आर्थिकी राजनीति अयोध्या में प्रभु श्रीराममंदिर निर्माण से स्थानीय अर्थव्यवस्था को लगेंगे पंख December 15, 2023 / December 15, 2023 | Leave a Comment अंततः वह घड़ी भी बहुत करीब आ पहुंची है, जिसका इंतजार हिंदू धर्मावलंबी पिछले लगभग 500 वर्षों से कर रहे हैं। 5 अगस्त 2020 को भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी ने पूजनीय संत मंडल एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूजनीय सर संघचालक श्री मोहन जी भागवत के सानिध्य में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण की आधारशिला रखी थी। अब दिनांक 22 जनवरी 2024 को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ही पूज्य संत मंडल एवं परम पूजनीय सर संघचालक श्री मोहन जी भागवत की उपस्थिति में अयोध्या में नव निर्मित प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का उद्घाटन करने जा रहे हैं। भारत ही क्या बल्कि पूरे विश्व में ही हिंदू धर्मावलंबी अति उत्साहित हैं एवं पूरे भारत में वातावरण राममय होने जा रहा है। अयोध्या में निर्माणरत श्रीराम मंदिर पूरे विश्व में निवासरत हिंदू धर्मावलम्बियों के लिए न केवल विशाल आस्था के एक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है बल्कि यह देश में धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा देगा और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को जबरदस्त लाभ होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। हाल ही में सम्पन्न दीपावली त्यौहार के शुभ अवसर पर अयोध्या में 22.23 लाख दिए जलाए गए थे, यह अपने आप में एक गिनीज विश्व रिकार्ड के रूप में माना जा रहा है। वर्तमान में 2.5 करोड़ पर्यटक प्रतिवर्ष अयोध्या में पहुंचते हैं। प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण हो जाने के पश्चात पर्यटकों की यह संख्या 10 गुना तक बढ़ सकती है अर्थात 25 करोड़ पर्यटक प्रतिवर्ष अयोध्या में आ सकते हैं। एक पर्यटक यदि अयोध्या में रहते हुए 2000 रुपए का खर्च भी करता है तो 50,000 करोड़ रुपए का व्यापार अकेले अयोध्या में प्रतिवर्ष होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। धार्मिक पर्यटन के साथ ही पूरे वर्ष भर कई सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं कई प्रकार के भव्य समारोह भी अयोध्या में आयोजित होने लगेंगे, इससे कुल मिलाकर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रतिवर्ष एक लाख करोड़ रुपए का व्यापार केवल अयोध्या में ही होने लगेगा। अयोध्या में होटल और रिजोर्ट का निर्माण करने हेतु 20 प्रस्ताव उत्तर प्रदेश सरकार को प्राप्त हो चुके हैं, इनमे कई फाइव स्टार होटल भी शामिल हैं। अयोध्या में अंतरराष्ट्रीय स्तर का आधारभूत ढांचा एवं अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी विकसित किया जा रहा है। अयोध्या रेल्वे स्टेशन को विकसित कर लिया गया है। उक्त वर्णित व्यवस्थाओं के विकसित होने के पश्चात अयोध्या में बढ़ने वाले धार्मिक पर्यटन से लाखों की संख्या में नए रोजगार के अवसर निर्मित होने जा रहे हैं। प्रतिवर्ष लगभग 25 करोड़ पर्यटकों के अयोध्या पहुंचने से स्थानीय स्तर पर छोटे छोटे व्यवसायियों को भी अपार आर्थिक लाभ होगा। धर्मशाला, होटल, यातायात व्यवस्था, खाद्य सामग्री, फल, फूल आदि अन्य कई प्रकार के पदार्थों की मांग बढ़ेगी, जिसकी आपूर्ति बनाए रखने के लिए कई प्रकार के छोटे छोटे उद्योग धंधे भी अयोध्या के आस पास के गावों में विकसित होंगे। फल, सब्जी, फूल आदि पदार्थों की पैदावार भी ग्रामीण इलाकों में होने लगेगी जिससे इस क्षेत्र के किसानों को भी भरपूर लाभ होने लगेगा। अपने आप में अयोध्या आस्था के केंद्र के साथ साथ एक वाणिज्यिक केंद्र के रूप में भी विकसित होने जा रहा है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि प्रभु श्रीराम तो अपने मंदिर में बिराजेंगे ही, साथ ही इस क्षेत्र में निवास कर रहे नागरिकों को भी आर्थिक रूप से अत्यधिक लाभ होने जा रहा है। अयोध्या में पूरे विश्व से पर्यटकों के आने से उत्तरप्रदेश की अर्थव्यवस्था को तो जैसे पंख ही लग जाएंगे। भारत में अयोध्या की तर्ज पर ही अन्य धार्मिक स्थल भी विकसित किए गए हैं। वाराणसी में काशी विश्वनाथ कोरिडोर विकसित किया जा चुका है। गुजरात में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया है। पावागढ़ गुजरात में ही मां कालका मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया है। उत्तराखंड में केदारनाथ धाम प्रोजेक्ट पर भी कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है। उज्जैन में महाकाल कोरिडोर का निर्माण हुआ है। असम में माता कामाख्या कोरिडोर बन रहा है। पूरे भारत में ही धार्मिक स्थलों को विकसित कर देश में धार्मिक एवं क्षेत्रीय पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत के पर्यटन मंत्रालय के एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2021-22 में भारत में पर्यटन गतिविधियों से 1.34 लाख करोड़ रुपए की आय हुई है, जबकि वर्ष 2020-21 में धार्मिक पर्यटन से 65,000 करोड़ रुपए की आय हुई थी। इस प्रकार भारत में विकसित किए विभिन्न धार्मिक स्थलों के कारण पर्यटन की गतिविधियों से आय मात्र एक वर्ष के अंतराल में ही दोगुनी से भी अधिक हो गई है। सेंटर फोर सोशल इम्पैक्ट एंड फिलान्थ्रोपी के अनुसार, वर्ष 2021-22 के दौरान भारत में विभिन्न मंदिरों को मिलने वाला घरेलू दान 14 प्रतिशत बढ़कर 27,000 करोड़ रुपए का हो गया है। जबकि, वर्ष 2020-21 में 23,700 करोड़ रुपए का दान विभिन्न मंदिरों को प्राप्त हुआ था। विशेष रूप से वाराणसी में काशी विश्वनाथ कोरिडोर के विकसित किए जाने के बाद से काशी विश्वनाथ मंदिर को मिलने वाला दान 500 प्रतिशत बढ़ गया है। वर्ष 2021-22 में काशी विश्वनाथ मंदिर को 100 करोड़ रुपए का दान प्राप्त हुआ था। साथ ही, इस दौरान वाराणसी में धार्मिक पर्यटन भी 1000 प्रतिशत बढ़ गया है। इसी प्रकार, उज्जैन में महाकाल कोरिडोर के विकसित होने के पश्चात बाबा महाकाल मंदिर में धार्मिक पर्यटन 1800 प्रतिशत बढ़ा है। इन धार्मिक स्थलों पर पर्यटन बढ़ने से चूंकि व्यापार बढ़ रहा है अतः इन क्षेत्रों में रोजगार के हजारों नए अवसर भी निर्मित हो रहे हैं। अब तो वृंदावन में भी बांके बिहारी कोरिडोर विकसित किया जा रहा है ताकि श्रद्धालुओं का बांके बिहारी मंदिर में पहुंचना आसान हो सके। विशेष रूप से प्रभु श्रीराम की जन्म स्थली अयोध्या में केवल एक भव्य मंदिर बनाने की परिकल्पना नहीं की गई है बल्कि भव्य मंदिर के साथ साथ विशाल पुस्तकालय, संग्रहालय, अनुसंधान केंद्र, वेदपाठशाला, यज्ञशाला, सत्संग भवन, धर्मशाला, प्रदर्शनी, आदि को भी विकसित किया जा रहा है, ताकि आज की युवा पीढ़ी को प्रभु श्रीराम के काल पर अनुसंधान करने में आसानी हो। प्रभु श्रीराम के मंदिर को राष्ट्र मंदिर भी कहा जा रहा है क्योंकि यहां आने वाले हर व्यक्ति को यह मंदिर भारतीय सनातन संस्कृति की पहचान कराएगा। पूरे विश्व में यह मंदिर हिन्दू सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए आस्था का केंद्र बनने जा रहा है अतः यहां पूरे विश्व से सैलानियों का लगातार आना बना रहेगा। यह मंदिर पूरे विश्व में हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए एक महत्वपूर्ण आस्था का केंद्र बनने के साथ साथ पर्यटन के एक विशेष केंद्र के रूप में भी विकसित होने जा रहा है, इसलिए प्रभु श्रीराम की कृपा से करोड़ों व्यक्तियों की मनोकामनाओं की पूर्ति के साथ साथ लाखों लोगों को रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे। प्रहलाद सबनानी Read more »
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म राजनीति प्रभुश्रीराम का भव्य मंदिर विश्व भर के सनातनियों के लिए एक राष्ट्र मंदिर होगा December 13, 2023 / December 13, 2023 | Leave a Comment पूज्य भगवान श्रीराम हमें सदैव ही मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में दिखाई देते रहे हैं। पूरे विश्व में भारतीय नागरिकों को प्रभु श्रीराम के वंशज के रूप में जानने के कारण, आज पूरे विश्व में हर भारतीय की यही पहचान भी बन पड़ी है। लगभग हर भारतीय न केवल “वसुधैव कुटुंबकम”, अर्थात इस धरा पर निवास करने वाला प्रत्येक प्राणी हमारा परिवार है, के सिद्धांत में विश्वास करता है बल्कि आज लगभग हर भारतीय बहुत बड़ी हद्द तक अपने धर्म सम्बंधी मर्यादाओं का पालन करते हुए भी दिखाई दे रहा है। भारत में भगवान श्रीराम धर्म एवं मर्यादाओं के पालन करने के मामले में मूर्तिमंत स्वरूप माने जाते हैं। इस प्रकार वे भारत की आत्मा है। विशेष रूप से आज जब पूरे विश्व में आतंकवाद अपने पैर पसार रहा है एवं जब विकसित देशों में भौतिकवादी विकास सम्बंधी मॉडल के दुष्परिणाम, लगातार बढ़ रही मानसिक बीमारियों के रूप में दिखाई देने लगे हैं, ऐसे में पूरा विश्व ही आज भारत की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहा है कि ऐसे माहौल में केवल भारतीय सनातन संस्कृति ही विश्व को आतंकवाद से मुक्ति दिलाने में सहायक होगी एवं भारतीय आध्यात्मवाद के सहारे मानसिक बीमारियों से मुक्ति भी सम्भव हो सकेगी। इसी कारण से आज विशेष रूप से विकसित देशों यथा, जापान, रूस, अमेरिका, दक्षिणी कोरीया, फ्रान्स, जर्मनी, ब्रिटेन, कनाडा, इंडोनेशिया आदि अन्य देशों की ऐसी कई महान हस्तियां हैं जो भारतीय सनातन धर्म की ओर रुचि लेकर, इसे अपनाने की ओर लगातार आगे बढ़ रही हैं। भारत में सनातन धर्म का गौरवशाली इतिहास पूरे विश्व में सबसे पुराना माना जाता है। कहते हैं कि लगभग 14,000 विक्रम सम्वत् पूर्व भगवान नील वराह ने अवतार लिया था। नील वराह काल के बाद आदि वराह काल और फिर श्वेत वराह काल हुए। इस काल में भगवान वराह ने धरती पर से जल को हटाया और उसे इंसानों के रहने लायक बनाया था। उसके बाद ब्रह्मा ने इंसानों की जाति का विस्तार किया और शिव ने सम्पूर्ण धरती पर धर्म और न्याय का राज्य कायम किया। सभ्यता की शुरुआत यहीं से मानी जाती है। सनातन धर्म की यह कहानी वराह कल्प से ही शुरू होती है। जबकि इससे पहले का इतिहास भी भारतीय पुराणों में दर्ज है जिसे मुख्य 5 कल्पों के माध्यम से बताया गया है। यदि भारत के इतने प्राचीन एवं महान सनातन धर्म के इतिहास पर नजर डालते हैं तो पता चलता है कि हिन्दू सनातन संस्कृति एवं सनातन वैदिक ज्ञान वैश्विक आधुनिक विज्ञान का आधार रहा है। इसे कई उदाहरणों के माध्यम से, हिन्दू मान्यताओं एवं धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए, समय समय पर सिद्ध किया जा चुका है। सनातन वैदिक ज्ञान इतना विकसित था, जिसके मूल का उपयोग कर आज के आधुनिक विज्ञान के नाम पर पश्चिमी देशों द्वारा वैश्विक स्तर पर फैलाया गया है। दरअसल, सैकड़ों सालों के आक्रमणों और ग़ुलामी ने हमें सिर्फ राजनीतिक रूप से ही गुलाम नहीं बनाया गया था बल्कि मानसिक रूप से भी हम ग़ुलामी की जंजीरों में जकड़े गए थे। अंग्रेजों के शासन ने हमें हमारी ही संस्कृति के प्रति हीन भावना से भर दिया था। जबकि हमारे ही ज्ञान का प्रयोग कर वे संसार भर में विजयी होते रहे और नाम कमाते रहे। अब जरूरत है कि हम अपनी इस सांस्कृतिक धरोहर को जाने और इस पर गर्व करना भी सीखें। इसी क्रम में पूरे विश्व में निवास कर रहे हिन्दू सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जिनके नाम से आज विश्व में भारत की पहचान होती है, का एक भव्य मंदिर भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या में बनाया जाना शाश्वत प्रेरणा के साथ साथ एक आवश्यकता भी माना जाना चाहिए। चूंकि बाबर एवं मीर बाकी नामक आक्रांताओं ने भगवान श्रीराम के मंदिर का विध्वंस कर उस स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण कर लिया था अतः पुनः इस स्थान को मुक्त कराने हेतु प्रभु श्रीराम के भक्तों को 492 वर्षों तक लम्बा संघर्ष करना पड़ा है। अतीत के 76 संघर्षों में 4 लाख से अधिक रामभक्तों ने बलिदान दिया है एवं लगभग 36 वर्षों के सुसूत्र ऋंखलाबद्ध अभियानों के फलस्वरूप सम्पूर्ण समाज ने लिंग, जाति, वर्ग, भाषा, सम्प्रदाय, क्षेत्र आदि भेदों से ऊपर उठकर एकात्मभाव से श्रीराम मंदिर के लिए अप्रतिम त्याग और बलिदान किया है। अंततः उक्त बलिदानों के परिणामस्वरूप 9 नवम्बर 1989 को श्रीराम जन्मभूमि पर अनुसूचित समाज के बन्धु श्री कामेश्वर चौपाल ने पूज्य संतों की उपस्थिति में शिलान्यास सम्पन्न किया था। परंतु, प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर निर्माण करने हेतु जमीन के स्वामित्व सम्बंधी कानूनी लड़ाई अभी भी समाप्त नहीं हुई थी। इस प्रकार आस्था का यह विषय न्यायालयों की लम्बी प्रक्रिया (सत्र न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय तक) में भी फंस गया था। अंत में, पौराणिक-साक्ष्यों, पुरातात्विक-उत्खनन, राडार तरंगों की फोटो प्रणाली तथा एतिहासिक तथ्यों के आधार पर उच्चत्तम न्यायालय की 5 सदस्यीय पीठ ने 9 नवम्बर 2019 को सर्व सम्मति से एकमत होकर निर्णय देते हुए कहा “यह 14000 वर्गफीट भूमि श्रीराम लला की है।” इस प्रकार सत्य की प्रतिष्ठा हुई, तथ्यों और प्रमाणों के साथ श्रद्धा, आस्था और विश्वास की विजय हुई। तत्पश्चात, भारत सरकार ने 5 फरवरी 2020 को “श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र” नाम से न्यास का गठन कर अधिग्रहीत 70 एकड़ भूमि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र को सौंप दी। तदुपरांत 25 मार्च, 2020 को श्री राम लला तिरपाल के मन्दिर से अपने अस्थायी नवीन काष्ठ मंदिर में विराजमान हुए। अंततः 5 अगस्त 2020 को सदियों के स्वप्न-संकल्प सिद्धि का वह अलौकिक मुहूर्त उपस्थित हुआ। जब पूज्य महंत नृत्य गोपाल दास जी सहित देश भर की विभिन्न आध्यात्मिक धाराओं के प्रतिनिधि पूज्य आचार्यों, संतो, एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूजनीय सर संघचालक डा0 मोहन भागवत जी के पावन सानिध्य में भारत के जनप्रिय एवं