राकेश कुमार आर्य

राकेश कुमार आर्य

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उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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लेखक - राकेश कुमार आर्य - के पोस्ट :

राजनीति

भज ‘कोविन्दम्’ हरे-हरे

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उधर संघ के लाखों कार्यकर्ता या स्वयंसेवक भी इस बार एक अपेक्षा लगाये बैठे थे कि जैसे भी हो इस बार देश का राष्ट्रपति संघ की पृष्ठभूमि का राजनीतिज्ञ बने। श्री कोविन्द संघ की पृष्ठभूमि के राजनीतिज्ञ हैं, जिनके नाम के आने से आरएसएस को भी राहत मिली है और उसके वे स्वयंसेवक भी प्रसन्न है- जिनसे कुछ समयोपरांत प्रधानमंत्री को लोकसभा चुनाव 2019 के लिए काम लेना है। मोहन भागवत नहीं तो कोविन्द ही सही, अर्थात मोहन='गोविन्द' के स्थान पर कोविन्द भी चलेगा, बात तो कुल मिलाकर एक ही हुई। अब संघ भी कहने लगा है-'भज कोविन्दम् हरे हरे।'

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टेक्नोलॉजी विज्ञान विविधा

वैज्ञानिकों के चमत्कार को नमस्कार

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अब आज जब हम अपने आधुनिक विश्व के वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष की खोज करते हुए देखते हैं, हम यह भी देखते हैं कि आज के वैज्ञानिक कैसे नये-नये अंतरिक्षीय रहस्यों से पर्दा उठाते जा रहे हैं, तो हमें उन पर आश्चर्य होता है। वास्तव में यह आश्चर्य करने की बात नहीं होनी चाहिए, अपितु हमें अपने आप पर गर्व होना चाहिए कि आज का विज्ञान जितना ही अंतरिक्षीय रहस्यों को उद्घाटित करता जा रहा है-वह उतना ही अधिक हमारे साक्षात्धर्मा ऋषियों के उत्कृष्टतम चिंतन को नमन करता जा रहा है।

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लेख साहित्‍य

कौन कहता है कि हम एक हजार वर्ष गुलाम रहे

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झूठे चाटुकारों से और लेखनी को बेचकर व आत्मा को गिरवी रखकर लिखने वाले इतिहासकारों से स्वतंत्रता के अमर सैनानियों के ये पावन स्मारक यही प्रश्न कर रहे हैं। समय के साथ हम इन प्रश्नों को जितना उपेक्षित और अनदेखा करते जा रहे हैं-उतना ही बड़ा प्रश्नचिन्ह लगता जा रहा है।

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