कविता परिवर्तन October 7, 2020 / October 7, 2020 | Leave a Comment अचानक कैसे बदल जाता है सब कुछराह चलते चलते आदमी तक बदल जाता है।गांव से शहर जाने वाले का पता बदल जाता हैऔर तो और चेहरे का नकाब बदलता है हर पल।मुझे लगता है सिर्फ नहीं बदलता तो जनवादमूर का ‘यूटोपिया’ और समाजवाद का वह स्वप्न‘प्रत्येक से उसकी योग्यता अनुसार, प्रत्येक को उसकी आवशयकतानुसार’।पिछले 73 […] Read more » परिवर्तन
कविता रिश्तों का भ्रम October 7, 2020 / October 7, 2020 | Leave a Comment हर रिश्ते की बुनियाद में स्वार्थ छिपा है,हर बात के पीछे कुछ न कुछ भावार्थ छिपा है,पैसों की इस दुनिया में भावनाओं का क्या काम,खोखले हैं रिश्ते सारे रख लो चाहे कोई भी नाम।जिसने खामोशी को बोलते, उदासी को चहकते नहीं देखा,धूप को ठिठुरते, आकाश को छटपटाते नहीं देखा,सागर को तरसते और आंसू को हंसते […] Read more » the illusion of relations रिश्तों का भ्रम
कविता नारी October 7, 2020 / October 7, 2020 | Leave a Comment उठो, जागो और लड़ोखुद के आत्मसम्मान के लिएखुद के अस्तित्व के लिए।सुना है न, भगवान भीउनकी मदद करता हैजो अपनी मदद खुद करते है।तो फिर इंतजार क्योंकिसी और से उम्मीद क्योंबहुत बनी तू सीता, द्रोपदीनिरीह बना तुझे लाज सौप दीजब चाहा प्यार कर लियाजब चाहा तलवार घोंप दी।कठुआ, दिल्ली, उन्नाव, हाथरसबहुत हुआ ये चीत्कार बसरूक […] Read more » poem on women नारी
टेलिविज़न मनोरंजन मीडिया मीडिया का संकीर्णतावादी चरित्र September 25, 2020 / September 25, 2020 | Leave a Comment डॉ. ज्योति सिडाना मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है क्योंकि सार्वजनिक जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के एक साधन के रूप में तथा देश के लोकतान्त्रिक चरित्र का प्रचार-प्रसार करने में मीडिया की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है. यह एक तथ्य है कि मीडिया समाज के सभी सदस्यों […] Read more » Media parochial character मीडिया का संकीर्णतावादी चरित्र
राजनीति लेख नई शिक्षा नीति का समाजशास्त्रीय विश्लेषण August 9, 2020 / August 9, 2020 | Leave a Comment डॉ. ज्योति सिडाना ऐसा माना जाता है कि शिक्षा मनुष्य में आलोचनात्मक चेतना विकसित करती है, उन्हें आर्थिक, सांस्कृतिक और मानव पूंजी में परिवर्तित करती है तथा शोषण व दमन का विरोध करने हेतु जागरूक करती है. हाल ही में भारत सरकार द्वारा जारी नई शिक्षा नीति चर्चा में है क्योंकि इसमें अनेक बड़े बदलावों […] Read more » Sociological analysis of new education policy नई शिक्षा नीति
समाज नर हो, न निराश करो मन को July 11, 2020 / July 11, 2020 | Leave a Comment डॉ. ज्योति सिडाना आत्महत्या की घटनाएं किसी भी देश या समय के लिए नई नहीं है लेकिन आज कल जिस तरह से ये घटनाएं रोज सामने आ रही हैं ऐसा लगता है कि कोई प्रतिस्पर्धा या खेल चल रहा है. हर आयु वर्ग और हर प्रोफेशन से जुड़ा व्यक्ति चाहे वह विद्यार्थी हो या डॉक्टर, […] Read more » suicide by youngesters न निराश करो मन को नर हो
लेख समाज सुरक्षा का संकट July 7, 2020 / July 7, 2020 | Leave a Comment डॉ. ज्योति सिडाना किसी भी सामाजिक व्यवस्था में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना, अपराधो को नियंत्रित करना, सबको न्याय उपलब्ध कराना तथा नागरिकों के जीने के अधिकार की रक्षा करना पुलिस एवं न्यायपालिका के मुख्य दायित्व हैं। परंतु पिछले अनेक वर्षों से भारतीय समाज में पुलिस की भूमिकाओं पर अनेक सवालिया निशान लगे हैं। […] Read more » अपराधो को नियंत्रित करना तमिलनाडु के तूतीकोरिन में पुलिस कस्टडी में पिता और पुत्र (जयराज एवं फेनिक्स) की मौत नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना भारतीय समाज में पुलिस की भूमिका सबको न्याय उपलब्ध कराना
लेख समाज कोरोना का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव May 25, 2020 / May 25, 2020 | Leave a Comment कोरोना का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव डॉ. ज्योति सिडाना हम सब जानते हैं कि आज कोरोना वायरस के कारण अपने अस्तित्व को बचाने के लिए पूरी दुनिया दहशत में है, वहीं परिवार संस्था भी इसकी चुनौती से अछूती नहीं रही। इस महामारी के प्रकोप के कारण सभी को अपने घरों में रहने की हिदायत दी गई यानी […] Read more » Socio-Economic Impact of Corona कोरोना का आर्थिक प्रभाव कोरोना का सामाजिक प्रभाव कोरोना प्रभाव
कविता नारी का अस्तित्व May 22, 2020 / May 22, 2020 | Leave a Comment किसी ने कहा कितुम तो केवल एक नारी हो,जिसका व्यक्तित्व नहीं है,जो अस्तित्व को देखती है,विचार और चेतना के परे,शील, धर्म, संस्कार और शर्म में,और सदियों से तय किए गए आचार विचार में।मैंने कहा सुनो,मन, चेतना और कर्म की तरह,देह भी एक विचार है,जिसे पढ़ा, देखा और सुना जाता है।विचार एक ऊर्जा है,देह का विचार […] Read more » नारी का अस्तित्व