अरुंधति राय ने उठाए अन्ना के तरीके और मुद्दे पर सवाल

नई दिल्ली, २२ अगस्त (हि.स.)। अक्सर सरकार का विरोध करने वाली बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका अरुणधति राय ने अब अन्ना पर निशाना साधा है। उनका कहना है, ‘वह यह कहना चाहते है कि यदि आप उपवास का समर्थन नहीं करते तो आप भारतीय नहीं है।’ इसके अलावा उन्होंने अन्ना के मुहिम को लेकर कई सवाल खडे किए और कहा कि वह अपने गृह प्रदेश में किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं पर क्यों नहीं आवाज उठाते।

एक अंग्रेजी अखबार में लिखे अपने लेख ‘आई डीड रेदर नोट बी अन्ना’ लेख में लेखिका ने अन्ना के तरीके और मुद्दे को लेकर कई सवाल उठाए हैŸ। उनका कहना है ‘यह सही है कि उनका तरीका गांधीवादी है, लेकिन उनकी मांगे कतई भी ऐसी नहीं है।’ राय का कहना है कि यदि गांधी आज होते तो वह अन्ना के केन्द्रीकृत, सर्वशक्तिमान लोकपाल से कभी भी सहमत नही होते। हालांकि लेखिका का मानना है कि सरकार जो लोकपाल लेकर आई है वह काफी कमजोर है।

लेखिका अरुनधति रॉय ने अन्ना के आंदोलन का ‘उत्तेजित राष्ट्रवाद’ की संज्ञा दी है। उनका कहना है कि अन्ना एक स्वतंत्र प्रभार वाले प्रशासन का निर्माण करना चाहते है, जो भ्रष्टाचारी और अपारदर्शी सरकार की जांच करे। ऐसे में अब हमारे पास एक की जगह दो भ्रष्ट संस्थान होंगे। (अनूप)

12 COMMENTS

  1. अरुंधती राय एक अच्छी लेखिका हैं | पश्चिमी सभ्यता में रंगी ऊपर से बूके पुरस्कार प्राप्त समाज में प्रतिष्ठित और उससे ऊपर एक पढ़ी लिखी महिला जिन्हें हर विवादों में पड़ना अच्छा लगता है | महंगाई और भ्रष्टाचार से ट्रस्ट जनता की आवाज उन तक पहुचती हीं नहीं तो फिर अन्ना के अनसन को वे कैसे समझ पाएंगी ? माओवाद को सही बताने वाली अरुंधती राय को बोलने का पूरा अधिकार है | सुकर है कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी की भाँती अन्ना को भ्रष्टाचारी तो नहीं कहा |

  2. arundhati rai ki bato ko yaha unhi ki shbdo me nahi rakha gaya hai…….. is liye un par sidhe Aarop lagana sahi nahi hai…… राय का कहना है कि यदि गांधी आज होते तो वह अन्ना के केन्द्रीकृत, सर्वशक्तिमान लोकपाल से कभी भी सहमत नही होते।… jan-lokpal ka masoda perfect nahi hai…. hum bhale hi bhavnatmak rup se unka samarthn kr rhe hai…….. lekin hame maloom hai isse desh ka bhrastachar khatm hone wala nahi hai……….

  3. बेचारी अरुंधती! अब कहाँ उसके कहने में धार रह गयी, सारे जागरूक देशभक्त भारतीय उसकी असलियत जानते-समझते हैं. अब जो चाहे बोलती रहे, कौन सुनता है. उपरोक्त टिप्पणियाँ इस बात का प्रमाण हैं की अरुंधती की देश में कितनी कीमत रह गयी है. बस बिका मीडिया उसकी और उस जैसों की हवा बनाने का असफल प्रयास करता रहता है.

  4. अब अगर कोई कहे की अन्नाजी ने महंगाई के खिलाफ आन्दोलन क्यों नहीं किया या साक्षरता के लिए आन्दोलन क्यों नहीं किया तो ऐसे लोगों को नजरंदाज करना ही उचित है क्योंकि इन्हें हर उस काम में कमियां निकालनी हैं जिनमे देश की जनता को एकजुट होने और राष्ट्रवादी माहौल बनाने में मदद मिलती है. अन्नाजी के धरनास्थल पर भारत माता की जय और वन्देमातरम के नारे लगते हैं अब भला देश को तोड़ने की बात करने वालों को ये नारे क्योंकर सुहाने लगे? बेहतर हो की ऐसे देशघातियों को पूरी तरह समाज से बहिष्कृत कर दिया जाये और इनके कहे, लिखे को कोई भाव न दिया जाये.यही इनसे निबटने का कारगर तरीका होगा.

