राष्ट्राभिमान का जागरण

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-प्रवीण दुबे-
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अपनी संस्कृति, परम्परा और राष्ट्र पर अभिमान करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। जो लोग या राष्ट्र ऐसा नहीं करते वे नष्ट हो जाते हैं। इस दृष्टि से भारत का विचार किया जाए तो किसी ने ठीक ही कहा है- ‘यूनान मिश्र रोमां सब मिट गए जहां से कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी विश्व के बेहद समृद्धशाली माने जाने वाले तमाम राष्ट्र दुनिया के नक्शे से सिर्फ इस कारण धूमिल हो गए क्योंकि उन्होंने अपने जन को अपनमी संस्कृति और राष्ट्राभिमान से नहीं जोड़ा।

रूस का उदाहरण हमारे सामने है। कभी दुनिया की महाशक्ति में से एक माना जाने वाला यह राष्ट्र आज कई भागों में टूटकर सिर्फ इस कारण कमजोर हो गया क्योंकि वहां के नागरिकों को अपने मिट्टी अपनी संस्कृति से प्रेम नहीं था और इसी वजह से उन्होंने एकीकृत रूस के विखंडन का कोई विरोध नहीं किया। अत: जो लोग ऐसा मानते हैं कि अपने देश के नागरिकों में राष्ट्राभिमान जाग्रत करना, अपने महापुरुषों की स्मृतियों को जीवंत रखने के प्रयास करना व्यर्थ की बात है तो इससे बड़ी दूसरी कोई भूल या गलती नहीं कही जा सकती।

इस दृष्टि से देश के वर्तमान पर विचार किया जाए तो यह बेहद गर्व की बात है कि देश और भारत के अधिकांश प्रदेशों अर्थात केन्द्र और राज्य दोनों ही स्थानों पर एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था कायम हुई है जिसे न केवल अपनी संस्कृति अपनी परम्पराओं पर गर्व है बल्कि देश के लिए मर मिटने वाले क्रान्तिकारियों, महापुरुषों को भी वे अपनी प्रेरणा बनाना चाहते हैं। कुछ दिन पूर्व ही देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने इस देश की राष्ट्र भाषा को गौरव प्रदान करने के लिए साफतौर पर कहा कि किसी भी दूसरे देश के राजनयिकों से होने वाले संवाद को हिन्दी में किया जाएगा। निश्चित ही यह राष्ट्राभिमान को जाग्रत करने वाला निर्णय कहा जा सकता है। इसी प्रकार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बुधवार को मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक नगर ग्वालियर में रेलवे ओवर ब्रिज की आधार शिला रखते समय घोषणा की कि यह पुल वीरांगना लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाएगा। यह भी इस बात का परिचायक है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 1857 की उस वीरांगना के जीवन चरित्र से शहर वासियों को प्रेरणा लेने और उसके बलिदान को हमेशा-हमेशा याद रखने का संदेश दे रहे हैं।

इसके पीछे वही भाव निहित है हम कितना ही विकास कर लें, अग्रणी हो जाएं लेकिन सदैव राष्ट्राभिमान की अग्नि हमारे भीतर प्रज्जवलित होती रहना चाहिए। देश को आजाद हुए 66 वर्ष से अधिक का समय गुजर चुका है बावजूद इसके हम देखते हैं कि आज भी हमारे देश के तमाम नगरों, महानगरों में ऐसी कई इमारतें व मार्ग मिल जाएंगे जिनका नाम आज भी अंग्रेजों अथवा मुगल शासकों के नाम पर है। पूरी दुनिया जानती है कि मुगलों और अंग्रेजों ने किस प्रकार भारत पर आक्रमण किए और लगभग एक हजार वर्षों तक हमारे देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़े रखा। यह वही दौर था जब भारत माता को लूटा गया उसे सोने की चिडिय़ा से कंगाल बना दिया गया यहां के तमाम इमारतों को तोड़ा गया उसमें स्थापित स्थापत्य कला को नष्ट किया और उनको मिटाने के लिए उनका नामकरण अपने राजाओं व आक्रमणकारियों आदि के नाम पर रख दिया गया। यही वह समय था जब न केवल हमारी समृद्धशाली संस्कृति को नष्ट किया गया बल्कि अंग्रेजियत और मुगलिया परम्पराओं को हमारे ऊपर थोपा गया।

