राजनीति पश्चिमबंगाल: ममता के सामने अब ‘यश’ की आफत May 22, 2021 / May 22, 2021 | Leave a Comment तूफान शब्द की आशंका और उसकी कल्पना मात्र से इंसान भय और डर से सिहर उठता है। फिर, सोचिए इतनी बड़ी आबादी जब कभी तूफानों का सामना करती है तो उस पर क्या गुजरती होगी। समुद्र तटीय इलाकों में यह खतरा अक्सर बना रहता है। भारत में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में कम […] Read more » yash cyclone यश की आफत
कविता मुर्दे सवाल करते हैं…! May 19, 2021 / May 19, 2021 | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ल मुर्दे सवाल करते हैं… ?वे कहते हैंबेमतलब बवाल करते हैंइंसानों हम तो मुर्दे हैंक्योंकि…हमारे जिस्म में साँसे हैं न आशेंलेकिन…इंसानों, तुम तो मुर्दे भी नहीं बन पाएक्योंकि…जिंदा होकर भी तुम मर गएमैंने तुमसे क्या माँगा था…?सिर्फ साँसे और अस्पतालतुम वह भी नहीं दे पाएहमने तो तुमसेसिर्फ चार कंधे मांगे…?तुम वह भी नहीं दे […] Read more » मुर्दे सवाल करते हैं
राजनीति उफ़ ! जब माँ गंगा भी रोई होंगी…? May 15, 2021 | Leave a Comment भारत कोविड-19 संक्रमण को लेकर संकट काल से गुजर रहा है। यह महामारी इतनी भयंकर रुप लेगी इसकी कल्पना न तो कभी सरकारों को थीं और न नागरिकों को। हलांकि चिकत्साविेशेषज्ञों ने इसकी चेतावनी दे दिया था कि इसकी दूसरी लहर भी आ सकती है। अब तीसरी लहर के और अधिक भयानक होने की बात […] Read more » Death death due to covid कोविड-19 संक्रमण
व्यंग्य सर्वत्र व्याप्तम ‘कोरोना’ द्वितीयोनास्ति May 10, 2021 / May 10, 2021 | Leave a Comment हे ! कोरोना देव आपको नमस्कार है। क्योंकि आप चमत्कार हैं। आपका विस्तार अनंत आकाश से लेकर भूगर्भ लोक तक है। पूरी दुनिया आपके सामने नतमस्तक है और भय से कांप रही है। आपने युगों- युगों में श्रेष्ठ अकासुर- बकासुर, नरकासुर, महिषासुर जैसे दिव्य असुर शक्तियों को भी मात दे दिया है। इन सबका वध […] Read more » corona सर्वत्र व्याप्तम कोरोना
पर्यावरण हम पेड़ों को काटते हैं, वे रोज लगाते हैं March 31, 2021 / March 31, 2021 | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ला पर्यावरण और उसकी संरक्षा हमारे लिए बड़ी चुनौती है। पर्यावरण को लेकर पूरी दुनिया अति संवेदनशील है, लेकिन वास्तविक जीवन में उसका असर बेहद कम दिख रहा है। मानव प्रकृति से बिल्कुल दूर जाता दिख रहा है, जिसका नतीजा है कि हम प्रकृति की […] Read more » पर्यावरण संरक्षण
विश्ववार्ता भारत-श्रीलंका के बीच सुधरेंगे द्वीपक्षीय संबंध March 24, 2021 / March 24, 2021 | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ल श्रीलंका से अपने संबंधों को सुधारने के लिए मोदी सरकार ने एक कूटनीतिक चाल चली है। अब उसकी यह नीति पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को लेकर एक मजबूत आधार देगी और भारत के साथ भरोसे को और मजबूत करेगी। श्रीलंका सरकार और […] Read more » India and Srilankan relationaship Island-India relations will improve between India and Sri Lanka भारत-श्रीलंका
