राकेश कुमार आर्य

राकेश कुमार आर्य

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उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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लेखक - राकेश कुमार आर्य - के पोस्ट :

राजनीति

कपिल मिश्रा और अरविन्द केजरीवाल की कलंक कथा

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आज केजरीवाल की कलंक कथा और कपिल के आरोप चर्चा का विषय हैं। केजरीवाल मौन हैं। हो सकता है कि वह सोच रहे हैं कि धीरे-धीरे सब शांत हो जाएगा। हम भी मानते हैं कि सब धीरे-धीरे शांत हो जाएगा, पर सत्यनिष्ठा पर जो प्रश्नचिन्ह एक बार लग जाता है वह तो चरित्र पर लगे एक दाग की भांति होता है, जिसे धोने वाली कोई साबुन आज तक नही बनी है। समाचार पत्रों को चार दिन बाद हो सकता है कि लिखने पढऩे के लिए फिर कोई 'केजरीवाल ' का 'पिता' मिल जाए या और कोई ऐसा धमाका हो जाए कि सारी मीडिया आप की सडांध मारती लाश को छोडक़र उधर को भाग ले पर दिल्ली की जनता के हृदय में तो इतनी देर में गांठ लग चुकी होगी, जिसे खोलना अब केजरीवाल के वश की बात नहीं होगी। यह जनता है जो सब जानती है-यह भूलती नही है-अपितु हृदय में लगे एक एक शूल को उठा उठाकर सुरक्षित रखती जाती है। समय आने पर सबका हिसाब किताब गिन गिनकर पूरा कर देती है। अत: केजरीवाल ध्यान रखें कि पर्दे के पीछे के उनके कुकृत्यों को जनता अपने पर्दे (हृदय) के पीछे ले गयी है और अब पर्दे का हिसाब 'पर्दे' में ही होगा।.....राज को राज रहने दो।

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राजनीति

‘लहरी’ नही ‘प्रहरी’ बनें जनप्रतिनिधि

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सत्ता में अपने लिए 'प्रबंध' और दूसरे के लिए 'प्रतिबंध' का खेल चलता रहता है। जो थोड़े से मुखर जनप्रतिनिधि होते हैं वे इस खेल में पारंगत होते हैं। वे दूसरों का रास्ता रोकने (प्रतिबंध) और अपना रास्ता प्रशस्त करने (प्रतिबंध करने) की कला को जानते हैं। इस प्रकार के जनप्रतिनिधि सत्ता में लॉबिंग करते देखे जा सकते हैं। इसीलिए ये कुछ मुखर रहते हैं। पार्टी के भीतर पार्टी बनाकर ये लोग सत्ता को भ्रमित करने या अपने अनुसार हांकने का भी प्रयास करते हैं। ये ऐसी शक्ति भी रखते हैं कि चुनावों के समय किसी का टिकट भी कटवा सकते हैं। इनके चिंतन में भी राष्ट्रचिंतन कम और अपने आपको सत्ता हिलाने में समर्थ दिखाने की चाह अधिक होती है। इस प्रकार इनसे भी देश का भला नहीं हो पा रहा।

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राजनीति

राष्ट्र के ब्रह्मा, विष्णु, महेश

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जब उसे विश्वमंचों पर देश के नायक के रूप में अपनी बात कहने का अवसर मिलता है। पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और अटल जी ने अनेकों अवसरों पर विश्वमंचों पर देश का सम्मान बढ़ाया था, तब लोगों को लगता था कि उनके पास कोई नेता है। आज उसी परंपरा को नरेन्द्र मोदी आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने चीन में या उससे पूर्व अन्य देशों में जाकर जो सम्मान अर्जित किया है उससे देश का मस्तक ऊंचा हुआ है। उन्होंने चीन की धरती से ठीक ही कहा है कि चीन के राष्ट्रपति ने प्रोटोकॉल तोडकऱ जिस प्रकार उनका सम्मान किया है वह मेरे देश के सवा अरब लोगों को दिया गया सम्मान है। जिस किसी ने भी मोदी के यह शब्द सुने उसी ने प्रसन्नता का अनुभव किया। हर व्यक्ति ने मोदी से अधिक स्वयं को गौरवान्वित अनुभव किया। कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री रहते हुए प्रधानमंत्री बनने की सोच सकता है, और समय आने पर जनता की इच्छा से प्रधानमंत्री बन भी सकता है, यह एक अलग बात है।

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राजनीति

चीन, भारत और दलाईलामा

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भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने तिब्बत को हड़पते हुए चीन को रोकने का उचित प्रयास नहीं किया। यदि इस घटना के घटित होते समय ही पंडित नेहरू के नेतृत्व में भारत उठ खड़ा होता तो संपूर्ण विश्व उस समय भारत के साथ होता। उस समय प्रथम विश्वयुद्घ को समाप्त हुए मात्र चार वर्ष का ही समय हुआ था। विश्व के लोग युद्घों की विनाशलीला से पहले से ही भय खा रहे थे, तब वह नहीं चाहते थे कि द्वितीय विश्वयुद्घ के समाप्त होते ही चीन जैसा कोई देश तीसरे विश्वयुद्घ की पृष्ठभूमि तैयार करने लगे। तब विश्व के देश साम्राज्यवाद को 'पाप' समझ रहे थे और इस दिशा में बढ़ते चीन को रोकने के लिए तब सारा विश्व एक हो सकता था, परंतु भारत चूक गया।

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समाज

कम्युनिस्ट और नक्सलवाद

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उदाहरण के रूप में रूस में साम्यवादी क्रांति (1917) होते ही 1921 में अकाल पड़ा तो उसमें लगभग पौने तीन करोड़ लोग प्रभावित हुए थे उसमें सरकारी प्रबंधन से कुपित होकर 16000 नाविकों ने विद्रोह कर दिया था। जिसे रूस के तत्कालीन तानाशाह राष्ट्रपति लेनिन ने अपने 60000 सैनिकों की तैनाती कर निर्ममता से कुचलवा दिया था और 16000 नाविकों को स्वर्ग लोक पहुंचा दिया था। इसके पश्चात रूस में जब स्टालिन का शासन आया तो वहां दो करोड़ से अधिक लोगों की हत्याएं कर दी गयीं थीं। उनका अपराध केवल यह था कि वे साम्यवादी विचारधारा की क्रूरता के सामने बोलने का साहस कर रहे थे।

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राजनीति

पीएम मोदी देश के गृहमंत्री को बदलें

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इधर सोशल मीडिया पर भी कुछ अधिक ही 'क्रांतिकारी' पैदा हो गये हैं जो बम की भाषा पढ़ाने का प्रयास सरकार को कर रहे हैं। माना कि सरकार को प्रेरित करना और उकसाना कलम का काम है-पर कलम पराक्रमी होने के साथ साथ घटनाओं की समीक्षक भी होनी चाहिए, अन्यथा वह आग लगाकर अपनी ही हानि कर लेगी। समझने की आवश्यकता है कि इस समय पाकिस्तान के विरूद्घ भारत चाहकर भी 'सर्जिकल स्ट्राइक' नहीं कर सकता और ना ही 'सर्जिकल स्ट्राइक' की पुनरावृत्ति समस्या का समाधान है। अब यदि 'सर्जिकल स्ट्राइक' की गयी तो पाकिस्तान और चीन की ओर से युद्घ की घोषणा होने की पूर्ण संभावना है।

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