कश्मीर हित के लिए हटना ही चाहिए धारा 370

-सुरेश हिन्दुस्थानी-
Article-370

जम्मू कश्मीर में अस्थाई रूप से लगाई गई धारा 370 के औचित्य पर उठ रहे सवालों को लेकर देश का जनमानस इस बात को समझना चाहता है कि आखिर इस धारा का परिणाम क्या रहा रहा। वास्तव में देखा जाए तो जम्मू कश्मीर में अलगाव को रोकने के लिए धारा 370 को समाप्त किया जाना बेहद जरूरी है। भारत की नई सरकार ने जिस प्रकार से जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाने की कार्यवाही की है, वह मूलत: राष्ट्रवाद से प्रेरित मामला है। वर्तमान में जम्मू कश्मीर की हालत का अध्ययन किया जाए तो प्रथम दृष्टया यही परिलक्षित होता है कि वहां के स्थाई नागरिक इस धारा को पूरे मन से हटाना चाहते हैं, लेकिन जिस प्रकार से अलगाववादी ताकतें इस धारा का समर्थन करतीं हैं उसमें उनके निहित स्वार्थ हैं, वे कई बार सार्वजनिक रूप से अपनी पाकिस्तानी भक्ति का बखान कर चुके हैं।

वर्तमान में इसी धारा के कारण ही कश्मीर का वातावरण पूरे भारत से अलग प्रकार का दिखाई देता है। प्रथम दृष्टया वह पाकिस्तान जैसा दिखाई देता है, कश्मीर को देखकर कोई भी नागरिक यह नहीं कह सकता कि यह भारत का हिस्सा है। हम चिल्लाते रहते हैं कि कश्मीर केसर की क्यारी है और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, लेकिन क्या कश्मीर भारत का अभिन्न अंग दिखाई देता है? कदाचित नहीं। क्योंकि जिस प्रकार से कट्टरवाद ने केसर की क्यारी को हिन्दुओं के खून से रंगा है, उससे ऐसा लगता है कि राजनीतिक साजिश के तहत कश्मीर घाटी को हिन्दू विहीन कर दिया है। घाटी से बेदखल किए गए हिन्दुओं की संपत्ति पर जबरदस्ती कब्जा करके मां बहनों को बेइज्जत किया गया। हिन्दुओं को न तो वहां के प्रशासन ने संरक्षण दिया और न ही वहां की सरकार ने। ऐसे में हिन्दू समाज ने वहां से सब कुछ छोड़कर कूच करना ही बेहतर समझा। वर्तमान में भारत में नई सरकार के मुखिया के रूप में नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए हैं, ऐसे में इन विस्थापित हिन्दू परिवारों में एक आशा और विश्वास का सेचार हुआ है कि उनकी वापसी हो सकती है। लेकिन उनके अंदर जो खौफ समाया है वह कैसे दूर होगा, यह सवाल अभी भी बना हुआ है।

बहुत कम लोग जानते होंगे कि भारत की संसद से पास कानून या सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय जम्मू कश्मीर में तब तक मान्य नहीं माना जाएगा, जब तक कि वहां की विधानसभा उसको स्वीकार न करले। इसी अधिकार का लाभ उठाकर अलगाववादी ताकतें जम्मू कश्मीर में धारा 370 को बनाए रखना चाहतीं हैं और जम्मू कश्मीर के कुछ नेता अलगाववादियों के देश विरोधी स्वरों का समर्थन करते नजर आते हैं। अभी कुछ दिन पूर्व जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और फारुक अब्दुल्ला ने जिस प्रकार के बयान दिए, उसमें स्पष्ट रूप से भारत का विरोधी भाव दिखाई देता है। इन लोगों ने जो बयान दिए उससे ऐसा लगता है कि यह पाकिस्तान की भाषा है। भारत से प्रेम करने वाला कोई भी राजनेता इस प्रकार का बयान दे ही नहीं सकता। वैसे पिछली केन्द्र सरकार ने मुसलमानों को पूरी तरह से छूट ही दी थी, क्योंकि उस समय के प्रधानमंत्री ने यह साफ तौर पर कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार केवल मुसलमानों का है। यहां मनमोहन सिंह ने अल्पसंख्यक शब्द का प्रयोग न करते हुए सीधे तौर पर मुसलमान शब्द का प्रयोग किया। इससे साफ लगता है कि वह सरकार हिन्दू विरोधी ही थी।

हम जानते हैं कि पूर्व में कश्मीर में जिस प्रकार से स्वायत्तता या स्वतंत्र कश्मीर की आवाज सुनाई देती थी, आज वह आवाज भी धीरे धीरे समाप्त सी हो गई है। इसके अलावा वहां आतंक और अलगाव भी हासिए पर जाता दिखाई दे रहा है। कश्मीर में राष्ट्रवाद की बात करने वालों का विरोध करना एक फैशन सा हो गया है। अगर हमारे नेता कहते हैं कि कश्मीर, भारत का अभिन्न अंग है तो वह कार्यरूप में दिखना चाहिए। इस बार हालांकि चुनावों में जो दिखाई दिया, उसके अनुसार नेशनल कांफ्रेस के फरुक अब्दुल्ला सहित सभी को वहां की जनता ने नकार कर यह संकेत देने का प्रयास किया है, कि कश्मीर की जनता उनके विचारों से कोई सरोकार नहीं रखती। इससे यह भी संकेत मिलता है कि कश्मीर की जनता धारा 370 को हटाना चाहती है, लेकिन केवल नेता लोग ही इसे हवा देते रहते हैं। मोदी ने वाजपेयी की नीति पर आगे बढऩे का ऐलान जम्मू की चुनाव सभाओं में किया था। मोदी वाजपेयी की नीति को जहां तक वाजपेयी लाए थे वहां से आगे बढ़ा रहे हैं। भारतीय इतिहास की विरासत कश्मीर के संरक्षण और संवर्धन की प्रभावी आवश्यकता वर्तमान में पूरे देश के जनमानस में चिन्तन का विषय बन गया है। वास्तव में धारा 370 कश्मीर के लिए कतई हितकारी नहीं है, इसके विपरीत विकास के मामले में कश्मीर आज बहुत पीछे चला गया है। कश्मीर को पूरे देश के साथ कदम मिलाकर चलना है तो उसे यह पता होना चाहिए कि भारत में क्या हो रहा है, लेकिन वहां की सरकारों ने विशेष अधिकार के नाम पर पूरे कश्मीर को भारत से अलग ही कर दिया। वर्तमान में वहां के लोगों को यह जानकारी भी नहीं होती कि भारत के विकास के लिए देश में कौन कौन सी योजनाएं संचालित की जा रही हैं। धारा 370 वैसे ही काफी हद तक घिस कर अप्रभावी हो चुकी है। आज कश्मीर के विकास के लिए धारा 370 का हटना बहुत ही आवश्यक है। वर्तमान में बेशक यह राजनीतिक संघर्ष है। सेना या दमन अथवा सांप्रदायिक उन्माद के जरिए नहीं बल्कि लोकतंत्र और राष्ट्रवाद की राजनीति के जरिए ही यह लड़ाई जीती जा सकती है। यह एक नई परिस्थिति विकसित हो रही है जिसमें कश्मीर समस्या ही नहीं भारत-पाक रिश्तों को भी नई दिशा मिलेगी।

1 COMMENT

  1. कृपया स्पष्ट किया जाय की कश्मीर को अन्य राज्यों की तुलना में कितनी सब्सिडी दी जा रही है।

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