कुल्हाड़ी

लघुकथा : पर्यावरण दिवस 05 जून पर विशेष

                          प्रभुनाथ शुक्ल

देखिए ! हमने इस पेड़ को खरीद लिया है। इसे काटने का अधिकार मेरा बनता है। क्योंकि, यह आम का पेड़ मोंगाराम का है उन्होंने इस पेड़ को मुझे बेंच दिया है। आप लोग पेड़ काटने से नहीं रोक सकते। गांव के चार बुजुर्गो को समझाते हुए लकड़ी व्यापारी जोधाराम ने कहा था। उसका काम ही हरे और सूखे पेड़ों को काटना था।

लेकिन जोधाराम जी यह तो गैर कानूनी है। हरे पेड़ो को आप नहीं काट सकते हैं। वह भी आम का पेड़, इस वक्त तो इसमें फल हैं। यह कानून जुर्म है। बुजुर्ग  जेठालाल ने चिंता जाताते हुए कहा था।

जेठालाल जी, आपकी बात सच है, लेकिन इस जमाने में कौन कानून मानता है। सब पैसे पर काम हो जाता है। फारेस्ट आफिसर तो अपना करीबी है। रोज़ की उठक बैठक है। फिर पर्यावरण संरक्षण का कानून बनाने वाली सरकारें भी तो विकास की आड़ में पेड़ों का कतल करती हैं। जोधाराम ने जेठालाल को समझाते हुए कहा था।

व्यपारी की बात सुनकर जेठालाल ने कहा यह तो मोंगाराम ने पैसे की लालालच में आकर गलत किया। जमीन का पैसा तो हम चारों भाईयों से ले लिया था। कम से कम इस पेड़ को ही छोड़ जाते। इसके साथ पीढ़ियों तक उनकी यादें बनी रहती। देखिए जोधाराम जी, हम लोग इस पेड़ को कटने नहीं देंगे। क्योंकि इस पेड़ से हमारी यादें जुड़ी हैं। इस आम के पेड़ ने हम सब को फल, ताज़ी हवा, छांव दिया है। बचपन में हम लोगों ने इसी पर उछल कूद कर आनंद लिया है।

इसके मीठे फल का कर्ज हम कभी नहीं उतार सकते। जेठ के दुपहरी में हमें इसी नींड़ के नीचे आराम मिला है। कितने मवेशी इसकी छांव में अपना वक्त काट दिया। राहगीरों ने भी इसके नीचे शीतलता पायी। हमारी पीढ़ियां इसी के सानिध्य में पली। यह हमारे पर्यावरण को स्वच्छ रखता है। जीवनदायी वायु देता है। यह हमारे सुख-दुःख का साथी रहा। फिर इस पर कुल्हाड़ी कैसे चलने देंगे।

जोधराम जी अंतिम बात यह है कि इस पेड़ को बचाने के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं, लेकिन आपकी कुल्हाड़ी इस पर नहीं चालने देंगे। जेठालाल की चेतावनी के बाद जोधाराम उलझ गया था, क्योंकि पेड़  की खरीद के लिए उसने मोंगाराम को दस हजार रुपए दिए थे। जोधाराम किसी पचढ़े में पड़ना नहीं चाहता था। लिहाजा उसने जेठालाल के चारों भाइयों के सामने एक प्रस्ताव रखा कि मैं ने इस पेड़ को मोंगाराम से दस हजार रुपए में ख़रीदा है। अगर मेरे पैसे मिल जाएं तो पेड़ पर कुल्हाड़ी नहीं चलाएगा।

जेठालाल और उसके भाई व्यापारी के इस प्रस्ताव पर तैयार हो गए। चारों भाईयों ने अपने हिस्से के  2500-2500 रुपए व्यापारी जोधाराम को देकर आम के पेड़ को कटने से बचा लिया। जोधाराम को पैसा पाने के बाद सकून मिला और वह किसी तरह चुपचाप भाग निकला। इधर जेठालाल और उसके भाईयों ने जैसे ही आम की तरफ निहारा शांत पड़ी उसकी डालिया झूमने लगी। जैसे प्राण बचने की ख़ुशी में जेठालाल और उसके भाईयों का सिर झुकाकर वे अभिवादन दे रहीं थीं।

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