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    व्योमेश चित्रवंश

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    अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर कभी आरक्षण कभी रिश्ता, जाति,बिरादरी,क्षेत्र व भ्रष्टाचार ने टॉग खींच दिया, एक लाईन मे कहे तो अपनी किस्मत मे नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे. वकालत के बाद थोड़ा समय मिलता है तो अपने पढ़ने, घूमने, पर्यावरण के लिये कुछ कर लेता हूँ. भगवान की दया से अच्छी संगत मिली है इससे कुछ अच्छा भी करने की कोशिस करता हूँ, लिहाजा दो चार संगठनो से जुड़ा हूँ. हॉ मन मे कुछ मौज आने पर लिख लेता हूँ, राम जाने अच्छा या बुरा. वैसे आप भी बेहतर मूल्यॉकन कर सकते हैं क्योकि पढ़ते तो आप ही हैं....