लेख स्वास्थ्य-योग कोरोना के संकट काल में स्वदेशी की प्रासंगिकता April 1, 2020 / April 1, 2020 | Leave a Comment दुलीचंद कालीरमन स्वदेशी की प्रासंगिकता अंग्रेजों के शासन काल में भी थी। जिसे आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी ने पहचाना और जनजागरण का औजार बनाया। गांधी जी ने जब दक्षिण अफ्रीका से लौट कर देश के दूर-दराज के इलाकों की यात्राएं की तो उन्हें ध्यान में आया कि इंग्लैंड के मैनचेस्टर और लंकाशायर में […] Read more » कोरोना के संकट काल में स्वदेशी की प्रासंगिकता
लेख स्वास्थ्य-योग कोरोना के शक की सुई चीन पर March 29, 2020 / March 29, 2020 | 1 Comment on कोरोना के शक की सुई चीन पर दुलीचंद कालीरमन चारों तरफ कोरोना की चर्चा है। पूरा विश्व कोरोना से लड़ रहा है। लेकिन अभी तक सभी असहाय हैं। चीन के वुहान से वजूद में आया कोविड-19 नाम के इस वायरस ने चीन, इटली, ब्रिटेन, अमेरिका, स्पेन, ईरान, भारत सहित दुनिया के हर हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया है। अभी तक […] Read more » The needle of suspicion of Corona on China कोरोना
विश्ववार्ता अभी भी चौराहे पर है अफगानिस्तान का भविष्य March 9, 2020 / March 9, 2020 | Leave a Comment दुलीचंद कालीरमन अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के लिए अमेरिका और तालिबान के बीच कतर की राजधानी दोहा में शांति समझौते पर 29 फरवरी 2020 को हस्ताक्षर किए गए। समझौते पर अमेरिकी वार्ताकार जलमय खलीलजाद तथा तालिबान के उपनेता मुल्ला बिरादर ने हस्ताक्षर किए। इस समय अमेरिका और तालिबान के प्रतिनिधियों के अलावा लगभग 30 […] Read more » Afghanistan's future is still at crossroads अफगानिस्तान का भविष्य अमेरिका और तालिबान के बीच समझौते में विश्वास बहाली अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान के चंगुल से निकालना इस्लामिक स्टेट और अल कायदा की हार
राजनीति अमेरिका-ईरान तनाव और भारत के हित January 9, 2020 / January 9, 2020 | Leave a Comment दुलीचंद कालीरमन पिछले कई महीनों से पश्चिम एशिया मैं युद्ध के जो बादल छाए हुए थे,वह जनवरी 2020 के पहले ही सप्ताह में शोले में बदल गए. जब अमेरिका ने ईरान के सुप्रीम कमांडर कासिम सुलेमानी को बगदाद हवाई अड्डे के पास ड्रोन के हमले से ढेर कर दिया. ईरानी जनता के आक्रोश को देखते […] Read more » US-Iran tension US-Iran tension and India अमेरिका-ईरान तनाव
राजनीति शिक्षण संस्थान और राजनीतिक विचारधारा January 7, 2020 / January 7, 2020 | Leave a Comment दुलीचंद कालीरमन किसी भी देश का भविष्य उसके शिक्षण संस्थानों में तैयार होता है. जिस प्रकार की पाठ्य सामग्री तथा परिवेश हम विद्यार्थियों को उपलब्ध कराते हैं वैसी ही विचारधारा तथा जीवन दृष्टि उनकी बनती है. इसलिए शिक्षा नीति व शिक्षण संस्थानों विशेषकर विश्वविद्यालयों का परिवेश इस प्रकार का हो कि विद्यार्थी स्वयं, समाज व […] Read more » Educational Institutions Educational Institutions and Political Ideology जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय पश्चिम बंगाल के जादवपुर विश्वविद्यालय राजनीतिक विचारधारा शिक्षण संस्थान हैदराबाद विश्वविद्यालय
राजनीति परिवारवाद और तुष्टीकरण तक सिमटी कांग्रेस December 30, 2019 / December 30, 2019 | Leave a Comment दुलीचंद कालीरमन भारतीय लोकतंत्र की सबसे प्राचीन पार्टी कांग्रेस में नेतृत्व की समृद्ध परंपरा रही है. लेकिन आज जब 2019 में कांग्रेस की 135 साल की यात्रा के बाद वर्तमान परिस्थिति को देखते हैं तो यह राजनीतिक पार्टी केवल परिवारवाद तथा तुष्टीकरण तक सिमट कर रह गई है. मई 2014 में लोकसभा चुनाव की हार […] Read more » Congress Congress confined to familism Congress confined to familism and appeasement familism and appeasement कांग्रेस परिवारवाद और तुष्टीकरण
