अट्टहास सुन रहे हो काल का????

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इस धरती को जीने योग्य कैसे बनाएँ?

 

अट्टहास सुन रहे हो काल का????

 

अबूझ गति

खंड की

जो क्षण का वेग है।।।।।।

 

अनसुलझे किस्सों में

हिन्दू – मुसलमान हैं………..

असंख्य धर्म हैं

अनंत मर्यादाएं हैं……….

सब जीवंत हैं और सब मृत भी………

 

शिव के शाश्वत ब्रह्मांड में युगों से लिखी लहरियाँ हैं

राक्षसों की मौत है, देवताओं की विजय है…

 

रावण की ढहती सोने की लंका है,

समुद्र को लांघता सेतु है,,

बीस दिनों में लौटता विमान है,,,,,

कपि मानव हैं और विभीषण की भूख से एक सभ्यता का अवसान है………..

 

अगले पड़ाव में योग और मानवता की चरम गीता है,,

प्रकृति और अध्यात्म का संगम है,,,

मानव मस्तिष्क की असीम क्षमताओं का अनुसंधान है,,,,

वर्तमान विज्ञान का साम्राज्य खड़ा करने वाले भारत का

इसी खंड में ब्रह्मास्त्र से हुआ देहांत है………….

 

क्षण फिर भी नहीं थमा,,,,

 

झेलम में गिरते सिकंदर के सवार हैं,,

अशोक की खड़ग में कलिंग की धार है,,,

गजनवी बाबर के हाथों बिखरते नर मुंड हैं,,,,

अकबर के दरबार में धर्मगुरुओं के झुंड हैं,,,

गुरु तेग बहादुर की निकाली जाती आँखें हैं,,,,

दोनों बच्चों को दीवार में चिन कर टूटती साँसे हैं,,,,,,,

औरंगजेब का खलीफ़ाराज और दारा का बहता लहू है,,,,,,

बहादुर शाह जफर के सामने कलेजे के टुकड़ों के शीश भरे थाल हैं…..

 

लाखों निर्दोषों के खून से बनती दीवार,

भारत के टुकड़े करता हिंदुस्तान और पाकिस्तान है,,,,

गांधी की गिरती देह और निकला शब्द हे राम है……….

 

आह काल,,,,

 

तीन पीढ़ियों में अर्श और फर्श का खेल….

शायद तेरा वक़्त फिर आ गया…..

कुछ हिंदुस्तानी हिंदुओं को समझाते हैं,,,

कुछ पाकिस्तानी मुसलमानों को बरगलाते हैं,,,,,

परमाणु बम हैं,,

कश्मीर है,,,

बलूचिस्तान है,,,

अयोध्या है,,,,

मुंबई – कश्मीर को दहलाती बारूद की धूल है,,,

अंधधार्मिकों की गोलियों में पेशावर के फूल हैं,,,,,

तकरीरे हैं, दंगे हैं, मीनारों से आती अज़ान है,,,,

डिस्को में थिरकते भजन हैं,,,,

मोबाइल है, इंटरनेट है,

नारी पूजते देश में पोर्न की पैरवी करता, अश्लील अर्थवाद है,,,,

 

लोकतन्त्र को पंगु करते समूहों में विदद्वेषता भरते,,,,

चुटकियों में जानें लेते अफवाहों का साम्राज्य है….

 

आई॰एस॰आई॰एस॰ है,,

कोरिया, युक्रेन, एशिया की सुलगती गाँठ हैं,,,,,

 

हिंदुस्तान – अमेरिका है,,

चीन – पाकिस्तान है….

मानवता को जन्म देने वाले हिमालय का आर्तनाद है,,,

कैलाश से निकलती जैव शिराओं को रोकते सुरंग और बांध हैं,,,,

धसकती चट्टानें हैं, फटते बादल हैं, ऊर्जा के विघटन से श्रंखला कंपन्न है,,,,,

ब्रह्मपुत्र में गिरते रेडियोधर्मी अवशिष्ट है,,,

चीन का साम्राज्यवादी लक्ष्य है,,,

मूढ़ पाकिस्तान का आत्महंत उन्माद है,,,

मानव मृत्यु के मूल में हिमालय का त्रास है….

 

डालर – पेट्रोल के भरोसे जन्म लेते स्मार्ट सिटी हैं,,,,

पीपल, बरगद की कीमत पर चौड़ी होती सड़कें हैं,,,,,

 

संसद में बैठे विधाताओं के राष्ट्रविरोधी षड्यंत्र हैं,,,

भूमि अधिग्रहण की बाट जोहते युवाओं के रोजगार पर दंश है,,,

लाखों एन॰जी॰ओज॰ और क़ानूनों के बावजूद सबसे अधिक भूमि व्यापार है?????

