पतझड़

भवानी प्रसाद लोधी

बनकर आये सफेद बादल पतझड़ में
डटकर लड रही थी शाखायें
कुछ की कलियां टूटी, कुछ थी मुरझायी
असीम प्रीत के थे जो दावे करते
पहर देखकर लिया साथ बदल

शरद ऋतु ने दिया है पतझड़
वर्षा ऋतु में घन बनकर घटा छायेगी
फिर शाखायें लहराकर गीत गायेंगी
फिर से नई कलिया, नए फूल खिल आएँगी
है पहर प्रतिकूल तो अनुकूल हो आएगा
थोडा धैर्य बनाकर रखना होगा

  • भवानी प्रसाद लोधी

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