राजनीति विपक्ष की भूमिका बनाम अराजकता December 26, 2019 / December 26, 2019 | Leave a Comment मई 2019 में जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए-2 की सरकार सत्ता में आई. तभी से सत्ता पक्ष और विपक्ष के रिश्तो में लोकतंत्र में अपेक्षित राजनीतिक विरोध से बहुत आगे जाकर व्यक्तिगत विरोध या साफ शब्दों में कहें तो नफरत में बदल चुका है. वैसे इसकी शुरुआत इससे भी एक-दो वर्ष […] Read more » CAA Citizenship Amendment Bill Citizenship Amendment Bill indicative of positive thinking citizenship to oppressed refugees NRC The role of the opposition vs. anarchy विपक्ष की भूमिका
राजनीति राजनीतिक तुष्टीकरण से कमजोर पड़ता संघवाद December 19, 2019 / December 19, 2019 | Leave a Comment दुलीचंद कालीरमन भारतीय संसद में नागरिकता संशोधन बिल 2019 को बहुमत से पारित कर दिया. इस बिल के माध्यम से नागरिकता अधिनियम 1955 में बदलाव किया गया है. इस संशोधन से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक प्रताड़ना झेल कर भारत आए हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी व जैन समुदाय के उन लोगों को नागरिकता का अधिकार मिलेगा, जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 तक भारत में प्रवेश कर लिया […] Read more » amit shah on caa amit shah on nrc CAA CAB Citizenship Amendment Bill Citizenship Amendment Bill indicative of positive thinking citizenship to oppressed refugees Federalism weakened by political appeasement narendra modi on caa narendra modi on nrc political appeasement कमजोर पड़ता संघवाद राजनीतिक तुष्टीकरण
आर्थिकी विविधा पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था की दौड़ में बाधाएं December 19, 2019 / December 19, 2019 | Leave a Comment दुलीचंद कालीरमन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश को वर्ष 2024 तक पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य कई अर्थशास्त्रियों को दूर की कौड़ी लगता है. वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था तीन ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो चुकी है. वैसे 2 ट्रिलियन डॉलर से तीन ट्रिलियन डॉलर का सफर तय करने में पांच वर्ष लगे.वर्ष 2014 में जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना कार्यभार संभाला था तो भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की 11वीं अर्थव्यवस्था थी, जो वर्ष 2019 तक आते-आते पांचवें या छठे स्थान पर आ गई है. अपने लिए लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़ना सकारात्मकता का उदाहरण है. लेकिन वर्तमान आर्थिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की दौड़ में कई बाधाएं खड़ी है, जिससे जिनको पार करना वर्तमान सरकार के लिए चुनौती भरा कार्य है. अगर हम तकनीकी तौर पर नहीं बल्कि व्यवहारिक पक्ष पर विचार करें तो अर्थव्यवस्था के चार ही पक्ष है. पहला सरकार, दूसरा उद्योग जगत, तीसरा बैंकिंग व्यवस्था और चौथा सामान्य नागरिक. सरकार को देश में विकास कार्यों तथा प्रशासन के संचालन के लिए राजस्व की जरूरत होती है. जिसे वह कर के रूप में उद्योग जगत तथा सामान्य जन से संग्रहित करती है. उद्योग जगत में से जीएसटी तथा कारपोरेट टैक्स के रूप में तथा सामान्य जन से आयकर के रूप में राजस्व आता है. 