बसंत बहार

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life2गूंजा राग बसंत बहार

दिशा दिशा सम्मोहित हैं,

फूल खिले तो रंग बिखरे हैं,

गूंजा जब मधुरिम आलाप।

भंवरों पर छाया उन्माद,

स्वरों की हुई जो बौछार,

तितली भंवरे और मधुलिका,

पुष्पों के रस मे डूब रहे हैं।

प्रकृति और संगीत एक रस,

स्वर ताल के संगम में अब,

झूल रहे हैं फूलों के दल,

मस्त समीर के झोंकों के संग।

 

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मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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