धर्म-अध्यात्म ऋषि दयानन्द ने संसार को ईश्वर के सच्चे स्वरूप और उसकी उपासना से परिचित कराया June 27, 2017 | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य हम मनुष्य हैं और हमारा यह मनुष्य जन्म ईश्वर के नियमों के अनुसार प्रारब्ध के कर्मों के भोग व नये कर्मों को करके विवेक प्राप्ति व जीवन उन्नति के लिए हुआ है। मनुष्य का आत्मा इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख, ज्ञानादि गुणयुक्त, अल्पज्ञ और नित्य है। आत्मा अनादि, नित्य, अजर, अमर, एकदेशी, […] Read more » ईश्वर की उपासना से परिचित ईश्वर के सच्चे स्वरूप ऋषि दयानन्द संसार
धर्म-अध्यात्म आज का मनुष्य अपने जन्मदाता और स्वयं के ज्ञान से अनभिज्ञ June 25, 2017 | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य क्या हम अपने आप और अपने जन्मदाता को जानते हैं। हमें लगता है कि संसार के 99 प्रतिशत लोग न तो अपने आप को जानते हैं न अपने जन्म दाता को ही जानते हैं। इस न जानने का मुख्य कारण अविद्या है। विद्या उसे कहते हैं कि जिससे पदार्थों का यथार्थ ज्ञान […] Read more » ज्ञान से अनभिज्ञ
धर्म-अध्यात्म मेरा धर्मग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश June 23, 2017 | 1 Comment on मेरा धर्मग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश मनुष्य जब जन्म लेता है तो उसे किसी भाषा का ज्ञान नहीं होता है, अन्य विषयों के ज्ञान होने का तो प्रश्न ही नही होता। सबसे पहले वह अपनी माता से उसकी भाषा, मातृभाषा, को सीखता है जिसे आरम्भिक जीवन के दो से पांच वर्ष तो नयूनतम लग ही जाते हैं। इसके बाद वह भाषा ज्ञान को व्याकरण की सहायता से जानकर उस पर धीरे धीरे अधिकार करना आरम्भ करता है। भाषा सीख लेने पर वह व्यक्ति उस भाषा की किसी भी पुस्तक को जानकर उसका अध्ययन कर सकता है। संसार में मिथ्या ज्ञान व सद्ज्ञान दोनों प्रकार के ग्रन्थ विद्यमान हैं। मिथ्या ज्ञान की पुस्तकें, भले ही वह धार्मिक हां या अन्य, उसे असत्य व जीवन के लक्ष्य से दूर कर अशुभ कर्म वा पाप की ओर ले जाती हैं। Read more » Featured Satyarthaprakash सत्यार्थप्रकाश सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ का उद्देश्य
विविधा तीसरा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस और योगदर्शन द्वारा ईश्वर साक्षात्कार June 22, 2017 | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य आज 21 जून, 2017 को विश्व के अधिकांश भागों में तीसरा अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। तीन वर्ष पूर्व भारत के यशस्वी प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सयुक्त राष्ट्र महासभा में योग को अन्तर्राष्ट्रीय दिवस घोषित करने का प्रस्ताव रखा था जिसे विश्व के 177 देशों का समर्थन प्राप्त हुआ था […] Read more » 3rd International Day of Yoga Featured तीसरा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस योगदर्शन योगदर्शन द्वारा ईश्वर साक्षात्कार
चिंतन धर्म-अध्यात्म ऋषि दयानन्द जीवन के प्रमुख महान कार्य June 19, 2017 | Leave a Comment ऋषि दयानन्द का पहला प्रमुख कार्य तो उनका गुरु विरजानन्द जी से आर्ष शिक्षा को प्राप्त करना था जिससे वह वेदों के यथार्थ स्वरूप सहित वेद मन्त्रों के यथार्थ अर्थ जान सके। यदि यह न हुआ होता तो फिर ऋषि दयानन्द, दयानन्द व स्वामी दयानन्द ही रहते जैसे कि आज अनेकानेक साधु संन्यासी व विद्वान हैं। कोई उनको जानता भी न। गुरु विरजानन्द जी की शिक्षा ने उन्हें संसार के सभी विद्वानों से अलग किया जिसका कारण उनकी प्रत्येक मान्यता का आधार वेद सहित सत्य व तर्क पर आधारित होने के साथ उनका सृष्टि क्रम के अनुकूल होना भी है। Read more » Featured ऋषि दयानन्द जीवन के प्रमुख महान कार्य
धर्म-अध्यात्म पुनर्जन्म का ज्ञानपूर्ण व बुद्धिसंगत कारण व आधार June 16, 2017 | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य मनुष्य जन्म का आधार प्रत्यक्ष रूप में माता-पिता होते हैं परन्तु अप्रत्यक्ष रूप में इस सृष्टि में व्यापक एक चेतन सत्ता जो सृष्टि की उत्पत्ति की सामर्थ्य सहित मनुष्य व अन्य प्राणियों की उत्पत्ति व रचना का ज्ञान रखती है, वह दोनों हैं। हमने माता-पिता से इतर सृष्टि में व्यापक एक […] Read more » पुनर्जन्म
