आर्यभट्ट हिन्दू अरबी अंक पद्धति हिंदसा के जनक थे

आर्यभट्ट

—विनय कुमार विनायक
आर्यभट्ट खगोलविद; मगध कुसुमपुर पटना के,
तारेगना गांव खगोल में,तारे की गणना में लगे,
चार सौ छिहत्तर से पांच सौ पचास ई. मध्य में
विश्व के प्रथम खगोलवेत्ता नक्षत्र शास्त्री ब्राह्मण,
वे हिन्दू-अरबी अंक पद्धति हिंदसा के जनक थे!

आर्यभट्ट ने ‘आर्यभट्टीयम’ ग्रन्थ की रचना की,
जिसमें दशगीतिका व आर्याष्टाशत विवेचना थी,
प्रथम गीति मंगलाचार द्वितीय अक्षरांक पद्धति
‘वर्गाक्षराणि वर्गाऽवर्गेऽवर्गाक्षराणि कात्ङ्मौ य:।
खद्विनवके स्वरा नव वर्गेऽवर्गे नवान्त्यवर्गे वा।।‘

आर्यभट्ट ने इस एक श्लोक में अक्षरांक पद्धति
नियम सूत्रबद्ध कर दिए जिसपर भास्कराचार्य ने
छः सौ उन्तीस में टीका लिख, ‘लघुभास्करीय’ में
उद्घोष किए ‘आर्यभट्टीयम’ ज्योतिषशास्त्र सुयश
उदधिपार फैले,जिसमें प्रथमत:ग्रहगति गणना थी!

आर्यभट्ट विक्रमादित्य द्वितीय के समकालीन थे,
नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख गुरु गणितज्ञ वे,
उनके आर्यभट्टीयम व सूर्य सिद्धांत उपेक्षित यहां,
आर्यभट्टीय अनुवाद ‘जीज अल् अर्जबहर’ नाम से
अरबों ने किए व फैलाए जहां जिसे हिन्दसा कहते!

आर्यभट्ट ने बताए प्रथम रात दिन होने के कारण,
पृथ्वी के निज अक्ष पर चहुंओर भ्रमण गति घूर्णन,
उन्होंने पृथ्वी की भ्रमण दिशा पश्चिम से पूर्व कही,
स्थिर सूर्य के पूर्व से पश्चिम जाने को बताया भ्रम,
इस वेद विरुद्ध स्थापना से कुपित हुए पुरोहितगण!

आर्यभट्ट ने ही चन्द्रग्रहण व सूर्यग्रहण ज्ञान दिया,
कहा ‘छादयति शशी सूर्य शशिनं महती च भूच्छाया’
सूर्य ग्रहण में सूर्य को चन्द्रमा ढंक लेता है, जबकि
चन्द्रग्रहण में भूमि की छाया चन्द्रमा को ढंक लेती,
आर्यभट्ट की स्थापना से राहु की धारणा हुई झूठी!

आर्यभट्ट ने पृथ्वी को गोल कहा भूमि परिधि मापी,
आर्यभट्ट ने बताया, पृथ्वी तेईस घंटे छप्पन मिनट
चार सेकण्ड में घूमती, जो आधुनिक गणना में सही,
नक्षत्रों को स्थिर, ग्रहों को गतिशील कहा उन्होंने हीं,
आर्यभट्ट ने श्रुति-स्मृति परम्परा के उलट बात कही!

सोलहवीं सदी में कोपरनिकस ने यही बात दोहराई थी
कि इस ब्रह्माण्ड के केंद्र में सूर्य स्थित है, पृथ्वी नहीं,
आर्यभट्ट ने त्रिभुज का क्षेत्रफल निकाले, वे जन्मदाता
त्रिकोणमिति के,वर्ग व घनमूल निकालने का सूत्र दिए,
वृत्त की परिधि व व्यास के अनुपात ‘पाई’ मान बताए!

आर्यभट्ट गुप्तकालीन स्वर्णयुग के महान गणितज्ञ थे,
जिनके गणितीय व खगोलीय ज्ञान से सारे जग ऋणी,
आर्यभट्ट ही विश्व के प्रथम गणितज्ञ व वैज्ञानिक थे,
उनके मान में प्रथम उपग्रह को आर्यभट्ट संज्ञा मिली,
आर्यभट्ट वराहमिहिर,भास्कर, कोपरनिकस के पूर्वज थे!
—विनय कुमार विनायक

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