यशस्वी प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भूमि पूजन कर मंदिर निर्माण का सूत्रपात किया। इस शुभ मुहूर्त में देश के 3000 से भी अधिक पवित्र नदियों एवं तीर्थों का जल, विभिन्न जाति, जन जाति, श्रद्धा केंद्रों तथा बलिदानी कार सेवकों के घर से लायी गई रज (मिट्टी) ने सम्पूर्ण भारत वर्ष को आध्यात्मिक रूप से “भूमि पूजन” में उपस्थित कर दिया था। आज, प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बनकर अब अपनी सम्पूर्णता की ओर तेजी से अग्रसर है और इस विशाल एवं भव्य मंदिर का शुभारम्भ भारत के यशस्वी प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी 22 जनवरी 2024 को परम पूज्य संत मंडल एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूजनीय सर संघचालक श्री मोहन जी भागवत के सानिध्य में करने जा रहे है। भारत में पूज्य संतों ने यह आह्वान किया है कि श्रीराम जन्म भूमि में भव्य मंदिर बनने के साथ साथ जन जन के हृदय मंदिर में श्रीराम एवं उनके नीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा भी होनी चाहिए। श्रीराम 14 वर्षों तक नंगे पैर वन वन घूमें। समाज के हर वर्ग तक पहुंचे। उन्होंने वंचित, उपेक्षित समझे जाने वाले लोगों को आत्मीयता से गले लगाया, अपनत्व की अनुभूति कराई, सभी से मित्रता की। जटायु को भी पिता का सम्मान दिया। नारी की उच्च गरिमा को पुनर्स्थापित किया। असुरों का विनाश कर आतंकवाद का समूल नाश किया। राम राज्य में परस्पर प्रेम, सद्भाव, मैत्री, करुणा, दया, ममता, समता, बंधुत्व, आरोग्य, त्रिविधताप विहीन, सर्वसमृद्धि पूर्ण जीवन सर्वत्र था। अतः हम सभी भारतीयों को मिलकर पुनः अपने दृढ़ संकल्प एवं सामूहिक पुरुषार्थ से पुनः एक बार ऐसा ही भारत बनाना है। प्रभु श्रीराम की जन्म स्थली अयोध्या में केवल एक भव्य मंदिर बनाने की परिकल्पना नहीं की गई है बल्कि भव्य मंदिर के साथ साथ विशाल पुस्तकालय, संग्रहालय, अनुसंधान केंद्र, वेदपाठशाला, यज्ञशाला, सत्संग भवन, धर्मशाला, प्रदर्शनी, आदि को भी विकसित किया जा रहा है, ताकि आज की युवा पीढ़ी को प्रभु श्रीराम के काल पर अनुसंधान करने में आसानी हो। प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर को राष्ट्र मंदिर इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि यहां आने वाले हर व्यक्ति को यह मंदिर भारतीय सनातन संस्कृति की पहचान कराएगा। पूरे विश्व में यह मंदिर हिन्दू सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए आस्था का केंद्र बनने जा रहा है अतः यहां पूरे विश्व से सैलानियों का लगातार आना बना रहेगा। यह मंदिर पूरे विश्व में हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए एक महत्वपूर्ण आस्था का केंद्र बनने के साथ साथ पर्यटन के एक विशेष केंद्र के रूप में भी विकसित होने जा रहा है, इसलिए प्रभु श्रीराम की कृपा से करोड़ों व्यक्तियों की मनोकामनाओं की पूर्ति के साथ साथ लाखों लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदत्त होंगे। Read more » प्रभुश्रीराम का भव्य मंदिर
आर्थिकी राजनीति भारतीय रिजर्व बैंक को अब ब्याज दरों में कटौती के बारे में सोचना चाहिए December 11, 2023 / December 11, 2023 | Leave a Comment भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की तीन दिवसीय बैठक 8 दिसम्बर 2023 को समाप्त हुई और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर श्री शक्तिकांत दास ने नीतिगत रेपो दर में किसी भी प्रकार का परिवर्तन न करते हुए इसे 6.50 प्रतिशत पर यथावत बनाए रखा है, क्योंकि मुख्य रूप से भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर नियंत्रण में बनी हुई है। हालांकि अभी यह देश के मध्यावधि लक्ष्य 4 प्रतिशत के अंदर नहीं आई है। परंतु, भारतीय अर्थव्यवस्था जिस गति से आगे बढ़ रही है, इसे देखते हुए एवं आर्थिक विकास की दर को और अधिक गति देने के उद्देश्य से अब भारत में ब्याज दरों को कम किये जाने का समय आ गया लगता है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर का 4 प्रतिशत से अधिक बने रहने के पीछे मुख्य कारण तेल एवं खाद्य पदार्थों (फल, सब्जी, आदि) में अचानक वृद्धि होते रहना है। अन्यथा, थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर तो लम्बे समय से रिणात्मक बनी हुए है एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मूल मुद्रा स्फीति की दर भी पूर्ण रूप से नियंत्रण में है। हां, वैश्विक स्तर पर आर्थिक परिस्थितियां जरूर भारत में ब्याज दरों को कम करने के पक्ष में नजर नहीं आ रही हैं। चीन सहित, विश्व के कई देशों में आर्थिक विकास दर कम हो रही है एवं इन देशों में मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में लाने के उद्देश्य से ब्याज दरों को अभी भी ऊंची दरों पर बनाए रखा गया है। इसी माह अमेरिका में सम्पन्न हुई फेडरल रिजर्व की बैठक में फेड रेट में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया गया है। चूंकि अन्य देशों में ब्याज की उच्च दर अभी भी बनी हुई है अतः अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए पर दबाव बना हुआ है। इन परिस्थितियों के बीच यदि भारतीय रिजर्व बैंक भारत में ब्याज दरों को कम करता है तो भारतीय रुपए पर दबाव और अधिक बढ़ेगा। अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों में मुद्रा स्फीति की दर में सुधार जरूर दृष्टिगोचर है। अमेरिका में तो अभी हाल ही में सोवरेन बांड प्रतिफल में गिरावट भी दर्ज हुई है एवं अमेरिकी डॉलर की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में कुछ कम हुई है। इससे कई देशों के पूंजी (शेयर) बाजार मजबूत हुए हैं। अतः अब आगे आने वाले समय में इन परिस्थितियों के बीच विश्व के विभिन्न देशों द्वारा ब्याज दरों में कमी किए जाने की सम्भावना बढ़ती जा रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था को तो इससे अत्यधिक लाभ होगा। ब्याज दरें कम होने से भारतीय उद्योग द्वारा निर्मित किए जाने वाले उत्पादों की उत्पादन लागत कम होगी और भारत में निर्मित होने वाले उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बन जाएंगे, इससे इन उत्पादों का भारत से निर्यात बढ़ेगा। भारत में आंतरिक आर्थिक परिस्थितियां लगातार अनुकूल बनी हुई हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने के बाद द्वितीय तिमाही में भी 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की गई है। यह वृद्धि दर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय स्तर के वित्तीय संस्थानों एवं भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व अनुमानों से कहीं अधिक है। भारत में लगातार बढ़ रहे निवेश एवं केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे पूंजीगत एवं अन्य खर्च में अपार वृद्धि के चलते सम्भव हो पा रहा है। विनिर्माण एवं निर्माण गतिविधियों में अतुलनीय वृद्धि के चलते दूसरी तिमाही में विकास दर अत्यंत आकर्षक रही है। आगे आने समय में भी विनिर्माण गतिविधियों में मजबूती, निर्माण में भारी वृद्धि एवं ग्रामीण इलाकों में बढ़ रही उत्पादों की मांग के चलते घरेलू स्तर पर उत्पादों की मांग में और अधिक सुधार होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। अतः भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए भारत की आर्थिक विकास दर के अनुमानों में सुधार करते हुए इसे 7 प्रतिशत तक पहुंचा दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रण में करना चाहता है। जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की इस दर में विभिन्न खाद्य पदार्थों की कीमतें भी शामिल रहती हैं। खाद्य पदार्थों की कीमतें पूर्णत: मांग एवं आपूर्ति के सिद्धांत पर तय होती हैं। जब किसी वर्ष किसी खाद्य पदार्थ की फसल संतोषजनक होती है तो उस खाद्य पदार्थ की कीमतें नियंत्रण में रहती है और यदि किसी मौसम में किसी सब्जी अथवा फल की फसल ठीक नहीं रहती है तो उसकी कीमतें बाजार में आसमान छूने लगती हैं। जैसा कि अक्सर भारत में प्याज, टमाटर एवं अन्य सब्जियों एवं फलों की स्थिति में देखा गया है। इस प्रकार की मुद्रा स्फीति को ब्याज दरों में वृद्धि कर नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। इन पदार्थों की कीमतों को तो केवल इनकी आपूर्ति को बढ़ाकर ही नियंत्रण में लाया जा सकता है। फिर, इन पदार्थों की बढ़ती कीमतों के चलते यदि ब्याज दरों में वृद्धि हो रही है तो यह अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों, विशेष रूप से उद्योग एवं सेवा क्षेत्र, के लिए हानिकारक परिणाम देता दिखाई दे रहा है। इन कारणों के चलते अब भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मूल मुद्रा स्फीति की दर को ही नियंत्रित करना चाहिए एवं उसके आधार पर ही ब्याज दरों में वृद्धि अथवा कमी की जानी चाहिए। जब फल एवं सब्जियों की कीमतों में अचानक हो रही वृद्धि को ब्याज दरें बढ़ाकर नियंत्रित ही नहीं किया जा सकता है तो फिर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में इन मदों को शामिल ही क्यों रखा जाना चाहिए। अतः कुल मिलाकर अब भारत में थोक मूल्य सूचकांक आधारित एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मूल मुद्रा स्फीति की दर अब नियंत्रण में है इसलिए आगामी मौद्रिक नीति समिति की बैठक में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारत में ब्याज दरों को कम करने के सम्बंध में विचार किया जाना चाहिए। Read more » Reserve Bank of India should now think about cutting interest rates भारतीय रिजर्व बैंक
आर्थिकी लेख भारत में विवाह समारोहों की अर्थव्यवस्था December 7, 2023 / December 7, 2023 | Leave a Comment भारतीय सनातन संस्कृति के अनुसार पवित्र शादियों के धार्मिक संस्कारों के माध्यम से दो आत्माओं का मिलन कराया जाता है। कहा तो यहां तक भी जाता है कि दूल्हा और दुल्हन शादी के धार्मिक संस्कारों के माध्यम से सात जन्मों तक के लिए एक दूसरे के हो जाते हैं। इसलिए, शादी के समय विभिन्न अध्यात्मिक, धार्मिक एवं सांसारिक संस्कारों को सम्पन्न कराने के लिए समाज के गणमान्य नागरिकों, नाते रिश्तेदारों, परिवार के सदस्यों को साथ लेकर विभिन्न प्रकार के भव्य आयोजन सम्पन्न किए जाते हैं। इन आयोजनों में विभिन्न कार्यक्रम सम्पन्न होते हैं एवं आजकल तो ऐसे शुभ अवसरों पर भारी मात्रा में व्यय भी किया जा रहा है। शादी के विभिन्न आयोजनों पर किए जाने वाले भारी भरकम खर्च से देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत में नवम्बर 2023 माह से लेकर आगामी लगभग 4 माह के दौरान 38 लाख से अधिक शादियों के आयोजन सम्पन्न होने जा रहे हैं। केवल 4 माह की इस अवधि में लगभग 4.75 लाख करोड़ की राशि का व्यय होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में 35 लाख शादियों पर 3.75 लाख करोड़ रुपए की राशि का व्यय हुआ था। कन्फेडरेशन ओफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के अनुसार, भारत में इस वर्ष शादियों के मौसम में सबसे अधिक खर्च करने का विश्व रिकार्ड बनाया जा सकता है। पिछले वर्ष इसी अवधि की तुलना में इस वर्ष एक लाख करोड़ रुपए अधिक राशि शादियों पर खर्च होने जा रही है। शादी के विभिन्न कार्यक्रमों में विभिन्न मदों पर होने वाले खर्च के सम्बंध में भी अनुमान लगाए गए हैं। इन अनुमानों के अनुसार, इस वर्ष नए कपड़े और नई ज्वेलरी को खरीदने की मद पर एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च होने वाली है, मेहमानों की खातिरदारी पर 60,000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च होने जा रही है, शादी समारोह से जुड़े कार्यक्रमों पर 60,000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च होने जा रही है। विश्व का कोई भी देश शादियों के मौसम में इतनी भारी भरकम राशि का खर्च नहीं करता दिखाई दे रहा है क्योंकि अन्य देशों में शादी के समारोहों पर इतना खर्च किया ही नहीं जाता है। यह तो भारतीय सनातन संस्कृति ही है जिसके अंतर्गत शादी के समय विभिन प्रकार के संस्कार सम्पन्न कराने के उद्देश्य से कई प्रकार के आयोजन सम्पन्न किए जाते हैं। आज विकसित देशों में तो विवाह नामक संस्था उपलब्ध ही नहीं है और “लव मैरिज” नामक रिवाज का पालन किया जा रहा है। साथ ही अब तो बगैर विवाह के “लिव इन रिलेशन” नामक रिवाज ही चल पड़ा है। विकसित देशों के युवा इस प्रकार के रिवाजों के चलते बच्चे भी पैदा नहीं कर रहे हैं और कुछ समय पश्चात ही आपस में रिश्तों को “तलाक” का रूप दे देते हैं। यदि इस बीच किसी जोड़े को बच्चा हो भी जाता है तो उसे “सिंगल पेरेंट” के रिवाज के तहत केवल मां के पास ही रहना होता है। इस प्रकार वह बच्चा अपने पिता के प्यार से वंचित रहता है और उस बच्चे का मानसिक विकास नहीं हो पाता है। इन्हीं कारणों के चलते आज विश्व के कई देशों में बुजुर्गों की संख्या तो बढ़ती जा रही है परंतु युवाओं की संख्या कम होती जा रही है, जिसका सीधा सीधा प्रभाव इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। अतः कुल मिलाकर यह सनातन संस्कृति के संस्कार ही हैं जो भारत में आज भी कुटुंब व्यवस्था को जीवित रखे हुए हैं। संयुक्त परिवार सामान्यतः केवल भारत में ही दिखाई देते हैं, जहां बुजुर्गों की देखभाल इन संयुक्त परिवारों में बहुत ही सहज तरीके से होती है। अन्यथा, विकसित देशों में चूंकि संयुक्त परिवार का चलन नहीं के बराबर है अतः बुजुर्गों की देखभाल इन देशों की सरकार को “सोशल बेनीफिट्स” योजना के अंतर्गत करनी होती है। आज कुछ देशों में तो “सोशल बेनीफिट्स” की मद पर इतना अधिक खर्च होने लगा है कि इन देशों की बजट व्यवस्था ही भारी दबाव में आ गई है। इसके ठीक विपरीत, भारत में विभिन्न त्यौहार भी बड़े ही उत्साह से मनाए जाते है जिसके कारण भारत में सामाजिक तानाबाना ठीक बना हुआ है। इसी सामाजिक तानेबाने के ठीक अवस्था में रहने के चलते ही इस वर्ष, दीपावली एवं धनतेरस के त्यौहारी मौसम में भारत में 3.75 लाख करोड़ रुपए का व्यापार हुआ है। साथ ही, केवल करवा चौथ के दिन 15,000 करोड़ रुपए का व्यापार सम्पन्न हुआ था। भारत में त्यौहारी मौसम में अक्टोबर 2023 माह में 23 लाख वाहनों की बिक्री हुई है। 