बड़े दुख की बात है कि स्वतंत्रता के बाद भी अधिकांश समय तक देश पर ऐसी मानसिकता के लोग शासन करते रहे जो राष्ट्र के प्रति इस देश की संस्कृति के प्रति स्वाभिमान शून्य थे। उन्होंने न केवल अंग्रेजी व अग्रेजियत को बढ़ावा दिया बल्कि गुलामी के प्रतीक चिन्हों को भी बढ़ावा देते रहे।
हर्ष का विषय है कि अब नरेन्द्र मोदी और शिवराज सिंह जैसे राष्ट्राभिमानी नेताओं के हाथ में सत्ता की बागडोर आई है। इन नेताओं ने इस बात की आशा जगाई है कि अब यह देश स्वाभिमान के साथ न केवल उठ खड़ा होगा बल्कि देश की महान संस्कृति, परम्पराओं और महापुरुषों को भी सम्मान मिलेगा। इससे हमारी आने वाली पीढ़ी में देशभक्ति का संचार होगा।

यह इस कारण से भी बेहद जरुरी और समयानुकूल कहा जा सकता है क्योंकि आजादी के बाद से वर्तमान तक का विश्लेषण किया जाए तो पिछले एक दशक में इस देश की संस्कृति, परम्पराओं और महापुरुषों को जितना लांछित और प्रताडि़त होना पड़ा है उतना पूर्व में नहीं हुआ। एक-एक कर विचार किया जाए तो इस देश के जन को भारत और भारतीयता से जोडऩे वाली सभी प्रतीकों का जमकर विरोध किया जाता रहा, उन्हें नीचा दिखाया जाता रहा और इस देश के रहने वालों ने ही इस पर स्वाभिमान जताने वालों के मुंह पर तमाचा मारा और विवाद खड़ा किया। कौन भूल सकता है राष्ट्रगीत वंदेमातरम् के विरोध को इसे कुछ कथाकथित बुद्धिजीवियों और एक वर्ग विशेष के धार्मिक ठेकेदारों ने यह कहकर लांछित और बहिष्कृत किया कि इसकी कुछ पंक्तियां इस्लाम धर्म विरोधी हैं। हालांकि इस देश के तमाम राष्ट्रवादी और देशप्रेमी मुसलमानों ने इसका विरोध भी किया लेकिन यह बात आज तक पची नहीं है कि एक सांसद ने लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में राष्ट्रगीत का अपमान किया था। इसी प्रकार इस देश की महान पुरातन परम्पराओं में से एक ‘योग’ का भी इसी देश में यह कहकर विरोध किया जाता रहा कि यह इस्लाम और ईसाई धर्म के विरुद्ध हिन्दुओं की पूजा पद्धति से जुड़ा है। जिस योग के पीछे अमेरिका जैसी सर्वाधिक विकसित राष्ट्र में गजब का दीवानापन है, विश्व भर के स्वास्थ्य वैज्ञानिक भारतीय योग को तमाम असाध्य बीमारियों का इलाज बता रहे हैं उसका सिर्फ इस कारण विरोध किया जा रहा है क्योंकि भारतीय ऋषि मुनियों की देन है। स्पष्ट है कि यह सिर्फ भारत और भारतीयता के खिलाफ सोची-समझी साजिश का ही प्रतीक कहा जा सकता है।

यह बात यहीं समाप्त नहीं होती। भारत के गौरवशाली इतिहास के साथ किस प्रकार छेड़छाड़ की जाती रही है। यह भी किसी से छुपा नहीं है। हिन्दू साम्राज्य की स्थापना के शौर्यप्रतीक एक तथाकथित हिन्दू विरोधी मानसिकता के चित्रकार ने दिखाया। इसी खंड काल में पुरातन काल से जारी अमरनाथ यात्रा को वाधित करने का सरकारी षड्यंत्र हुआ और हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक रामसेतु को तोडऩे की सरकारी योजना को मंजूरी दी गई। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि इस देश की पहचान भारत के राष्ट्रपुरुष भगवान राम के अस्तित्व को ही मानने से इंकार कर दिया गया और यह अपराध इस देश की केन्द्र सरकार के द्वारा बाकायदा न्यायालय में हलफनामा देकर किया गया।

