अजब की शक्ति है तुलसी की राम भक्ति में

—विनय कुमार विनायक
हरि कीर्तन करने,भजन गाने,रब का सिमरन करने
या नमाज पढ़ने जैसा नहीं है कविताओं का लेखन!
क्योंकि बंधी-बंधाई कोई विचार होती नहीं कविता!

एक प्रेमिका के होने/नहीं होने से
या एक रात पत्नी का साथ, रहने/नही रहने से,
जब बदल जाती अनायास मानवीय विचारधारा,
तब तत्क्षण जन्म होता है रामाश्रयी शाखा का;
एक मर्यादावादी भक्त महाकवि तुलसीदास का,
पन्द्रह सौ बत्तीस ई.से सोलह सौ तेईस ई.तक!

(जन्म तिथि विवादित 1497/1511/1532 ई में
मृत्यु तिथि निर्विवाद रूप से स्वीकृत 1623 ई.)
यानि 1532 ई./सं..1589 से1623 ई./सं.1680.)

‘संवत सोलह सौ अस्सी,असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी तुलसी तज्यो शरीर।।‘

रामचरितमानस आज भी विश्व की सभी भाषाओं के
एक सौ महाकाव्यों में रखता है स्थान छियालीस का!
हां! गोस्वामी तुलसीदास के काव्यात्मक चमत्कार से,
वाल्मीकि के पुरुषोत्तम राम मर्यादावादी भगवान बने!

अस्तु आदिकवि वाल्मीकिकृत संस्कृत के मूल रामायण की,
लौकिक जन भाषा अवधि में रचनाकर रामचरितमानस की,
तुलसीदास ने स्वयंसिद्ध किया अभिनव अवतार वाल्मीकि!

तुलसी उत्तर प्रदेश के जिला बांदा, ग्राम राजापुर में जन्मे थे,
एक निर्धन ब्राह्मण आत्माराम दूबे व मां हुलसी के घर में!
राम नाम बोलते हुए मूला नक्षत्र में, सभी दांत सलामत थे!

जो तुलसी कलतक थे स्व भार्या रत्नावली के प्रेमी/पति,
किन्तु पत्नी के एक उलाहने से रातों-रात बने रामस्नेही,
भक्तिकाल के महाकवि; जन्म नाम रामबोला से तुलसी!

रत्ना उवाच, ‘हाड़-मांस को देह मम,तापर जितनी प्रीति।
तिसु आधो जो राम के प्रति अवसि मिटहि भव भीति।।’

जब दो जुड़वां भाइयों का एक सा होता नहीं है भाग्य रेख,
तो दो कवि कैसे लिख सकते एक सी समसामयिक कविता!
ऐसे में कविता होती है एक सच्चा भविष्य काल का लेख,
जिसे हर वर्तमान होते भविष्य के साथ पुनःपुन: लिखी जाती!

रामचरितमानस नहीं सिर्फ वाल्मीकि रामायण का है अनुवाद,
बल्कि वाल्मीकि से तुलसी तक गुजरे समय का भी है संवाद!

अस्तु भजन,कीर्तन,नमाज की त्रुटि रहित कारिजेण्डम,
यानि अद्यतन भूल सुधार है, कविताओं का लेखन!
जैसे कि आदिकवि वाल्मीकि की कविता से अलग है,
तुलसी की अवधि कृति रामचरितमानस की कविताई!

उससे अलग आदि ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब की गुरुवाणी,
उससे भी अलग है निराला के ‘राम की शक्तिपूजा’!

आदिकवि वाल्मीकि के मौलिक संस्कृत रामायण से,
आदिग्रन्थ गुरुग्रंथ साहिब, तुलसी के रामचरितमानस
और निराला के भगवान ‘राम की शक्तिपूजा’ में भी,
युग अनुसार राम ही राम हैं, सबके अपने-अपने राम!

अजब की शक्ति है गोस्वामी तुलसीदास की रामभक्ति में
कि स्थानीय-प्रांतीय-बोली-भाषा-मातृभाषा का मोह त्याग के,
समग्र उत्तर भारत के विभिन्न भाषाभाषी प्रजा ने अपनाई,
तुलसी दास रचित मानस की अवधि भाषा की कविताई!
राम भक्त कवि तुलसीदास का पुरोवाक है—
‘सियाराम मय सब जग जानी, करउं प्रणाम जोरी जुग पानी’

आज भी अवधि में लिखित भक्त संत तुलसीकृत ‘मानस’,
विनय पत्रिका,दोहावली,कवितावली,गीतावली,हनुमान चालीसा,
वैराग्य संदीपनी,जानकी मंगल, पार्वती मंगल,बरवै रामायण
और सूफी संत मलिक मुहम्मद जायसी की अवधि कृतियां,
‘पद्मावत’,’अखरावट’,’आखिरी कलाम’ बिना किसी भेदभाव के,
हिन्दी साहित्य के यूजी-पीजी कक्षाओं में पढ़ाई जाती रही है!

हिन्दीभाषा साहित्य में प्रचलित अवधि में लिखी गई रचनाएं—
सूरजदास की कृति ‘राम जन्म’, ईश्वर दास कृत ‘सत्यवती’,
कुतुबन की ‘मिरगावती’, पुरुषोत्तम दासस्य ‘जैमिनी पुराण’ भी,
मंझन की ‘मधुमालती’, खुसरो की खड़ीबोली, मुकरी व अंताक्षरी,
अब्दुल रहीम खानखाना के दोहे, उस्मान की रचना ‘चित्रावली’,
आलम की ‘माधवानंद काम कंदला’,नूर मोहम्मद की ‘इंद्रावती’,
शेख निसार का ‘यूसूफ जुलेखा’ और न जाने कौन-कौन सी?

ऐसे में कोई कैसे कह सकता हिन्दी को साम्प्रदायिक भाषा,
उत्तर,दक्षिण, पूर्व, पश्चिम के हिन्दू,मुस्लिम,ईसाई के हित में,
सदा स्वागत में खड़ी हिन्दी साहित्य व संस्कृति की भाषा,
आशा,दिलाशा,जिजीविषा,रोटी की जुगाड़ वाली हिन्दी भाषा!
—विनय कुमार विनायक

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