अनुज हनुमत

अनुज हनुमत

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लेखक - अनुज हनुमत - के पोस्ट :

विविधा

“अम्ब्रेला शॉप : बुन्देलखण्ड के किसान की चलती फिरती दुकान”

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बुन्देलखन्ड के आम जनजीवन पर आई ताजा रिपोर्ट से सरकार को उलझन मससूस हो सकती है पर यहाँ के हालात बहुत चिंताजनक है,इस पर कोई दोराय नही । पूरा बुन्देलखण्ड पिछले तीन दशक से लगातार सूखे की मार झेल रहा है और इसके लिए पूर्णतया पर्यावरण असन्तुलन ही जिम्मेदार है । पीने के पानी का स्रोत (कुंओ,तालाबों) सूख गए हैं या ज्यादातर का भूजल स्तर 15 सालों में बुरी तरह नीचे गिरा है इसके कारण यहाँ के कई इलाकों के लगभग सभी कुएँ और हैण्डपम्प सूख गए हैं । इस भूजल स्तर के गिरने का प्रमुख कारण है विकास के नाम पर तालाबों का बलिदान। ऐसे में सवाल यह है की क्या हम वाकई में सम्रद्ध हो रहे हैं ?

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विविधा

दशकों से बंद है बुन्देलखण्ड की इकलौती ग्लास फैक्ट्री

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सन 2004 में मुलायम सिंह यादव की सरकार में आदित्य बिरला इस फैक्ट्री को नीलामी में खरीदना चाहते थे लेकिन मुलायम सिंह से आदित्य की नह बनी । बाद में मायावती इस फैक्ट्री को 15% में बेंचना चाहती थी मगर आदित्य बिरला अब फैक्ट्री खरीदने के लिए राजी नही हुए । तब से आज तक बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री इन पूर्ववर्ती यूपी सरकारों की नाकामी पर इन्हें कोश रही है । इन नेताओं ने बुन्देलखण्ड को खूब ठगा है और देश तथा प्रदेश की जनता को भी खूब लूटा है । इनका कभी भला होने वाला नही है ।इस ग्लास फैक्ट्री के बन जाने से बुन्देलखण्ड के लगभग 20 हजार युवाओं को रोजगार मिलता लेकिन ऐसा हुआ ही नही ।

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शख्सियत समाज

#बलिदानदिवस : “एक ऐसा पत्रकार जिसके लिए पत्रकारिता सदैव एक मिशन रहा”

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इसी कलम ने ब्रिटिश हूकूमत की जड़ें हिला दी थी । इसी कलम से नेपोलियन भी डरा करता था । लेकिन आज के समय में कुछ गंदी और ओछी मानसिकता के हमारे भाई लोगों (पत्रकारों) की वजह से इस कलम की महत्ता में गिरावट आई है । लेकिन आज भी कुछ ऐसे कलम के सिपाही हैं जिनके ऊपर मौजूदा पत्रकारिता को गर्व है । आज गणेश शंकर विद्यार्थी जी हमारे बीच नही हैं लेकिन उनका वो मिशन जरूर है जिसके लिए उन्होंने अपने प्राणों को बलिदान कर दिया । ऐसे महान व् कर्मठ व्यक्तित्व को शत शत नमन ........

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आर्थिकी विविधा

#नोटबन्दी: मोदी के मास्टर स्ट्रोक के बाद क्या हारी हुई बाजी खेल रही है विपक्ष

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केंद्र सरकार के नोटबन्दी वाले फैसले के एक हफ्ते के बाद विपक्ष अचानक मुखर हुआ और पीएम मोदी के ऊपर एक के बाद एक हमले शुरू कर दिए ।फ़िलहाल विरोध का आलम ये है कि शीतकालीन सत्र भी नोटबन्दी की भेंट चढ़ने वाला है । ये सारे हमले गरीबों की कंधे पर बन्दूक रखकर किये जा रहे हैं क्योंकि सरकार द्वारा अचानक लिए गये इस फैसले से आम लोगो को कुछ दिक्कतों का सामना तो निःसन्देह करना पड़ रहा है लेकिन अधिकांश लोग सरकार के इस फैसलों को सही बता रहे हैं । शायद विपक्ष भी एक हारी हुई लड़ाई लड़ रही है जिसका नेतृत्व भी कांग्रेस के स्थान ममता बनर्जी कर रही हैं ।

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