भारत और भारतवासियों के लिए निश्चित ही यह समय कष्टकारक रहा है। अब देश में व्यवस्था परिवर्तन हो चुका है। अब देश को, भारत माता को परम् वैभव पर पहुंचाने की आश बढ़ी है। इस अनुकूल परिस्थिति में हम सभी राष्ट्राभिमान के जागरण का शंखनाद करें और अपनी संस्कृति पर गर्व का जयघोष करें।

2 COMMENTS

  1. श्रीमान जी यह आलेख सतना के एक अखबार में प्रकाशित हुआ है जिसमें यह लेख आपके नाम से नहीं है…। ऐसे चोरी करना ठीक नहीं।

  2. हिंदी ही नहीं भारतीय सभ्यता और संस्कृति भी तार-तार हो रही है वहाँ। मानवाधिकारों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है पर सब उनकी जेब में..
    November 26, 2012 at 8:11am
    हिंदी ही नहीं भारतीय सभ्यता और संस्कृति भी तार-तार हो रही है वहाँ। मानवाधिकारों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है पर सब उनकी जेब में..
    बात केवल हिंदी की ही नहीं है रिलायंस के के0 डी0 अम्बानी विद्या मंदिर जामनगर ( गुजरात ) में मनोज परमार मैथ टीचर को इतना टार्चर्ड किया गया कि प्रिंसिपल सुंदरम के सामने स्कूल में मीटिंग में ही उनका ब्रेन हैमरेज हो गया। वो गुजराती ही थे आज उनके बच्चे के प्रति स्कूल या रिलायंस कुछ नहीं कर रही है पत्नी को नौकरी भी नहीं दिया गया उनके पिताजी से खुद बात कर सकते हो – 9824503834.
    Soon after joining Mr.Sundaram did a really very wrong. He forced 3 gujarati teachers with very cruelty (Parth Mehta – 9726527001, Nalin Panchal and Ketan Prajapati – 9898930011) and also some office staff (Mrs. Sapna – 9824597192, Mr. Vikram and Milan Vadodaria -9998959359) to resin and that also without any proper reason. So, these people had to resin from the school unwillingly. This was a very inhuman and cruel work done by him.Repeating the same tradition, Gohel Bhai and Narayan Bhai(drivers – 9879509581, 9712445340 ), Ketan Bhai (music teacher) and many other employees have been forced to resin without any sufficient reason2) Due to Sundaram and Alok Sir so many excellent teachers are left the school like –Dr. Navin Sharma( 09663451065.), Dr.Nitu Singh, Mr.Kshmanand Tiwari (07567166915), Mr.Gajendra Khandelwal (9374373881), Dr.Ashok Kumar Tiwari (9428075674), Mr. Narsimhan (09952174530), Parth k Mehta( 9726527001)etc. please contact those persons also, for realities
    इस में आप सबकी मदद चाहिए मित्र ….किसी शिक्षक ने आपको भी पढ़ाया होगा उसी नाते इन शिक्षक-शिक्षिकाओं की सहायता करो मित्र सहायता करो…………प्लीज.!!!

    जब भारत सरकार के मंत्री रेड्डी साहब जैसे लोग निकाले जा रहे हैं तो ये लोग बिखरे हैं शांत प्रकृति के टीचर्स हैं……बिना आप सबकी
    मदद के कुछ नहीं कर पाएँगे……….
    रिलायंस जामनगर (गुजरात) में भोले-भाले लोगों को सब्ज बाग दिखाकर उनकी रोजी छुड़वाकर बुलाया जाता है फिर कुछ समय बाद
    इतना प्रताड़ित किया जाता है कि वे या तो आत्महत्या कर लेते हैं या उन्हें निकालकर बाहर कर दिया जाता है जैसा हम दोनों के साथ
    हुआ है इसलिए सच्चाई बताकर लोगों को मरने से बचाना सबसे बड़ा धर्म है अधिकतम लोगों को संदेश पहुँचाकर आप भी पुण्य के भागी बनिए…………….!!!

    गुजरात में लगभग सभी रिलायंस की हराम की कमाई डकार कर बिक चुके हैं इसलिए पचासों पत्र लिखने महामहिम राष्ट्रपति-राज्यपाल तथा प्रधानमंत्री का इंक़्वायरी आदेश आने पर भी गुजरात सरकार चुप है !

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