आर्तनाद अन्नदाता का!

जिस मध्य प्रदेश में कृषि क्षेत्र की विकासदर १२ फीसदी के लगभग होने के बावजूद किसानों को कर्ज माफी के लिये आंदोलन करना पड़े तो इसका मतलब साफ है कि कहीं न कही व्यवस्था में कमी है। आखिर मध्य प्रदेश सरकार व अन्य सरकारों ने स्वामी नाथन की रपट लागू करने का आज तक प्रयास क्यो नहीं किया।
जिस तरह मंदसौर में हिंसक आंदोलन के चलते छ: किसानों की गोली लगने से मौत हो गई और जिस तरह पूरी तरह अराजक हो चुके आंदोलनकारियों ने करोड़ों की सम्पत्ति आग के हवाले कर दी। जिस तरह पहले डीएम और फिर एसडीएम पर जानलेवा हमले किये गये क्या उससे यह नहीं लगता कि किसानों की आड़ में अराजकतत्वों ने ही आंदोलन को भयावह बना दिया।
जिन किसान नेताओं ने इस आंदोलन की अगुवाई की क्या उनसे जवाब नहीं मांगा जाना चाहिये कि आखिर गरीब किसान इतने हिंसक कैसे हो गये। क्या किसानों को भी इस तथ्य को समझने की जरूरत नहीं है कि कहीं उनकी आड़ में कोई और तो खेल नहीं खेल रहा है।
यह भी कम चिंता की बात नहीं है कि मध्य प्रदेश सरकार इस आंदोलन की न ही गंभीरता को समझ सकी और न ही समय रहते इस पर काबू पा सकी।
कोई भी राजनीतिक दल यदि किसानों का हितैषी बनकर अराजकता फैलाने की बात करता है तो उसे भी बेनकाब किया ही जाना चाहिये।
विशेष प्रतिनिधि
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में विभिन्न मांगों को लेकर किसान संगठनों द्वारा चलाये जा रहे आंदोलन के गत मंगलवार को हिंसक हो जाने के चलते पुलिस द्वारा चलाई गई गोलियों से जहां पांच किसानों की मौत हो गई वहीं एक किसान की अस्पताल में इलाज के दौरान जान चली गई। पता चला है कि गोलियां पुलिस की ओर से नहीं बल्कि सीआरपीएफ की तरफ से तब चलाई गई थी जब आंदोलन इस कदर हिंसक हो गया था कि जिलाधिकारी स्वतंत्र कुमार सिंह की जान आफ त में फ ंस गई। डीएम श्री सिंह को कथित किसान आंदोलनकारियों ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा और उनके कपड़े तक फाड़ दिये। पुलिस द्वारा अराजक भीड़ से बचाकर ले जाये गये डीएम श्री सिंह ने स्वीकारा कि किसान ज्यादा हंगामा नहीं कर रहे थे कुछ अपराधिक तत्व हंगामा कर रहे थे तथा बाहरी लोग किसानों के परिवारों को भड़का रहे है। उन्होने यह भी कहा कि हमने गोली चलाने का आदेश नहीं दिया था।
इस भीषण घटना के बाद मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने मृतकों के परिजनों को १-१ करोड़ रूपये और घायलों को ५-५ लाख रूपये आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है जबकि किसान दो-दो करोड़ रूपये की मांग कर रहे है। श्री चौहान ने टवीट् करके कहा कि मै किसानों से संयम बरतने की अपील करता हूँ तथा वे किसी के बहकावे में नहीं आये। प्रदेश सरकार उनके साथ है तथा उनकी समस्याओं को बातचीत के जरिये हल कर दिया जायेगा। बावजूद इसके मध्यप्रदेश में हिंसा जारी रही। राजनीतिक दलों खासकर कांग्रेस ने राजनीतिक रोटियां सेकने में कोई संकोच नहीं किया। नतीजतन शुक्रवार को शाजापुर में उग्र भीड़ ने उपजिलाधिकारी (एसडीएम) को दौड़ाकर बुरी तरह पीटा जिसके चलते उनकी पैर की हड्डी टूट गई। इसी बीच मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान सूबे में शांति बहाली के लिये दशहरा मैदान में अनिश्चितकालीन