राजनीति पश्चिम बंगाल में `खेला होबे’ March 18, 2021 / March 18, 2021 | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्लपश्चिम बंगाल की चुनावी राजनीति में मुख्यमंत्री यानी ममता दीदी का एक नारा मीडिया में खूब छाया है खेला होबे- खेला होबे। ममता दीदी इस नारे से क्या चुनावी संदेश देना चाहती हैं यह अलग बात है, लेकिन बंगाल के सियासी पर्दे पर जो चित्र उभरकर निकले हैं उसके अनुसार हमें कहना पड़ रहा […] Read more » Khela Hobe in West Bengal खेला होबे- खेला होबे पश्चिम बंगाल की चुनावी राजनीति पश्चिम बंगाल की चुनावी राजनीति में मुख्यमंत्री यानी ममता दीदी
लेख टाँग खींचना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है ! March 13, 2021 / March 13, 2021 | Leave a Comment टाँगे हैं टाँगों का क्या, ऐसा नहीं है जनाब। टाँगोंका अपना महत्व है। हमारे समाज में उससे भी अधिक महत्वपूर्ण भूमिका टाँग खींचने वालों और टाँग अड़ानेवालों की है। इस तरह की प्रजाति हमारे आसपास प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। ऐसे लोग अपने सामान्य दिनचर्या की शुरुवारत टाँग अड़ाने और टाँग खींचने जैसे पवित्र […] Read more » Pulling the leg is my birthright! टाँग खींचना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार
विधि-कानून लौटा दो विष्णु की जिंदगी के बीस साल…? March 10, 2021 / March 10, 2021 | Leave a Comment लोकतांत्रिक व्यवस्था में आम आदमी की न्याय की उम्मीद क्या खत्म होती दिखती है। व्यक्ति के संविधानिक और कानूनी अधिकार क्या संरक्षित नहीं रह गए हैं। कानून और संविधान की किताबें सिर्फ दिखावटी हैं। क्या कानून अपने दायित्वों और कर्तब्यों का निर्वहन पारदर्शिता से कर रहा है ? न्याय के अधिकार का क्या संरक्षण हो […] Read more » इंसाफ की उम्मीद में विष्णु तिवारी विष्णु की जिंदगी
कविता चलो एक नई उम्मीद बन जाऊँ… March 8, 2021 / March 8, 2021 | Leave a Comment चलो एक नई उम्मीद बन जाऊँ!बसंत सा बन मैं भी खिल जाऊँ!! प्रकृति का नव रूप मैं हो जाऊँ!गुनगुनी धूप सा मैं खिल जाऊँ!! अमलताश सा मैं यूँ बिछ जाऊँ!अमराइयों में मैं खुद खो जाऊँ!! धानी परिधानों की चुनर बन जाऊँ!खेतों में पीली सरसों बन इठलाऊं!! मकरंद सा कलियों से लिपट जाऊँ!बसंत के स्वागत का […] Read more » एक नई उम्मीद
कविता स्त्री और अस्तित्व March 5, 2021 / March 5, 2021 | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ल मुँह अँधेरे उठती है वहबुहारती है आँगन माजती है वर्तनबाबू को देती है दवाई औरमाँ की गाँछती है चोटीबच्चों का तैयार करती है स्कूल बैगऔर बांधती है टिफीनसुबह पति को बेड-टी से उठाती हैदरवाजे तक आ छोड़ती है आफिसफिर,रसोई के बचे भोजन से मिटाती है भूखपरिवार में सबकी पीड़ा का मरहम है वहखुद […] Read more » Woman and existence स्त्री और अस्तित्व
लेख समाज साबरमती में आयशा नहीं, डूब मरी इंसानियत…! March 3, 2021 / March 3, 2021 | Leave a Comment हेलो, अस्सलाम वालेकुम। मेरा नाम है आयशा आरिफ खान। मैं जो कुछ भी करने जा रही हूं, अपनी मर्जी से करना चाहती हूं। किसी के जोर, दबाव में नहीं। ये समझ लीजिए कि खुदा की दी जिंदगी इतनी ही होती है। डियर डैड, अरे कब तक लड़ेंगे अपनों से। केस विड्रॉल कर दो। अब नहीं […] Read more » Ayesha did not drown in Sabarmati humanity died…!