राजनीति

दलित एक्ट

 डॉ अजय खेमरिया

हां हम मनुवादी है श्रीमान!  अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार अधिनियन जिसे एससी एसटी एक्ट कहा जाता है में देश की सुप्रीम अदालत ने व्यापक संशोधन के आदेश दिए है कोर्ट ने यह माना है कि इस एक्ट का देश भर में दुरूपयोग हुआ है और एक बडा तबका इसके दुष्परिणाम भोग रहा है,कोर्ट ने इस अधिनियम के तहत आरोपी बनाए गए व्यक्ति की तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने के साथ उपपुलिस अधीक्षक स्तर के अफसर से जांच के प्रावधान भी कानून में जोड़ने के आदेश देकर अच्छा काम ही किया है,वस्तुतः कानून के जनोन्मुखी होने की समीक्षा सरकारों को करना चाहिये लेकिन यह काम देश की सुप्रीम अदालत ने किया है,लेकिन इसी बीच संसद में कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी के सभी सांसदों ने गांधी जी की प्रतिमा के समक्ष प्रदर्शन कर सरकार को घेरने का प्रयास किया,मोदी सरकार पर आरोप लगा कि उसने जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट में कमजोर पैरवी की जिसके चलते इस तरह का आदेश जारी हुआ है,कांग्रेस के अलावा अन्य विपक्षी पार्टियों ने भी इस मामले पर सरकार को आरोपों के कटघरे में खड़ा कर कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की है।

खबर है कि सांसदों के बढ़ते दबाब औऱ सरकार की दलित विरोधी बनाई जा रही छवि को ध्यान में रख सरकार कोर्ट में रिव्यू पिटीशन फाइल कर एस सी एसटी एक्ट को मूल रूप में बहाल करने का अनुरोध कर सकती है।अगर ऐसा होता है तो यह बेहद दुखद घटनाक्रम होगा और लोकतंत्र में जनभावनाओं को कुचलने जैसा ही होगा ।मैं मप्र के अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि जो प्रदेश कभी कांग्रेस का स्थायी गढ़ हुआ करता था उसी मप्र प्रदेश में काँग्रेज़ की 2003 हुई सत्ता से विदाई का सबसे बड़ा कारण इसी एक्ट को माना जाता है,1999 से 2003 तक पूरे मप्र में इस एट्रोसिटी एक्ट के खुले दुरुपयोग ने मप्र के सामाजिक तानेबाने को तहस नहस करके रख दिया था,ऊपर से दलित एजेंडे पर तब के मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह की अबलंबता ने पूरे प्रदेश में अराजकता का माहौल बना दिया था,जनता ने जिस निर्ममता से मप्र में कांग्रेस का सफाया किया था उससे पार्टी आजतक उबर नही पाई है,पूरे प्रदेश में दलित एक्ट के तहत निर्दोष नागरिकों औऱ सरकारी मुलाजिमों पर जमकर अत्याचार हुए,ग्वालियर चम्बल क्षेत्र के मेरे प्रत्यक्ष अनुभव में तमाम कांग्रेसी परिवार तक इस एक्ट की चपेट में आये और परोक्ष रूप से उन्होंने भी 2003 में मप्र से कांग्रेस के सफाये में अपना योगदान दिया।उमाभारती ने इस सामाजिक त्रासदी को जोरदारी से भुनाया औऱ यह भी फेक्ट है कि 2003 के बाद मप्र में इसके दुरुपयोग की घटनाएं तेजी से कम हुई लेकिन एक्ट के प्रावधान ही वस्तुतः इस तरह के है कि कोई भी इसका दुरुपयोग आसानी से कर सकता है चूंकि अभी तक इसमें आरोपित व्यक्ति को जमानत का अधिकार नही था इसलिए इसने सामान्य,पिछड़ा,औऱ अल्पसंख्यक वर्ग के लोगो को बुरी तरह से भयादोहित करके रखा था,मैं कुछ समय पहले एक सरकारी पीजी कॉलेज की गवर्निंग कौंसिल का चेयरमैन था इस दौरान मैंने अपने प्राचार्य को जब कुछ कर्मचारियों पर करवाई के लिये कहा तो उसने हाथ खड़े कर दिये क्योंकि उनमें से अधिकतर आरक्षित वर्ग के थे और प्रंसिपल नही चाहते थे कि उनके ऊपर गिरफ्तारी की तलवार लटके, कमोवेश इसी तरह के हालात सभी सरकारी विभागों में हैं ,कामचोरी औऱ लापरवाही पर एक्शन लेने से पहले सामान्य, पिछड़ा,अल्पसंख्यक वर्ग के अफसर 100 बार सोचते है कि कहीं उनकी झूठी शिकायत इस एक्ट में न कर दी जाए,प्रमोशन में आरक्षण के दंश को तो देश का 65 फीसदी तबका मन मारकर झेल ही रहा है इस एट्रोसिटी एक्ट ने शासन प्रशाशन तंत्र में बड़ी ही अराजकता को जन्म दिया है।दूसरी ऒर सभी सरकारें आंख मीच कर दलित प्रेम के नाम पर देश मे इस जातीय कटुता को बढ़ा रही है,सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के तहत दर्ज मामलों की न्यायालय में दोषसिद्धि के अनुपात को बारीकी से समझा है ,लगभग 60 फीसदी मामलों में आरोपी बरी हो रहे है जाहिर है ये सब दबंग नही रहे होंगे,औऱ आज के जागरूक दौर में ये इतना आसान भी नही रह गया।