1 जुलाई 2017 से वस्तु तथा सेवा कर लागू हुआ है. इसे कई प्रकार के करो को एक कर में बदलने के लिए लागू किया गया था और यह कहा गया था कि इससे कर संग्रहण में सुविधा होगी तथा कर संग्रहण सस्ता भी होगा. लेकिन वस्तु तथा सेवा कर के लागू होने के बाद अभी भी इसमें कई समस्याएं हैं. जिसके कारण राजस्व में कमी बनी हुई है. अभी भी फर्जी ई-वे बिल तथा बोगस कंपनियों द्वारा टैक्स रिबेट के नाम पर घोटाले की दिन की खबरें आए दिन अखबारों में छपती हैं. राज्यों को भी कर राजस्व में घाटा हो रहा है तथा जीएसटी कानून के कारण केंद्र सरकार को राज्यों के कर घाटे की भरपाई करनी पड़ रही है. जीएसटी कानून के बेहतर कार्यान्वयन से ही राजस्व संग्रहण में वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है. वर्तमान में जीडीपी यानी ‘सकल घरेलू विकास दर’ निरंतर गिर रही है. वर्ष की दूसरी तिमाही तिमाही में यह 4.5% पर आ चुकी है. भारतीय रिजर्व बैंक में अभी हाल ही में चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर अनुमान घटाकर 6.1 प्रतिशत कर दिया है जो पहले 6.9 प्रतिशत था. उद्योग जगत के ज्यादातर क्षेत्र मंदी की मार में निर्यात लगातार गिर रहा है. घरेलू मोर्चे से भी मांग की कमी का रोना रोया जा रहा है. पिछले बजट में सरकार ने अपने राजस्व संग्रह को बढ़ाने के लिए कॉरपोरेट टैक्स को बढ़ावा बढ़ाया था. लेकिन उद्योग जगत के कमजोर प्रदर्शन से को देखते हुए इसे फिर से कम कर दिया गया है. कॉरपोरेट टैक्स में यह कमी इसी उम्मीद से की गई है कि इससे उद्योग अपनी गतिविधियों को बढ़ाएंगे तथा निर्यात को बढ़ाकर रोजगार की नई संभावनाएं बनेंगी. निर्यात के माध्यम से विदेशी मुद्रा भी भारत में आएगी. यह कितना कारगर होगा यह आने वाला समय ही बताएगा. अर्थव्यवस्था का तीसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र बैंकिंग व्यवस्था है. पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने में यह क्षेत्र बाकी के तीन क्षेत्रों को जोड़ने का कार्य करता है. सरकार, उद्योग, व जन सामान्य का भरोसा बैंकिंग व्यवस्था पर होगा तभी अर्थव्यवस्था पटरी पर चल पड़ेगी. लेकिन खेद का विषय है कि पिछले कुछ वर्षों में बैंकिंग व्यवस्था में आम आदमी का विश्वास कम हुआ है. जिस प्रकार विजय माल्या, नीरव मोदी, चौकसे आदि ने बैंकों में हजारों करोड रुपए का चूना लगाया है उससे आम आदमी का विश्वास उद्योगपतियों, सरकार तथा बैंकिंग व्यवस्था से हिला है. जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात नहीं है. हाल ही में मुंबई के “पीएमसी बैंक घोटाला” भी इसी कड़ी का एक उदाहरण है. वर्तमान आर्थिक मंदी के दौर में रिजर्व बैंक लगातार कई बार रेपो रेट में कमी करके कर्ज़ों को सस्ता करने का प्रयास कर चुका है. जिससे तरलता की कमी को दूर किया जा सके तथा घरेलू स्तर पर मांग में तेजी आ सके. रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों का पुन:पूंजीकरण भी इस व्यवस्था को सुदृढ़ करने का एक प्रयास है. पिछले कुछ सालों में गैर निष्पादित ऋणों के बढ़ते आंकड़ों पर भी कुछ अंकुश लगा है. दिवालिया कानून जैसी प्रक्रिया से भी इस क्षेत्र में आम आदमी का विश्वास थोड़ा मजबूत हुआ है. लेकिन इसमें अभी भी काफी कुछ किया जाना शेष है. भारत जैसे देश में, जिसकी आबादी 130 करोड़ से ऊपर है, वहां पर मांग में कमी (जैसा उद्योग जगत द्वारा कहा जाता है) समझ में नहीं आती है. जबकि यह मांग की कमी नहीं अपितु आय में कमी है. हम सब जानते हैं कि आबादी का 50% हिस्सा कृषि पर निर्भर है. समय के साथ-साथ फसलों का लागत मूल्य लगातार बढ़ रहा है. लेकिन किसानों को उनकी फसलों का