भिखारियों के देश में धनी भगवान

जितेन्द्र कुमार नामदेव

अक्सर सोचता था कि सड़क पर भीख मांगने वाले लोग भगवान, ईश्वर, अल्ला के नाम पर ही क्यों मांगते हैं? सड़क पर चलते समय कोई भिखारी आकर आपसे कहेगा, ‘भगवान के नाम पर कुछ दे दे बाबा’। फिर आप भी भगवान के नाम पर दो-चार-पांच रूपये के सिक्के उस भिखारी को दे देते हैं। यह सोचकर कि किसी गरीब की मदद करने से आपका भी थोड़ा-बहुत भला हो जाए। लेकिन ऐसा नहीं होता, क्योंकि हम जिस देश में रह रहे है उस देश का एक उसूल है कि जो गरीब है वो गरीबी में मरेगा और जो अमीर है वो और अमीर होता जाएगा।

देश में आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले 41 प्रतिशत से ज्यादा हैं। पूरा भारत वर्ष इन्हीं 41 फीसदी लोगों के बदौलत चल रहा है। जो मध्यम वर्ग का है वो अपने जीवन को एक स्तर पर ठीक-ठाक चला लेता है और जो अमीर है वो वैसे भी हिन्दुस्तान से ज्यादा विदेशी सैर सपाटे में उलझा रहता है। आम आदमी ही है जो मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा और चर्च में जाकर सभी की सलामती की दुआएं करता है। बाकी करोड़पति, व्यवसाईयी लोगों को तो धन कमाने से ही फुरसत नहीं है। वो भला भगवान के द्वार पर जाकर भी क्या करेंगा? भगवान ने उन्हें पहले से ही सब कुछ दे रखा है।

जो करोड़ो की सम्पत्ति के बलबूते पर खुद को सम्पन्न समझते हैं। वो अपने धन को भगवान के चरणों से ज्यादा स्वीच बैंकों में सुरक्षित समझते हैं। वहीं देश का आम आदमी जो गरीबों की गिनती में आता है, भगवान, ईश्वर अल्ला, वाहगुरू, रव, खुदा, गोड, में भरोसा रखता है। वही लोग हैं जो मंदिरों में अपनी खून पसीने की कमाई को भगवान के चरणों में समर्पित करते है। इस उम्मीद के साथ कि आज नहीं तो कल ऊपर वाला उनकी मन की मुराद पूरी करेगा। किसी की कन्या का विवाह होना है। किसी को अपने बेटे की नौकरी की दुआ करनी है। कोई अपना खुद का घर बनाना चाहता है। तो कोई ईश्वर से सबकी सलामती की दुआ करता है। ऐसे ही लोग भगवान के चरणों में कुछ न कुछ समपर्ण की भावना से जाते हैं।

हिन्दुस्तान का इतिहास अगर देखा जाए तो लाखों वर्षों से यही रीत चली आ रही है। फिर चाहे वो किसी राजा का साम्राज्य रहा हो, किसी राजा की रियासत रही हो, लालाओं की जमीदारी हो या फिर आज के दौर की लोकतांत्रिक व्यवस्था सभी युगों में धर्म आस्था पर करोड़ों रूपये न्यौछावर करने वालों की कमी नहीं रही। लेकिन वो सारी धन संपदा उस आम आदमी की हैं जो दिन भर मेहनत मजदूर करने के बाद अपनी कमाई का कुछ अंश भगवान को समर्पित करता है।

हमें इन सब बातों को इस बजह से भी उठाना पड़ा है कि बीते कुछ माह से मंदिरों में मिली अटूट सम्पत्ति ने आम आदमी की आंखें खोल दी है। जिसने भी मंदिरों से मिले खजाने की बात को सुना उसके कान खड़े के खड़े रह गये, जिसने देखा तो उसकी आंखे फटी की फटी रह गयी। जहां मंदिरों के बाहर भिखारी एक-एक रूपये की भीख मांगकर अपना पेट भरने की कोशिश करता है। वहीं मंदिरों के अंदर इतनी सम्पत्ति को संग्रहित करके रखा गया था।