उपवास पर बैठ गये। हालांकि चौबीस घंटे में उनका उपवास समाप्त हो गया। उनके उपवास समाप्त होने पर विपक्षीदलों खासकर कांग्रेस ने उपवास को नाटक करार दिया। राजनीतिक दलों की तर्ज पर राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के राष्टीय अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा ने मुख्यमंत्री के उपवास को नाटक बताते हुये मध्य प्रदेश सरकार बर्खास्त करने और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की। उन्होने १६ जून को देश के सभी राष्ट्रीय राजमार्ग बंद करने की घोषणा कर डाली।
हालांकि मदसौर में भयावह हिंसा की घटना के बाद मुख्यमंत्री श्री सिंह ने पूरे घटना क्रम की जांच कराने के आदेश दे दिये है और कहा है कि किसी भी दोषी को बख्सा नहीं जायेगा। ठीक ही है पर उन्हे अपने सरकारी तंत्र की भी गहन जांच करानी होगी कि आखिर सरकार का खुफिया तंत्र व प्रशासन इतने बड़े हिंसक आंदोलन की पहले से टोह क्यों नहीं ले सका।
सूत्रों का कहना है कि वर्तमान केन्द्र सरकार की किसानों की आर्थिक दशा सुधारने के लगातार प्रयासों के बावजूद किसान आंदोलन पर क्यों उतारू हो गये। फौरी  तौर पर पहली बात जो सामने आई वह यह है कि जिस तरह प्रधानमंत्री की पहल पर उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों का कर्ज माफ कर दिया अब देश के अन्य राज्य के किसान भी उसी तर्ज पर कर्ज माफी चाहते है। यही कारण है कि एक तरफ जहां महाराष्ट्र के किसानों ने फडनवीस सरकार पर भारी दबाव बनाकर कर्जमाफी की घोषणा करवा ही ली वहीं दूसरी तरफ हिंसक आंदोलन के बाद अब मध्य प्रदेश सरकार ने भी कर्ज माफी पर सहमति जता दी है।
जैसी की खबरे आ रही है अब देश के अन्य राज्यों मसलन राजस्थान, पंजाब, हरियाणा व तामिलनाडु के किसानों ने भी कर्ज माफी के लिये सरकारों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। तामिलनाडु किसानों ने कोई पखवाड़े के करीब दिल्ली में जंतरमंतर पर धरना व आंदोलन अपनी सरकार के इसी आश्वासन पर समाप्त किया था कि उनकी कर्ज माफी पर जल्द ही निर्णय लिया जायेगा।
सवाल यह उठ रहा है कि आखिर जब सभी राज्यों में कर्ज माफी का दौर चल पड़ेगा तो देश की आर्थिक स्थिति क्या होगी। इसी चिंता को लेकर वित्त मंत्री व रिजर्व बैंक के आला अधिकारी कर्ज माफी को हरहाल में हतोत्साहित करने की बात कर रहे है।
सूत्रों का कहना है कि यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि पूर्व में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार द्वारा १९९० में किसानों के कोई १० हजार करोड़ के कर्ज माफ किये गये थे। कालांतर में उससे न तो किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरी और न ही उन किसानों ने आगे कर्ज लेने से गुरेज किया जिनके कर्ज माफ कर दिये थे। उल्टे देश की अर्थ व्यवस्था को तगड़ा झटका लगा था।
हद तो तब हो गई जब इस कर्ज माफी के सारे सच को जानते हुये भी देश के जाने माने अर्थ शास्त्री प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने महज कांग्रेस की सत्ता में वापसी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से वर्ष २००८ में किसानों का कोई ७० हजार करोड़ का कर्ज माफ कर दिया। नतीजतन देश की अर्थव्यवस्था को एक बार पुन: गहरी चोट पहुंची।
आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि कर्ज माफी से किसानों का कोई भला नहीं होने वाला है सिवाय अर्थ व्यवस्था को नुकसान पहुंचने के। यदि ऐसा होता तो पूर्व में दो-दो बार किसानों का कर्ज माफ किये जाने के बाद कम से कम उन किसानों की आर्थिक स्थिति तो सुधर ही गई होती। आर्थिक विशेषज्ञों का यह आंकलन बिल्कुल सही है कि यदि कर्ज माफी का ऐसे ही दौर जारी रहा तो अर्थ व्यवस्था किस गर्त में जा गिरेगी कुछ कहा नहीं जा सकता।
अहम सवाल यह भी है कि आखिर सारे तथ्यों को समझने के बावजूद सरकारों नेे कर्ज माफी की बजाय डॉक्टर एमएस स्वामी नाथन की रपट क्यो नहीं लागू की। डॉ. स्वामी ने भी अपनी रपट में स्पष्ट कहा था कि कर्ज माफी कृषि संकट का कोई स्थायी हल नहीं है। इसका समाधान सिंचाई, भण्डारण, उचित समर्थन मूल्य और किसानों को मुनाफा लायक बाजार उपलब्ध कराना ही है।
देश के सत्तापक्ष व सभी विपक्षीदलों को यह समझना ही होगा कि राजनीतिक फायदे के लिये किसानों को कर्ज माफी का चलन राष्ट्र के लिये घातक ही सिद्ध होगा। कम से कम उन विपक्षीदलों खासकर कांग्रेस,जद, आप व अन्य विपक्षी दलों की सरकारों को यह ध्यान रखना ही होगा कि कल उनके शासित राज्यों में किसानों ने कर्ज माफी का दबाव बनाया तो क्या होगा।

तो क्यों की गई पुर्न पहल?
केन्द्रीय वित्त मंत्री ने सोमवार को कहा है कि किसानों का कर्ज माफ करने के लिये केन्द्र की ओर से कोई आर्थिक मदद नहीं दी जायेगी। जो राज्य ऐसी योजनाओं को खुद आगे बढ़ाना चाहते है उन्हे स्वयं खुद के संसाधनों से जुटाना होगा।
यहां ये सवाल उठना लाजमी है कि जब सरकार को पता है कि किसानों की कर्ज माफी से देश की राजकोषीय स्थिति पर बुरा प्रभाव पडऩा तय है। अलावा इसके कर्ज माफी किसानों की समस्याओं का हल नहीं है तो देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के चुनाव के दौरान भाजपा की सरकार बनने पर किसानों की कर्ज माफी का ऐलान क्यों किया था?
क्या सरकार अथवा किसी से यह सच/तथ्य छिपा है कि वर्ष २००८ में डॉ.मनमोहन सिंह की सरकार ने ४ करोड़ ८० लाख किसानों का कोई ७० हजार करोड़ रूपये का कर्ज माफ कर दिया था उसके बावजूद भी यदि उन किसानों की स्थिति सुधरने की बजाय बदतर होती चली गई तो साफ है कि केवल कर्ज माफ करने से ही किसानों का भला नहीं होने वाला।
अब जब उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र सरकार ने किसानों का कर्ज माफ कर दिया है और भयावह हिंसा के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने भी इस दिशा में कदम उठाने का निर्णय ले लिया है तो केन्द्र सरकार आखिर क्या करेगी?
यदि अब राजस्थान, तामिलनाडु, कर्नाटक, हरियाणा के किसानों द्वारा कर्ज माफी के लिये दबाव बनाना शुरू कर दिया गया है तो इसे गलत कैसे कहा जा सकता है। और यदि इसी तरह देश के अन्य राज्यों के किसानों ने भी कर्ज माफ करने की मांग शुरू कर दी तो क्या होगा?
क्या राज्यों में भड़के आंदोलनों से केन्द्र सरकार महफ ूज रह पायेगी? क्या आज की तरह कल भी राज्यों के किसान आंदोलनों से विपक्षीदल राजनीतिक फायदा उठाने में चूक करेंगे? आदि ऐसे प्रश्न है जिनके जवाब केन्द्र सरकार को भी खोजने ही होगें।

ऐसे तो खड़ी हो चुकी कांग्रेस !