उचित एवं लाभकारी मूल्य नहीं मिल पा रहा है. सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य तो घोषित किया जाता है लेकिन किसान की पूरी फसल उस न्यूनतम समर्थन मूल्य पर आज भी नहीं बिक रही. इससे कृषि मजदूर की आय पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है. वर्तमान में प्याज की कीमतें ₹150 प्रति किलो तक पहुंच गई थी. लेकिन क्या इसका लाभ प्याज के उत्पादक किसानों को मिला है? इसका जवाब सभी जानते हैं. आज भी फलों और सब्जियों के विपणन तथा भंडारण में सरकार द्वारा बहुत कम प्रयास किए गए है. एक आम किसान के पास इतने संसाधन नहीं होते कि वह उनका भंडारण कर सके. इससे बिचौलियों की पौ-बारह होती है तथा आम किसान अपने आप को ठगा सा महसूस करता है. उसका भरोसा पूरी आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था से उठ जाता है. फिर किसान आंदोलनों को राजनीतिक दल अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए उपयोग करते हैं. अगर कॉर्पोरेट टैक्स की माफी के नाम पर 1.45 लाख करोड रुपए उद्योगपतियों को दिए जा सकते हैं, तो क्या देश की आधी आबादी जो कृषि पर निर्भर है, उसकी आर्थिक मदद नहीं की जा सकती? जिससे मांग में तेजी आएगी, इससे उनके जीवन स्तर के साथ-साथ उद्योग भी की मंदी को भी दूर किया जा सके. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने व्यक्तिगत आयकर में भी कुछ छूट देने के संकेत आगामी बजट में दिए हैं. इससे नकदी का प्रवाह बढ़ेगा और पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था की दौड़ में मंजिल पर पहुंचने में मदद मिलेगी. इसके लिए जरूरी है कि हम आर्थिक नीतियों का निर्धारण करते समय देश में आर्थिक स्थिति के व्यवहारिक पक्ष पर भी ध्यान देकर उसी के अनुसार निर्णय लेंगे, तो ही धरातल पर फर्क स्पष्ट दिखाई देगा अन्यथा किताबी बातें किताबों तक ही रह जाती है, Read more » Five trillion economy race hurdles पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था
विविधा हिंदी दिवस भाषाई एकीकरण और क्षेत्रीय राजनीति September 17, 2019 / September 17, 2019 | Leave a Comment दुलीचंद कालीरमन किसी भी राष्ट्र के सांस्कृतिक एकीकरण में भाषा का महत्वपूर्ण स्थान होता है. भारत के मामले में हिंदी भाषा सांस्कृतिक एकीकरण की कड़ी बन सकती है. हिंदी भाषा के इस गुण को बहुत पहले की आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती और महात्मा गांधी ने पहचान लिया था. संविधान निर्माताओं ने भी हिंदी […] Read more » क्षेत्रीय राजनीति भाषाई एकीकरण
विश्ववार्ता हांगकांग में हारा चीन September 11, 2019 / September 11, 2019 | Leave a Comment दुलीचंद कालीरमन साम्यवादी सोवियत संघ के 1991 में विभाजित होने के बाद विश्व में नए शक्ति समीकरण बनने लगे थे. कुछ वर्षों तक तो लगा मानो अमेरिका का विश्व में एकछत्र वर्चस्व स्थापित हो गया था. चीन साम्यवादी विचारधारा केंद्रित कम्युनिस्ट देश था जिसके बारे में विश्व में केवल कुछ ही जानकारियां छन-छन कर बाहर […] Read more » चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा
प्रवक्ता न्यूज़ चीन पर जरूरी है आर्थिक चोट September 3, 2019 / September 3, 2019 | Leave a Comment दुलीचंद कालीरमन जब से कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटाया गया है पाकिस्तान इस तरह कुलबुला रहा है जैसे किसी कुत्ते की पूंछ गाड़ी के नीचे आ गई हो i जब कोई कुत्ता भोक्ता है तो उसका साथी भी कुछ कुछ उसी तरह चिल्लाने लगता है i ठीक यही हाल आजकल चीन का हुआ है जो पाकिस्तान […] Read more » economic injury to china चीन पर जरूरी है आर्थिक चोट