का इल्जाम लगा था। मार्च 2014 में मंत्री मनोज
पारस और कृषि मंत्री आनंद सिंह बर्खास्त हुए। सिंह पर पार्टी विरोधी
गतिविधियों में शामिल होने का इल्जाम था। लोकसभा चुनाव के बाद
मुख्यमंत्री ने मनोरंजन कर राज्यमंत्री पवन पाण्डेय को बर्खास्त किया।
पाण्डेय पर फैजाबाद में अवैध खनन रोकने गए एक आइपीएस अधिकारी के साथ
अभद्रता का इल्जाम लगा था।छवि सुधार की इस कवाय का क्या फायदा हुआ इसका
पता तो बाद मे चलेगा लेकिन अभी इसके कई संदेश और मतलब निकाले जा रहे हैं
जिस पर राजनीतिक हलके मे चर्चा है । सीएम अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश
में मंत्रिमण्डल विस्तार के बाद मंत्रियों को विभाग बांटने मे समय जरूर
लिया लेकिन उन्होने पार्टी के कई कद्दावर नेताओं को ये जता दिया कि कोई
भी दल की निष्ठा से बड़ा नही है ।काबिलेगौर है कि उन्नहोने स्वतंत्र
प्रभार वाले कुछ राज्यमंत्रियों को महत्वपूर्ण विभाग दिए तो उन नौ
मंत्रियों को जिनके विभाग छीने थे, उनमें से कुछ को पहले से बेहतर तो कुछ
को महत्वहीन विभाग देकर उनकी हैसियत का एहसास कराया। साथ ही युवा मुस्लिम
चेहरों को महत्वपूर्ण विभाग देकर वोट बैंक को भी साधने का प्रयास किया
गया है। स्वास्थ्य विभाग अब मुख्यमंत्री के पास ही रहेगा अभी तक यह
विभाग अहमद हसन के पास था अब राज्यमंत्री के रूप में स्वास्थ्य विभाग
डाॅ. शिवप्रताप यादव देखेंगे। अवधेश प्रसाद जो अभी तक समाज कल्याण मंत्री
थे, उन्हें इस बार होमगार्ड और प्रांतीय रक्षक दल विभाग दिया गया है।
अवधेश प्रसाद इससे पहले मुलायम सिंह यादव के मंत्रिमंडल में कैबिनेट
मंत्री रहे हैं। यह पहला मौका है जब उन्हें इतना हल्का विभाग दिया गया
है। इसी तरह बलराम यादव जो कभी मुलायम सिंह यादव की सरकार में स्वास्थ्य
और अखिलेश मंत्रिमंडल में पंचायती राज तथा कारागार मंत्री रहे अब उन्हें
माध्यमिक शिक्षा विभाग थमा दिया गया है। विभागों के बंटवारे में रघुराज
प्रताप सिंह की अपेक्षा विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह तथा अरविंद
सिंह गोप को खासी तबज्जो दी गई है।यानी सपा अमर सिंह के जाने के लम्बे
समय बाद इस वर्ग के नेताओं की अपनी खुद की फौज तैयार करके अगले चुनाव मे
जाना चाहती है ।
मंत्रिमंडल में शामिल नए चेहरे बलवंत सिंह
रामूवालिया को कारागार विभाग देकर मंत्रिमंडलीय सहयोगियों को उनके
राजनीतिक कद का एहसास कराया है।इसी तरह विभागों के बंटवारे मे ताकतवर आजम
खान के दर्जे मे तो कमी नही की गयी लेकिन नये खाद रसद मंत्री कमाल अख्तर,
स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्रियों में यासिर शाह और शादाब फातिमा को ज्यादा
तरजीह दे कर ये जता दिया कि सपा आलाकमान भविष्य मे इन्हें मुस्लिम
चेहरे के रूप मे पेश कर सकता है । राजनीतिज्ञ प्रेक्षकों का कहना है कि
कमाल अख्तर को कैबिनेट में इतना महत्वपूर्ण पद मिलना इसलिए भी ज्यादा
महत्वपूर्ण है कि बीते कई सालों से आजम खां रामपुर के आसपास के किसी
कद्दावर मुस्लिम नेता को पनपने नहीं देते हैं। यहां तक कि दूसरे
प्रभावशाली नेताओं की भी वे काट किया करते हैं। आजम और अमर की सियासी जंग
को भी इसी दृष्ब्िकोण से देखा जाता है।यही नही अब्दुला बुखारी के दामाद
आशू मलिक का सबसे ज्यादा विरोध आजम ने किया और हाजी याकूब कुरैशी का इसी
तरह विरोध वह करते रहे जिससे वे सपा छोडने को मजबूर हो गए। कमाल अख्तर
रामपुर से सटे हुए अमरोहा के रहने वाले हैं ।माना जा रहा है कि अब रामपुर
और पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतों पर केवल आजम पर सपा निर्भर नहीं
रहेगी, बल्कि कमाल अख्तर का उपयोग भरपूर किया जाएगा। जिसका लाभ मिशन 2017
में सपा को मिल सकता है। सीएम अखिलेश यादव ने कैबिनेट विस्तार मे उस
जातीय गणित के तिलिस्म को भी तोड़ दिया जिस पर अक्सर सरकारों का जोर
रहता था । कुछ जानकार तो कह रहे हैं कि अखिलेश ने सन 1992 से चले आ रहे
मुलायम सिंह के एम वाई समीकरण की परिभाषा ही बदल दी है । 1992 में जब
मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई तो उन्होंने मुस्लिम और यादव
का समीकरण बनाया और इस सफल समीकरण से ही उन्हें सफलता हाथ लगी। लेकिन
कैबिनेट विस्तार में मुख्समंत्रन अखिलेश ने इसे भी नजरअंदाज किया यानी
अब एम का मतलब माइनॉरिटी और वाई से यूथ होगा। दरअसल 2014 में लोकसभा
चुनाव के परिणामों से वह समझ चुके है कि युवा फैक्टर को अब नकारा नही जा
सकता है । असल में यूवा आंधी ने ही 2014 में जातीय समीकरण को ही उलट दिया
था। 2017 तक यूपी में 60 फीसदी यूवा वोटर होंगे। ऐसे में सीएम अखिलेश
यादव ने अपने कैबिनेट में कई यूवाओं को शामिल किया है।बहरहाल अब ये कहने
मे हर्ज नही कि ताजा मंत्रीमंडल विस्तार अगले इम्तिहान की तैयारी के
लिये ही एक कवायद है ।
** शाहिद नकवी