हाई कमान की नजरों में नम्बर बढ़वाने की कांग्रेसियों में होड़ कोई नई बात नहीं है। पर जैसी घिनौनी व बेशर्म होड़ गत सप्ताह मध्य प्रदेश के किसान आंदोलन के दौरान दिखी उससे कांग्रेस के हितैषियों तक ने माथा पीट लिया।
मध्य प्रदेश में किसानों के हितो की रक्षा को लेकर भले ही वहां के कांग्रेसियों ने और कोई काम किया हो न किया हो पर कांग्रेस की साख डुबोने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
आंदोलन के दौरान शिवपुरी के करैरा से कांग्रेस की महिला विधायक माननीया शकुन्तला खटीक तो इतने तैश में आ गयी कि उन्होने अपने साथियों को थाना फ ूंकने की हिदायत दे डाली। गनीमत रही कि पुलिस सर्तक थी वरना थाना तो फ ुंकता ही पता नहीं किसकी और कितनों की जान पर बन आती।
ऐसे ही रतलाम के एक कांग्रेस नेता और जिला पंचायत उपाध्यक्ष डीपी धाकड़ ने अपने समर्थकों को उकसाते हुये कहा था कि पुलिस की कोई गाड़ी आये तो आग लगा देना जो होगा देखा जायेगा। पूरे देश ने देखा कि मध्य प्रदेश के किसान आंदोलन में छ: निर्दोष किसानों की जाने चली गई। मध्यप्रदेश सरकार को इन किसानों के परिवारों को एक-एक करोड़ रूपये मुआवजा देना पड़ा। आंदोलन कारियों की अराजकता के चलते करोड़ों की सम्पत्तियां स्वाहा हो गई। भारी दबाव में फसी मध्य प्रदेश सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को सूबे में अमन चैन के लिये उपवास पर बैठना पड़ा।
हर कोई समझ सकता है कि कांग्रेस के भोंड़े व भड़काऊ समर्थन से सिवाय उसके नेताओं के नाम सुर्खियों में आने के, अराजकतत्वों की भयावह हिंसा व लूटपाट के न ही किसानों को कोई लाभ मिला और न ही उनकी अगुवाई करने वाले किसी किसान नेता को।
यदि कांग्रेस के रणनीतिकारों को लग रहा है कि मध्य प्रदेश में उनके नुमाइंदों ने किसानों के आंदोलन में हिंसा की आग भड़काकर सूबे में सत्ता की वापसी का रास्ता साफ करने का काम किया है तो इसे सिवाय राजनीतिक दिवालियेपन के और कहा भी क्या जा सकता है।
मध्यप्रदेश के कांग्रेसियों की अराजक राजनीति की चर्चा पर लगाम लगती कि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित के माननीय सांसद पुत्र संदीप दीक्षित ने बदगुमानी में बदजुबानी की सारी हदें ही पार कर दी।
आला कमान व राहुल बाबा की नजरों में हीरो बनने की चाहत में माननीय दीक्षित जी ने रविवार को अपने एक बयान में भारतीय सेना के प्रमुख जनरल विपिन रावत ‘सड़क का गुंडा करार दे डालाÓ उनकी व कांग्रेस की बुरी तरह भद्द पिटने पर भले ही दीक्षित ने माफी मांग ली पर खुद को, कांग्रेस को जितना नुकसान पहुंचना था वो तो उन्होने पहुंचा ही दिया।  कोई भी यह नहीं समझ पा रहा है कि आखिर कांग्रेस के रणनीतिकार कांग्रेस को किस दिशा में ले जाना चाहते है। राहुल गांधी की राजनीतिक अपरिपक्वता समझ में आती है पर सोनिया गांधी का मौन समझ से परे है।
यदि लोग यह कहने लगे है कि शायद अभी कांग्रेस को और दुगति झेलनी बाकी है तो उचित ही प्रतीत होता है।

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