आस्था

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बीनू भटनागर

मेरी आस्था मेरी पूजा का नाता मन मस्तिष्क से है,

और है आत्मा से।

 

मेरी पूजा मे ना पूजा की थाली है,

ना अगरबत्ती का सुगन्धित धुँआ है,

प्रज्वलित दीप भी नहीं है इसमे,

फल फूल प्रसाद से भी है ख़ाली,

क्योंकि,

मेरी आस्था मे प्रार्थना व ,शुकराना है,

और है समर्पण भी।

 

मेरी आस्था मे न है सतसंग कीर्तन,

ना ही कोई समुदाय है ना संगठन,

मेरी आस्था तो केवल आस्था है,

ये तो है मुक्त है और है बंधन रहित

क्योंकि

मेरी आस्था मे ना कोई दिखावा है।

और है न प्रपंच कोई

मेरे ईश को अर्पण कर सकूं ऐसा,

मेरे पास नहीं है कुछ वैसा

वो दाता है जो भी देदे वो,

हर पल उसका शुकराना है,

क्योंकि,,

मेरी आस्था का नाता है विश्वास और विवेक से

जुड़े निर्णय मे ओर अनुभव मे

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मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

5 COMMENTS

  1. गंभीर बातों को बोलचाल की भाषा में लिखना बीनू भटनागर जी की विशेषता है . आस्था के बारे
    में उन्होंने बहुत सुन्दर लिखा है .

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