अतुल गौर
देश में असहिष्णुता वैसे तो मौजूदा दौर में कहीं भी परिलक्षित नहीं होती और अगर किसी को यह असहिष्णुता दिखाई देती भी है तो वह हिन्दुस्तानी जो वाकई में खुद को भारतीय कहता है कम से कम बॉलिबुड अभिनेता आमिर खान जैसी गलती करते हुये, बैठी हुई भैंस में लाठी न मारें। क्रिया की प्रतिक्रिया का सिद्धांत समझने वाले लोगों को सचेत हो जाने की सख्त दरकार है और यह इसलिये क्योंकि इस तरह के कड़बे बोल देश को एक भयंकर आग में झोंक सकने के लिये काफी है। दरअसल देश इस दौर में जहां प्रगति के सोपान तय करने की होड़ में आगे बढ़ने के लिये ललायित है और सही दिशा में बढ़ता हुआ दुनिया के तमाम देशों के साथ खड़ा नजर आ रहा है यह किन्हीं लोगों को रास इसलिये नहीं आ रहा है क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका राजनैतिक बजूद खत्म हो सकता है। यह तो नहीं कहा जा सकता है कि बॉलिबुड अभिनेता आमिर खान का हालिया बयान राजनैतिक है अथवा राजनीति से प्रेरित हैं अपितु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि यह बयान देने योग्य कतई नहीं है। वजह साफ है जिस देश में करीब 103 करोड़ हिन्दू हों वहां आमिर खान सुपर स्टार हों और उसकी फिल्म जो हिन्दू देवी देवताओं पर व्यंग करती हो वह देश की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म हो वहां असहिष्णुता है कैसे मान लिया जाये। देश में दादरी जैसी घटनाएं होना कोई नई बात नहीं है बल्कि यूं कहा जाये कि इससे भी भयंकर घटनाओं का सामना देश ने किया है तो गलत नहीं होगा लेकिन बात दादरी से शुरू होकर देश में असहिष्णुता व्याप्त हो जाने की करें तो यह एक बचकाना अहसास लगता है। देश में रिकॉर्ड आंकड़ों के अनुसार लगभग हर 8 से 9 मिनिट के बाद एक सामप्रदायिक झड़प सामने आती है और दो समुदाय वैचारिक मतभेदों को लेकर छोटी या बड़ी घटनाओं के रूप में टकरा जाते हैं और यह आज से नहीं है वर्षों बरस से है। असहिष्णुता अगर थी तो 1947 में, वर्ग विशेष को भय था तो 1984 में, लेकिन तब से लेकर आज तक सामप्रदायिक घटनाओं को रोकना किसी भी सरकार के लिये चुनौती से कम नजर नहीं आया और सामप्रदायिक घटनाएं लगातार सामने आतीं रहीं। यह बेहद संवेदनशील मुददा है और जब तक खुद देश में रहने वाले लोग इसे पूरी तरह से अस्वीकार नहीं कर देते तब तक राजनीतिक तौर पर इसके नफे-नुकसान के लिये असहिष्णुता को हवा दी जाती रहेगी। देश के सामने एक सुनहरा भविष्य है। जब अशफाकउल्ला खान और भगत सिंह के साथ चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारी देश की आजादी के लिये एक साथ लड़ते नजर आ रहे थे फिर अग्रेजों की फूट डालो राज करो की नीति काम कर गई और हिन्दू और मुसलमान आपस में जो लड़े नतीजा देश को पाकिस्तान नाम की फफूंद मिल गई। जब वाकई में पाकिस्तानी पाकिस्तान चले गये और हिन्दुस्तानी हिन्दुस्तान रह गये तो अब यह असहिष्णुता कैसी? या तो कहीं न कहीं बयानों अथवा आचरण ने यह दिखाने की कोशिश की कि फलां मुसलमान है और फलां हिन्दू या सिक्ख। दरअसल देश के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है। खासकर