अणुव्रत सूर्योदय है नये भारत का

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अणुव्रत आंदोलन स्थापना दिवस-1 मार्च, 2021 पर विशेष

-ललित गर्ग –

नये युग के निर्माण और जन चेतना में नैतिक क्रांति के अभिनव एवं अनूठे मिशन के रूप में अणुव्रत आन्दोलन न केवल देश बल्कि दुनिया का पहला नैतिक आन्दोलन है जो इतने लम्बे समय से इंसान को इंसान बनाने में जुटा है। यह अशांत विश्व को शांति की जीवनशैली का अनूठा उपक्रम है। 1 मार्च, 1949 – अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तन यानी स्थापना का ऐतिहासिक दिन है। 72 वर्ष पूर्व आजाद भारत को असली आजादी अपनाने के संदेश के साथ आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत के रूप में इसका राजमार्ग भी सुझाया था। आचार्यश्री तुलसी द्वारा प्रदत्त अणुव्रत का यह दर्शन आज विश्व दर्शन के रूप में प्रस्थापित हो चुका है। 21 वीं सदी के दूसरे दशक का समापन कोरोना वायरस की महामारी के रूप में एक वैश्विक त्रासदी के साथ हुआ है। ऐसी त्रासदी जिसने इंसान को अपने जीवन मूल्यों और जीवनशैली पर पुनर्चिंतन करने को मजबूर किया है। इसी बदलाव की चैखट पर अणुव्रत आन्दोलन एक ऐसी जीवनशैली लेकर प्रस्तुत हो रहा हैै, जिसे अपनाकर मानवमात्र स्व-कल्याण से लेकर विश्व कल्याण की भावना को चरितार्थ करने में सक्षम हो सकेगा।


अणुव्रत आंदोलन के बहत्तर वर्ष की लंबी यात्रा का एक उजला इतिहास है, यह नये भारत के सूर्योदय का प्रतीक है। राष्ट्रीय चरित्र निर्माण के एक कठिन प्रयास को लेकर यह मिशन राष्ट्र की हर समस्या को छूता हुआ अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न मंचों तक पहुंचा। एक सम्मानजनक मान्यता अणुव्रत आंदोलन को मिली। इसकी आवश्यकता को साधारण व्यक्ति से लेकर शिखर तक सभी ने स्वीकारा। अणुव्रत के प्रवर्तक आचार्य श्री तुलसी और उनके बाद के अनुशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ एवं वर्तमान आचार्य श्री महाश्रमण ने पूरे राष्ट्र एवं पडौसी देशों की अनेक पदयात्राएं कीं एवं चैपालों से लेकर राष्ट्र के सर्वाेच्च मंचों तक मनुष्य को मनुष्य बनने के लिए सार्थक एवं प्रभावी उपक्रम किये। नैतिक मूल्यों की गिरावट तथा मनुष्य की दुष्प्रवृत्तियों पर बराबर प्रहार करते रहे।
तीनों ही आचार्यों ने अपने संघ तथा सम्प्रदाय से ऊपर उठकर सर्वधर्म समन्वय ही बात को प्राथमिकता दी। ”धर्म“ और ”धर्म निरपेक्षता“ की सही परिभाषा दी। इनके नेतृत्व में मानवीय और जागतिक समस्याओं के समाधान का दायरा और व्यापक होता गया। अणुव्रत युग यात्रा की आवाज बना है। दुनिया में अनेक राजनीति से प्रेरित अनेक विचारधाराएं एवं वाद हैं तथा इनको क्रियान्वित करने के लिए अनेक तंत्र, नीतियां एवं प्रणालियां हैं। इन पर अलग-अलग राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्ष देश, काल, स्थिति अनुसार इनकी संचालन शैली भी बदलते रहते हैं। लेकिन नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिये कोई वाद, कोई विचारधारा एवं कोई आन्दोलन चला उसका केन्द्र भारत ही रहा है। लोग कहते हैं कि आज जो कोई भी राजनीतिक एवं नैतिक चिंतन, योजना या वाद को प्रतिष्ठापित करते हैं वे कोई भी गांधी से बाहर नहीं निकल सके। जो निकला या जिसने निकलने का प्रयास किया उसे लौट कर वापस आना पड़ा। अगर हम गांधी-दर्शन को समझें और उसकी गहराई में जाएं तो लगेगा कि आचार्य तुलसी के दर्शन से, अणुव्रत आन्दोलन से कोई बाहर नहीं निकल सका।


