ललित गर्ग

ललित गर्ग

लेखक के कुल पोस्ट: 1,904

स्वतंत्र वेब लेखक

लेखक - ललित गर्ग - के पोस्ट :

समाज

जिन्दगी के गुम हो गये अर्थों की तलाश

| Leave a Comment

जिन परिस्थितियों में व्यक्ति जी रहा है, उनसे निकल पाना किसी के लिए भी आज बड़ा कठिन-सा है। अपने व्यापार, अपने कैरियर, अपनी इच्छाओं को एक झटके में त्याग कर एकांतवास में कोई रह सके, यह आज संभव नहीं है और व्यावहारिक भी नहीं है। तथापि अपनी मानसिक शांति और स्वास्थ्य के प्रति आदमी पहले से अधिक जागरुक हो रहा है क्योंकि भौतिकवादी जीवनशैली के दुष्परिणाम वह देख और भुगत चुका है, इसलिए वह अपने व्यस्त जीवन से कुछ समय निकालकर प्रकृति की गोद में या ऐसे किसी स्थान पर बिताना चाहता है, जहां उसे शांति मिल सके।

Read more »

राजनीति

आदिवासी समाज की अस्मिता से जुड़े यक्ष प्रश्न

/ | Leave a Comment

गुजरात से जुड़ा होने के कारण मेरे सम्मुख वहां के आदिवासी समाज की समस्याएं सर्वाधिक चिन्ता का कारण है। इनदिनों गुजरात में आदिवासी समुदाय में असन्तोष का बढ़ना बड़ी मुसीबत का सबब बन सकता है। सत्तारूढ़ भाजपा के लिए पाटीदारों और दलितों के बाद अब आदिवासी समुदाय मुसीबत खड़ी कर सकता है। राज्य के आदिवासी इलाकों में भिलीस्तान आंदोलन रफ्तार पकड़ रहा है। अगले साल विधानसभा चुनावों से पहले आदिवासी नेता विद्रोह करने की तैयारी कर रहे हैं। इसके पीछे कुछ और लोग भी हैं जो अपने राजनीतिक हितों के लिए उन्हें बढ़ावा दे रहे हैं।

Read more »

समाज

अहिंसा है सुखी समाज का आधार

| Leave a Comment

शोषण विहीन समाज की रचना के लिए संग्रह स्पर्धा और उपभोग वृत्ति पर रोक आवश्यक है। इससे न केवल स्वयं के जीवन में संतुलन एवं संयम आएगा, समाज में भी संतुलन आएगा। शोषण की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी और इस चक्की में पिस रहे लोगों को राहत मिलेगी। इसलिए भगवान महावीर ने अपरिग्रह को धर्मयात्रा का अभिन्न अंग माना। अपरिग्रह का अर्थ है संग्रह पर सीमा लगाना। इससे शोषण की आधारशिला कमजोर होगी तब हिंसा का ताण्डव नृत्य भी कम होगा। अपरिग्रह के बिना अहिंसा की सही संकल्पना हो ही नहीं सकती और न इसकी सही अनुपालना हो सकती है।

Read more »