मनीष बर्नवाल, असिस्टेंट प्रफेसर, जेएनयू
वाराणसी देश के प्रधानमंत्री और गोरखपुर राज्य के मुख्यमंत्री का संसदीय क्षेत्र रहा है और इस कारण भी इस चरण में चुनावी तापमान सबसे ज्यादा बढ़ा हुआ है। इस बढ़ते चुनावी तापमान के बीच यहां के निवासी किसी और बढ़ते तापमान से चिंतित हैं। उनकी नजरें मौसम के बढ़ते तापमान पर टिकी हुई हैं, विशेषकर उन परिवारों में जहाँ 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे हैं। उनकी चिंता का कारण है साक्षात यमराज रूपी जापानी इंसेफ्लाइटिस और AES और इसके कारण पिछले कई वर्षों से प्रति वर्ष हो रहे सैकड़ों बच्चों की मौत।
इन परिवारों में पिछले कई वर्षों की दुखद यादें जुड़ी हैं तो राजनीतिक दलों पर गुस्सा और नाराजगी भी। पूर्वांचल के लोगों की हमेशा से यह शिकायत रही है कि पिछली कुछ सरकारों ने राजनीतिक कारणों से इस क्षेत्र से जुड़ी समस्यायों, विशेषकर जापानी इंसेफ्लाइटिस, के प्रति घोर उदासीनता का परिचय दिया है। अत: योगी सरकार से इस क्षेत्र के लोगों की गहरी अपेक्षा थी कि इसी क्षेत्र के रहने वाले योगी के राज में इस समस्या के प्रति विशेष ध्यान दिया जायेगा। विशेषकर जब देश के प्रधानमंत्री का चुनावी क्षेत्र भी इसी पूर्वांचल में हो। इसीलिए जब 2017 में इसी क्षेत्र से बने मुख्यमंत्री के राज में गोरखपुर हॉस्पिटल में 30 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई तो राजनीतिकरण भी बहुत हुआ और लोगों में नाराजगी भी बहुत बढ़ी।
जापानी इंसेफ्लाइटिस (JE) और एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES)
JE क्यूलेक्स विश्नई और क्यूलेक्स ट्राईटैनिओरिनचस नामक मच्छर के काटने से 1 से 15 वर्ष के उम्र के बच्चों में होने वाला एक दिमागी बुखार है जो JE वायरस से होता है। इस रोग के लक्षण हैं सर में दर्द, सुस्ती और लम्बी बेहोशी जिसमें कई बार मरीजों की मृत्यु तक हो जाती है। इसके वायरस सामान्यत: मार्च, अप्रैल और मई में अधिक हमला करते हैं और मानसून के मौसम में यह बीमारी और ही गंभीर हो जाती है। JE से ही जुड़ी एक अन्य बीमारी है AES जिसका मुख्य कारण -JE और स्कब टाइफस (गैर वायरल जीवाणु संक्रमण ). AES, JE से ज्यादा खतरनाक है और इसका अनुमान इससे ही लगाया जा सकता है कि JE से लड़ने के लिए तो वैक्सीन है लेकिन AES से लड़ने के लिए नहीं और इसका असर दिखता हैं इनसे होने वाली मौतों से । इन दोनों बिमारियों से हुए मौतों में 95 प्रतिशत से अधिक का कारण AES है।
इस क्षेत्र के लोग इस बीमारी से कितने गंभीर रूप से पीड़ित हैं इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि कुल 38 प्रभावित जिले, जिसमें से 14 जिले बहुत ही ज्यादा प्रभावित हैं, में 1978 से अभी तक कुल 25,000 बच्चे मृत्यु को प्राप्त कर चुके हैं और 2008 के बाद अर्थात सपा और बसपा के पूर्ण बहुमत की 10 वर्षों के शासन में सिर्फ गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में, जहाँ 2017 में लगभग 30 बच्चों के मरने से राजनीतिक तूफ़ान खड़ा हो गया था, कुल 4842 बच्चों की मौत सिर्फ इस बीमारी से हुई है । यदि 2016 और 2017 को ही देखा जाये तो AES से क्रमशः 3911 और 4500 से ज्यादा बच्चे प्रभावित और क्रमशः 715 और 748 बच्चों की मौत हुई और ये सारे आंकड़े अभिलिखित हैं, असुचित आंकड़े तो और भी ज्यादा होंगे। इन सारे मौतों के कारणों पर नज़र डाला जाये तो इस बीमारी के प्रति राज्य सरकारों की निरंतर उदासीनता ही रही है।
चूँकि इस बीमारी का सामना करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है लोगों में जागरूकता फैलाना और त्वरित चिकित्सीय सहायता प्रदान करना, और 2017 में जब तक गोरखपुर हॉस्पिटल में 30 से ज्यादा बच्चों की मौत की खबर राष्ट्रीय मीडिया में न छाई और इसका भरपूर राजनीतिकरण न हुआ तब तक की सभी राज्य सरकारों ने, चाहें वो सपा की पूर्ण बहुमत की पुरे कार्यकाल की सरकार रही हो या बसपा की पूर्ण बहुमत की पुरे कार्यकाल की सरकार या गठबंधन की या कुछ महीने ही पहले बने योगी की, यह प्राथमिकता में नहीं दिखाई दी। 2017 की दुःखद घटना के कुछ ही महीने पहले सरकार में आयी योगी सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी, राजनितिक रूप से भी और प्रशासनिक रूप से भी। इस चुनौती को योगी सरकार ने पिछले दो वर्ष में कितनी सफलता के साथ सामना किया और कितना प्रयास किया इसका आकलन करना जरुरी है।
