किसी ने कहा कि
तुम तो केवल एक नारी हो,
जिसका व्यक्तित्व नहीं है,
जो अस्तित्व को देखती है,
विचार और चेतना के परे,
शील, धर्म, संस्कार और शर्म में,
और सदियों से तय किए गए आचार विचार में।
मैंने कहा सुनो,
मन, चेतना और कर्म की तरह,
देह भी एक विचार है,
जिसे पढ़ा, देखा और सुना जाता है।
विचार एक ऊर्जा है,
देह का विचार तोड़ता है गुलामी को,
ताकि स्वतंत्रता की ऊर्जा दे सके,
मुझे भी विचार से दोस्ती अच्छी लगती है।
एक बात ध्यान रखना,
मैंने भी पहचाना है अपने व्यक्तित्व को,
और साथ ही अपने अस्तित्व को भी,
जीवन के प्रत्येक पक्ष को विचार में ढाला है,
ताकि गुलामी का वर्चस्व तोड़ सकूँ,
और बन सकूँ वो ऊर्जा,
जो मुझे
आकाश के ऊपर की बुलंदियों तक ले जाएगी और तब
तुम मेरे विचार की दोस्ती का हिस्सा बनना चाहोगे।
डॉ. ज्योति सिडाना