इस देश के नागरिकों के लिये जो वास्तविकता में हिन्दुस्तानी हैं और एक हिन्दुस्तानी की जुबांन पर जब भी आना चाहिये, जो भी आना चाहिये वह शान ये हिन्द होना चाहिये। देश वाकई में पूरी तरह से सहिष्णुता के रास्ते पर है वरना आमिर के बयान के बाद कुछ भी हो सकता था लेकिन हमारे देश को संस्कार में यही मिला है कि हम पाकिस्तान के साथ बंटवारे के बाद साथ में वो लोग हैं जिन्होंने एक-दूसरे के साथ रहना स्वीकार किया है। अब इस देश में हिन्दू कहकर या मुसलमान कहकर या सिक्ख बतलाकर बंटवारा कर लेना वास्तविक रूप से उस 1947 के बंटवारे को दोहराने की गलती होगी जो आज नासूर बन चला है। हम इस बंटवारे के बाद अपनी मर्जी से बल्कि युं कहें कि पारस्परिक सहयोग से यहां रहते हैं तो हम सबसे पहले भारतीय हैं और कम से कम भारतीय होने के नाते इतना तो कर ही सकते हैं कि देश का अगर माहौल खराब है भी तो उसे कम से कम बिगड़ने न दें। यूं तो देश में अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता है लेकिन क्या बोलना है, कब बोलना है यह तय करने की जिम्मेदारी भी खुद हमारी होगी। आमिर खान जो देश को स्वच्छ रखने का संदेश देता है अतिथियों को देवता निरूपित करता है। सत्यमेव जयते का नारा देता है खुद बेवाक होकर फिल्म पीके में अंधविश्वास और पाखंड को आईना दिखाता है वह कैसे देश को असहिषुण बता सकता है यह वाकई में हैरान कर देने वाली बात है लेकिन देश के जाने माने फिल्म अभिनेता निर्माता आमिर खान को यह जान लेना चाहिये कि आज पूरी दुनिया में जैसे खान शब्द से लोगों को ऐलर्जी हो रही है। यूरोप के देशों में अगर आपका सरनेम खान है तो आप विशेष निगरानी में आप संदेही हैं। क्या इसे असहिष्णुता नहीं कहियेगा जनाब आमिर खान साहब। दूसरा पहलू यह है जिसे आपने खुद कबूल किया है कि इस्लामिक व्यक्ति कभी भी आतंकी नहीं हो सकता। ठीक उसी तरह एक हिन्दुस्तानी भी बयानबाजी करने के आधार पर भला कैसे लापरवाह हो सकता है। ये लापरवाही कई मासूमों को चपेट सकती है। देश का माहौल खराब हो सकता है। शांति सौहार्द की राह पकड़कर एक मंजिल पाने की तरफ बढ़ रहे इस देश को भयंकर झटका लग सकता है। कोई भी गर वाकई है हिन्दुस्तानी तो उसकी जवाबदारी यही है कि अगर असहिष्णुता जो कि कहीं है तो नहीं लेकिन अगर नजर भी आती है तो उसे बिना कुछ कहे या उस जलती हुई आग में बगैर घी डाले कैसे एक जिम्मेदार नागरिक होने का फर्ज अदा करता है और अपने देश को इस कथित असहिष्णुता से कैसे बचाता है। इस पर जोर देना होगा। हल्ला मचाकर आवार्ड वापस कर या सरकार पर असहिषुण होने का आरोप मढ़कर वह खुद एक असहिषुण होने का प्रमाण दे रहा है। यह बात हर हिन्दुस्तानी को अपने जहन में उतार लेनी चाहिये भले ही उसका मजहब कुछ भी हो। बात देश की है और 1947 के बंटवारे के बाद इस देश में सिर्फ और सिर्फ हिन्दुस्तानी रहते हैं। बहरहाल चाहे आमिर हों, शारूख हों साक्षी महाराज हों या फिर कोई और। सबको यह जान लेने की सख्त दरकार है कि बैठी भैंस में लाठी मारोगे तो बुरा हिन्दुस्तान का होगा और अगर तुम सब वाकई हिन्दुस्तानी हो तो यह बयान बाजियां क्यों?