यह अणुव्रत के दर्शन की विशेषता है कि वहां बहुत खुलापन, बहुत गहराई और बहुत सूक्ष्मता है। उनका दर्शन वैज्ञानिकता की कसौटी पर भी खरा उतरता है। जीवन के श्रेष्ठ मूल्यों को जीना साधारण मनुष्य के लिए मुश्किल है, परंतु उन श्रेष्ठ मूल्यों को समझें तो सही। हृदय परिवर्तन और दृष्टि परिवर्तन को अणुव्रत ने महत्व दिया है। बहुत बार आज की राजनीति ने भी मूल्यों की स्थापना की है, जिन्हें स्वस्थ कहा जा सकता है पर व्यक्ति की स्वस्थता के अभाव में वे धराशायी हो गये। समय के साथ लोगों की सोच बदलती है, अपेक्षाएं बदलती है, विकास की नई अवधारणाएं बनती हैं। कई पुरानी मान्यताएं, शैलियां पृष्ठभूमि मंेे चली जाती हैं। जिनकी कभी तूती बोलती थी, वे खामोश हो जाती हैं। कुछ धीरे-धीरे व मजबूत कदमों से चलने में विश्वास रखते हैं, कुछ बहुत तेज चलने में ताकि प्रगति के छोर को अपने जीवन में ही देख लें। पर ठहराव को कोई भी स्वीकार नहीं करता। विकास में ठहराव या विलंबन (मोरेटोरियम) परोक्ष में मौत है। जो भी रुका, जिसने भी जागरूकता छोड़ी, जिसने भी सत्य छोड़ा, वह हाशिये में डाल दिया गया। आज का विकास, चाहे वह एक व्यक्ति का है, चाहे एक समाज का है, चाहे एक राष्ट्र का है, वह दूसरों से भी इस प्रकार जुड़ा हुआ है कि अगर कहीं कोई गलत निर्णय ले लेता है तो प्रथम पक्ष बिना कोई दोष के भी संकट में आ जाता है। इसलिए आज का विकास यह संदेश देता है कि सबका विकास हो। प्रथम से लेकर अंतिम तक का। इसे ही गांधी और विनोबा ने ‘सर्वोदय’ कहा, इसे ही महावीर ने ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्’ कहा और इसे ही आचार्य तुलसी ने ‘निज पर शासन फिर अनुशासन’ कहा।
भ्रष्टाचार के भयानक विस्तार में नैतिकता की स्थापना ज्यादा जरूरी है। इस आवाज को उठाने एवं नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए अणुव्रत आन्दोलन सदा ही माध्यम बना है। नैतिकता का प्रबल पक्षधर बना है। कई बार ठहराव आया, कई बार गति आई, पर रुका नहीं। अनेक रूपों में, अनेक आकारों में यह आन्दोलन गतिशील रहा है। इसे कितने ही स्वरूपों, संस्थाओं एवं उनके शीर्ष नेतृत्व ने अपने दृष्टिकोश एवं सोच के पैनेपन से संवारा है। खुराक दी है। अपना पसीना दिया है। अब अणुव्रत विश्व भारती एवं उसके अध्यक्ष श्री संचय जैन को एक विरासत मिली है जो स्वयं एक दीपक है और जिसे जलता रखकर इसमें और तेल भरने को वे तत्पर है। 1 मार्च, 2021 – 73वें अणुव्रत स्थापना दिवस पर वे और अणुव्रत का प्रत्येक कार्यकर्ता एक नए संकल्प के साथ स्वयं को मानव कल्याण के इस मिशन में पुनः समर्पित कर रहा है। ‘अणुव्रत जीवनशैली’ जन-जन की जीवनशैली बने, इस उद्देश्य से अणुव्रत आंदोलन एक सुदीर्घ अभियान की शुरुआत इसी दिन से करने जा रहा है।


आज जिन माध्यमों से नैतिकता मुखर हो रही है, वे बहुत सीमित हैं। प्रभावक्षीण तथा चेतना पैदा करने में काफी असमर्थ हैं। हम देख रहे हैं कि ऐसे आन्दोलनों एवं माध्यमों की अभिव्यक्ति एवं भाषा में एक हल्कापन आया है। ऐसे में एक गम्भीरता एवं सशक्त कार्यक्रमों के साथ आगे आना ही एक साहस है। समय यह मानता है कि जब-जब नैतिक क्षरण हो, तब-तब नैतिक स्थापना के माध्यम और ज्यादा ताकतवर व ईमानदार हो।
मनुष्य की प्रगति में कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब जीवन के मूल्य धूमिल हो जाते हैं। सारा विश्वास टूट जाता है। एवं कुछ विजातीय तत्व अनचाहे जीवन शैली में घुस आते हैं। जीवन का यही आनन्द है, यह जीवन की प्रक्रिया है, नहीं तो जीवन, जीवन नहीं है। पर नियति की यह परम्परा रही है कि वे इसे सदैव के लिए स्वीकार नहीं करती। स्थाई नहीं बनने देती। टूटना और बनना शुरू हो जाता है। नये विचार उगते हैं। नई व्यवस्थाएं जन्म लेती हैं एवं नई शैलियां, नई अपेक्षाएं पैदा हो जाती हैं। इन झंझावातों के बीच भी नैतिक प्रयासों के दीप जलाये रखने हैं। उन नन्हें दीपकों को हम अंधेरे रास्तों में रख देंगे ताकि लोग ”रोशनी“ को भूल न पायें।

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