बीते फरवरी माह में उड़ीसा के धार्मिक शहर पुरी में 700 साल पुराने एक मठ से चांदी की 522 ईंटे मिली। बरामद हुई ईंटों का वजन 18.87 टन है और बाजार में इसकी कीमत करीब 90 करोड़ रुपए है। चार बड़े संदूकों में बंद ये ईंटें पुरी के विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के ठीक सामने स्थित एमार मठ के एक बंद तहखाने में से मिली हैं। चांदी की ये ईंटें कम से कम सौ साल पुरानी हैं। एक ईंट का वजन 38-40 किलो है और कई ईंटों पर सैन फ्रांसिस्को, शंघाई और कलकत्ता शब्द खुदे हुए हैं। हमने इस बारे में पुरातत्व विभाग को सूचना दे दी है। उनके विशेषज्ञों द्वारा इन ईंटों कि जांच के बाद ही उनकी प्राचीनता के बारे में सही तथ्य पता चलेगा।

इसके बाद सत्य साईं बाबा के निधन के बाद उनके ट्रस्ट में भी 5000 करोड़ रूपये की संपत्ति का मिलना लोगों के लिए किसी अचम्भे से कम नहीं था। फिर देश के एक और बड़े खजाने का खुलासा हुआ। केरल के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में बरसों से छिपी अकूत संपदा का पता चला है। केरल में त्रावणकोर के राजा इस मंदिर के मालिक रहे। भारत की आजादी से केवल एक साल पहले पाँच सौ से ज्यादा राज्यों ने गदर का परचम उठाया। ये सभी राज्य आजादी की मांग कर रहे थे। लेकिन आखिरकार त्रावणकोर रियासत ने भारत में शामिल होने का फैसला कर लिया। भारतीय संघ में शामिल होने के बावजूद उनका 16वीं शताब्दी के श्री पद्मनाभास्वामी मंदिर पर अधिकार बना रहा।

अटकलें लगायी जा रही हैं कि मंदिर के छह तहखानों में कितनी संपत्ति होगी? यहाँ बेहद पुराने सोने की जंजीरें, हीरे-जवाहरात और कीमती पत्थर रखे होने की अटकलें लगाई जा रही हैं। इस संपत्ति की कीमत पैसे में नहीं आँकी जा सकती। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यहाँ सोने से भरी 450 हांडियाँ, 2,000 रूबी और जड़ाऊ मुकुट, सोने की 400 कुर्सियाँ और एक मूर्ति जिसमें 1,000 हीरे जड़े हुए हैं। इनकी कीमत बीस अरब डॉलर बताई जा रही है जो कि भारत का शिक्षा बजट जितना है।

माना जाता है कि श्री पद्मानाभास्वामी (विष्णु) मंदिर के चार में से दो तहखानों को पिछले 130 वर्षों से खोला नहीं गया था। जबकि छठे तहखाने को खोलना अभी भी बाकी है। मंदिर का छठा तहखाना खुलने पर क्या होगा यह तो सवालों के घेरे में हैं? 16वीं सदी के इस मंदिर भूमिगत तहखानों से अरबों रुपए के कीमती हीरे, सोना और चांदी बरामद होना इस बात की गवाही है कि देश में श्रद्धा और आस्था के चलते लोगों ने कितनी संपत्ति को मंदिरों में जमा कर रखा है।

मंदिरों में जमा यह धन संपदा किस काम की जब देश में भुखमरी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से गरीबी अपना दम भर रही हो। अनुमान लगाया जा रहा है मंदिर में प्राप्त संपदा इतनी है जिससे देश का शिक्षा बजट चलाया जा सकता है और शिक्षा बजट ही क्यों न जाने कितने बजट चलाये जा सकते हैं। तो फिर इस धन को किसी नेक काम में क्यों नहीं लगाते? और ऐसा न जाने कितने मंदिर होंगे जिनमें लाखों-करोड़ों की संपत्ति भरी पड़ी होगी।

