प्रमोद भार्गव
सेना और सुरक्षा बलों ने तीन मुठभेड़ों में 13 दुर्दांत आतंकियों को मार गिराने में बड़ी कामयाबी हासिल की है। एक आतंकी को जिंदा भी पकड़ा है। हालांकि इन मुठभेड़ों में हमने तीन जवान भी खोए हैं। यह सफलता इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि मारे गए आतंकियों में लेफ्टिनेंट उमर फैयाज के हत्यारे भी शामिल हैं। ये मुठभेड़ें द्रगढ़, कचधूरा और पेठ डायलगाम ग्रामों में हुईं। इस दौरान क्राॅस फायरिंग में दो नागरिकों की मौतें भी हुई हैं। इन मुठभेड़ों की खबर लगने के बाद अलगाववादियों की शह पर शोपियां, अनंतनाग, कुलगाम और पुलवामा में लोग सेना के खिलाफ सड़कों पर भी उतर आए। इन्हें खदेड़ने के लिए आंसू गैस के गोले और पैलेट गन चलानी पड़ी। अलगाववादियों का यह विरोध बेवजह था, क्योंकि अनंतनाग में जब आतंकी सेना के निशाने पर आ गए, तब उनके परिजन बुलाकर समर्पण कर देने की आधे घंटे तक कोशिशें की गई। अततः नहीं मानने पर एक को मार गिराया किंतु दूसरे ने समर्पण कर दिया। सेना के इस मानवीय पहलू से साफ होता है कि सेना ने बहके कश्मीरी आतंकी को समर्पण का पूरा वक्त उसी के परिजनों के सामने दिया गया। लेकिन नहीं मानने पर मौत के घाट उतार दिया। इन गरम और नरम पहलुओं से साफ होता है कि बंदूक की दम पर जिहाद का भ्रम फैलाने वालों को यह समझ आ जाना चाहिए कि देश के खिलाफ हथियार उठाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।
बीते एक-सवा वर्ष में कश्मीर में 200 से भी ज्यादा आतंकवादी मारे गए हैं। बावजूद हुर्रियत के अलगाववादी नेता जिहाद के नाम पर कश्मीरी युवाओं को आतंक के लिए प्रेरित करने की भूल कर रहे हैं। वे अभी भी मुगालते में है कि कश्मीर की आजादी का स्वप्न दिखाकर वे अपना उल्लू सीधा कर पाकिस्तान से इस बहाने करोड़ों की धनराशि लेते रहेंगे। जबकि यह रास्ता कश्मीर और उसकी अवाम को बर्बादी के रास्ते पर ले जा रहा है। इन आतंकियों के मारे जाने के बाद अलगाववादी तत्व कश्मीर में तत्काल हड़ताल का ऐलान तो कर देते हैं, लेकिन कश्मीर की ही संतान उमर फैयाज और आयूब पंडित की शहादत पर मौन रहते हैं। गोया अब बहतर तो यह होगा कि अपने युवाओं को खो रही कश्मीरी अवाम को अलगाववादियों से पूछना चाहिए कि क्या उमर फैयाज और कश्मीरी नहीं थे ? अलगाव और आतंक की पैरवी करने वालों से यह भी पूछने की जरूरत है कि वे कश्मीर को बर्बाद करने वाले हिजबुल मुजाहिद्ीन और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों से बर्बादी का सबक क्यों सीख रहे हैं ? हालांकि इन संगठनों और अलगाववादियों को पाकिस्तान से मिल रही करोड़ों रुपए की निधि के खुलासे ने कश्मीर की कथित आजादी के संघर्ष पर भी सवाल उठाए हैं।
पिछले दिनों पाकिस्तान से धन लेकर कश्मीर में आग लगाने वाले सात अलगावदियों को एनआईए ने हिरासत में लिया है। केंद्र सरकार ने इन्हें गिरफ्तार करके उस संकल्प शक्ति का परिचय दिया है, जिसे दिखाने की बहुत पहले जरूरत थी। जम्मू-कश्मीर के अलगावादी जम्मू-कश्मीर को अस्थिर बनाए रखने के साथ पाकिस्तान के शह पर इसे देश से अलग करने की मुहिम भी चलाए हुए हैं। इस नाते गिरफ्तार किए गए अलगावादी देशद्रोह का काम कर रहे थे। इसलिए इन पर देश की अखंडता व संप्रभुता को चुनौती देने के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रद्रोह का मामला बनता है। आतंक और देश की संपत्ति को नष्ट करने के लिए लिया गया विदेशी धन राष्ट्रद्रोह से जुड़ी गतिविधियां ही हैं। क्योंकि चंद लोगों के राष्ट्रविरोधी रूख के कारण देश का भविष्य दांव पर लगा है।