4 लाख चारपहिया वाहन एवं 19 लाख दोपहिया वाहनों की बिक्री हुई है। आने वाले शादियों के मौसम में भी इस वर्ष वाहनों की जबरदस्त बिक्री होने की सम्भावना है। उक्त वर्णित कारणों के चलते ही भारत में तेजी से गरीबी एवं बेरोजगारी भी कम हो रही है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2022-23 में दक्षिण अफ्रीका में बेरोजगारी की दर 32.8 प्रतिशत रही है और ईरान में 9.4 प्रतिशत, ब्राजील में 8.3 प्रतिशत, पाकिस्तान में 8.5 प्रतिशत, फ्रान्स में 7.4 प्रतिशत, इटली में 7.9 प्रतिशत, चीन में 5.3 प्रतिशत, ब्रिटेन में 4.2 प्रतिशत और अमेरिका में 4 प्रतिशत बेरोजगारी की दर पाई गई है। उक्त आंकड़ों के विपरीत भारत में इस अवधि के दौरान बेरोजगारी की दर में बहुत कमी दृष्टिगोचर हुई है। आज भारत में उच्च निवल सम्पत्ति वाले नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। अतः समस्त मेहमानों सहित अब विदेश में जाकर शादी की रस्में सम्पन्न करने का प्रचलन भारत में बहुत बढ़ गया है। अभी हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी को देश के नागरिकों से यह अपील करनी पड़ी है कि विदेश में जाकर शादी की रस्में पूर्ण नहीं करे क्योंकि इससे शादी की रस्मों पर होने वाले व्यय का लाभ उस देश को मिल रहा है जबकि भारत में ही पर्याप्त मात्रा में पर्यटन स्थल उपलब्ध हैं, जहां आसानी से शादियां विधि विधान से सम्पन्न कर विवाह समारोह भी आयोजित किए जा सकते हैं। इससे शादी पर होने वाले खर्च का लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलेगा और देश का पैसा भी देश में ही बना रहेगा। आज भारतीय नागरिकों द्वारा सनातन संस्कृति के संस्कारों के पालन का लाभ भी भारतीय अर्थव्यवस्था को निश्चित रूप से स्पष्टत: मिलता दिखाई दे रहा है और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की दर को लगातार बढ़ाते जा रहे हैं। अभी हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मोनेटरी फंड ने केलेंडर वर्ष 2024 के लिए भारत में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर के अनुमान को बढ़ाकर 6.3 प्रतिशत कर दिया है, जबकि अमेरिकी में यह वृद्धि दर 1.5 प्रतिशत, जर्मनी में 0.9 प्रतिशत, फ्रान्स में 1.3 प्रतिशत, जापान में रिणात्मक 1 प्रतिशत, चीन में 4.2 प्रतिशत और रूस में 1.1 प्रतिशत विकास दर रहने का अनुमान लगाया गया है। Read more » Economy of marriage ceremonies in India
आर्थिकी बड़े बाजार के रूप में स्थापित होने के बाद, विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित होता भारत December 6, 2023 / December 6, 2023 | Leave a Comment वैश्विक स्तर पर भारत एक बड़े बाजार के रूप में स्थापित होने के बाद अब एक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित हो रहा है। आज चीन के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर कम हो रही है, इसके ठीक विपरीत भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर लगातार बढ़ रही है। चीन में हाल ही के समय में कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का विदेशी निवेश चीन से बाहर निकाल लिया है। ये बहुराष्ट्रीय कम्पनियां चीन में अपनी विनिर्माण इकाईयों को बंद कर अन्य देशों की ओर रूख कर रही हैं। इनमें से अधिकतर बड़ी बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत की ओर भी आ रही हैं एवं अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना यहां कर रही हैं। अब तो भारत का “मेक इन इंडिया” ब्राण्ड चीन के “मेड इन चाइना” ब्राण्ड पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। विभिन्न प्रकार के आईफोन, लैपटॉप, टेबलेट आदि उच्चत्तम स्तर के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद का निर्माण करने वाली विश्व की सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक “ऐपल” भारत में अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना कर रही है एवं आईफोन का निर्माण तो भारत में प्रारम्भ भी कर दिया है। वर्ष 2024 में ऐपल कम्पनी भारत में एक लाख करोड़ रुपए के आई फोन का उत्पादन करेगी, ऐसी योजना इस कम्पनी ने बनाई है। इन आईफोन का न केवल भारत में निर्माण किया जा रहा है बल्कि भारत में निर्मित इन आईफोन को विश्व के कई देशों, विकसित देशों सहित, को निर्यात भी किया जा रहा है। वर्ष 2014 में भारत में केवल 6 करोड़ मोबाइल फोन का निर्माण प्रतिवर्ष हो रहा था जो आज बढ़कर 30 करोड़ से अधिक मोबाइल फोन प्रतिवर्ष हो गया है। इसी प्रकार चीन, जापान एवं दक्षिण कोरिया की सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक “सैमसंग” नामक बहुराष्ट्रीय कम्पनी भी भारत में ही मोबाइल फोन का निर्माण कर रही है और अपने ही देश यथा जापान एवं दक्षिण कोरिया को मोबाइल फोन का भारत से निर्यात भी कर रही है। अर्थात, इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा भारत में उत्पादों का निर्माण कर अपने ही देश को भारत से निर्यात किया जा रहा है। 4 वर्ष पूर्व तक भारत अपनी मोबाइल फोन की कुल आवश्यकता का 81 प्रतिशत भाग अन्य देशों से आयात करता था परंतु अब अपने देश में 100 प्रतिशत आपूर्ति करने के बाद अपने कुल उत्पादन का 25 प्रतिशत भाग निर्यात करता है। अमेरिका की “डेल” एवं “एचपी” नामक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भी भारत में आईटी हार्डवेयर का निर्माण करने हेतु विनिर्माण इकाईयों की स्थापना कर रही हैं। अमेरिका की इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भारत में विनिर्माण इकाई स्थापित करने हेतु अनुमति भी मिल चुकी है। चीन की एक “लेनोवो” नामक कम्पनी भी भारत में आईटी हार्डवेयर निर्माण हेतु एक इकाई की स्थापना करने जा रही है। जबकि उक्त समस्त बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की चीन में विनिर्माण इकाईयां पूर्व से ही स्थापित हैं, परंतु अब चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के उद्देश्य से चीन+1 पॉलिसी के तहत यह समस्त कम्पनियां भारत में भी अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना कर रही हैं। इसी प्रकार, ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में भी भारत विनिर्माण केंद्र के रूप में तेजी से विकसित हो रहा है। अब भारत में निर्मित कारें पूरी दुनिया में बिक रही हैं। जापान की बहुत बड़ी कार निर्माता कम्पनी “सुजुकी” नामक बहुराष्ट्रीय कम्पनी भारत में कारों का निर्माण कर विश्व के 100 से अधिक देशों को निर्यात कर रही है। जापान की हुण्डाई, होण्डा एवं सुज़ुकी नामक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत को अपना ऑटोमोबाइल केंद्र बना रही हैं। हुण्डाई तो भारत में अपने कुल उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत भाग निर्यात कर रही है। ये समस्त कम्पनियां जापान की हैं और भारत में करों का निर्माण कर जापान को ही निर्यात कर रही हैं। कपड़ों के निर्माण करने वाले बड़े बड़े अंतरराष्ट्रीय ब्राण्ड भी कपड़ों का उत्पादन करने हेतु अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना भारत में कर रही हैं। आज भारत से भारी मात्रा में कपड़ों का निर्यात पूरे विश्व को किया जा रहा है। दवाईयों एवं टीकों के निर्माण के क्षेत्र में भारत पहिले से ही वैश्विक स्तर पर एक शक्ति के रूप में अपने आप को स्थापित कर चुका है। हाल ही के समय में, भारत सुरक्षा के क्षेत्र में भी अपनी पैठ बना रहा है एवं भारत ने 85 देशों को 16,000 करोड़ रुपए के उपकरण एवं हथियार निर्यात किए हैं। सेमी-कंडकटर चिप का निर्माण करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भी अब भारत में अपनी विनिर्माण इकाईयां स्थापित करने जा रही हैं। “मेक इन इंडिया” अब बहुत बड़ी ताकत बनता जा रहा है। उक्त वर्णित कारकों के चलते वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही (जुलाई-सितम्बर 2023) के दौरान भारत में उद्योग के क्षेत्र में 13.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि विनिर्माण के क्षेत्र में 13.9 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज हुई है और इससे उद्योग के क्षेत्र में भी अब रोजगार के भरपूर अवसर निर्मित हो रहे हैं। चीन से विनिर्माण इकाईयों के अन्य देशों में स्थानांतरित होने के पीछे दरअसल चीन की नीतियां ही अधिक जिम्मेदार हैं। एक तो चीन में श्रम की लागत बहुत तेजी से बढ़ी है और अब कई कम्पनियों की इसके चलते उत्पादन लागत बढ़ रही है और उनकी लाभप्रदता पर विपरीत असर पड़ रहा है। दूसरे, चीन में सस्ते युवा श्रम की संख्या लगातार कम हो रही है क्योंकि चीन में जन्म दर बहुत निम्न स्तर पर पहुंच गई है और बुजुर्गों की संख्या लगातार बढ़ रही है। चीन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर पैनी नज़र रखता है और कब किस कम्पनी पर किस कारण से किस प्रकार का जुर्माना लगाया जाएगा, कुछ पता नहीं रहता है। इस कारण से कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की चीन पर विश्वसनीयता भी कम हो रही है। चीन के अपने लगभग समस्त पड़ौसी देशों के साथ सम्बंध अच्छे नहीं है तथा चीन कई छोटे छोटे देशों पर अपनी चौधराहट स्थापित करना चाहता है इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन ने विभिन्न देशों के बीच अपनी साख खोई है। इस समस्त कारणों से आज कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियां चीन से अपना व्यवसाय समेट कर अन्य देशों की ओर रूख कर रही हैं। इस सबका फायदा अन्य देशों के साथ साथ भारत को भी हो रहा है और कई नामी ग्रामी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में अपने विनिर्माण इकाईयां स्थापित कर रही हैं। दरअसल भारत में केंद्र सरकार की उद्योग मित्र नीतियां भी इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भारत की ओर आकर्षित कर रही हैं। साथ ही, भारत में पिछले कुछ वर्षों के दौरान आधारभूत सुविधाएं बहुत तेजी से विकसित हुई हैं तथा भारत में सस्ता श्रम भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। कभी अमेरिका भी वैश्विक स्तर पर विनिर्माण इकाईयों का केंद्र हुआ करता था। बाद में यूरोप भी विनिर्माण इकाईयों का केंद्र बन गया था। आज चीन विनिर्माण इकाईयों का केंद्र बना हुआ है। अब आगे आने वाले समय में भारत विनिर्माण इकाईयों का केंद्र बनने की ओर अग्रसर है। अमेरिका एवं यूरोप के विकसित देश आज सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्च स्तरीय तकनीक के उपयोग में बहुत आगे हैं, परंतु, इन देशों को इस स्थिति में पहुंचने के पूर्व अपने विनिर्माण इकाईयों के केंद्र के रुतबे को खोना पड़ा था। वही स्थिति अब चीन की भी होती दिख रही है। परंतु, भारत के साथ एक लाभ यह भी है कि भारत पहिले से ही सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी धाक वैश्विक स्तर पर स्थापित कर चुका है अतः भारत यदि विनिर्माण इकाईयों का केंद्र बनने की ओर अग्रसर है तो यह भारत के लिए एक अतिरिक्त उपलब्धि मानी जानी चाहिए। प्रहलाद सबनानी Read more » विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित होता भारत
आर्थिकी राजनीति भारत के सकल घरेलू उत्पाद में उद्योग क्षेत्र का बढ़ता योगदान December 1, 2023 / December 1, 2023 | Leave a Comment वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही, जुलाई-सितम्बर 2023, के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के आंकड़े भारत सरकार द्वारा जारी कर दिए गए हैं। इस वर्ष द्वितीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर विभिन्न वित्तीय संस्थानों द्वारा लगाए गए अनुमानों से बहुत ऊपर रही है। विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा दिए गए 6.8 प्रतिशत के अनुमान से बहुत अधिक अर्थात यह वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत की रही है, जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 की द्वितीय तिमाही में 6.2 प्रतिशत की रही थी। भारत में इस वर्ष द्वितीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में दर्ज की गई वृद्धि की तुलना में अन्य देशों के सकल घरेलू उत्पाद में तिमाही के दौरान वृद्धि दर बहुत कम रही है। फिलिपींस में 5.9 प्रतिशत, रूस में 5.5 प्रतिशत, वियतनाम में 5.33 प्रतिशत, अमेरिका में 5.2 प्रतिशत, चीन में 4.9 प्रतिशत, मलेशिया में 3.3 प्रतिशत, थाईलैंड में 1.5 प्रतिशत, ब्रिटेन में 0.6 प्रतिशत, यूरो क्षेत्र में 0.1 प्रतिशत, जर्मनी में रिणात्मक 0.4 प्रतिशत एवं जापान में रिणात्मक 2.1 प्रतिशत वृद्धि दर दर्ज की गई है। इस प्रकार भारत पूरे विश्व में लगातार सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है। हर्ष का विषय तो यह है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में जुलाई-सितम्बर 2023 तिमाही के दौरान 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर में मुख्य योगदान उद्योग क्षेत्र का रहा है। भारत के उद्योग क्षेत्र ने इस दौरान 13.2 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की है, जो कि हाल ही के समय में अपने आप में एक रिकार्ड है। वित्तीय वर्ष 2022-23 की द्वितीय तिमाही, जुलाई-सितम्बर 2022 के दौरान उद्योग क्षेत्र ने रिणात्मक 0.5 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की थी। उद्योग क्षेत्र के अंतर्गत, विनिर्माण क्षेत्र ने 13.9 प्रतिशत की विकास दर हासिल की है जो पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान रिणात्मक 3.8 प्रतिशत थी। ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र ने 10.1 प्रतिशत की वृद्धि दर, माइनिंग क्षेत्र ने 10 प्रतिशत, कन्स्ट्रक्शन क्षेत्र ने 13.3 प्रतिशत की आकर्षक वृद्धि दर हासिल की है। इन समस्त क्षेत्रों में रिकार्ड वृद्धि दर से भारत में रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित हुए हैं, जिसके चलते बेरोजगारी की दर में भी कमी दृष्टिगोचर हुई है। भारत में प्रत्येक वर्ष अक्टोबर-नवम्बर माह में दीपावली एवं अन्य कई महत्वपूर्ण त्यौहारों का मौसम रहता है। इन त्यौहारों के दौरान भारत के नागरिकों द्वारा विभिन्न उत्पादों की भारी मात्रा में खरीददारी की जाती है। ऐसा आभास है कि अकटोबर-नवम्बर में पड़ने वाले विभिन्न त्यौहारों को ध्यान में रखते हुए जुलाई-सितम्बर 2023 तिमाही में ऑटोमोबाइल, फ्रिज, टीवी, मोबाइल फोन, आदि जैसे विभिन्न उत्पादों का भारी मात्रा में उत्पादन विनिर्माण इकाईयों द्वारा किया गया है। जिसके चलते इस तिमाही में विनिर्माण इकाईयों ने भारी भरकम 13.9 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की है। भारत में कन्स्ट्रक्शन क्षेत्र ने भी रफ्तार पकड़ ली है, जिसके चलते इस क्षेत्र में आकर्षक 13.3 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल कर ली गई है। अकटोबर 2023 माह में भी कोर क्षेत्र के उद्योगों ने 12.1 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की है। इस वर्ष अल नीनो के प्रभाव के चलते देश के कई क्षेत्रों में मानसून की बारिश ठीक तरह से नहीं हो पाई है। इसका विपरीत प्रभाव कृषि क्षेत्र पर स्पष्टत: पड़ता हुआ दिखाई दिया है। कृषि क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही में केवल 1.2 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की जा सकी है, जो कि पिछले वर्ष इसी अवधि में 2.5 प्रतिशत की रही थी। भारत में कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिये जाने की अत्यधिक आवश्यकता है क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पूरे विश्व में ही खाद्य उत्पादों की भारी कमी महसूस की जा रही है। भारत, इस स्थिति का लाभ उठा सकता है एवं पूरे विश्व को ही खाद्य पदार्थों की आपूर्ति कर सकता है। रबी मौसम की बुआई का कार्य प्रगति पर है। यदि खाद्य पदार्थों की बुआई के क्षेत्रफल में भारी विस्तार किया जा सके तो खाद्य पदार्थों के उत्पादन में भारी वृद्धि की जा सकती है। आज पूरा विश्व ही खाद्य पदार्थों के लिए भारत की ओर टकटकी लगाए है एवं आशाभरी नजरों से भारत की ओर देख रहा है। वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही में सेवा क्षेत्र में रिकार्ड की गई वृद्धि दर ने जरूर निराश किया है। इस दौरान सेवा क्षेत्र ने 4.8 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की है जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में दर्ज की गई वृद्धि दर 9.4 प्रतिशत की तुलना में बहुत कम है। इस वर्ष द्वितीय तिमाही में हासिल की गई वृद्धि दर से आश्चर्य भी हुआ है क्योंकि विभिन्न बैकों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋणों में वृद्धि दर लगातार दहाई के आंकड़े पर बनी हुई है, होटल लगातार अपनी स्थापित क्षमता का भरपूर उपयोग करते हुए दिखाई दे रहे हैं, रेल्वे एवं हवाई जहाज का उपयोग भी लगातार उच्चत्तम स्तर पर बना हुआ है। फिर भी, वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र ने 6 प्रतिशत एवं व्यापार एवं होटल क्षेत्र ने 4.3 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की है। इसी प्रकार निजी क्षेत्र में अंतिम उपभोग में भी केवल 3.1 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की जा सकी है। भारत को यदि शीघ्र ही विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था के रूप में देखना है तो भारत के निजी क्षेत्र के लिए अपने उपभोग में वृद्धि करना अब आवश्यक हो गया है। यह तो सरकारी क्षेत्र के अंतिम उपभोग में भारी भरकम 12.4 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई है, एवं केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में भारी भरकम वृद्धि रही है जिसके चलते देश में पूंजी निर्माण में 11 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। जो अंततः इस तिमाही के दौरान 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने के पीछे मुख्य कारक बन गया है। आगे आने वाले समय में लोक सभा चुनावों को देखते हुए सम्भवत: केंद्र सरकार के अंतिम उपभोग में और अधिक वृद्धि होने की सम्भावना है एवं इस दौरान केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय भी अभी और तेजी से बढ़ेगा जिसके कारण वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय एवं चतुर्थ तिमाही में भी सकल घरेलू उत्पाद में आकर्षक वृद्धि दर रहने की भरपूर सम्भावना है। साथ ही, इस वर्ष नवम्बर 2023 माह में दीपावली एवं अन्य त्यौहारों के चलते लगभग 4 लाख करोड़ रुपए का व्यापार दर्ज हुआ है तथा देश में विभिन्न तीर्थ स्थलों पर भारी मात्रा में भारतीय नागरिक धार्मिक पर्यटन करते हुए दिखाई दे रहे हैं और आगे आने वाले माह में देश में शादियों के मौसम के चलते भी नागरिकों के खर्च में भारी भरकम वृद्धि होगी, इसका प्रभाव, तृतीय तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर पर भी देखने को मिलेगा। कुल मिलाकर भारतीय सनातन संस्कृति के पालन (धार्मिक स्थलों पर दर्शन के लिए जाते भारतीय, विभिन्न भारतीय त्यौहारों को बड़े उत्साह से मनाते भारतीय) से भी भारतीय अर्थव्यवस्था को बल मिल रहा है और देश के सकल घरेलू उत्पाद में प्रथम तिमाही में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि के बाद अब द्वितीय तिमाही में भी 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की जा सकी है। अब तो पूरा विश्व ही आश्चर्य कर रहा है भारत विभिन उत्पादों के लिए अपनी आंतरिक मांग के आधार पर अपने सकल घरेलू उत्पाद में अतुलनीय वृद्धि दर हासिल कर रहा है एवं इस दृष्टि से भारत की विदेशी व्यापार पर निर्भरता बहुत ही कम है। प्रहलाद सबनानी Read more »
राजनीति लेख भारत में सरकारी नियमों के बगैर हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी किया जाना एक गम्भीर विषय November 22, 2023 / November 22, 2023 | Leave a Comment पिछले कुछ समय से भारत सहित, पूरे विश्व में इस्लाम मजहब के अनुयायियों के लिए हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र प्राप्त उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। हालांकि हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी करने के सम्बंध में कोई प्रक्रिया तय नहीं की गई है और न ही सरकारी तौर पर इस सम्बंध में कोई दिशा निर्देश जारी किए गए हैं, परंतु फिर भी भारत में हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी करने का कार्य विभिन्न संस्थानों द्वारा धड़ल्ले से किया जा रहा है एवं कई विनिर्माण इकाईयों से भारी भरकम राशि हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी करने के एवज में वसूली जा रही है। साथ ही, विनिर्माण इकाईयों पर भी दबाव बनाया जाता है कि वे अपने संस्थानों में इस्लाम मजहब के अनुयायियों की नियुक्ति करें। अब यह भी समझ से परे है कि फैशन, सौंदर्य साधनों, किराने के सामान, सब्जियों, वित्तीय सुविधाओं एवं ढाबे आदि जैसी गतिविधियों को हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र किस प्रकार प्रदान किया जा सकता है? इसी संदर्भ में अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार एवं सुप्रीम कोर्ट ने हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी करने के सम्बंध में जांच के आदेश जारी किए हैं। दरअसल, इस्लाम मजहब के अनुयायियों के लिए हलाल शब्द बहुत महत्व भरा शब्द है। हलाल का आश्य यह बताया जाता है कि मुस्लिम मतावलंबियों के लिए जो वस्तु वैद्य है वह हलाल है और जो वैध नहीं है वह हराम है। ऐसा भी बताया जाता है कि प्रारम्भ में इस्लाम-कुरान में खाने की वस्तुओं, विशेष रूप से मांसाहार, के साथ हलाल शब्द को जोड़ा गया था अर्थात किन वस्तुओं (किस प्रकार के मांसाहार) का खाना हलाल है एवं किन वस्तुओं (किस प्रकार के मांसाहार) का खाना हराम है। परंतु, अब तो हलाल को दैनिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के साथ जोड़ दिया गया है। जैसे हलाल मांस, हलाल फैशन एवं सौंदर्य के साधन, हलाल किराने का सामान, हलाल सब्जियां, हलाल वित्तीय सुविधाएं, हलाल ढाबे, आदि आदि। कई इस्लामी देशों ने यह तय कर लिया है कि उनके नागरिक केवल हलाल प्रमाणित खाद्य पदार्थों एवं अन्य सुविधाओं का उपयोग करेंगे एवं इन देशों ने हलाल प्रमाणन को कानूनी रूप दे दिया है। कोई उत्पाद हलाल प्रमाणित है इसके लिए बाकायदा विशेष संस्थाओं का गठन किया गया है जो कि हलाल प्रमाणन का प्रमाण पत्र जारी करने में सक्षम है एवं उस प्रमाणन के आधार पर ही सम्बंधित उत्पाद बाजार में बेचा जा सकता है। इन मुस्लिम मजहब बहुल देशों में विदेशों से आयात किए जाने उत्पादों को भी हलाल प्रमाणन के लिए प्रमाण पत्र सबंधित संस्थानों से लेना आवश्यक होता है ताकि ये कम्पनियां अपने उत्पादों को इन इस्लामी देशों को निर्यात कर सकें। चूंकि पूरे विश्व में 50 से अधिक इस्लामी देश हैं, एवं मुस्लिम मजहब को मानने वाली बहुत बड़ी आबादी इन देशों में निवास करती है अतः गैर इस्लामी देशों की कम्पनियों को भी हलाल प्रमाणित उत्पाद ही इन देशों को भेजने होते हैं। वैसे तो हलाल प्रमाणित वस्तुओं का चलन इस्लामी देशों में बहुत लम्बे समय से चला आ रहा है। परंतु हाल ही के समय में इसका कार्य क्षेत्र बढ़ाकर इसे गैर इस्लामी देशों में भी तेजी से फैलाया गया है अर्थात मुस्लिम मजहब के मतावलंबियों को यह प्रेरणा दी जाती है कि वे केवल हलाल प्रमाणित वस्तुओं एवं सेवाओं का ही उपयोग करें। वर्ष 1945 में दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन में मुस्लिम जुडीशियल कौंसिल हलाल ट्रस्ट की स्थापना की गई थी। इसके बाद हलाल पंजीयन की शुरुआत थाईलैंड में वर्ष 1969 में हुई जो केवल कुवैत में मुर्गी पालन उद्योग से निर्मित पदार्थों के निर्यात तक सीमित था। एक सुनियोजित इस्लाम केंद्रित व्यापार की वास्तविक शुरुआत दक्षिण पूर्वी एशिया के एक देश मलेशिया से हुई थी। वहां वर्ष 1974 में एक डिपार्टमेंट आफ इस्लामिक डेवलपमेंट मलेशिया की स्थापना की गई। यह विश्व का ऐसा पहला देश था, जिसने हलाल व्यापार को परिभाषित करने का एक कानून बना दिया। इस प्रक्रिया की गति इतनी तीव्र थी कि वर्ष 1980 तक मलेशिया को ग्लोबल हलाल हब बनाने के प्रयासों को आकार दिया जाने लगा था। वर्तमान में डिपार्टमेंट आफ इस्लामिक डेवलपमेंट मलेशिया का नेटवर्क लगभग 45 देशों में फैला हुआ है और कुल लगभग 78 हलाल पंजीयन संस्थाएं इससे जुड़ी हुई हैं। भारत की भी तीन प्रमुख संस्थाएं – हलाल इंडिया, जमियत उलेमा हलाल फाउंडेशन, जमियत उलेमा ए हिंद हलाल ट्रस्ट इसके सदस्य रहे हैं। अब तो विश्व के लगभग सभी इस्लामी देशों एवं अन्य कई गैर इस्लामी देशों में भी हलाल प्रमाणन संस्थाओं का गठन किया जा चुका है। हलाल प्रमाणन संस्थाएं हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी करने के पूर्व एक मोटी रकम विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करने वाली संस्थाओं से हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी करने के एवज में लेती हैं। हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी करने वाली इन संस्थाओं की आय आज करोड़ों अमेरिकी डॉलर में हो गई है। दीनार स्टैंडर्ड, द कैपिटल आफ इस्लामिक इकॉनमी और सलाम गेटवे द्वारा प्रकाशित स्टेट आफ ग्लोबल इस्लामिक इकॉनमी रिपोर्ट 2018-19 के अनुसार, हलाल अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की आय अब अरबों डॉलर में पहुंच गई है और अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों की आय इस प्रकार बताई गई है – हलाल ट्रैवल क्षेत्र – 17,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर; हलाल फूड क्षेत्र – 130,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर; हलाल वित्तीय क्षेत्र – 243,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर; हलाल फैशन क्षेत्र – 27,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर, हलाल फार्मा क्षेत्र – 8,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर; हलाल कासमेटिक क्षेत्र – 6,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर। अब यह अनुमान लगाया जा रहा है कि हलाल प्रमाणित व्यापार यदि इसी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा तो वर्ष 2023 तक हलाल अर्थव्यवस्था का अनुमानित व्यापार 3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा, जो कि विश्व के कई विकसित देशों जैसे कनाडा, दक्षिण कोरिया, ब्राजील, इटली, स्पेन, आदि के सकल घरेलू उत्पाद से भी कहीं अधिक होगा। विश्व में चूंकि मुस्लिम मतावलंबियों की संख्या बहुत अधिक है अतः अब विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं को धर्म के आधार पर बेचे जाने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि मुस्लिम मतावलंबियों द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं को मुस्लिम संस्थानों द्वारा ही निर्मित किया जा सके एवं अगर अन्य धर्मों को मानने वाले अनुयायियों द्वारा इन उत्पादों का निर्माण किया जाता है और यदि वे अपने उत्पादों को मुस्लिम मतावलंबियों के बीच बेचना चाहते हैं तो उनके लिए भी हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र प्राप्त करना आवश्यक हो जाए। इस प्रकार, विभिन्न उत्पाद निर्माण करने वाली कम्पनियों को अपने व्यापार का विस्तार करने के उद्देश्य से हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र लेना अब एक आवश्यकता बन चुका है। भारत में तो कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों द्वारा पतंजलि संस्थान द्वारा निर्मित आयुर्वेदिक उत्पादों को मुस्लिम