फिलहाल जो भी हो इस संपदा को देखने के बाद हर कोई यही कहेंगा कि ‘भिखारियों के देश में धनी भगवान’ जहां गरीबी के चलते लोग भिक्षावृत्ति के लिए मजबूर हैं और भगवान के मंदिरों में धन दौलता का अम्बार लगा है।

3 COMMENTS

  1. क्या गारंटी की आज के ब्रष्ट नेता व् अफसर इस धर्म की राशी का सही प्रयोग करेंगे??? …यदि इन लोगों की काली कमाई का ही सदुपयोग किया जाये ,तो देश में कोई गरीब नाम का व्यक्ति नहीं होगा ….आज लागु कानून शतकों से संचित धन पर फैसला कैसे कर सकता है???? ………. हिन्दुओं की संपत्ति पर ही सबकी नज़र क्यों रहती है ??????

  2. धर्मावलम्बियो मंदिरों मठों में मिली अतुलित सम्पति का उपयोग कैसे किया जाये ये एक बहुत महत्वपूर्ण व् पेचीदा सवाल है
    क्योंकि
    १ इस अतुलित दोलत को सताधारियो के हाथो सोप कर ये सोचना की देशहित या जनहित के लिए ये बहुत बड़ा कार्य है तो ये मुर्खता की हद है
    २ ऐसी सम्पति पहले भी मिल चुकी है क्या उस सम्पति का उचित उपयोग हुआ है
    ३ देश अभी तक इतना गरीब नहीं हुआ है की किसी की निजी सम्पति को देशहित के लिए राजकोष में भरा जाये
    ४ जो सम्पति देश में ही है और देश में ही रहेगी उस सम्पति की चिंता कहा तक उचित है जबकि देश की बेशुमार सम्पति देश के ही कुछ गद्दारों द्वारा विदेशो में जमा करा रखी है और वो इसी देश में चैन की नीद सो रहे है
    ५ सम्पति मंदिर और मठों की ही नहीं मस्जिद और चर्च में भी अतुलित सम्पति निकल सकती है परन्तु तलाशी यहाँ मंदिरों की ही ली जाती है आखिर क्यों
    ६ कुछ नासमझ और अनजान लोग इस सम्पति को काला धन तक मानने लगे है जबकि ये सारी सम्पति बहुत ही ईमानदारी व् सेंकडो वर्षो में अर्जित मंदिर की कमाई है

    मंदिर मठों से प्राप्त धन हमेशा से ही लोक कल्याण के लिए खर्च होता था और होता रहेगा
    अगर जनमानस को चिंता करने की जरुरत है तो उस धन की करे जो उन्ही द्वारा चुने जनप्रतिनिधियों के द्वारा केवल शोकिया तौर पर विदेशो में जमा किया जाता है

  3. नामदेव जी ,अपने लेख में भगवान के विभिन्न निवासों पर सुरक्षित धन सम्पति का व्योरा देते हुए जिस प्रश्न को आपने प्रवक्ता पर पहली बार उठाया है ,विभिन्न समाचार पत्रों और फेश बुक, ट्विट्टर इत्यादि पर पिछले अनेक दिनों से एक लम्बी बहस का कारण बना हुआ है. बहुत कम संख्या उन लोगों की है जो आपकी तरह सोच रहे हैं,हालाँकि उन अल्पसंख्यकों में मैं शामिल हूँ..ज्यादातर लोग तो वे हैं जो इस सम्पति को जहां मिला है वहीं छोड़ देने के पक्ष में हैं.ऊपर से उसके अधिकतम सुरक्षा के लिए जनता पर और बोझ डालना चाहतेहैं.
    आपने अपने लेख में भिखारियों का भी जिक्र किया है,तो आज के ज्यादातर भिखारी उस आम जनता से ज्यादा धनी निकलेंगे ,जो जनता उनको भिक्षा में एक या दो रूपये दान देना अपना कर्तव्य समझती है.अभी कुछ दिनों पहले एक भिखारी की मौत हुई थी तो उसके फटे पुराने कपड़ों से दो लाख रूपये की राशि बरामद हुई थी.मेरे विचार से एक मुस्त इतनी धन राशि किसी आम आदमी के पास,वह भी उसके मरणोपरांत शायद ही मिले.

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