देश के विरूद्ध शड्यंत्र करने वाले ये कथित नेता अब तक पूर्व की केंद्र सरकारों के ढुलमुल रवैये एंव शिथिल नीतियों के कारण बचे हुए थे। लिहाजा इनके हौसले बुलंद थे और बेखौफ विदेशी धन लेकर कश्मीरी युवाओं को भड़काने में लगे थे। एक समाचार चैनल पर दिखाए गए स्टिंग आॅपरेशन में हुर्रियत नेता नईम खान कथित तौर पर यह स्वीकार कर रहा था कि उसे हवाला के जरिए पाकिस्तानी आतंकी संगठनों से फंडिग मिल रही है। इसी खुलासे के बाद एनआईए ने मामले की जांच शुरू की थी। एनआईए को यह जानकारी भी मिली थी कि कश्मीर में ‘अशांति फैलाने के बड़े षड्यंत्र के तहत‘ घाटी में स्कूलों और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने की साजिश की जा रही है। स्टिंग आॅपरेशन में भी नईम खान ने कथित रूप से दावा किया था कि पाकिस्तान द्वारा रचे गए षड्यंत्र के तहत शिक्षण संस्थानों को निशाना बनाया जा रहा है। ये बात बार-बार जाहिर हुई है कि जम्मू-कश्मीर के आम लोग शांतिपूर्वक अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं। इसी नजरिए से कश्मीर की माएं अपने भटके लाडलों को मुख्यधारा में लाने के लिए गुहार लगा रही हैं। इससे जाहिर होता है कि वे राष्ट्रीय मुख्यधारा में रहकर जीना चाहते हैं। लेकिन अलगाववादियों के षड्यंत्र के कारण वे कई बार गुमराह हो जाते हैं।
पंजाब में भी इसी तरह का आतंकवाद उभरा था। लेकिन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव और पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की दृढ़ इच्छा शक्ति ने उसे नेस्तनाबूद कर दिया था। कश्मीर का भी दुश्चक्र तोड़ा जा सकता है, यदि वहां की सरकार मजबूत इरादे वाली होती ? मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती दुधारी तलवार पर सवार हैं। एक तरफ तो उनकी सरकार भाजपा से गठबंधन के चलते केंद्र सरकार को साधती दिखती है, तो दूसरी तरफ हुर्रियत की हरकतों को नजरअंदाज करती है। इसी कारण वह हुर्रियत नेताओं के पाकिस्तान से जुड़े सबूत मिल जाने के बावजूद कोई कठोर कार्यवाही नहीं कर पा रहीं। नतीजतन राज्य के हालात नियंत्रण से बाहर हुए। महबूबा न तो राज्य की जनता का भरोसा जीतने में सफल रही हैं और न ही कानून व्यवस्था को इतना मजबूत कर पाई हैं कि अलगाववादी व आतंकी खौफ खाने लग जाएं। साफ है, महबूबा में असरकारी पहल करने की इच्छाशक्ति नदारद है। भाजपा के लिए भी साझा सरकार का यह सौदा कालांतर में महंगा पड़ सकता है ?
हालांकि अब जो नए तथ्य सामने आ रहे है, उनसे पता चलता है कि हुर्रियत कांफ्रेंस के लिए भी वजूद का संकट पैदा होने जा रहा है। क्योंकि आईएस और अलकायदा से जुड़े कट्टर आतंकी हुर्रियत के विरुद्ध चल रहे हैं। यही वजह है कि अलकायदा और आईएस के आतंकियों की घाटी में मौजूदगी को अलगाववादी हुर्रियत भारतीय खुफिया तंत्र और जांच एजेंसियों की साजिश बता रहे हैं। दरअसल हुर्रियत नेता अभी तक कश्मीरी युवाओं को बड़ी संख्या में बरगलाने में लगातार कामयाब हो रहे थे। इन नेताओं की दलील थी कि उनकी लड़ाई कश्मीर की आजादी के लिए है और पाकिस्तान इसे प्राप्त करने में महज मदद कर रहा है। किंतु इसके उलट खुफिया एजेंसियों ने इनका कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया है। इन जांचों से तय हुआ है कि किस तरह पाकिस्तान से मिल रही धनराशि से हुर्रियत नेताओं ने करोड़ों की संपत्ति और अय्याशी के साधन जुटाए हुए हैं। उनके बच्चे भी देश-विदेश के नामी शिक्षण संस्थाओं में पढ़कर सरकारी और निजि क्षेत्रों में अच्छी नौकरियां हासिल कर रहे हैं। इन तथ्यों के आधार पर साबित हुआ है कि अलगाववादी महज पाक की खुफिया एजंेसी आईएसआई के प्यादे भर हैं। इसी धन से ये कश्मीरी युवाओं को पैसा देते हैं और सेना व सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसवाते हैं। हालांकि सेना की कड़ी कार्रवाई और आतंकियों के मारे जाने का सिलसिला जारी रहने के कारण अब पत्थरबाजों की संख्या में भी कमी आई है। अलगाववादियों पर शिंकजा कस जाने के कारण भी घाटी में पत्थरबाज कम हो रहे हैं। बहरहाल अब कश्मीरी जनता को इन खुलासों के बाद एकजुट होकर अलगाववादियों के खिलाफ में खड़ी होने की जरूरत है।