मजहब के अनुयायियों द्वारा उपयोग किए जाने को निरुत्साहित किया जाता है एवं केवल हलाल प्रमाणित वस्तुओं एवं सेवाओं के उपयोग हेतु ही प्रेरणा दी जाती है। परंतु, वहीं चीन की कई कम्पनियां समस्त उत्पादों का हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र प्राप्त कर भारत में अपने उत्पाद बहुत ही आसानी बेचकर व्यापार कर रही है और चीन में मुस्लिम मतावलंबियों को समाप्त कर रही है अर्थात उनके चिन्ह जैसे मस्जिद, दाढ़ी, टोपी, आदि को समाप्त कर रही है। भारत में मुस्लिम मतावलंबी चीनी सामान को बढ़ावा दे रहे हैं और जो भारत मुस्लिमों को सबसे अधिक सुविधाएं देता है, उस सहिष्णु भारत के व्यापारियों का विरोध कर रहे हैं। आज पूरे विश्व में इस्लाम के सभी फिकरे केवल और केवल भारत में ही रहते हैं एवं ये सभी फिकरे भारत में एकदम सुरक्षित हैं वरना कई इस्लामी देशों में तो ये आपस में ही लढ़-भिढ़ रहे हैं। विभिन आर्थिक गतिविधियों के क्षेत्रों यथा, हलाल मांस, हलाल फैशन एवं सौंदर्य के अन्य साधन, हलाल किराने का सामान, हलाल सब्जियां, हलाल वित्तीय सुविधाएं, हलाल ढाबे, आदि में हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र प्रदान करने के पूर्व किस प्रकार की प्रक्रिया अपनायी जानी चाहिए इसे अब निर्धारित करने का समय आ गया है एवं इस सम्बंध में दिशा निर्देश जारी किये जाने चाहिए एवं यह दिशा निर्देश पूरे विश्व में हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी करने वाली संस्थाओं पर समान रूप से लागू किए जाने चाहिए। दरअसल, अब खाने पीने की वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए भी हलाल प्रमाणन संस्थाएं हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी कर रही है। यदि खाने पीने की वस्तुओं के लिए हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र एक निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत जारी नहीं किए जाते हैं तो इन वस्तुओं का उपयोग करने वाले लोगों के लिए स्वास्थ्य सम्बंधी परेशानी खड़ी हो सकती हैं एवं इनका जीवन ही खतरे में पड़ सकता है। दूसरे, हलाल प्रमाणन प्रमाण पत्र जारी करने वाले संस्थानों की आय में बेतहाशा वृद्धि को देखते हुए अब यह आवश्यक हो गया है कि विभिन्न देशों द्वारा स्थानीय स्तर एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस आय का उपयोग किस प्रकार किया जा रहा है इस सम्बंध में भी नियम बनाए जाने चाहिए क्योंकि चीन में हलाल राशि इस्लाम को कुचलने के काम आती है, यूरोपीयन देशों में हलाल राशि वामपंथी-पूंजीपतियों के द्वारा वैश्विक षड्यंत्र के काम आती है और कुछ मुस्लिम देशों में हलाल की कुछ राशि इस्लामिक जिहाद के लिए काम आती है। Read more » Halal certification certificate without government regulations
आर्थिकी राजनीति भारतीय अर्थजगत में स्वत्व बोध के परिणाम दिखाई देने लगे हैं November 20, 2023 / November 20, 2023 | Leave a Comment भारतीय अर्थव्यवस्था आज न केवल विश्व में सबसे अधिक तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गई है बल्कि विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन गई है। वर्ष 1980 में चीन द्वारा लागू किए गए आर्थिक सुधारों के चलते चीन की अर्थव्यवस्था भी सबसे तेज गति से दौड़ी थी और चीन के आर्थिक विकास में बाहरी कारकों (विदेशी व्यापार) का अधिक योगदान था परंतु आज भारत की आर्थिक प्रगति में घरेलू कारकों का प्रमुख योगदान है। भारत का घरेलू बाजार ही इतना विशाल है कि भारत को विदेशी व्यापार पर बहुत अधिक निर्भरता नहीं करनी पड़ रही है। वैसे भी, वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों, विकसित देशों सहित, की आर्थिक स्थिति आज ठीक नहीं है एवं इन देशों के विदेशी व्यापार सहित इन देशों के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर भी कम हो रही है। भारत के आर्थिक विकास की वृद्धि दर तेज करने के सम्बंध में घरेलू कारकों में भारत के नागरिकों द्वारा स्वदेशी के विचार को अपनाया जाना भी शामिल है। आज भारतीय नागरिकों में स्वत्व का बोध स्पष्टत: दिखाई दे रहा है। अभी हाल ही में अमेरिका के निवेश के सम्बंध में सलाह देने वाले एक प्रतिष्ठित संस्थान मोर्गन स्टैनली ने अपने एक अनुसंधान प्रतिवेदन में यह बताया है कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास की दृष्टि से अगला दशक भारत का होने जा रहा है। अभी तक चीन पूरे विश्व के लिए एक विनिर्माण केंद्र बन गया था। परंतु, आगे आने वाले 10 वर्षों के दौरान स्थिति बदलने वाली है। भारत चीन से भी आगे निकलकर विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन चुका है, जिससे भारत में उत्पादों का उपभोग तेजी से बढ़ रहा है। अतः भारत न केवल उत्पादों के उपभोग का प्रमुख केंद्र बन बन रहा है बल्कि विश्व के लिए एक विनिर्माण केंद्र के रूप में भी उभर रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत पूर्व में ही वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े केंद्र के रूप में विकसित हो चुका है। भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार वर्तमान स्तर 3.50 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2031 तक 7.5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा और इस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। आगे आने वाले 10 वर्षों के दौरान आर्थिक क्षेत्र में भारत पूरी दुनिया का नेतृत्व करने जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्विक स्तर पर सुपर पावर बनने के पीछे भारत के विशाल आंतरिक बाजार को मुख्य कारण बताया जा रहा है। वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने भारत में गरीब वर्ग के नागरिकों को बैकों से जोड़ने के लिए जनधन योजना प्रारम्भ की थी। भारतीय नागरिकों में यह स्व का भाव ही था, जिसके चलते बहुत कम समय में इस योजना के अंतर्गत अभी तक लगभग 50 करोड़ बचत खाते विभिन्न बैकों में खोले जा चुके हैं एवं छोटी छोटी बचतों को जोड़कर आज लगभग 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि इन खातों में जमा की जा चुकी है। भारत ने इस संदर्भ में पूरे विश्व को ही राह दिखाई है। यह बचत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों को कल का मध्यम वर्ग बनाएगी, इससे देश में विभिन्न उत्पादों का उपभोग बढ़ेगा तथा देश की आर्थिक उन्नति की गति भी तेज होगी। यह भारतीय सनातन संस्कारों के चलते ही सम्भव हो पाया है। भारत में परिवार अपने खर्चों को संतुलित करते हुए भविष्य के लिए बचत आवश्यक समझते हैं, यह भी स्वत्व का भाव ही दर्शाता है। हमारी भारतीय सनातन संस्कृति हमें सिखाती है कि हमें प्रकृति का दोहन करना चाहिए, शोषण नहीं। प्रकृति से जितना आवश्यकता है केवल उतना ही लें। साथ ही, आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु स्वदेशी उत्पादों का उपयोग करना भी हमें सिखाया जाता है। स्वदेशी अपनाने से विभिन्न उत्पादों के आयात में कमी लाई जा सकती है। इसके लिए, भारतीय नागरिकों की सोच में गुणात्मक परिवर्तन दिखाई देने लगा है एवं अब वे निम्न गुणवत्ता वाले सस्ते विदेशी उत्पादों का कम उपयोग करने लगे हैं। भारत में ही निर्मित उत्पादों का उपयोग, चाहे वह थोड़े महंगे ही क्यों न हो, बढ़ रहा है। इसी कारण से हाल ही के समय में चीन से कई सस्ते उत्पादों का आयात कम हुआ है। उत्पाद की जितनी आवश्यकता है उतना ही खरीदा जा रहा है एवं भारत में वैश्विक बाजारीकरण की मान्यताओं को बढ़ावा नहीं दिए जाने के भरपूर प्रयास हो रहे हैं। यह समस्त परिवर्तन नागरिकों में स्वत्व की भावना के चलते ही सम्भव हो पा रहा है। हमारी भारतीय सनातन संस्कृति महान रही है और आगे भी रहेगी। हमारी संस्कृति के अनुसार धर्म, कर्म एवं अर्थ, सम्बंधी कार्य मोक्ष प्राप्त करने के उद्देश्य से किए जाते हैं। अतः अर्थ के क्षेत्र में भी धर्म का पालन करने के प्रयास हो रहे हैं। भारत में 60, 70 एवं 80 के दशकों में हम लगभग समस्त नागरिक हमारे बचपन काल से ही सुनते आए हैं कि भारत एक गरीब देश है एवं भारतीय नागरिक अति गरीब हैं। हालांकि भारत का प्राचीनकाल बहुत उज्जवल रहा है, परंतु आक्रांताओं एवं ब्रिटेन ने अपने शासन काल में भारत को लूटकर एक गरीब देश बना दिया था। अब समय का चक्र पूर्णतः घूमते हुए आज के खंडकाल पर आकर खड़ा हो गया है एवं भारत पूरे विश्व को कई मामलों में अपना नेतृत्व प्रदान करता दिखाई दे रहा है। साथ ही, भारत में विशेष रूप से कोरोना महामारी के बीच एवं इसके बाद केंद्र सरकार द्वारा भारतीय सनातन संस्कारों का पालन करते हुए गरीब वर्ग के लाभार्थ चलाए गए विभिन्न कार्यक्रमों के परिणाम अब सामने आने लगे हैं। विशेष रूप से प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्याण योजना के अंतर्गत देश के 80 करोड़ नागरिकों को मुफ्त अनाज की जो सुविधा प्रदान की गई है एवं इसे कोरोना महामारी के बाद भी जारी रखा गया है, इसके परिणामस्वरूप देश में गरीब वर्ग को बहुत लाभ हुआ है। वर्ष 2022 में विश्व बैंक द्वारा जारी किए गए एक प्रतिवेदन के अनुसार, वर्ष 2011 में भारत में 22.5 प्रतिशत नागरिक गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर थे परंतु वर्ष 2019 में यह प्रतिशत घटकर 10.2 रह गया है। पिछले दो दशकों के दौरान भारत में 40 करोड़ से अधिक नागरिक गरीबी रेखा से ऊपर आ गए हैं। दरअसल पिछले लगभग 9 वर्षों के दौरान भारत के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में कई बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। जिसके चलते भारत में गरीबी तेजी से कम हुई है और भारत को गरीबी उन्मूलन के मामले में बहुत बड़ी सफलता प्राप्त हुई है। भारत में अतिगरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले करोड़ों नागरिकों का इतने कम समय में गरीबी रेखा के ऊपर आना विश्व के अन्य देशों के लिए एक सबक है। इतने कम समय में किसी भी देश में इतनी तादाद में लोग अपनी आर्थिक स्थिति सुधार पाए हैं ऐसा कहीं नहीं हुआ है। भारत में गरीबी का जो बदलाव आया है वह धरातल पर दिखाई देता है। इससे पूरे विश्व में भारत की छवि बदल गई है। एक और क्षेत्र जिसमें भारतीय आर्थिक दर्शन ने पूरे विश्व को राह दिखाई है, वह है मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण स्थापित करना। दरअसल, मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए विकसित देशों द्वारा ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते जाना, अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को विपरीत रूप से प्रभावित करता नजर आ रहा है, जबकि इससे मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण होता दिखाई नहीं दे रहा है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में अब पुराने सिद्धांत बोथरे साबित हो रहे हैं। और फिर, केवल मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते जाना ताकि बाजार में वस्तुओं की मांग कम हो, एक नकारात्मक निर्णय है। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उत्पादों की मांग कम होने से, कम्पनियों का उत्पादन कम होता है, देश में मंदी फैलने की सम्भावना बढ़ने लगती है, इससे बेरोजगारी बढ़ने का खतरा पैदा होने लगता है, सामान्य नागरिकों की ईएमआई में वृद्धि होने लगती है, आदि। अमेरिका में कई कम्पनियों ने इस माहौल में अपनी लाभप्रदता बनाए रखने के लिए 2 लाख से अधिक कर्मचारियों की छंटनी करने की घोषणा की थी। किसी नागरिक को बेरोजगार कर देना एक अमानवीय कृत्य ही कहा जाएगा। और फिर, अमेरिका में ही इसी माहौल के बीच तीन बड़े बैंक फैल हो गए हैं। यदि इस प्रकार की परिस्थितियां अन्य देशों में भी फैलती हैं तो पूरे विश्व में ही मंदी की स्थिति छा सकती है। पश्चिम की उक्त व्यवस्था के ठीक विपरीत, भारतीय आर्थिक चिंतन में विपुलता की अर्थव्यवस्था के बारे में सोचा गया है, अर्थात अधिक से अधिक उत्पादन करो – “शतहस्त समाहर, सहस्त्रहस्त संकिर” (सौ हाथों से संग्रह करके हजार हाथों से बांट दो) – यह हमारे शास्त्रों में भी बताया गया है। विपुलता की अर्थव्यवस्था में अधिक से अधिक नागरिकों को उपभोग्य वस्तुएं आसानी से उचित मूल्य पर प्राप्त होती रहती हैं, इससे उत्पादों के बाजार भाव बढ़ने के स्थान पर घटते रहते हैं। भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था में उत्पादों के बाजार भाव लगातार कम होने की व्यवस्था है एवं मुद्रा स्फीति के बारे में तो भारतीय शास्त्रों में शायद कहीं कोई उल्लेख भी नहीं मिलता है। भारतीय आर्थिक चिंतन व्यक्तिगत लाभ केंद्रित अर्थव्यवस्था के स्थान पर मानवमात्र के लाभ को केंद्र में रखकर चलने वाली अर्थव्यवस्था को तरजीह देता है। नागरिकों में स्व का भाव जगा कर, उनमें राष्ट्र प्रेम की भावना विकसित करना भी आवश्यक है। इससे आर्थिक गतिविधियों को देशहित में करने की इच्छा शक्ति नागरिकों में जागृत होती है और देश के विकास में प्रबल तेजी दृष्टिगोचर होती है। इस प्रकार का कार्य जापान, ब्रिटेन, इजराईल एवं जर्मनी ने द्वितीय विश्व युद्ध (1945) के पश्चात सफलतापूर्वक सम्पन्न किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी वर्ष 1925 में, अपनी स्थापना के बाद से, भारतीय नागरिकों में स्व का भाव जगाने का लगातार प्रयास कर रहा है। संघ के परम पूज्य सर संघचालक माननीय डॉक्टर मोहन भागवत जी ने अपने एक उदबोधन में बताया है कि दुनिया विभिन्न क्षेत्रों में आ रही समस्याओं के हल हेतु कई कारणों से आज भारत की ओर बहुत उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। यह सब भारतीय नागरिकों में स्व के भाव के जगने के कारण सम्भव हो रहा है और अब समय आ गया है कि भारत के नागरिकों में स्व के भाव का बड़े स्तर पर अवलंबन किया जाय क्योंकि हमारा अस्तित्व ही भारतीयतता के स्व के कारण है। Read more » The results of the sense of self are beginning to be seen in the Indian economy.
