अमर बलिदानी स्वामी श्रद्धानंद

अखिलेश आर्येन्दु

बलिदान दिवस 23 दिसम्बर पर विशेष

धर्मबलिदानी, तपस्वी और कर्मसाधक स्वामी श्रद्धानंद

स्वामी श्रद्धानंद का नाम देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा करने वाले उन महान बलिदानियों में बहुत ही आदर के साथ लिया जाता है जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर खुद को समर्पित कर दिया। धर्म, संस्कृति और देश पर बलिदान होना सबसे बड़ा कर्म माना जाता है। यह तब और भी बड़ा हो जाता है जब ये महान कार्य बगैर किसी स्वार्थ के किए जाएं। स्वामी श्रद्धानंद ऐसे ही निस्वार्थ में कार्य करने वाले महान धर्म और कर्म योद्धा थे। उनका श्रद्धानंद नाम उनके काम के मुताबिक पूरी तरह सही बैठता है। उनमें स्वराज्य हासिल करने, देश को अंग्रेजी दासता से छुटकारा दिलाने और विधर्मी बने हिंदुओं का शुद्धिकरण करने, दलितों को उनका अधिकार दिलाने और पश्चिमी शिक्षा की जगह वैदिक शिक्षा प्रणाली गुरुकुल के मुताबिक शिक्षा का प्रबंध करने जैसे अनेक कार्य किए । 18वीं शती में हिंदू और मुसलमानों का यदि कोई सर्वमान्य नेता था तो वे स्वामी श्रद्धानंद ही थे। 4 अपैल, 1919 को मुसलमानों ने स्वामी जी को अपना नेता मानकर भारत की सबसे बड़ी ऐतिहासिक जामा मस्जिद के बिम्बर पर बैठाकर स्वामी जी का सम्मान किया था। दुनिया की यह महज एक घटना है जहां मुसलमानों ने गैर मुसलिम को मस्जिद की बिम्बर पर उपदेश देने के लिए कहा। स्वामी जी ने अपना उपदेश त्वं हि नः पिता वसो त्वं माता शत् क्रतो बभूविथ वेद मंत्र से शुरु किया और शांति पाठ के साथ अपने उपदेश को खत्म किया।

स्वामी जी के बचपन का नाम मुंषीराम था। बालक मुंशीराम का बचपन बहुत लाड़-प्यार में बीता। इस वजह से उनमें कई बुराइयां पैदा हो गईं थी। लेकिन बरेली में महर्षि दयानंद के उपदेश सुनने और सभी तरह के सवालों का सही जवाब पा जाने के बाद उनकी सारी जिंदगी ही बदल गई। वे अपने जीवन गाथा कल्याण मार्ग का पथिक में उन्होंने लिखा था- ऋषिवर! तुम्हें भौतिक शरीर त्यागे 41 वर्श हो चुके, परंतु तुम्हारी दिव्य मूर्ति मेरे हृदय पटपर अब तक ज्यों-की-त्यों है। मेरे निर्बल हृदय के अतिरिक्त कौन मरणधर्मा मनुष्‍य जान सकता है कि कितनी बार गिरते-गिरते तुम्हारे स्मरणमात्र ने मेरी आत्मिक रक्षा की है। तुमने कितनी गिरी हुई आत्माओं की काया पलट दी, इसकी गणना कौन मनुष्‍य कर सकता है? परमात्मा के बिना, जिनकी पवित्र गोद में तुम इस समय विचर रहे हो, कौन कह सकता है कि तुम्हारे उपदेशों से निकली हुई अग्नि ने संसार में प्रचलित कितने पापों को दग्ध कर दिया है। परंतु अपने विषय में मैं कह सकता हूं कि तुम्हारे सत्संग ने मुझे कैसी गिरी हुई अवस्था से उठाकर सच्चा लाभ करने के योग्य बनाया।’’