  5. माओवादी वही करते है जो अरुंधती कहती है अब सवाल ये है कि अरुंधती जो सरकार के खिलाफ माओवादियों के साथ है आतंकवादियों के साथ है लेकिन अन्ना के साथ नहीं है क्यों –
    मैं बताता हूँ क्यों चूँकि अरुंधती रक्तरंजित परिवर्तन में विश्वास करती है और उन्हें मालूम है कि भारत के लोग स्वभावतः अहिंसक है लेकिन जब उनके पास खाने को न हो उनकी जमीन छीन ली जाये उनका राजनितिक और आर्थिक शोषण किया जाये तो एक समय ऐसा आयेगा जब वो आत्महत्या कर लेंगे या हथियार उठा लेंगे और उन आत्महत्या करने वालों का इस्तेमाल हम हथियार उठाने वालों के पक्ष में करेंगे तो सरकार भी नैतिक रूप से दबाव में रहेगी और अपना काम भी हो जायेगा लेकिन यहाँ सवाल ये भी है कि अरुंधती रक्तरंजित परिवर्तन में विश्वास क्यों करती है
    मैं बताता हूँ क्यों चूँकि अरुंधती को सामाजिक नेता बनाने वाले देश के बाहर(चीन)बैठे है उन्हें मालूम है कि अगर भारत में एक भ्रष्टाचार मुक्त अच्छा शासन स्थापित हो जाये और लोग अपने अधिकारों के लिए जागरूक हो जाये तो भारत जल्द ही एक महाशक्ति बन सकता है इसलिए उन्होंने अरुंधती और इनके जैसे कई लोगो को भारत में नियुक्त कर रक्खा है
    इसलिए दिखावे पर मत जाओ अपनी अकल लगाओ

  6. निशाना साधने के कारन ही तो उन्हें बुकर मिला है …अरुंधती का निशाना जितना बड़ा hoga पुरस्कार भी उतना बड़ा होता जायेगा वे चुर्च की एजेंट हैं, भारतद्रोह उनकी रणनीति मैं है …गंभीरता से नहीं इसे पुरस्कार देकर अपनी ओर….

  7. में अरुंधती राइ का सम्मान करता हों क्यों कि मुझे उनका स्पस्तावादी होना अच्छा लगता है .परन्तु अन्ना के लिए ये विचार मुझे समझ में नहीं आया .में भी यह राइ रखता हूँ कि यह तरीका ज्यादा कारगर नहीं हो सकता है , फिर भी कुच्छ होना तो जरूरी है बिपिन कुमार sinha

  8. जैसे-जैसे अन्नाजी का आन्दोलन गति पकड़ रहा है, अराष्ट्रवादी तत्वों की बेचैनी बढ़ती जा रही है। आकण्ठ स्वार्थ में डूबे, सरकारी पैसों और विदेशी धन से अपना क्रिया-कलाप चलाने वाले तत्व अब मुखर हो रहे हैं। अरुणा राय, मौलाना बुखारी, लालू यादव और अन्य तथाकथित प्रगतिशील खेमे के अन्ना-विरोध तो खुलकर सामने आ गए हैं, आशा के अनुरूप अब अरुन्धती राय की बारी थी। उन्होंने अपना विरोध व्यक्त करने में इतना वक्त क्यों लिया, यह आश्चर्य का विषय है। सोनिया गांधी के राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के एक-एक सदस्य का विरोधी वक्तव्य एक-एक करके रोज आएगा। अगला वक्तव्य तीस्ता जावेद शीतलवाड का हो सकता है। कोई इसे मुस्लिम विरोधी कहेगा, कोई दलित विरोधी, कोई पिछड़ा विरोधी, कोई सांप्रदायिक तो कोई प्रगति विरोधी, कोई फ़ासिस्ट तो कोई आर.एस.एस.-सीआईए द्वारा प्रायोजित घोषित करेगा। लेकिन यह उगते हुए सूर्य की भांति सत्य है कि अन्ना ने क्रान्ति की ऐसी आग सुलगा दी है जिसमें भ्रष्टाचार को भस्म होना ही है।
    प्रकाश कभी तिमिर से रुका है,
    कभी सूर्य अंबुद में छुपा है,
    प्रवाह बढ़ता ही रहेगा,
    पवन क्या रोके रुका है?

  9. अगर अन्ना को भ्रष्टाचार, बड़ा मुद्दा लगता है, तो यह उनकी स्वतन्त्रता है| आप आत्महत्या के मुद्दे पर आवाज़ उठा सकती है| क्या किसीने आप को रोका है| क्ष ने यों करना चाहिए, य ने त्यों करना चाहिए यह आप किस human rights के अधिकारसे कहती हैं?
    और उनका तरिका, उनका तरिका है| गांधी वादी हो, या अन्नावादी हो| देश द्रोही तरिका तो नहीं ना?

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