धर्म-अध्यात्म अनादि से अनन्त काल की यात्रा में जीवात्मा कर्मानुसार अनेक प्राणी योनियों में विचरता रहा है और आगे भी विचरेगा June 9, 2017 | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य यदि हम आर्यसमाज की बात न करें और इतर मनुष्यों व समुदायों की बातें करें तो हम देखते हैं कि मनुष्य को जड़ व चेतन का भेद व उसका तत्वार्थ ज्ञात नहीं है। मनुष्य का जन्म होता है, माता-पिता उसका पालन करते हैं, स्कूल व कालेजों में पढ़ने के लिए उसे […] Read more » जीवात्मा
धर्म-अध्यात्म माता के समान हितकारी गाय की रक्षा करना मनुष्य मात्र का परम कर्तव्य व धर्म June 9, 2017 | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य संसार के जितने भी देश है या यह कहिये कि पृथिवी तल पर जहां-जहां भी मनुष्य है, वहां-वहां गाय भी विद्यमान है। यह व्यवस्था ईश्वर ने मनुष्यों के हितों को देखकर की है। यदि उसे मनुष्य का हित करना अभीष्ट न होता तो ईश्वर गाय को बनाता ही नहीं। मनुष्यों को अपने […] Read more » गाय की रक्षा
प्रवक्ता न्यूज़ ईश्वरीय ज्ञान वेदों के 6 अंग शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष हैं: June 5, 2017 | Leave a Comment ईश्वरीय ज्ञान वेदों के 6 अंग शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष हैं: डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री -मनमोहन कुमार आर्य श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल, पौंधा, देहरादून उत्तराखण्ड राज्य का वैदिक विद्या के अध्ययन का एक प्रमुख केन्द्र है। सन् 2000 में स्थापित यह गुरुकुल अपने जीवन के 17 वर्ष पूरे कर 18वें वर्ष […] Read more » ईश्वरीय ज्ञान कल्प छन्द ज्योतिष निरुक्त वेदों के 6 अंग व्याकरण शिक्षा
धर्म-अध्यात्म ऋषिभक्त आर्यों, नेताओं व विद्वानों का राग-द्वेष से मुक्त होना आवश्यक May 26, 2017 | Leave a Comment सत्यार्थप्रकाश को ऋषि दयानन्द सरस्वती जी का सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ कह सकते हैं। इसके उत्तरार्ध के चार समुल्लासों में अन्तर्देशीय व दूर विदेशों में उत्पन्न मतों की समालोचना की गई है। ऋषि ने इन सभी चार समुल्लासों की पृथक भूमिका लिखी है। चतुर्दश समुल्लास की भूमिका में उन्होंने लिखा है कि उनका यह लेख हठ, दुराग्रह, ईष्र्या, द्वेष, वाद-विवाद और विरोध घटाने के लिये किया गया है, न कि इनको बढ़ाने के अर्थ क्योंकि एक दूसरे की हानि करने से पृथक् रह, परस्पर को लाभ पहुंचाना हमारा मुख्य कर्म है। अब यह विवेच्य मत विषय सब सज्जनों के सामने निवेदन करता हूं। विचार कर, इष्ट का ग्रहण, अनिष्ट का परित्याग कीजिये। हमारे विद्वानों को इसी भावना से ही अन्य विद्वानों की आलोचना करनी चाहिये। हमारी आलोचना पढ़कर कोई विद्वान हमसे क्षमा याचना ही करे, इसकी अपेक्षा करना उचित नहीं है। Read more » राग-द्वेष से मुक्त
समाज मनुष्य जीवन के उत्थान का एक सरल उपाय May 26, 2017 | Leave a Comment मनुष्य जीवन में संगतिकरण का भी महत्व है। अच्छे लोगों की संगति का अच्छा परिणाम होता है और बुरे लोगों की संगति से मनुष्य का जीवन व भविष्य पतन को प्राप्त हो जाता है। सत्यार्थप्रकाश पढ़कर जब हम सन्ध्योपासना व स्वाध्याय करते हैं तो हमारी संगति अध्यययन किये जा रहे विषय सहित ईश्वर के साथ होती है। ईश्वर संसार के सब गुणों का अधिपति व स्वामी होने सहित सभी अवगुणों से सर्वथा मुक्त है। Read more » उत्थान
धर्म-अध्यात्म आर्यसमाज के प्रचार की धीमी गति के कारणों पर विचार May 26, 2017 | Leave a Comment आर्यसमाज के प्रचार की धीमी गति में आर्यसमाज में पदाधिकारियों व सदस्यों की गुटबाजी व उसके पीछे कुछ लोगों के निहित स्वार्थ यथा लोकैषणा, वित्तैषणा तथा पुत्रैषणा भी सम्मिलित हैं। इस कारण योग्य लोग पदाधिकारी न चुने जाकर तिकड़मी व कम योग्यता वाले लोग पदाधिकारी बन जाते हैं। इससे एक हानि यह होती है कि बहुत से सज्जन व निष्पक्ष लोग आर्यसमाज में आना ही छोड़ देते हैं। Read more » आर्यसमाज