किसकी जीत है और किसकी हार है??????

 

कर्मठ, समर्पित युवाओं को भटकाते राष्ट्रद्रोह कराते मीडिया, संस्थाओं

या हथियारों के सौदागरों का घातक कारोबार है,,,,,

 

कोयले का उपहास करते लोगों के, चारकोल से चमकते दाँत है,,,

कास्टिक, प्लास्टिक और रसायनों से पटी धरती, नदियां और नालियाँ हैं,,

बिल्डिंगों में बदलते तालाब हैं,,,,

झीलों को समेटते चट्टान हैं,,,,,,

बेमौसम बरसात – सूखता सावन है,,

अल निनों – ला निनों में बहलते मौसम वैज्ञानिक हैं………

 

सिंथेटिक दूध, रंगी सब्जियाँ, सल्फास से भरे अनाज,,,,

सेंसेक्स को गिराते अन्न और प्याज़ हैं………

धरती के भगवानों की चौंधती दुनिया में

काल्पनिक बीमारियों और दवाइयों से होते मौतों के व्यापार हैं……

 

विज्ञापन के मायावी संसार में आर्थिक विषमता का आधार है,,

छोटी दुकानें, कुटीर उद्योगों को हाशिये पर लाते,

असंख्य मुनाफा विदेशों में डालते,

शॉपिंग माल, यूनीलीवर, प्रोक्टर-गैंबल, जॉनसन्स आदि का मायाजाल है……..

 

जनसंख्या, रोजगार और अनाज

को लूटता,,,,

अनैतिकता,,,

मृत मुहाने पर,,,

यह भारतीय उपमहाद्वीप,,,

चीखते, बिलखते नौनिहाल हैं….

डायन कह कर पत्थरों से मारी जाती माएँ…

 

आरक्षण के आघात से दम तोड़ते मेधावी,,,

अकर्मण्यों की हड़तालें,,,,,,,

मानव को मानव में बांटते

राजनीतिज्ञों की मूढ़ता का लक्ष्य सर्वनाश है…..

 

एवरेस्ट विस्थापन, कैलाश के सूखते हिमनद, नेपाल की तबाही, बांगलादेश के चक्रवात, पाकिस्तान की बाढ़

भारतीय उपमहाद्वीप का संताप है……….

 

धर्म के ठेकेदारों,

जाओ तीन साल के अबोध को भगवान समझाओ,

माँ का महत्व समझ जाओगे,,,,

परदेश से घर का रुख करना

अपनी किलकारी महसूस करना,,,, धरती माँ को जान जाओगे……….

 

आखिर क्यों मार रहे हो भारत को,,

क्या बिगाड़ा है तुम्हारा?????

हजारों सालों से पोसती सभ्यता को उसकी अपनी संतान ने लगाई आग है…………..

 

सड़क के दोनों ओर जैव-नहर-फल वृक्ष की चौड़ी श्रंखला बनाऊँ

या उसे स्मार्ट सिटी का छद्म आवरण पहनाऊँ????

 

कमियाँ शायद किसी की नहीं

या फिर प्रारब्ध का खेल…

बादलों की ओट से

आता मृत्यु नाद……….

काल तेरा अट्टहास …..

 

नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियाँ,,,

ब्लू मून की परिकल्पना,,,,,

 

हे अर्धनारीश्वर,,,,,

तुम्हारा नाद ब्रह्म विज्ञान,,,,,

जीवन सृजन और मानव नाश

मध्य फंसा कर्म का दास…….

 

क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा,,,

पाँच तत्व मिली रचेहु सरीरा…….

 

इस पिंड की गति क्या होगी???

 

धर्म के पागलपन से दूर कलाम जैसी समाधि

या ईश्वर को सिद्ध करते दंगे में अंग-भंग वाली अस्पताल की जिंदगी…..?????

 

मेरे यहाँ तो कृष्ण भी भगवान थे और कलाम भी भगवान हैं,,,,

मानवता को सबसे ऊपर रखते प्रत्यक्ष परम आत्मा का सम्मान है,,,,,,

 

क्यों आंखे बंद कर उसको मानूँ

क्यों उसके पीछे जान दूँ और जान लूँ

पैदा करने वाला तो एक ही है ना ???

फिर क्यों लड़ते इंसान हैं ?????????

 

किसको दोष दूँ???

उस सवाल का जवाब कैसे दूँ??

धरती को जीने योग्य कैसे बनाया जाये???

 

या

 

इस सवाल को भारत संतति के लिए छोड़ दूँ?????

 

काल,,,,

तुम्हारी लेखनी से शायद फिर कुछ छप रहा है???????????????????

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