हर रिश्ते की बुनियाद में स्वार्थ छिपा है,
हर बात के पीछे कुछ न कुछ भावार्थ छिपा है,
पैसों की इस दुनिया में भावनाओं का क्या काम,
खोखले हैं रिश्ते सारे रख लो चाहे कोई भी नाम।
जिसने खामोशी को बोलते, उदासी को चहकते नहीं देखा,
धूप को ठिठुरते, आकाश को छटपटाते नहीं देखा,
सागर को तरसते और आंसू को हंसते नहीं देखा,
ऐसे लोगों को अक्सर रिश्तो के एक भ्रम में जीते देखा।
भावनाओं के परे कैसे जीते हैं ये लोग,
शायद माटी के पुतले होते हैं फकत कुछ लोग,
हर रिश्ते में सच्चाई ढूंढना भ्रम है यहाँ,
बुतों की इस दुनिया में इंसान होते हैं कहां?
डॉ. ज्योति सिडाना