आर्थिकी राजनीति तेज गति से बढ़ रहा है भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार November 17, 2023 / November 17, 2023 | Leave a Comment भारतीय अर्थव्यवस्था आज लगभग 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से विकास की राह पर आगे बढ़ रही है। अर्थव्यवस्था के आकार में विस्तार से उस देश के नागरिकों की आय में वृद्धि दर्ज होती है इससे गरीब वर्ग के हाथों में भी पैसा पहुंचता है इससे, विभिन्न उत्पादों की मांग बढ़ती है एवं रोजगार के नए अवसर निर्मित होते हैं और अंततः गरीब वर्ग की संख्या में कमी होकर देश में मध्यम वर्ग की संख्या बढ़ती है। नीति आयोग के एक प्रतिवेदन के अनुसार वर्ष 2015-16 में भारत के शहरी क्षेत्रों में गरीब वर्ग की संख्या 24.85 प्रतिशत थी जो वर्ष 2020-21 में घटकर 14.90 प्रतिशत रह गई है। इसमें 9.95 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। इसी प्रकार वर्ष 2015-16 में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में ग़रीब वर्ग की संख्या 32.59 प्रतिशत थी जो वर्ष 2020-21 में घटकर 19.28 प्रतिशत रह गई है। अतः भारत में गरीब वर्ग की संख्या कम हुई है। इसी कारण से वैश्विक रेटिंग संस्थान भारत की रेटिंग को बढ़ाते जा रहे हैं। स्टैंडर्ड एंड पुअर रेटिंग संस्थान ने भारत की विकास दर को वर्ष 2023-24 के लिए 6 प्रतिशत रखा है तो वर्ष 2024-25 के लिए 6.9 प्रतिशत की बात की है। साथ ही इसी संस्थान का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार वर्ष 2030 तक 7 लाख 30 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाने वाला है। वर्ष 2023 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था 26 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के साथ प्रथम स्थान पर है। दूसरे नम्बर पर चीन आता है जिसकी अर्थव्यवस्था का आकार 18 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है। तीसरे स्थान पर जापान है जिसकी अर्थव्यवस्था का आकार 4 लाख 20 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर है। चौथे स्थान पर जर्मनी है जिसकी अर्थव्यवस्था का आकार भी लगभग 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है। इस प्रकार भारत अपनी बढ़ी हुई लगभग 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की विकास दर के साथ शीघ्र ही जापान एवं जर्मनी को पछाड़ कर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। फिच नामक रेटिंग संस्थान ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर के अपने पूर्व के अनुमान में सुधार करते हुए इसे वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 6.2 प्रतिशत कर दिया है, पहिले इस वृद्धि दर के 5.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। मूडीज नामक रेटिंग संस्थान ने भी भारत की विकास दर को वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 6.7 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की है। भारत तेजी से विकास कर रहा है यह त्यौहारों के दौरान बाजारों में उत्पादों की खरीद के लिए उमड़ रही भीड़ से भी साफ दिखाई दे रहा है। भारत24 चैनल पर प्रस्तुत एक कार्यक्रम में उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, भारत का सकल घरेलू उत्पाद (अर्थात कृषि, उद्योग एवं सेवा क्षेत्र में कुल उत्पादन) वर्ष 2022-23 में 282.83 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर आ गया है। अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद पूरे विश्व में पहिले नम्बर पर है जो 2121.19 लाख करोड़ रुपए का है। इसीलिए अमेरिका पूरी दुनिया का सबसे अमीर एवं ताकतवर देश कहा जाता है। दूसरे नम्बर पर चीन का सकल घरेलू उत्पाद 1497.31 लाख करोड़ रुपए का है। जापान का सकल घरेलू उत्पाद 407.60 लाख करोड़ रुपए का है। जर्मनी का सकल घरेलू उत्पाद 341.05 लाख करोड़ रुपए का है। इस दृष्टि से भारत दुनिया का 5वां सबसे बड़ा अमीर देश है। वर्ष 2013-14 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 113.55 लाख करोड़ रुपए का था और वर्ष 2013-14 में भारतीय अर्थव्यवस्था का पूरे विश्व में 10वां नम्बर था। वर्ष 2013-14 में अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद 1459.88 लाख करोड़ रुपए का था। चीन का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2013-14 में 871.77 करोड़ का था। जापान का सकल घरेलू उत्पाद 2013-14 में 349.37 लाख करोड़ रुपए का था। जर्मनी का सकल घरेलू उत्पाद 323.59 लाख करोड़ रुपए का था। अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद इस दौरान 50 प्रतिशत, चीन का 80 प्रतिशत, जापान का 30 प्रतिशत, जर्मनी का 5 प्रतिशत बढ़ा है जबकि भारत का सकल घरेलू उत्पाद 150 प्रतिशत बढ़ा है। इसी गति से भारत आर्थिक प्रगति करता रहा तो निश्चित ही वर्ष 2030 के पूर्व ही भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। मेक इन इंडिया योजना के अंतर्गत भी बहुत काम होता दिखाई दे रहा है और भारत में निर्मित वस्तुओं का निर्यात लगतार बढ़ रहा है। वर्ष 2022-23 में भारत ने 36 लाख करोड़ रुपए का निर्यात किया है। जबकि वर्ष 2014 में 19.05 लाख करोड़ रुपए का निर्यात हुआ था। यह लगभग दोगुना हो गया है। वर्ष 2023-24 में भारत सरकार ने पूंजीगत व्यय को 10 लाख करोड़ रुपए पर पहुंचा दिया है। इससे रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित हो रहे हैं। वर्ष 2014-15 में भारत में 97,000 किलो मीटर के राष्ट्रीय राजमार्ग थे, जो 9 वर्ष बाद वर्ष 2023-24 में बढ़कर 145,155 किलोमीटर हो गए हैं। इस दौरान लगभग 50,000 किलोमीटर के नए राष्ट्रीय राजमार्ग निर्मित हुए हैं। अब तो गुणवत्ता के मामले में भारत के राजमार्ग अमेरिका के राजमार्गों से टक्कर लेते हुए दिखाई दे रहे हैं। बेहतरीन राजमार्ग विकसित देश के लिए जरूरी हैं। अच्छे राजमार्गों से बाजार और रोजगार दोनों बढ़ते हैं। आज भारत अपने घर में उत्पादित वस्तुओं के उपयोग को भी लगातार बढ़ा रहा है। “वोकल फोर लोकल” का नारा अब बुलंद हो रहा है एवं भारतीय नागरिक अब चीन में निर्मित उत्पादों का उपयोग कम करते हुए भारत में ही निर्मित वस्तुओं का उपयोग कर रहे हैं। भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी भी भारतीय नागरिकों को लगातार अपील कर रहे हैं कि भारत में ही उत्पादित वस्तुओं का उपयोग करें। इसका असर होता दिख भी रहा है। चीन से विभिन्न उत्पादों के आयात में इस त्यौहारी मौसम में कमी आई है और एक अनुमान के अनुसार इस वर्ष लगभग एक लाख करोड़ रुपए के उत्पादों का आयात चीन से कम हुआ है। चीनी दिवाली लाइट्स के आयात में 32 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है। वहीं दूसरी ओर भारत में बनी लाइट्स की बिक्री में 60 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। इसका सबसे अधिक फायदा गरीब वर्ग को हो रहा है। हम समस्त भारतीय नागरिकों को भी इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि सड़क के एक किनारे बैठकर कुछ वस्तुएं बेचने वाले गरीब व्यक्ति से अधिक मोलभाव ना करते हुए उनसे वस्तुएं खरीदें ताकि यह वर्ग भी अपनी आय को बढ़ा सके। वैसे भी, जब हम लोग माल से वस्तुएं खरीदते हैं तो कोई माल भाव थोड़ी करते हैं। सकल घरेलू उत्पाद जब बढ़ता है तो लोगों की आय भी बढ़ती है। जब लोगों की आय बढ़ती है तो लोग बाजार में सामान खरीदते हैं। इससे बाजार में उत्पादों की मांग बढ़ती है। उत्पादों की मांग एवं आपूर्ति से उत्पादों की बाजार कीमतें तय होती है। जब किसी भी उत्पाद की मांग तुलनात्मक रूप से अधिक तेजी से बढ़ती है और उस उत्पाद की आपूर्ति बाजार में समय पर नहीं हो पाती है तो उस उत्पाद की बाजार में कीमतें बढ़ने लगती है। जब खर्च करने की क्षमता बढ़ती है तो आप सामान के दाम अधिक देने को भी तैयार रहते हैं। भारत में न केवल आर्थिक विकास में गति आ रही है बल्कि मुद्रा स्थिति भी नियंत्रण में है। यह केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा संयुक्त रूप से किए जा रहे उपायों के चलते सम्भव हो पा रहा है। भारत की वित्तीय नीतियां महंगाई को रोकने के साथ साथ विकास को भी बढ़ावा दे रही हैं। खाने पीने की वस्तुओं की बाजार कीमतों में कमी होने से अक्टोबर 2023 माह में खुदरा महंगाई की दर में गिरावट आई है और यह चार महीने के निचले स्तर 4.87 प्रतिशत पर पहुंच गई है। केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई जानकारी के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति की दर सितंबर 2023 माह में पिछले तीन माह के निचले स्तर 5.02 प्रतिशत पर थी। भारत में आम आदमी का सबसे अधिक खर्च खाने पीने और स्वास्थ्य सेवाओं पर हो रहा है। केंद्र सरकार द्वारा बजट में स्वास्थ्य सेवाओं पर 89 000 करोड़ रुपए के व्यय का प्रावधान किया गया है। डॉक्टरों की संख्या में 4 लाख से अधिक की वृद्धि दर्ज हुई है। भारत में आज 13 लाख से अधिक एलोपेथिक डॉक्टर हैं। इसके अतिरिक्त, 5.65 लाख आयुर्वेदिक डॉक्टर भी उपलब्ध हैं। इस प्रकार भारत में प्रत्येक 834 नागरिकों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है। गरीब नागरिकों को मुफ्त इलाज प्रदान करने के लिए आयुषमान स्वास्थ्य कार्ड प्रदान किए गए हैं। इसी प्रकार किसानों के लिए मोदी सरकार ने प्रति क्विंटल गेहूं पर 775 रुपए से, चावल पर 730 रुपए से न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की है। वर्ष 2012-13 में भारत के किसानों की औसत मासिक आय 6,426 रुपए पाई गई थी जो वर्ष 2018-19 में बढ़कर 10,248 रुपए हो गई है। यूएनडीपी के एक प्रतिवेदन में यह बताया गया है कि भारत में मिडल क्लास अर्थात मध्यम वर्ग की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। वैश्विक स्तर पर मिडल क्लास की बढ़ रही संख्या में भारत का योगदान 24 प्रतिशत का है। विश्व के कई वित्तीय संस्थानों का मत है कि वर्ष 2027 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। इसका मतलब यह भी है कि देश में प्रति व्यक्ति आय में और अधिक तेज गति से वृद्धि की सम्भावना है। साथ ही, भारत आज प्रत्येक क्षेत्र में आत्म निर्भर भी बन रहा है। प्रहलाद सबनानी Read more »