स्वामी श्रद्धानंद अपना आदर्ष महर्षि दयानंद को मानते थे। महर्षि दयानंद के महाप्रयाण के बाद उनके जरिए स्वदेश, स्व-संस्कृति, स्व-समाज, स्व-भाषा, स्व-शिक्षा, नारी कल्याण, दलितोत्थान, स्वदेशी प्रचार, वेदोत्थान, पाखंड खडंन, अंधविश्‍वास उन्मूलन और धर्मोत्थान के कार्यों को आगे बढ़ाने का कार्य किए। इनमें उन्होंने हरिद्वार सहित देश के तमाम जगहों पर वैदिक षिक्षा प्रणाली के गुरुकुलों की स्थापना और उनके जरिए देश, समाज और स्वाधीनता के कार्यों को आगे बढ़ाने का युगांतरकारी कार्य किए। शुद्धि आंदोलन के जरिए विधर्मी जनों को आर्य(हिंदू) बनाने के लिए आंदोलन चलाए। दलितों की भलाई के कार्य को निडर होकर आगे बढ़ाया, साथ ही कांगेस के स्वाधीनता के आंदोलन का बढ़-चढ़कर नेतृत्व भी किया।कांग्रेस में उन्होंने 1919 से लेकर 1922 तक सक्रिय रूप से अपनी महत्त्वपूर्ण भागीदारी की। 1922 में अंग्रेजी सरकार ने गिरफ्तार किया, लेकिन उनकी गिरफ्तारी कांग्रेस के नेता होने की वजह से नहीं हुई बल्कि सिक्खों के धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए सत्याग्रह करते हुए बंदी हुए थे। कांगेस में तुश्टिकरण के महात्मा गांधी के विचारों से मतभेद होने की वजह से उन्होंने त्यागपत्र दिया था। लेकिन देश की स्वतंत्रता के लिए कार्य वे लगातार करते रहे। हिंदू-मुसलिम एकता के लिए स्वामी जी ने जितना कार्य किए, उस वक्त शायद ही किसी ने अपनी जान जोखिम में डालकर किया हो। उनके इस एकता के कार्य को उस वक्त के तमाम मुसलिम नेताओं को भाता नहीं था। मुसलिमों को इनके खिलाफ भड़काने वाले भी कम नहीं थे। लेकिन स्वामी जी बगैर इसका परवाह किए देष और समाज की एकता को बरकरार रखने वाले इस युगधर्मी कार्य को करते रहे। वे ऐसे महान युगचेता महापुरुष थे जिन्होंने युग की धड़कन को पहचानकर समाज के हर वर्ग में जनचेतना जगाने का कार्य किया। धर्म के सही स्वरूप को महर्षि दयानंद ने जनता में जो स्थापित किया था, स्वामी श्रद्धानंद ने उसे आगे बढ़ाने का निडरता के साथ कदम बढ़ाया।

स्वामी जी ने आर्य समाज के जरिए समाज सुधार, देशोत्थान, शिक्षा और नारी सुधार के जो कार्य किए वे इतिहास की किताबों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हैं। वे सत्य के पालन पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने लिखा है-प्यारे भातृगण! आओ दोनों समय नित्य प्रति संध्या करते हुए ईश्‍वर से प्रार्थना करें और उसकी सत्ता से इस योग्य बनने का यत्न करें कि हमारे मन, वाणी और कर्म सब सत्य ही हों। सर्वदा सत्य का चिंतन करें। वाणी द्वारा सत्य ही प्रकाषित करें और कर्मों में भी सत्य का ही पालन करें। धर्म, अधर्म, पाप, पुण्य, स्वर्ग और नरक के बारे में महर्षि दयानंद की सही व्याख्या को स्वामी जी ने भी स्वीकार कर जनता को जागरूक करने का कार्य किया। इसके अलावा ईसाइयत, अंग्रेजी भाषा और विदेशी संस्कृति के बढ़ते असर को कम करने और भारतीयता के प्रचार-प्रसार के लिए स्वामी जी के जरिए किये गए कार्य जनता में जागरण फैलाने के लिए मील के पत्थर साबित हुए। आर्य समाज के नियमों को उन्होंने इस तरह से प्रचारित किया कि जनता को आर्य समाज के इंसानियत और वेद की बेहतरी के लिए किए जाने वाले सारे कार्य समझ में आ जाते थे।

हिंदू और मुसलमानों के समान प्रिय स्वामी जी के कई जिगरी दोस्त मुसलमान इनके हर कार्य को बहुत सम्मान देते थे। यहां तक कि कई मुसलिम नेंता इनके शुद्धि आंदोलन का भी समर्थन करते थे। लेकिन कुछ कट्टरपंथी मुसलमान इनके शुद्धिकरण के कार्य के खिलाफ हो गए थे। गौरतलब है जो हिंदू किसी दबाव या लालच में मुसलमान बन गए थे उन्हें उनकी मर्जी से उन्हें दुबारा षुद्ध करके हिंदू बनाने का कार्य स्वामी जी ‘शुद्धि आंदोलन’ के जरिए कर रहे थे। इसके खिलाफ एक मतांध मुसलिम अब्दुल रसीद नाम के एक व्यक्ति ने छल से 23 दिसम्बर, 1926 को चांदनी चौक दिल्ली में गोलियों से भूनकर हत्या कर दी। इस तरह धर्म, देष, संस्कृति, शिक्षा और दलितोत्थान का यह युगधर्मी महामानव मानवता के लिए शहीद हो गया।

2 COMMENTS

  1. स्वामीजी ने जो किया था आज वही काम अग्निवीर जी कर रहे हैं. आज ऐसे लोगों की देश में सख्त जरूरत है. स्वामी जो को शत-शत नमन.https://agniveer.com/

  2. प्राचीन गुरुकुलीय परम्परा को पुनरुज्जीवित करने वाले महान कर्मयोगी कर्म निष्ठ अमर हुतात्मा स्वामी जी को नमन

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