व्यंग्य आखिर अहिंसा के पुजारी का घर अशांत क्यों? October 1, 2016 / October 1, 2016 | Leave a Comment अजीब विडम्बना है कि कल तक हमें कालापानी और फाँसी की सजा सुनाने वाले गोरे अब हमारे दोस्त बन गये और जो साथ लड़े वो दुश्मन। इसलिए अब सडकों और दीवारों की गन्दगी साफ करने के साथ-साथ हमें अपने दिलों की गन्दगी भी साफ करनी पड़ेगी तथा पुनर्चिंतन करना पड़ेगा। गाँधी के गुजरात से आने वाले प्रधानमंत्री जी को "गाँधी के मन्तर" को अपने मन की बात बनानी पड़ेगी। Read more » आखिर अहिंसा के पुजारी का घर अशांत क्यों?
महत्वपूर्ण लेख विश्ववार्ता पाकिस्तान की बढ़ती परमाणु ताकत October 31, 2015 | Leave a Comment संदर्भः-अमेरिकी रिपोर्ट का दावा की 2025 तक पाकिस्तान दुनिया की पांचवीं बड़ी ताकत होगा प्रमोद भार्गव अमेरिका द्वारा किए एक अध्ययन के मुताबिक पाकिस्तान परमाणु हथियारों के निर्माण व भंडारण की दृष्टि से 2025 तक विश्व की पांचवीं महाशक्ति बन जाएगा। विश्व ग्राम में बदलती दुनिया के लिए यह एक ऐसी चेतावनी है,जिससे सतर्क रहने […] Read more » Featured परमाणु ताकत पाकिस्तान पाकिस्तान की बढ़ती परमाणु ताकत
कविता “आह्वान” February 15, 2014 | Leave a Comment -प्रवीण कुमार- सत्य को देखा कारागार में, न्याय विवश हो विलख पड़ा। भड़ी सभा में नग्न पुण्य भी, पाप के आगे विवश खड़ा। चना अकेला भाड़ क्या फोड़े, निर्बल दुःख को मौन सहा। क्रूर छली का पाकर सम्बल, ढोंग यथार्थ को दबा गया । प्रश्न नहीं तिल -तिल मरने का, चाह नहीं इस जीवन का। राह देखता व्यथित बिबस मन, महाप्रलय के आने का। पापी -जन का ह्रदय हिला दे, हो महाकाल का गर्जन घोर। कब सुनु मैं क्रूर का क्रंदन ,जिससे नाचे मन का मोर? अनिवार्य धरती का शोधन, कोई नहीं अब अन्य सहारा। मक्कारो की मक्कारी से ,विवश है शायद प्रभु हमारा। मोह नहीं अब जीवन -सुख का, चाह नहीं कुछ पाने का। राह देखता व्यथित बिबस मन ,महाप्रलय के आने का। मायापति भी देख चकित है, कलुषित बल की काली सत्ता। गम पीकर भी बेजुबान जन, भय से बल की गाए महत्ता। जब देवतत्व उपकार के बदले, क्रूर प्रपंच का प्रतिफल पाया। कैसे किस पर दया दिखाएं, दयानिधि को समझ न आया। जब छल -प्रपंच से दुखी प्रभु का, हुआ राह बंद फिर आने का। राह देखता व्यथित बिबस मन, महाप्रलय के आने का। आदर्श भरी बातों के भ्रम से, है भ्रम फैला उजियाले का। भयभीत मन में झांख के देखो, है व्यकुलता अंधियारे का। जीवन जीने के खातिर बेबस, हो बेजुबान गम छिपा लिया। नकली जीवन जी-जीकर, नकलीपन में जीवन बिता दिया। मोह नहीं बेबस जीवन का, मुझे चाह नहीं नकलीपन का। राह देखता व्यथित बिबस मन, महाप्रलय के आने का। न्याय,दया के माया जाल से ,पूरे जग को भ्रमित किया । अत्याचार के तांडव पर भी , गूंगा रहने पर विवश किया। मौन दर्द पी सकता निर्बल, पर दर्द समझता खेवनहार । जीवन मोह से बिबस है जन पर, […] Read more » "आह्वान" poem on truth
कविता भारत की व्यथा July 29, 2013 / July 29, 2013 | Leave a Comment प्रवीण कुमार मै थी एक सोने की चिड़िया , मेरी थी हर बात निराली . सदाबहार नदी-तालों से ,खेतों में उगती हरियाली. घोर-परिश्रम और ज्ञान से , हर घर में थी खुसिहाली. तप-त्याग और सदाचार से , मेरे चेहरे पर थी लाली. सोने-चान्दी,हीरे-पन्नों से , घर- आँगन थे भरे-भरे . […] Read more » भारत की व्यथा