राजनीति नोटा के उपयोग के कुछ नुक्सान भी हैं – 100 प्रतिशत मतदान से चुने गए प्रतिनिधियों की गुणवत्ता उच्चस्तर की होगी November 15, 2023 / November 15, 2023 | Leave a Comment भारत आज वैश्विक पटल पर एक महत्वपूर्ण आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है एवं भारत विश्व को कई क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान करने की स्थिति में भी आ गया है। कुछ देश (चीन एवं पाकिस्तान सहित) भारत की इस उपलब्धि को सहन नहीं कर पा रहे हैं। वैश्विक स्तर पर समस्त विघटनकारी शक्तियां मिलकर भारत को तोड़ना चाहती हैं। इन विघटनकारी शक्तियों द्वारा भारत में जातीय संघर्ष खड़ा करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। जबकि भारत के कई सांस्कृतिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक संगठन समस्त भारतीय समाज में एकजुटता बनाए रखना चाहते हैं ताकि भारत को एक बार पुनः विश्व गुरु बनाया जा सके। परंतु, आज विघटनकारी शक्तियों के निशाने पर मुखर रूप से हिंदुत्व, भारत एवं संघ आ गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने स्वयंसेवकों में राष्ट्रीयता का भाव विकसित किया है। संघ के स्वयंसेवक समाज की सज्जन शक्ति के साथ मिलकर समाज में जागरूकता लाने का प्रयास कर रहे है कि किस प्रकार इन विघटनकारी शक्तियों को परास्त किया जा सकता है। भारत में शीघ्र ही निर्वाचन काल प्रारम्भ होने जा रहा है। भारतीय लोकतंत्र को और अधिक मजबूत बनाने के लिए आज राष्ट्र को भारत माता के प्रति समर्पण का भाव रखने वाले नागरिकों की बहुत अधिक आवश्यकता है। अतः भारतीय समाज द्वारा निर्वाचन में 100 प्रतिशत मतदान किया जाय एवं राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत प्रत्याशी ही चुनाव जीत सकें, इसके लिए समाज को साथ लेकर भारतीय नागरिकों द्वारा विशेष प्रयास किये जाने चाहिए। इस संदर्भ में भारतीय चुनाव आयोग द्वारा भी कई तरह के प्रयास समय समय पर किए जाते हैं ताकि देश के नागरिकों द्वारा 100 प्रतिशत मतदान किया जा सके। निश्चित ही 50 प्रतिशत नागरिकों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि की तुलना में 90 अथवा 100 प्रतिशत नागरिकों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि बेहतर प्रतिनिधि ही साबित होंगे। अतः अधिक से अधिक मतदान किया जाना आज समय की आवश्यकता है। इससे चुने गए प्रतिनिधियों की गुणवत्ता में तो सुधार होगा ही साथ ही, वर्तमान समय में भारत की आर्थिक प्रगति भी जारी रह सकेगी एवं भारत को विश्व गुरु के रूप में स्थापित होते हुए भी हम लोग देख सकेंगे। कई बार विभिन्न दलों के समस्त प्रत्याशी कुछ मतदाताओं को पसंद नहीं आते हैं, इन परिस्थितियों में ऐसे मतदाताओं को नोटा का बटन दबाने का अधिकार रहता है। परंतु, कोई प्रत्याशी मतदाता की नजर में 100 प्रतिशत खरा प्रत्याशी होगा, ऐसा सम्भव भी तो नहीं है। इन परिस्थितियों में कम से कम बुरे प्रत्याशी को चुना जा सकता है। नोटा का बटन दबाकर तो कम बुरे प्रत्याशी के स्थान अधिक बुरा प्रत्याशी ही चुना जा सकता है। संघ के परम पूज्य सर संघचालक भी कहते हैं कि “नोटा में हम लोग सर्वोत्तम को भी किनारे कर देते हैं और इसका फायदा सबसे बुरा उम्मीदवार ले जाता है। होना यह चाहिए कि हमारे पास जो सर्वोत्तम उपलब्ध है, उसे चुन लें। प्रजातंत्र में सौ फीसदी लोग सही मिलेंगे, ऐसा बहुत मुश्किल है।” यह आकलन पूर्णत: सही ही कहा जा सकता है क्योंकि मतदाता भले ही नोटा दबा कर यह समझे कि उसने सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार कर दिया है लेकिन शायद उसे यह नहीं पता होता कि इस से किसी ऐसे उम्मीदवार की कम अंतर से हार हो सकती है जो उन सबमे सबसे बेहतर हो। ऐसे में नोटा को गए वोट अगर उस हारे उम्मीदवार को जाते तो वह जीत सकता था। अगर इस कारण किसी बुरे उम्मीदवार की जीत हो जाती है तो फिर नोटा दबाने के कोई मायने ही नहीं रह जाते। भारत में चुनावों पर हजारों करोड़ रुपए की राशि खर्च होती है। अतः केंद्र एवं राज्यों में मजबूत सरकारों का चुना जाना अति आवश्यक है, ताकि वे अपने 5 वर्ष के कार्यकाल को सफलता पूर्वक सम्पन्न कर सकें। यदि 100 प्रतिशत मतदान के साथ किसी भी सरकार को चुना जाता है तो निश्चित ही मजबूत सरकार होगी एवं वह अपना कार्यकाल पूर्ण कर सकने में सफल भी होगी और इस प्रकार मध्यावधि चुनावों की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। इस प्रकार, देश के करोड़ों रुपयों के खर्च को बचाया जा सकेगा। इसलिए भारत में आज पढ़े लिखे एवं समझदार वर्ग को भी आगे आकर 100 प्रतिशत मतदान के लिए प्रयास करने चाहिएं, क्योंकि जिस प्रकार विभिन्न क्षेत्रों में भारत आज आगे बढ़ रहा है, यह कार्य लम्बे समय तक जारी रहना चाहिए। इजराईल के नागरिकों में देश प्रेम की भावना के चलते ही 3 लाख से अधिक नागरिकों ने आगे आकर सेना में भर्ती होने के वहां की सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार किया है। भारत में भी देश के प्रतिनिधि राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव रखने वाले ही होने चाहिए। भारतीय समाज की एकजुटता के कारण ही आज भारत में रामसेतु का विध्वंस रुक सका है, जम्मू एवं कश्मीर में लागू धारा 370 एवं धारा 35ए हटाई जा सकी है, 500 वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद श्री राम का भव्य मंदिर अयोध्या में निर्मित हो रहा है, जिसका उद्घाटन 22 जनवरी 2024 में पूज्य संत महात्माओं के साथ भारत के प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेंद मोदी जी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न होने जा रहा है। जी-20 देशों के समूह की अध्यक्षता आज भारत के पास है और भारत इस समूह के समस्त देशों को एकजुट बनाए रखने में सफल रहा है। भारत ने चन्द्रयान को चन्द्रमा के दक्षिणी भाग पर सफलता पूर्वक उतारने में सफलता हासिल की है एवं चन्द्रमा की सतह पर “शिवशक्ति” को अंकित करने में भी सफलता पाई है। भारत आज अपनी सीमाओं की मजबूती के साथ सुरक्षा करने में सफल हो रहा है। खेलों के क्षेत्र में भी नित नए झंडे गाड़े जा रहे हैं, हाल ही में चीन में सम्पन्न हुई एशियाई खेल प्रतियोगिताओं में भारत ने 107 पदकों को हासिल कर एक रिकार्ड बनाया है। इसी प्रकार नागरिकों को आज अच्छी सड़कें मिली हैं, पानी-बिजली की उपलब्धता बढ़ी है, राज्यों में विकास की यात्रा तेजी से आगे बढ़ रही है। राज्यों के चुनाव भी बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं क्योंकि राज्य सभा सदस्य राज्य के विधायकों द्वारा ही चुने जाते हैं। इस दृष्टि से विभिन्न राज्यों के चुनाव में भी 100 प्रतिशत मतदान सुनिश्चित किया जाना चाहिए। Read more » There are some disadvantages of using NOTA
आर्थिकी कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख दीपावली त्यौहार ने दी है भारत को आर्थिक ताकत November 14, 2023 / November 14, 2023 | Leave a Comment इस वर्ष दीपावली त्यौहार के धनतेरस के दिन भारतीयों ने विभिन्न उत्पादों की जमकर खरीद की है। भारतीय अर्थव्यवस्था को तो जैसे पंख लग गए हैं एवं भारतीय अर्थव्यवस्था अब बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। इसी कारण से वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद में भारत की भागीदारी लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसा माना जा रहा है कि वैश्विक स्तर पर वित्तीय वर्ष 2023-24 के वृद्धिगत सकल घरेलू उत्पाद में भारत की भागीदारी 15 प्रतिशत के आसपास रह सकती है। भारत ने अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अपने कदम बढ़ा दिए हैं। भारत में आज आम आदमी की आमदमी बढ़ रही है, आम आदमी की तरक्की जारी हैं एवं इसे और अधिक बेहतर बनाने के प्रयास लगातार हो रहे हैं। इसी के चलते भारतीय बाजारों में दीपावली के पावन पर्व पर भारी भीड़ एवं रौनक दिखाई दे रही है। भगवान धन्वन्तरि भारतीय नागरिकों पर जैसे धन की वर्षा करते नजर आ रहे हैं। भारत में धनतेरस के दिन किसी भी प्रकार के उत्पाद की खरीददारी को शुभ माना जाता है। विशेष रूप से बर्तन, गहने, वाहन एवं मकान आदि भारी मात्रा में खरीदे जाते हैं। इस वर्ष भारतीय बाजारों में एक और शुभ संकेत दिखाई दे रहा है कि भारतीय नागरिक “वोकल फोर लोकल” एवं “आत्म निर्भर भारत” जैसे विचार से सहमत होते हुए केवल भारत में निर्मित वस्तुओं की जमकर खरीद कर रहे हैं। रीयल एस्टेट सेक्टर, कार डीलर्स, जौहरियों एवं किराना व्यवसायीयों की तो जैसे लॉटरी ही लग गई है। इस वर्ष दीपावली त्यौहार में बाजारों में उमड़ रही भीड़ अपने आप में भारत की आर्थिक शक्ति बनने की कहानी कह रही है। भारतीय ग्राहकों में उत्साह दिख रहा है। ग्राहकों का उत्साह देखकर कारोबारी एवं व्यापारी भी खुश नजर आ रहे हैं। कन्फेडरेशन आफ ऑल इंडिया ट्रेडर्ज एसोसीएशन के अनुसार, इस वर्ष दीपावली के त्यौहारी मौसम में देश में 3.75 लाख करोड़ रुपए का व्यापार हुआ है। इस खरीद की विशेष बात यह रही है कि उपभोक्ताओं में चीन में निर्मित माल के स्थान पर भारत में ही निर्मित स्वदेशी सामान की जबरदस्त मांग देखने को मिली है। जबकि षठ पूजा एवं भैया दूज समेत अभी कई त्यौहार आना शेष है, इस प्रकार आगे आने वाले अन्य त्यौहारों के शुभ अवसर पर 50,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त व्यापार होने की सम्भावना भी व्यक्त की गई है। उक्त संस्थान ने “भारतीय उत्पाद – सबका उस्ताद” नामक एक कैम्पेन भी भारत में, हाल ही में प्रारम्भ हुए त्यौहारी मौसम के दौरान, चलाया था, जिसका भारतीय नागरिकों पर जबरदस्त प्रभाव दिखाई दिया है। साथ ही इस वर्ष के त्यौहारी मौसम में चीन को लगभग एक लाख करोड़ रुपए के व्यापार का नुक्सान हुआ है। क्योंकि, इसके पहिले चीन में बनी वस्तुओं की भारतीय बाजारों में 70 प्रतिशत तक बिक्री होती थी परंतु इस वर्ष भारतीय बाजारों में स्वदेशी वस्तुओं की मांग इतनी अधिक थी कि चीन में निर्मित वस्तुओं की बिक्री बहुत ही कम हो गई है। इस वर्ष भारत में दीपावली से सम्बंधित सामान का चीन से आयात नहीं के बराबर हुआ है। एक अनुमान के अनुसार, इस 3.50 लाख करोड़ रुपए के व्यापार में 13 प्रतिशत खाद्य सामग्री एवं किराना की, 9 प्रतिशत ज्वेलरी की, 12 प्रतिशत टेक्स्टायल एवं गारमेंट की, 4 प्रतिशत ड्राई फ़्रूट, मिठाई एवं नमकीन की, 3 प्रतिशत होम डेकोर की, 6 प्रतिशत कास्मेटिक्स की, 8 प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक्स एवं मोबाइल की, 3 प्रतिशत भोजन सामग्री एवं पूजा वस्तुओं की, 3 प्रतिशत रसोई एवं बर्तन उपकरण की, 8 प्रतिशत गिफ्ट सामान की, 4 प्रतिशत फर्निशिंग एवं फर्निचर सामान की एवं 25 प्रतिशत ऑटोमोबील, हार्डवेयर सामान, खिलौने सहित अन्य अनेकों वस्तुओं एवं सेवाओं की भागीदारी रही है। भारत में मकानों की बिक्री सम्बंधी आंकड़ों से भी आभास होता है कि भारत में मिडल एवं अपर मिडल क्लास वर्ग की संख्या बढ़ी है। रीयल एस्टेट से जुड़े कारोबारियों का मानना है कि इस वर्ष 1.5 लाख से अधिक लक्जरी और एफोर्डेबल घरों की बिक्री का रिकार्ड बन गया है। वर्ष 2023 की दीपावली के ठीक पूर्व के समय में 1.50 लाख घरों की बिक्री प्रदर्शित करती है कि भारत के नागरिकों की आय में तेज गति से वृद्धि हो रही है। वर्ष 2022 की दीपावली के पूर्व 1.47 लाख घरों की बिक्री हुई थी और वर्ष 2021 में यह आंकड़ा 1.14 लाख रहा था। जनवरी 2023 से सितम्बर 2023 तक की अवधि में भी भारत में 2.30 लाख लक्जरी और एफोर्डेबल घरों की बिक्री हुई थी, जो पिछले साल के मुकाबले 5 प्रतिशत अधिक है। रीयल एस्टेट में बूम का मतलब है कि भारत तेज गति से तरक्की कर रहा है। भारत में आम लोगों की जेब तक पैसा पहुंच रहा है। त्यौहारी सीजन में उछाल सिर्फ रीयल एस्टेट सेक्टर में ही नहीं है, बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी लगभग इसी प्रकार का त्यौहारी वातावरण दिखाई दिया है। माह अकटोबर 2023 में भारत में 3.90 लाख चार पहिया वाहनों की बिक्री हुई है। जबकि 19 लाख के करीब दोपहिया वाहन भी बिके हैं। नवम्बर 2023 के त्यौहारी मौसम में 4.25 लाख चार पहिया वाहन एवं 20 लाख दो पहिया वाहन बिकने का अनुमान लगाया गया है। इसी प्रकार, एक अन्य अनुमान के अनुसार धनतेरस 2023 के दिन भारत में 50,000 करोड़ रुपए के सोने के आभूषणों की बिक्री हुई है। पिछले वर्ष धनतेरस के दिन 45,000 करोड़ रुपए के सोने के आभूषणों की बिक्री हुई थी। इस प्रकार इस वर्ष सोने के आभूषणों की बिक्री में 11 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। भारत में प्रत्येक क्षेत्र में विकास स्पष्टत: दिखाई दे रहा है। नागरिकों की जेब में पैसा पहुंचा है