2017 की मौत के बाद कटु आलोचना के केंद्र में आया राज्य प्रशासन ने मुख्यमंत्री योगी के नेतृत्व में सर्वप्रथम इस बीमारी के कारणों को पहचान करने और इस बीमारी के होने से रोकने पर ध्यान दिया। इसमें सबसे महत्वपूर्ण था- इसके वायरस से संक्रमित होने से दो महीने पूर्व ही टीकाकरण क्योंकि टीकाकरण के बाद रोग प्रतिरक्षा क्षमता के विकसित होने में 2 महीने का समय लगना, जिसके अंतर्गत 92 लाख बच्चों का JE टीकाकरण किया गया, कुपोषण के शिकार बच्चों की कम प्रतिरक्षा क्षमता को देखते हुए ICDS के माध्यम से उनके पोषण का भरपूर ध्यान रखना, आम लोगों विशेष कर गरीब परिवारों में जागरूकता फैलाना कि बच्चों के जमीन पर सोने, खुले में शौच जाने, छोटे बच्चों को धान के खेतों में ले जाने, अस्वच्छ पानी पीने से इस बीमारी से संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है।
इसके लिए योगी सरकार ने योजनानुसार 617 अति संवेदनशील गाँवों को चिन्हित किया और वर्तमान केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत अभियान और ग्रामीण फ्री शौचालय निर्माण योजना का भरपूर लाभ लेते हुये विशेष वरीयता के साथ इन गाँवों में स्वच्छता के लिए और इन्हे खुले में शौच मुक्त बनाने के लिए सघन अभियान छेड़ा। साथ ही साथ ‘तत्काल अनुक्रिया टीम’ का राज्य, ज़िले और प्रखंड स्तर पर स्थापना कर किसी भी क्षेत्र में AES फैलने की आपात स्थिति का तुरंत सामना करने योग्य बनाया। गाँवों में मेलिथाईन टेक्निकल का छिड़काव हो या लोगों में यह जागरूकता फैलाना कि इनसे बचाव के लिए पूरी बाँह की कमीज पहनना, सोने के समय मच्छरदानी का प्रयोग करना और संभव हो तो मच्छर भागने वाली अन्य दवाओं का प्रयोग करना , पानी के जमाव को न होने देना, सुअर के बाड़े को घर और गाँव से दूर रखना इत्यादि अति जरुरी है, सभी क्षेत्रों में ईमानदारी से प्रयास किया गया।
वर्तमान सरकार द्वारा एक दूसरा प्रयास किया जा रहा है, पुरे राज्य में पहले से विद्यमान स्वास्थ्य की आधारभूत सुविधाओं को मजबूत करना और नए सुविधाओं का विकास करना। इस दिशा में सर्वप्रथम राज्य सरकार ने गरीब परिवारों में प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर कर रहे कुपोषण की समस्या को खत्म करने के लिए ICDS की व्यवस्था को मजबूत बनाते हुये छोटे बच्चों, गर्भवती और नवप्रसूता माताओं के पोषण तक पहुँच को सुनिश्चित किया। योगी सरकार ने कई वर्षों से लगभग 300 वर्ग किलोमीटर का भार ढो रहे गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में और अधिक वेंटिलेटर की व्यवस्था, जरुरत की अन्य मशीनें और पैरामेडिक स्टॉफ की विशेष प्रशिक्षण पर ध्यान दिया, जिसके तहत अभी तक इस क्षेत्र के 366 डॉक्टरों और 26,000 पैरामेडिक स्टाफों को अमेरिकी विशेषज्ञों द्वारा और CMC वेल्लोर में प्रक्षिक्षण दिया जा चूका है तथा और भी डॉक्टरों और पैरामेडिक स्टाफों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। । साथ ही साथ 2018 के योगी सरकार के एक वर्षीय योजना के तहत गोरखपुर और बस्ती प्रमंडल के 9 गंभीर रूप से प्रभावित जिले जहाँ से JE और AES के 85% मामले आते हैं, 10 छोटे अस्पतालों के शिशुओं के आईसीयू (P-ICU) में 5-5 अतिरिक्त बेड़ जोड़े गए हैं। इसके अलावा प्रखंड स्तर पर 104 नए इंसेफ्लाइटिस उपचार केंद्र (ETC ) खोले गए हैं, जबकि इससे पहले सिर्फ 66 ETC ही थे। इनमें से 15 ETC में शिशुओं के तीन बेड वाले आईसीयू (P-ICU) भी खोले गए हैं।
योगी सरकार के इस समग्र प्रयासों का ही परिणाम है कि वर्ष 2018 में 14 सर्वाधिक प्रभावित जिलों में JE और AES के कारण हुए मृत्यु में 2017 की तुलना में 66 % की कमी आयी है और अभी तक वर्ष 2019 में एक भी मरीज की मृत्यु नहीं हुई है। 2 वर्ष के संक्षिप्त कार्यकाल में प्रधानमंत्री के मंत्र ‘सबका साथ, सबका विकास’ को साकार करने के लिए मुख्यमंत्री योगी ने जिस प्रकार से जापानी इंसेफ्लाइटिस (JE) और एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) से हुए मौतों पर नियंत्रण पाया है, यदि इसे इसी प्रकार जारी रखा जाये तो निश्चय ही पूर्वांचल में स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांति होने से कोई नहीं रोक सकता।