मप्र में दिग्विजय सिंह कार्यकाल के दौरान सामान्य वर्ग के साथ बुंदेलखंड में लोधी,यादव,मालवा में पंवार,दांगी,कुर्मी,ग्वालियर ,चम्बल में गुर्जर,यादव,किरार,रावत जैसी बड़ी पिछड़ी जातियों को दलित एक्ट के तहत बड़े पैमाने पर झूठी कार्यवाहियों का सामना करना पड़ा था।इस एक्ट का राजनीतिक रूप से भी व्यापक दुरुपयोग हुआ है अभी हाल ही में मप्र के कोलारस विधानसभा उपचुनाव में मतदान से पूर्व एक ही रात में आधा दर्जन मुकदमें इस एक्ट के तहत दर्ज हुए और पूरे तथ्यों के साथ मे कह सकता हूं कि सभी झूठे औऱ राजनीतिक थे।एक कांग्रेस विधायक के विरुद्ध मामला दर्ज हुआ कि उसने किसी बीजेपी नेता को रोककर जान से मारने की धमकी दी,बीजेपी प्रत्याशी के भाई पर भी तत्काल एक मामला दर्ज हुआ कि उसने एक गांव में दलितों को वोट के लिये धमकाया संयोग से दर्शायी गयी घटना के समय ये महाशय मेरे साथ थे,एक अन्य मामले में कुछ आदिवासियों ने रिपोर्ट की की कुछ लोग उनके गांव में जबरिया शराब और पैसे बांट रहे थे सरपंच सहित 6 लोगो पर एक्ट के तहत अपराध दर्ज हुआ। चुनाव बाद लगभग सभी पीड़ित दलित,आदिवासी ,एसपी के सामने आकर शपथपत्र दे गए कि उनसे धोखे में रिपोर्ट लिखाई गयीं है।लेकिन दर्ज किये जा चुके सभी प्रकरणों में अब कानूनी करवाई प्रावधान अनुसार ही होगी,कोर्ट में प्रकरण चलेगा,गवाहियां होंगी,तब जाकर मामलों से आरोपियों का पिंड छूट सकेगा।कुल मिलाकर दलित एक्ट जिस वास्तविक उत्पीड़न को रोकने के उद्देश्य से लाया गया था उसमें बुरी तरह से नाकाम साबित हुआ है देश की सुप्रीम कोर्ट ने इन्ही हालतों पर गौर कर इसमे संशोधन के निर्देश दिये है जो स्वागतयोग्य तो है ही देश की सामाजिक एकता के लिए भी वक्त की मांग है।इस पूरे प्रकरण में सभी राजनीतिक दलों की भूमिका निंदनीय है क्योंकि देश की अधिसंख्य आबादी पिछड़ी,सामान्य औऱ अल्पसंख्यक जातियों की है और इन्ही बिरादरियों के सांसद, विधायक सर्वाधिक है लेकिन एक भी सांसद ने सार्वजनिक रूप से इस सामाजिक सन्त्रास पर मुह नही खोला जबकि जनता के चुने हुए ये प्रतिनधि सब हकीकत से परिचित है ऐसा सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के लालच में ही हो रहा है।मौजूदा सरकार अगर सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर करती है तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण ही होगा,क्योंकि यह तय है कि सुप्रीम कोर्ट इसे खारिज ही करेगा तब सरकार संविधान संशोधन लेकर आएगी जैसा पूर्व में होता रहा है तुष्टिकरण के नाम पर।अच्छा होगा कि सामान्य पिछड़ा वर्ग के सांसद देश के सामाजिक सौहार्द को बचाने के लिये इस मामले पर अपनी अंतरात्मा की आवाज को अनसुना करने की जगह मुखरित होकर आगे आएं क्योंकि इससे उपजने वाला अंदरखाने का असन्तोष भविष्य में उन्ही की सियासत को कंटकाकीर्ण बनाने वाला है।जब अंतरात्मा की आवाज पर राज्यसभा में वोट दिए जा सकते है तो इस देश की 65 फीसदी आवादी की आवाज इन चुने हुए प्रतिनधियों को सुनाई नही दे रही हो ऐसा संभव नही।संसदीय राजनीति में जनता के दर्द को लंबे समय तक दबा कर रखना बेहद खतरनाक होता है वोटों की राजनीति के लिये आत्मा को बेचने वाले इसे जल्द समझ ले इसी में देश की भलाई है।