तभी तो भारत में उक्त वर्णित समस्त क्षेत्रों में भारी तादाद में बिक्री सम्भव हो पा रही है। शादी के मौसम की शुरुआत एवं नवरात्रि त्यौहार के शुरू होने के साथ ही भारत में त्यौहारी मौसम की शुरुआत हो जाती है। दिनांक 8 अकटोबर से ऑनलाइन खुदरा बिक्री के साइट, फ्लिपकार्ट एवं अमेजोन, पर उत्पादों की बिक्री का विशेष त्यौहारी अभियान प्रारम्भ किया गया था और केवल चार दिन में ही केवल उक्त दो कम्पनियों की साइट पर 40,000 करोड़ रुपए का व्यापार कर लिया गया है। भारत के विकास की कहानी की यह तो शुरुआत भर है, आगे आने वाले समय में विकास की इस कहानी को और अधिक गति मिलने की सम्भावना है क्योंकि अभी तक तो केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे पूंजीगत खर्चों का प्रभाव ही इस विकास की कहानी पर दिखाई दे रहा है (केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में 7.50 लाख करोड़ रुपए का पूंजीगत व्यय किया था और वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 10 लाख करोड़ रुपए का पूंजीगत व्यय करने का लक्ष्य निर्धारित किया है) जबकि निजी क्षेत्र भी अब अपने पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करने जा रहा है क्योंकि विभिन्न कम्पनियां अपनी उत्पादन क्षमता का 75 प्रतिशत से अधिक उपयोग कर रही है, अतः उन्हें विनिर्माण के क्षेत्र में नई इकाईयों की स्थापना निकट भविष्य में करना ही होगी। साथ ही, विदेशी कम्पनियों के भी भारत में विभिन्न क्षेत्रों में विनिर्माण इकाईयों की स्थापना किये जाने के सम्बंध में सहमति पत्र लगातार प्राप्त हो रहे हैं। इस प्रकार, आगे आने वाले समय में भारत में रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित होने जा रहे हैं जिससे मिडल क्लास की संख्या में और अधिक तेज गति से विस्तार होगा और भारत में ही निर्मित उत्पादों की मांग और अधिक तेज होने जा रही है। प्रहलाद सबनानी Read more » Diwali festival has given economic strength to India
लेख समाज साक्षात्कार सार्थक पहल भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने के लिए प्रयासरत है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ November 14, 2023 / November 14, 2023 | Leave a Comment अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच चल रही रस्साकच्छी, रूस यूक्रेन के बीच पिछले लम्बे समय से लगातार चल रहे युद्ध एवं पिछले एक माह से भी अधिक समय से पूर्व प्रारम्भ हुए हम्मास इजराईल युद्ध के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी मंडल की बैठक दिनांक 5 नवम्बर 2023, रविवार, को प्रातः 9 बजे भुज, गुजरात में प्रारम्भ हुई। बैठक का शुभारम्भ परम पूज्य सर संघचालक डॉक्टर मोहन जी भागवत और सर कार्यवाह श्री दत्तात्रेय जी होसबाले ने भारत माता के चित्र के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित करके किया। बैठक में देश भर से संघ की दृष्टि से 45 प्रांतो एवं 11 क्षेत्रों के माननीय संघचालक, कार्यवाह, प्रचारक, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य तथा कुछ विविध संगठनों के अखिल भारतीय संगठन मंत्रियों सहित लगभग 382 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। उक्त बैठक में संघ शताब्दी की दृष्टि से कार्य विस्तार के लिए बनी योजना की समीक्षा एवं संघ प्रशिक्षण अभ्यास क्रम विषयों पर विस्तार से चर्चा सम्पन्न हुई। साथ ही, परम पूज्य सर संघचालक डॉक्टर मोहन जी भागवत के विजया दशमी उदबोधन में चर्चा में आए कुछ मुख्य विषयों जैसे प्रकृति विरुद्ध जीवन शैली, जलवायु परिवर्तन का विश्व पर प्रभाव, सुरक्षा, स्व आधारित युगानुकुल नीति आदि विषयों पर भी विस्तार से चर्चा की गई। सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, गौ सेवा, ग्राम विकास व अन्य गतिविधियों में चल रहे प्रयासों के बारे में भी प्रतिनिधियों से जानकारी ली गई। यह बैठक 7 नवम्बर 2023 को सायंकाल 6 बजे सम्पन्न हुई। विश्व के कई देशों, विकसित देशों सहित, में सामाजिक तानाबाना ध्वस्त हो चुका है। अमेरिका सहित विश्व के कई देशों में आज “सिंगल पेरेंट” की अवधारणा जोर पकड़ती जा रही है। लगभग 50 प्रतिशत बच्चों को अपने पिता के बारे में जानकारी ही नहीं हैं। कुटुंब अथवा परिवार में रहकर माता एवं पिता द्वारा मिलकर ही बच्चे का शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकास सही तरीके से किया जा सकता है। इन देशों में केवल माता अथवा पिता द्वारा बच्चे का लालन पालन करने से बच्चे का मानसिक एवं बौद्धिक विकास सही तरीके से नहीं हो पा रहा है एवं यह बच्चे उच्च स्तर की पढ़ाई के मामले में पिछड़ रहे हैं। आज अमेरिका में बहुत कम बच्चे विज्ञान एवं गणित की उच्च स्तर पर पढ़ाई कर पा रहे हैं, जिसके चलते यह बच्चे सेवा क्षेत्र में कुछ छोटे मोटे काम करते नजर आते हैं। दूसरे, भारत सहित कई देशों में विभिन्न जातियों, मत एवं पंथ के आधार पर नागरिकों को आपस में लड़ाया जा रहा है एवं समाज में आज नागरिकों के बीच आपसी भाईचारा एवं विश्वास का नितांत अभाव दिखाई दे रहा है, जिससे आज सामाजिक समरसता का अभाव स्पष्टत: दिखाई देने लगा है। साथ ही, लगभग पूरे विश्व में ही पर्यावरण को लेकर भी गम्भीर स्थिति बन गई है। विशेष रूप से विकसित देशों में नागरिकों की जीवन शैली ही इस प्रकार की बन गई है कि प्रकृति का दोहन करने के स्थान पर प्रकृति का शोषण किया जा रहा है। जंगल खत्म हो रहे हैं, प्रकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग हो रहा है, जिसके कारण पर्यावरण पर दबाव बन रहा है। कुछ स्थानों पर तो एक ही दिन में पूरे वर्ष भर की बारिश हो रही है तो कहीं कहीं बारिश ही नहीं हो रही है। इस प्रकार का असंतुलन वैश्विक स्तर नागरिकों के लिए गम्भीर समस्याएं उत्पन्न कर रहा है। जहां तक भारत का सम्बंध है, भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे सांस्कृतिक संगठन उक्त विषयों पर गम्भीरता से विचार विमर्श करते हुए इन समस्याओं के हल हेतु प्रयास भी करते दिखाई दे रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना शताब्दी वर्ष 2025 में मनाने की तैयरियों में जुटा है। अपने शताब्दी वर्ष के निमित्त संघ ने समाज के लिए आज की परिस्थितियों के संदर्भ में अति महत्वपूर्ण पांच आयामों को आग्रह पूर्वक समाज के सामने रखा है। इन आयामों को संघ के स्वयंसेवक अपने स्तर एवं शाखा के स्तर पर क्रियान्वित करेंगे, इसके बाद समाज से भी अपेक्षा की गई है कि इन आयामों को अपने स्तर पर क्रियान्वित करने में सहयोग करें। प्रथम आयाम है, समाज में सामाजिक समरसता स्थापित करना। समाज में छूआछूत, जातिभेद बिलकुल नहीं होना चाहिए। भारत में रहने वाला प्रत्येक नागरिक एक भारतीय है, फिर विभिन्न जातियों में बंटवारा क्यों? अंग्रेजों ने भारत पर अपना शासन स्थापित करने के लिए भारतीय नागरिकों को विभिन्न जातियों में बांटों और राज करने की नीति अपनाई थी। आज के परिप्रेक्ष्य में जब भारत विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है, तब समस्त भारतीय नागरिक आपस में विश्वास बनाए रखते हुए देश की प्रगति में अपने योगदान को बढ़ाएं ऐसी अपेक्षा भारत के प्रत्येक नागरिक से हैं। अतः जन्म आधारित किसी भी प्रकार के भेदभाव को हम समस्त भारतीयों को नहीं मानना चाहिए। इस दृष्टि से सामाजिक समरसता का आज बहुत महत्व है एवं अपने जीवन में इसे व्यवहार में लाने का गम्भीर प्रयास हमें करना चाहिए। द्वितीय आयाम है, परिवार प्रबोधन। भारत के प्रत्येक कुटुंब में भारतीय जीवन मूल्यों एवं सांस्कृतिक मूल्यों को हमें अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को सौंपने का गम्भीर प्रयास करना चाहिए। प्रत्येक भारतीय परिवार को अपने जीवन में दो कार्य आवश्यक रूप से करने चाहिए। एक तो समाज के प्रति हम कुछ सेवा के कार्य निरंतर करते रहें, और दूसरे सनातन संस्कृति और अपने धर्म की रक्षा के लिए भी हम जागरूक रहें। विशेष रूप से सौराष्ट्र और गुजरात में यह कार्य व्यापक रूप से नागरिकों द्वारा किए जा रहे हैं। परंतु, इन्हें पूरे देश में फैलाया जाना चाहिए। साथ ही यह कार्य सभी वर्गों में समस्त स्तरों पर होना चाहिए। तीसरा आयाम है, पर्यावरण की रक्षा करना। आज की विपरीत परिस्थितियों के बीच समाज के नागरिकों को बड़ी संख्या में पेड़ लगाने का कार्य हाथ में लेने की जरूरत है। साथ ही, पोलिथिन के उपयोग को बंद करने एवं पानी बचाने के लिए भी गम्भीर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। यह कार्य समाज ही कर सकता है। हाल ही में राजस्थान के जोधपुर प्रांत में (भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान का लगभग एक तिहाई भाग) संघ के कार्यकर्ताओं ने 45 दिन पर्यावरण के प्रति समर्पित यात्रा सम्पन्न की है। इस यात्रा के दौरान 15 लाख से अधिक पेड़ लगाए गए हैं। यह यात्रा 14000 किलोमीटर की रही है। इसी प्रकार, कर्नाटक में भी एक करोड़ पेड़ लगाने की योजना बनाई गई है। इसी प्रकार के कार्य समाज में नागरिकों को साथ लेकर पर्यावरण की रक्षा के लिए स्वयंसेवकों द्वारा अन्य स्थानों पर भी किए जाने चाहिए। चौथा आयाम है, स्वदेशी जीवन शैली। भारत को प्रत्येक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए नागरिकों द्वारा स्व-आधारित जीवन शैली अपनाया जाना अब आवश्यक हो गया है। अपनी मातृभाषा पर गर्व करने के साथ साथ भारत में निर्मित उत्पादों के अधिकतम उपयोग को बढ़ावा दिया ही जाना चाहिए। स्वदेशी जीवन शैली में केवल स्थानीय वस्तुओं का उपयोग ही शामिल नहीं है बल्कि भारत की सनातन संस्कृति का पालन भी इस जीवन शैली में शामिल है। अतः आज प्रत्येक भारतीय नागरिक में स्व का भाव विकसित किया जाना चाहिए ताकि राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव विकसित हो सके। पांचवा आयाम है, नागरिक कर्तव्य। भारत आज पूरे विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है एवं विश्व में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन चुका है। इन परिस्थितियों के बीच भारतीय नागरिकों को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में सतर्कता बरतना आवश्यक हो गया है। नागरिकों को प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन का पालन करना चाहिए। भारतीय नागरिक होने के नाते हमारे संविधान के अनुसार भी कुछ कर्तव्य निर्धारित हैं। इन कर्तव्यों का निर्वहन गम्भीरता के साथ किया जाना चाहिए। इसके लिए स्वयंसेवकों को अपने स्तर पर, अपने कुटुंब के स्तर पर, अपनी शाखा के स्तर पर एवं व्यापक समाज के स्तर पर अपने अपने कर्तव्यों के अनुपालन के लिए जागृति लाना आवश्यक है। इसी प्रकार समाज में कई संस्थाएं हैं, मठ मंदिर हैं, व्यापारिक संस्थान हैं, विद्यालय हैं, अस्पताल हैं, इन समस्त संस्थाओं में भी जागृति लानी होगी ताकि समाज का प्रत्येक अंग अपने कर्तव्यों के पालन के प्रति सजग हो सके। साथ ही, विभिन्न विद्यालयों को किस प्रकार पर्यावरण गतिविधि से सम्बंधित कार्यों के लिए अपने साथ लिया जा सकता है, मठ मंदिर को किस प्रकार समाज में सामाजिक समरसता स्थापित करने के उड्डेस्य से अपने साथ लिया जा सकता है, व्यापारिक संस्थान किस प्रकार स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा दे सकते हैं। इन विषयों पर गम्भीरता पूर्वक विचार किया जाकर पूरे समाज को ही उक्त पांचों आयामों पर सफलतापूर्वक कार्य करने के लिए साथ लिया जाना चाहिए। प्रहलाद सबनानी Read more »