—विनय कुमार विनायक
राजनीति ना करो आदमी हो
आदमी के लिए कुछ भला करो जीओ और मरो!
जब तुम काम करते हो मरने मारने के गंदे,
तब तुम हो नहीं किसी रहमदिल खुदा के बंदे!
ये झूठ के सब धर्म मजहब पूजा नमाज हज,
झूठ के सारे ईश्वर खुदा रब जो फैलाते नफरत!
अगर कोई जीवन दे नही सकता किसी को,
तो मारने का भी हक मिला नहीं है किसी को!
तुम जो भी हो खुद नहीं हो दूसरों की बदौलत,
तुम कुछ भी नहीं हो सिर्फ बन चुके धन दौलत!
तुमने जो भी पाया है वो दूसरे से ही आया,
तुम्हें जिस धन रुप और यौवन ने भरमाया,
वो किसी जीव से विरासत मुनाफा में पाया!
जिस देह पर तुम इतना अधिक इतरा रहे हो,
समझो विदेश नहीं स्वदेश की माटी से निखरे हो!
यहां कोई नहीं है अपना, नहीं कोई यहां पराया,
तुम कौन हो आखिर ये तुम्हें समझ नहीं आया!
ये देह जो मिला है वो पानी का बुलबुला है,
ये रुप जो मिला है इसी बागवां में खिला है!
तुम क्यों बहसी सा होकर बहक जाते हो,
तुम क्यों किसी के जीने का हक मार देते हो?
ये जो भी समझ रहे हो वो निजी समझ नहीं तुम्हारी,
ये जो भी तुम सोचते हो वो निजी सोच नहीं तुम्हारी!
ये सोच समझ धर्म मजहब मंशा विचार जो मिलते हैं,
वो किसी के पूर्वाग्रह गिले शिकवे संग उधार मिले होते हैं!
कितने सार ग्रहण करोगे, कितना दुर्विचार त्याग देना,
ये काम है तुम्हारा किसी का हथियार नहीं बन जाना!
ये जो बहका बहला फुसला रहे हैं तुम्हारे मन को,
समझो आग में दहका जला रहे तुम्हारे यौवन को!
ये जो इंसानियत को मरने मारने को
उकसा बरगला रहे हैं किसी कौम को
वो करते नहीं भला किसी का इसको समझ लो!
वे जो मानते नहीं हैं किसी भले ईश्वर रब मजहब को,
समझो धर्म ईमान इंसान के ऐसे दुश्मन मतलबपरस्त को!
—विनय कुमार विनायक